वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

अपने सहकर्मियों की कलम से -22 अक्टूबर  2022- वंदना कुमार जी के पिता जी की  यमराज वाली अनुभूति  

परम पूज्य गुरुदेव, वंदनीय माता जी के सूक्ष्म संरक्षण और मार्गदर्शन में 22 अक्टूबर  2022  शनिवार का “अपने सहकर्मियों की कलम से” का यह लोकप्रिय सेगमेंट आपके समक्ष  प्रस्तुत करते  हुए बहुत ही हर्ष हो रहा है।काश आपके पास दिव्य नेत्र होते तो आप इस स्पेशल सेगमेंट की लोकप्रियता का अनुमान लगा सकते। इस छोटे से किन्तु समर्पित परिवार जिसका नाम, “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार” है, का एक-एक सदस्य जिस जोश और श्रद्धा से अपना योगदान दे रहा है, उसको वर्णन करने के लिए हमारी मस्तिष्क डिक्शनरी में कोई  उपयुक्त  शब्द नहीं  रहे। परम पूज्य गुरुदेव से सदैव निवेदन करते रहते  हैं कि हम सभी को  अपना सूक्ष्म एवं दिव्य संरक्षण प्रदान करते रहें ताकि हम गिलहरी, रीछ, वानर की भांति कुछ भूमिका निभाने को सक्षम हो सकें।

 1.सुमन लता जी :

इस सेगमेंट की लोकप्रियता केवल शनिवार  के कंटेंट पर ही आधारित नहीं है बल्कि सारा सप्ताह, हम तो कहेंगें कि हर समय की गतिविधियों पर आधारित है। कई बार छोटी-छोटी, साधारण सी  बातें होती हैं लेकिन हमारे ह्रदय पटल पर इतना प्रभाव छोड़ जाती हैं कि हम आपके साथ शेयर किये बिना नहीं रह सकते। उदाहरण के तौर पर जब हमने  आदरणीय सुमन लता जी का कमेंट पढ़ा तो हमारे ह्रदय में उनके लिए  श्रद्धा और सम्मान की भावना और भी परिपक्व हो गयी। बहिन जी लिखती हैं :

 “ज्ञानप्रसाद की भूमिका ही इतनी रोचक और ज्ञानवर्धक होती  है कि पूरा पढ़ने को मन बरबस आगे बढ़ रहा है।हम तो हर प्रसाद को दो बार पूरा-पूरा ग्रहण करते हैं।” 

ऑनलाइन ज्ञानरथ के इन समर्पित वरिष्ठ सहकर्मी को हमारा सदैव ही नमन रहेगा। जय गुरुदेव 

2.सरविन्द पाल जी 

इसी तरह सरविन्द पाल जी का समर्पण दर्शाता “अंकित कुमार” वाला कमेंट नमन करने योग्य हैं।  शायद अधिकतर सहयोगियों को पता चल गया होगा लेकिन हम फिर भी शेयर कर रहे हैं कि भाई साहिब प्रयागराज गए हुए थे लेकिन फ़ोन साथ में लाना भूल गए थे। उनके ह्रदय में  इस समर्पित परिवार के प्रति श्रद्धा इस प्रकार ठांठें मार रही थी कि उन्होंने किसी के (अंकित कुमार) फ़ोन से कमेंट करना आरम्भ कर दिया और अपना कर्तव्य समझते हुए हमें व्हाट्सप्प पर अपडेट भी कर दिया।  ऐसा है हमारे परिवारजनों का समर्पण जी हमें प्रतिक्षण प्रेरणा दिए जा रहा है। ऑनलाइन ज्ञानरथ के 12 मानवीय मूल्यों का पालन करने के लिए हम भाई साहिब का धन्यवाद् करते हैं। 

3.श्रुति गोयल जी 

हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि यह  परिवार बहुत ही योग्य और शिक्षित प्रतिभाओं का जमावड़ा है। उसी योग्यता को साबित करता आदरणीय श्रुति गोयल जी का निम्नलिखित  कमेंट है :

गुरुदेव की कृपा भी साथ-साथ अनुभव कर रही हूँ।  आपके और अन्य भी ऐसे ही लेख और वीडियो मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं। अपनों से इसी भाव के साथ युद्ध कर रही हूँ जैसे मैं अर्जुन की जगह पर हूँ और गुरुदेव श्रीकृष्ण, वहीं गीता का श्लोक अपने जीवन में लिये हूँ।  “हतो वा प्राप्यसे स्वर्गं जित्वा वो भोक्ष्यसे महीम् तस्माद उत्तिष्ठ शशिकान्तेय (श्रुति)  युद्धाय कृत निश्चय:”  शशिकान्ता मेरी मम्मी का नाम है… और अब ऐसा लगने लगा है जैसे सब कुछ पहले से गुरुदेव ने कर रखा है बस मुझे credit लेना है। इसी तरह अपना आशीर्वाद बनाए रखिएगा।  प्रणाम्

__________

हम देख सकते हैं कि श्रुति जी को गीता के इस श्लोक पर कितना विश्वास है और उन्हें कितनी समझ है। उन्होंने  “कौन्तेय” के स्थान पर  “शशिकान्तेय” अपनी मम्मी का नाम substitute करके यह उपदेश अपने ऊपर ही apply कर लिया है। यह हैं योग्यता ! उनकी व्यक्तिगत स्थिति की  इस open प्लेटफॉर्म पर चर्चा तो नहीं कर सकते लेकिन इतना अवश्य ही कह सकते हैं कि जीवन में आ  रहे दुःख- सुख रात और दिन की तरह हैं।  जिस दिन हमारे जीवन में कोई challenge न आये तो समझ लेना चाहिए कि जीवन का मार्ग किसी  और दिशा में जा रहा है।     

इसी श्लोक का original रूप एवं अर्थ भी लिखना उचित समझते हैं। 

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्। तस्मादुत्तिष्ठ “कौन्तेय” युद्धाय कृतनिश्चयः

अगर तू  युद्ध में मारा जायगा तो तुझे स्वर्गकी प्राप्ति होगी और अगर तू  युद्ध में तू जीत जायगा तो पृथ्वीका राज्य भोगेगा। अतः हे कुन्तीनन्दन! तू युद्धके लिये निश्चय करके खड़ा हो जा।

4. कमैंट्स एक रिकॉर्ड :

आप हमारे साथ अवश्य ही सहमत होंगें कि गुरुकार्य में योगदान देना, गुरुदेव के  साहित्य का स्वाध्याय करना, औरों को पढ़ाना ,कमेंट करना ,काउंटर कमेंट से रिप्लाई प्राप्त करना- एक-एक प्रक्रिया प्राण ऊर्जा का संचार कर रही है। जिस किसी को इस प्रक्रिया में लेशमात्र भी शंका है, उसे केवल इतना ही कह सकते हैं कि आप स्वयं try and test करके देख लें । हाँ शर्त केवल एक ही है “समर्पण और पात्रता”, इसके लिए समयदान और संयम का पालन करना  पड़ेगा, तभी कुछ परिणाम दिखने आरम्भ होंगें।  हथेली पे सरसों जमाने वालों को पराजय का ही सामना करना पड़ता है।   

सभी परिजन कमेंट-काउंटर कमेंट की प्रक्रिया में इतना अधिक involve हो चुके हैं कि 20 अक्टूबर की संकल्प  सूची में 1200 कमैंट्स थे, 34 परिजनों ने 24 आहुति संकल्प पूरा किया और 12 गोल्ड मेडलिस्ट थे। यह नंबर सभी के लिए बधाई का विषय तो हैं ही  लेकिन करबद्ध एक सुझाव देना चाहते हैं कि कमैंट्स केवल गिनती बढ़ाने के लिए लिखना शायद  हमारे परिवार के मूल्यों का अपमान हो जिसे हममें से कोई भी सहन न कर सकेगा। कृपया इस सुझाव के पर अपने विचार अवश्य लिखें।    

5.वंदना कुमार जी के पिता जी की यमराज वाली अनुभूति :

एक बार मेरे पिताजी बीमार पड़ गए तो उनको अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा, फिर दिल्ली आरआर आर्मी हॉस्पिटल रेफर कर दिया गया। वहां  पिताजी का इलाज चलने लगा।  मेडिकल स्टाफ रोज-रोज कभी मेडिसिन देने, कभी बीपी चेक करने,कभी बेडशीट चेंज करने के लिए उनके पास आने लगे। इस वजह से पिताजी मुझसे कहते हैं कि लोग बिना मतलब के परेशान  करने चले आते हैं और मेरी नींद  खुल जाती है, ठीक से आराम भी नहीं करने देते। मैं  उनके पास रोज जाती  थी और गुरुदेव की आवाज के साथ यूट्यूब पर उपलब्ध  वीडियो में  24 बार गायत्री मंत्र पढ़ती थी। 

इस वीडियो की भी एक अलग कहानी है। मुझे तब पता नहीं था कि  गुरुदेव का ऐसा  वीडियो भी है। मैं  सोच रही  थी कि जब गुरुदेव शरीर  त्याग नहीं किए थे तो लोग उनसे मिल लेते थे  और अपनी समस्या बता कर  आशीर्वाद प्राप्त कर लेते थे लेकिन अब वो हैं नहीं तो मैं उनसे कैसे  मिलूं। यह पता था कि गुरुदेव सब देख रहे हैं  लेकिन मैं  तो उनको नहीं देख पा रही। यह  सब बातें सोच ही रही थी कि  पता नहीं कैसे गुरुदेव का वीडियो यूट्यूब पर मिल गया और मैं साथ-साथ पढ़ने लग पड़ी । ऐसा  लगा कि  गुरुदेव ने साबित  कर दिया कि वोह हमारे साथ हैं  और सबको देख रहे हैं। 

बात का विषय बदलना करने के लिए माफ़ी चाहती हूँ। 

तो मैं बता रही थी कि मैं पिताजी को देखने रोज हस्पताल जाती थी। एक दिन गयी  तो देखा पिताजी आंखे बंद किए थे  और गुस्से  से बोल रहे थे कि  जाओ भागो यहाँ से। मैं  सोची कि  मुझे मेडिकल स्टाफ समझकर  गुस्सा हो रहे हैं, मैं बोली- पापाजी मैं हूँ । तब उन्होंने आंखे खोली और मुस्काने लगे। मैं बोली कोई सपना देख रहे थे क्या? उन्होंने कहा कि अभी खाने का समय है बाद में बताऊंगा। मैं उनको सहारा देकर खिलाने लगी, फिर खाने के बाद बताने लगे कि एक बहुत ही काला लंबा चौड़ा विशाल आदमी था और उसके साथ एक बहुत मोटा काला विशाल भैंसा भी था जिसके पंख लगे हुए थे। दोनों  बहुत ही डरावने लग रहे थे और भैंसे की आंखें भी एकदम लाल थी। उन दोनों को देख पहले डर लगा कि ये कहां से आ गए और नॉर्मल साइज से काई गुना बड़े l यह दोनों  छोटे से दरवाजे से कैसे घुसे और तीसरी मंजिल तक कैसे  आ गए क्योंकि आर्मी हॉस्पिटल एच एंड ऑफिसर्स क्लास है तो नीचे ही रोक लिया जाना चाहिए था। फिर उनका डर धीरे-धीरे जाने लगा और पूछने पर  बोला कि मैं यमराज हूं और आपको अपने साथ  लेने आया हूं । मैने मना कर दिया कि मैं नहीं जा रहा तो यमराज ने फिर चलने को कहा । पिताजी ने फिर मना कर दिया कि अभी मेरे बहुत काम बाकी हैं, अभी घर वापस जाना, तुम चले जाओ। फ़िर यमराज गिड़गिड़ाने लगा: प्लीज सर चलिये,आपके लिए कॉल आया है, प्लीज सर मेरे साथ चलिये। फिर पिताजी को गुस्सा आ गया और बोले कि चल भाग यहां से, बोल दिया कि नहीं जाना है, समझ नहीं आ रहा क्या। फ़िर यमराज जी वापस जाने लगे और उन् दोनों  का आकार बिलकुल नॉर्मल हो गया। भैंसे  के पंख भी गायब हो गए और दोनों दरवाजे से निकल गए। 

पिताजी ने बताया कि जब यमराज से बात हो रही थी उस  समय सब कुछ गायब हो गया था, न अस्पताल था, न कमरा था और न दरवाजा था। ये यमराज से संबंधित बातें थीं।

धन्यवाद और सादर

चरण स्पर्श। आपका बहुत बहुत आभार। 

एक बात और बताना चाहूंगी कि पिताजी ने शायद मुझसे एक बात छिपा ली  थी। मुझे लगता है यमराज जी ने उन्हे 2 महीने  का समय दिया होगा तभी वह उस समय से दो महीने  की रट लगाये बैठे थे कि  मुझे जल्दी से अच्छा होना और यह करना है, वह  करना है आदि। उन्होंने घर में किसी को बताया नहीं कि लोग डर जाएंगे और दुःखी हो जाएंगे। वोह  मेरी माँ  से कहते थे  कि मुझे कुछ नहीं चाहिए, यह  मकान, दौलत कुछ भी नहीं। यह  भी बोले कि मरने का भी डर नहीं, लेकिन चाहता हूँ  कि  हर जन्म में डॉक्टर ही  बनूं  और लोगों  की  सेवा करता रहूं। 

वोह  बिना फीस लिए ही मरीजों को देखते थे ।अगर किसी गरीब के पास पैसे नहीं होते थे  तो भी इलाज करते और बदले में लोग उनको जबर्दस्ती शाक, सब्जी, मिल्क, फ्रूट्स दे दिया करते थे। सप्ताह में एक दिन गायत्री मंदिर में जाकर  फ्री में  इलाज करते थे। यह फ्री या  बहुत ही कम खर्च में इलाज करने के पीछे  भी  उनकी  एक दर्द भरी कहानी है। इनकी माताजी यानि मेरी दादी जी को एक बार टेटनस हो गया जो कि  उस समय की  एक घातक बीमारी थी, गरीबी के कारण  इलाज न हो पाया और उन्होंने तड़प कर दम तोड़ दिया। उस  टाइम पिताजी  10 साल के होंगें। उन्होंने तब प्रण लिया कि बड़े होकर डॉक्टर बनुंगा और बिना फीस के ही इलाज करूँगा। इस प्रण  को उन्होंने मरते दम तक निभाया । यमराज से बात 28 अगस्त 2019 को हुई थी और ठीक  2 महीने  बाद 28 अक्टूबर 2019 उनकी मृत्यु हो गई।

आपका बहुमूल्य समय नष्ट  करने के लिए माफ़ी  चाहती हूँ। 

बहिन जी की इस लाइन का उत्तर देते हुए हमने लिखा था-  बहिन वंदना,यह समय नष्ट नहीं हो रहा ,सार्थक हो रहा है। सभी सहकर्मी दिव्य शक्ति का अनुभव कर रहे हैं। Please keep writing,thanks.

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आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 5 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है और बहिन रेणु जी  top position  प्राप्त करते हुए गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1 )अरुण वर्मा-24  ,(2)संध्या कुमार-26 ,(3 )वंदना कुमार-26,(4)सरविन्द कुमार-24,(5) रेणु श्रीवास्तव-36     

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं।  जय गुरुदेव

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