परम पूज्य गुरुदेव, वंदनीय माता जी के सूक्ष्म संरक्षण और मार्गदर्शन में शनिवार का “अपने सहकर्मियों की कलम से” का यह लोकप्रिय सेगमेंट आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए बहुत ही हर्ष हो रहा है।काश आपके पास दिव्य नेत्र होते तो आप इस स्पेशल सेगमेंट की लोकप्रियता का अनुमान लगा सकते। इस छोटे से किन्तु समर्पित परिवार जिसका नाम, “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार” है, का एक-एक सदस्य जिस जोश और श्रद्धा से अपना योगदान दे रहा है, उसको वर्णन करने के लिए हमारी मस्तिष्क डिक्शनरी में कोई उपयुक्त शब्द नहीं रहे। परम पूज्य गुरुदेव से सदैव निवेदन करते रहते हैं कि हम सभी को अपना सूक्ष्म एवं दिव्य संरक्षण प्रदान करते रहें ताकि हम गिलहरी, रीछ, वानर की भांति कुछ भूमिका निभाने को सक्षम हो सकें।
आज के इस सेगमेंट में हमारी दो बहिनों की अनुभूतियाँ प्रस्तुत हैं जो उन्होंने अपने पिता जी के अंतिम क्षणों को वर्णन करते लिखी हैं। आज के प्रकाशन का कुछ भाग हमारे पाठक पिछले अंक में पढ़ चुके हैं लेकिन आज हमें इक्क्ठा वृतांत प्रस्तुत करना उचित प्रतीत हुआ। हम सब जानते हैं कि वंदना जी पुष्पा जी की भाभी हैं, जिस भावना को इन्होने व्यक्त किया है उसे शब्दों में बांधना असंभव है। इन दिव्य अनुभूतियों को आरम्भ करने से पूर्व कुछ छोटी छोटी बातें कर लें तो ठीक रहेगा।
1. प्रसन्नता की बात है कि सरविन्द भाई साहिब के बेटे आयुष पाल UPCA क्रिकेट मैच के द्वितीय ट्रायल में उत्तीर्ण हुए हैं, उन्हें हम सबकी बधाई और शुभकामना।
2. हमारी सबकी प्रिय बेटी संजना से आज 50 मिंट बात हुई, DSVV में गुरुदेव की कृपा से अग्रसर हुए जा रही है। श्रद्धेय डॉक्टर साहिब के जन्म दिवस ( चेतना दिवस) पर प्रस्तुत नृत्य की एक फोटो शेयर का रहे हैं। बेटी ने बहुत सारी अनुभूतियाँ भेजी हैं, समय समय पर प्रकाशित करते रहेंगें।
3. खेद है कि शब्द सीमा के कारण केवल वंदना जी और पुष्पा जी की अनुभूतियाँ ही प्रकाशित कर रहे हैं, अन्य सभी को भी समय आने पर प्रकाशित करने का प्रयास करेंगें।
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वंदना जी के पिता जी की अनुभूति :
एक बार मेरे पिताजी बीमार पड़ गए तो उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, फिर दिल्ली आरआर आर्मी हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। वहां पिताजी का इलाज चलने लगा। मेडिकल स्टाफ रोज-रोज कभी मेडिसिन देने, कभी बीपी चेक करने,कभी बेडशीट चेंज करने के लिए उनके पास आने लगे। इस वजह से पिताजी मुझसे कहते हैं कि लोग बिना मतलब के परेशान करने चले आते हैं और मेरी नींद खुल जाती है, ठीक से आराम भी नहीं करने देते। मैं उनके पास रोज जाती थी और गुरुदेव की आवाज के साथ यूट्यूब पर उपलब्ध वीडियो में 24 बार गायत्री मंत्र पढ़ती थी।
इस वीडियो की भी एक अलग कहानी है। मुझे तब पता नहीं था कि गुरुदेव का ऐसा वीडियो भी है। मैं सोच रही थी कि जब गुरुदेव शरीर त्याग नहीं किए थे तो लोग उनसे मिल लेते थे और अपनी समस्या बता कर आशीर्वाद प्राप्त कर लेते थे लेकिन अब वो हैं नहीं तो मैं उनसे कैसे मिलूं। यह पता था कि गुरुदेव सब देख रहे हैं लेकिन मैं तो उनको नहीं देख पा रही। यह सब बातें सोच ही रही थी कि पता नहीं कैसे गुरुदेव का वीडियो यूट्यूब पर मिल गया और मैं साथ-साथ पढ़ने लग पड़ी । ऐसा लगा कि गुरुदेव ने साबित कर दिया कि वोह हमारे साथ हैं और सबको देख रहे हैं।
बात का विषय बदलना करने के लिए माफ़ी चाहती हूँ।
तो मैं बता रही थी कि मैं पिताजी को देखने रोज हस्पताल जाती थी। एक दिन गयी तो देखा पिताजी आंखे बंद किए थे और गुस्से से बोल रहे थे कि जाओ भागो यहाँ से। मैं सोची कि मुझे मेडिकल स्टाफ समझकर गुस्सा हो रहे हैं, मैं बोली- पापाजी मैं हूँ । तब उन्होंने आंखे खोली और मुस्काने लगे। मैं बोली कोई सपना देख रहे थे क्या? उन्होंने कहा कि अभी खाने का समय है बाद में बताऊंगा। मैं उनको सहारा देकर खिलाने लगी, फिर खाने के बाद बताने लगे कि एक बहुत ही काला लंबा चौड़ा विशाल आदमी था और उसके साथ एक बहुत मोटा काला विशाल भैंसा भी था जिसके पंख लगे हुए थे। दोनों बहुत ही डरावने लग रहे थे और भैंसे की आंखें भी एकदम लाल थी। उन दोनों को देख पहले डर लगा कि ये कहां से आ गए और नॉर्मल साइज से काई गुना बड़े l यह दोनों छोटे से दरवाजे से कैसे घुसे और तीसरी मंजिल तक कैसे आ गए क्योंकि आर्मी हॉस्पिटल एच एंड ऑफिसर्स क्लास है तो नीचे ही रोक लिया जाना चाहिए था। फिर उनका डर धीरे-धीरे जाने लगा और पूछने पर बोला कि मैं यमराज हूं और आपको अपने साथ लेने आया हूं । मैने मना कर दिया कि मैं नहीं जा रहा तो यमराज ने फिर चलने को कहा । पिताजी ने फिर मना कर दिया कि अभी मेरे बहुत काम बाकी हैं, अभी घर वापस जाना, तुम चले जाओ। फ़िर यमराज गिड़गिड़ाने लगा: प्लीज सर चलिये,आपके लिए कॉल आया है, प्लीज सर मेरे साथ चलिये। फिर पिताजी को गुस्सा आ गया और बोले कि चल भाग यहां से, बोल दिया कि नहीं जाना है, समझ नहीं आ रहा क्या। फ़िर यमराज जी वापस जाने लगे और उन् दोनों का आकार बिलकुल नॉर्मल हो गया। भैंसे के पंख भी गायब हो गए और दोनों दरवाजे से निकल गए।
पिताजी ने बताया कि जब यमराज से बात हो रही थी उस समय सब कुछ गायब हो गया था, न अस्पताल था, न कमरा था और न दरवाजा था। ये यमराज से संबंधित बातें थीं।
धन्यवाद और सादर चरण स्पर्श। आपका बहुत बहुत आभार।
एक बात और बताना चाहूंगी कि पिताजी ने शायद मुझसे एक बात छिपा ली थी। मुझे लगता है यमराज जी ने उन्हे 2 महीने का समय दिया होगा तभी वह उस समय से दो महीने की रट लगाये बैठे थे कि मुझे जल्दी से अच्छा होना और यह करना है, वह करना है आदि। उन्होंने घर में किसी को बताया नहीं कि लोग डर जाएंगे और दुःखी हो जाएंगे। वोह मेरी माँ से कहते थे कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, यह मकान, दौलत कुछ भी नहीं। यह भी बोले कि मरने का भी डर नहीं, लेकिन चाहता हूँ कि हर जन्म में डॉक्टर ही बनूं और लोगों की सेवा करता रहूं।
वोह बिना फीस लिए ही मरीजों को देखते थे ।अगर किसी गरीब के पास पैसे नहीं होते थे तो भी इलाज करते और बदले में लोग उनको जबर्दस्ती शाक, सब्जी, मिल्क, फ्रूट्स दे दिया करते थे। सप्ताह में एक दिन गायत्री मंदिर में जाकर फ्री में इलाज करते थे। यह फ्री या बहुत ही कम खर्च में इलाज करने के पीछे भी उनकी एक दर्द भरी कहानी है। इनकी माताजी यानि मेरी दादी जी को एक बार टेटनस हो गया जो कि उस समय की एक घातक बीमारी थी, गरीबी के कारण इलाज न हो पाया और उन्होंने तड़प कर दम तोड़ दिया। उस टाइम पिताजी 10 साल के होंगें। उन्होंने तब प्रण लिया कि बड़े होकर डॉक्टर बनुंगा और बिना फीस के ही इलाज करूँगा। इस प्रण को उन्होंने मरते दम तक निभाया । यमराज से बात 28 अगस्त 2019 को हुई थी और ठीक 2 महीने बाद 28 अक्टूबर 2019 उनकी मृत्यु हो गई।
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जब पिताजी की यमराज से बातें हुई थीं उसके बाद उनकी तबियत में गजब का सुधार हुआ, 6 से 7 लोगों की डॉक्टर्स की टीम थी जिन्होने कहा कि हिस्ट्री में ऐसी रिकवरी पहले कभी नहीं देखी । ऐसा क्या हुआ, उनकी किडनी 99% फेल थी फिर अचानक ठीक कैसे होने लगी। हम खुद पिताजी से ही पूछने लगे तो बताया कि सुबह 4 बजे प्राणायाम करता था और गायत्री मंत्र पढा था। ये तो मुझे और पिताजी को ही पता था कि यमराज जी ने उनको जीवन दानदिया है।
घर आने के बाद ऐसे खुश रहते थे मानो उन्हें कुछ हुआ ही न हो, दवा लेने से भी इंकार करते रहे। उनकी मृत्यु जो 2 माह बाद हुई तब, जो फुल बॉडी चेकअप करवाया गया तो रिपोर्ट में कोई बीमारी नहीं थी।अंतिम समय सांस लेने में तकलीफ हुई ,मुंह से ब्लीडिंग हुई और कोमा में चले गए थे । बाद में डॉक्टर ने उन्हे मृत घोषित कर दिया। तब मेरी हालत भी त्रिखा भाई जी की तरह ही हो गई थी क्योंकि मैं दिल्ली में थी और 3 माह की गर्भावस्था चल रही थी, पिताजी का पार्थिव शरीर बिहार में था। जाग्रत अवस्था में ही मुझे परिजनों के रोने की आवाज़ें आने लगी। यह कोई सपना नहीं था और ऐसा बाद में भी हुआ। पति से पूछा कि आपको कुछ सुनाई देता है क्या, तो उन्होंने कहा कुछ भी सुनाई नहीं देता । नींद भी नहीं आती थी,आती भी कैसे बचपन से बड़े होने तक की सारी स्मृतियां जो पिताजी के साथ गुज़ारी थीं वो सब आंखों के आगे चलने लगी। रो रो कर आंसू भी सुख चुके थे। सिर्फ 2- 3 मिनट के लिए आंखे बंद की होगी कि पिताजी की दिव्य आत्मा के दर्शन बंद आंखों में ही हो गए। वो श्वेत (सफ़ेद) वस्त्र पहनने हुए थे जैसे घर में अधिकतर पहना करते थे और हल्की मुस्कान लिए खड़े थे,शरीर भी बिल्कुल हेल्दी था। ऐसा लगा जैसे मुझे सांत्वना देने आए हैं। तब कहीं जाकर मुझे नींद आई
पुष्पा जी के पिता जी की अनुभूति :
यह अनुभूति गुरुदेव के पिताश्री के अंतिम समय के साथ कनेक्ट होती है।
जय गुरुदेव जी,जो परिस्थिति आपके सामने आपके पिताजी के अंतिम समय थी बिल्कुल वही स्थिति मेरे समक्ष भी मेरे पिता जी के लिए थी लेकिन मैं तो बिल्कुल अनभिज्ञ थी उस समय इन सब बातों के लिए, वो पहले से बीमारी से जूझ रहे थे लेकिन दो दिन पहले से बोलना कम कर दिए थे। बहुत जरूरी होने पर ही हां न में जवाब देते और वो भी मानसिक जप कर रहे थे लगातार ये बात उनके होंठ हिलने से समझ आ रहा था। मां बताई थी। शरीर त्यागने से 3 घंटे पहले जब उन्होंने देखा कि हम लोग खाना नहीं बना रहे तो बोले कि खाना बनाओ मुझे खाना है। जब बनाकर ले आई तो बस दो चम्मच ही लिए और हम लोगों को बोले कि तुम लोग भी खा लो । तो उनके पास ही बैठकर हम लोग भी थोड़ा सा खाएं और बस कुछ देर में ही बोले की हमको उठाकर बिठाओ और मेरा कपड़ा बदल दो। ठंड का मौसम होने से मैं और भाई मिलकर सिर्फ उपर का ही एक कपड़ा बदले क्योंकि बिठाने पर उन्हें कमजोरी के कारण बेहोशी हुए जा रही थी। जैसे ही बताया कि कपड़ा बदला गया तो वो बैठने का उपक्रम करने लगे और हम लोगों के देखते देखते ही थोड़ी देर में ही देह त्याग चल दिए …जय गुरुदेव जी कितनी समानता है आपके पिताश्री और मेरे पिताजी के अंतिम पलों में ।
जिस दिन पिताजी ने शरीर छोड़ा, मेरी मां को सुबह डांटते हुए कहा “अरे सभी देखो, भगवान जी आए हैं, प्रणाम करो। जब मां ने कहा कि कहां आए हैं तो बोले कि अरे पागल दिखाई नहीं देता क्या, वो सामने देखो, सभी लोग एक लाइन से खड़े हैं, सामने की दीवार तरफ इशारा करते हुए कहा। मां ने उनकी बातों को मानते हुए उधर मुंह करके प्रणाम किया लेकिन उन्हें कोई नज़र नहीं आया था। पिताजी भाव समाधी में कुछ-कुछ बोलते रहे लेकिन सब समझ में नहीं आया कि क्या बोल रहे हैं। वर्ष 2000 की वोह वेला फिर से ताजा हो गई।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची में 8 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है और अरुण जी top position प्राप्त करते हुए गोल्ड मैडल विजेता हैं।
(1 )अरुण वर्मा-57,(2)संध्या कुमार-45 ,(3 )वंदना कुमार-41,(4)सरविन्द कुमार-35 ,(5) रेणु श्रीवास्तव-36,(6) सुजाता उपाध्याय-35,(7) प्रेरणा कुमारी-28,(8) विदुषी बंता-28
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं। जय गुरुदेव