निधिवन के रास विहार का रहस्य गुरुदेव से जानें  

17  अक्टूबर  2022 का ज्ञानप्रसाद

चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 5   

सप्ताह के प्रथम दिन सोमवार की ब्रह्मवेला के दिव्य समय में आपके इनबॉक्स में आज का ऊर्जावान ज्ञानप्रसाद आ चुका  है। अपने गुरु की बाल्यावस्था- किशोरावस्था  को समर्पित, परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में लिखा गया यह ज्ञानप्रसाद हमारे समर्पित सहकर्मियों को  रात्रि में आने वाले शुभरात्रि सन्देश तक ऊर्जा प्रदान करता रहेगा,ऐसा हमारा अटूट विश्वास है। 

13 अक्टूबर 2022 के ज्ञानप्रसाद में  हमने बालक श्रीराम की देवरहा बाबा के साथ दिव्य मुलाकात  का वर्णन किया था। हमारे सहकर्मी इतने सूझवान और शिक्षित हैं कि उन्होंने ही कमैंट्स करके बताया कि मचान पर विराजमान देवरहा बाबा ही थे।  आप सभी ने भी  ज्ञानप्रसाद के साथ -साथ कमैंट्स का भी  अमृतपान बहुत ही श्रद्धा से किया। इस सक्रियता के लिए सभी का हृदय से आभार व्यक्त करते हैं।        

अब चलते हैं परम पूज्य गुरुदेव ( किशोर  श्रीराम) के साथ निधिवन के रहस्यों को जानने की ओर। अगर हमारे सहकर्मी निधिवन शब्द गूगल करें तो स्वयं ही देख लेंगें कि इस विषय पर कितना विशाल साहित्य उपलब्ध है। आज के लेख में बहुत ही महत्वपूर्ण बात देखने वाली है कि पूज्यवर ने कैसे लोकप्रिय  रास लीला की पड़ताल की और राधा-कृष्ण के  विहार को  एक आयोजित नाटक कहा।

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देवरहा बाबा के संकेत सुनकर किशोर  श्रीराम उसी शाम लौट आए। रात वृंदावन में रुके। वहाँ की एक बगीची के बारे में सुन रखा था कि राधा और कृष्ण वहाँ नित्य रास करते हैं। रास के समय वे सशरीर विश्राम भी करते हैं। उस समय बगीची में कोई नहीं जाता। अगर कोई चला जाए तो अनर्थ हो जाता है। श्रीराम के मन में रह-रहकर शंका उठती कि बगीची में कोई रह जाए और राधाकृष्ण के दर्शन कर ले तो अनर्थ क्यों हो जाता है? भगवान् के दर्शन जिसे हो जाए,उसका तो कल्याण हो जाना चाहिए। किशोर मन ने इस शंका का निवारण करने की ठानी। 

आइये देखें कैसे हुआ निवारण :

बगीची की ओर जाते हुए एक वैष्णव साधु गोपालदास मिले। उनसे राधा-कृष्ण के नित्य विहार की बात पूछी। साधु गोपालदास ने कहा, “

विहार तो नित्य ही  चल रहा है। यह जगत् उसका ही तो है। वृंदावन के कणकण में वही नाच रहा है। पूरा विश्व उसी का नर्तन है यहाँ वह ज्यादा प्रत्यक्ष है क्योंकि साधकों का चित्त यहाँ ज्यादा ग्रहणशील हो जाता है।”

साधु की बातें अटपटी लग रही थी। श्रीराम ने बीच में ही रोककर पूछा, “क्या सचमुच बगीची में रात को राधा-कृष्ण सशरीर आते हैं ?” साधु हँसा। श्रीराम ने फिर पूछा  कि अगर वे भगवान् हैं, तो उनके दर्शन से अनर्थ क्यों हो जाता है?” इतना कहते ही साधु ने मंदिर की सीढ़ियों की ओर इशारा किया और कहा: 

श्रीकृष्ण वह जा रहे हैं, देखो ! उनके साथ राधा रानी भी हैं। श्रीराम ने सीढ़ियों की तरफ देखा। श्याम वर्ण श्रीकृष्ण और गौरांग श्री राधा मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे। वे पलट कर साधु तथा उनकी और भी देख रहे थे। कुछ क्षण के लिए आस-पास के लोग, दुकानें, मकान, गलियाँ और वहाँ से हो रही चहल- पहल आदि सभी कुछ का लोप हो गया। राधा और कृष्ण के विग्रह ही रह गए। कुछ क्षण के लिए सुधबुध जाती रही। भाव समाधि की अवस्था आ गई। फिर सब कुछ सामान्य था।

साधु गोपालदास ने कहा, “इस तरह के दृश्य अपने भीतर बैठे भगवान् के ही बाहर आने वाले रूप हैं। साधना के प्रगाढ़ होते ही इस तरह की अनूभूति होने लगती है लेकिन यहीं नहीं ठहरना है। साधना निरंतर जारी रहनी चाहिए।” 

साधु ने ही स्पष्ट किया:

“भगवान् का दर्शन किसी भी प्रकार अनिष्टकारी नहीं होता। जिस बगीची में राधा-कृण के आने और रास रचने की बात कही जाती है, उसमें “सत्य कम, गलतफहमी ज्यादा” है। इस तरह बगीची की महिमा गायी जाती है। उस बहाने लोगों से पैसा ऐंठा जाता है । अनिष्ट की आशंका फैलाने से लोग आतंकित होते हैं और दिन में वहाँ जाकर चढ़ावा चढ़ाते हैं। सच्चाई परखना हो तो एक रात उस बगीची में घुस कर देखो।”

साधु गोपालदास ने रहस्य खोल दिया। स्वयं ही अनुभव करने के लिए भी कहा। 

श्रीराम उस बगीची की तरफ बढ़ गए। शाम ढलने के लिए थोड़ी देर पहले बगीची में गए। द्वार बंद होने से पहले बगीची की छान-बीन की और  एक झाड़ी की ओट में छुप गए। झाड़ी की ओट से निकलकर उस मंदिरनुमा कमरे के पास तक गए जहाँ राधा कृष्ण के विश्राम करने की बात का प्रचार किया जाता था। उस कमरे से करीब बीस फीट दूर एक झाड़ी के सहारे बैठ गए। कमरे का द्वार खुला हुआ था। शाम ढलने लगी। रात का दूसरा पहर शुरु हुआ। वातावरण बहुत शांत था। झाड़ियों में छुपे पक्षियों और जीवों की आवाजें आना बंद होने लगी थी। इक्का-दुक्का किसी बंदर की चिंचियाहट सुनाई देती थी। रात धीरे-धीरे गहराने लगी। आधी रात से ज़्यादा समय  बीत गया। श्रीराम टकटकी बाँधे उस कमरे की ओर देख रहे थे। कब कोई आए। इंतजार करते हुए वह  थकने से लगे। आँखों में नींद भरने लगी, उसे दूर भगाने के लिए बगीची में ही बनी कुइयां के पास गए और पास  पड़ी बाल्टी से थोड़ा पानी खींचा, हाथ-मुँह धोए और  वापस उसी झाड़ी के पास आकर बैठ गए। पानी खींचने और हाथ-मुँह धोने में थोड़ी आवाज हुई। इसके तुरंत बाद बगीची के बाहर कीर्तन की आवाज़  सुनाई देने लगी। थोड़ी देर में कीर्तन थमा। इस बीच बगीचे के भीतर  धुंघरुओं की आवाज आई। छमछम की गूंज ऐसी लहराई जैसे कोई नाच रहा हो। कुछ देर यह आवाज गूंजती रही फिर अपनेआप थम गई। इसके बाद बगीची के बाहर एक बार फिर कीर्तन होने लगा। थोड़ी देर चलते रहने के बाद कीर्तन फिर थम गया। सुबह पांच बजे तक बगीची में कभी बंसी की धुन गूंजती, कभी तबले और हारमोनियम का संगीत सुनाई देता। तीन बार उस कमरे के पास रोशनी भी दिखाई दी। वह रोशनी किसी दीपक के जलने से हो रही थी। दीपक जलाता हुआ व्यक्ति भी दिखाई दिया। पांच-सात मिनट जल कर दीपक इस तरह बुझ गया जैसे किसी ने फूंक मार दी हो। तड़के पाँच बजे दो व्यक्ति कमरे के पास दिखाई दिए। वे अंदर गए और थोड़ी देर बाद वापस चले गए। इसके कुछ देर बाद ही बगीची के बाहर आरती वंदना सुनाई देने लगी। आरती पूरी होने के बाद लोग आने लगे। 8-10 लोगों के जत्थे में श्रीराम भी शामिल हो गए और उस कमरे तक गए। जत्थे के लोग कमरे में जाकर बहुत ही प्रसन्न थे। बिस्तर की चादर पर सिलवटें  पड़ी हुईं थीं जैसे कोई वहाँ सोया हो। तेल की शीशी उठाकर देखा,ढक्कन खुला हुआ था। एक ने कहा- शाम को जितना तेल रखा था उससे कम हो गया है। दूसरे ने कहा- देखो सिंदूर की डिबिया भी खुली है। राधा रानी ने अपना सिंगार किया होगा। तीसरे ने कहा-अरे भगवान् अपना पीतांबर भूल गए। इस तरह आश्चर्य बढ़ा। यह  लोग पिछली शाम को ही उस कमरे में होकर गए थे। उस समय तो  सब कुछ ठीक था। चादर साफ थी, सिंदूर की डिबिया ठीक से लगी हुई थी, तेल की शीशी पूरी भरी हुई थी। अब की हालत देखकर स्पष्ट लग रहा था कि किसी ने अपने केश संवारे हैं। 

पिछली शाम दर्शन करने के बाद यह  लोग बगीची के बाहर ही ठहरे थे और वही  सुबह के पहले यात्री थे। श्रीराम ने उनका आश्चर्य और इस बीच हुई घटनाओं को देखकर अच्छी तरह अनुभव कर लिया कि “बगीची में राधा-कृष्ण का विहार एक आयोजित नाटक था।” बीच-बीच में गूंजने वाला संगीत, आवाजें, रोशनी और उस कमरे के आस-पास दिखाई दिए लोग, यह प्रभाव उत्पन्न करने के लिए ही थे कि बगीची में राधा और कृष्ण आए हैं। सुबह पाँच बजे उन्हीं लोगों ने कमरे का नक्शा बदला और बाहर ठहरे यजमानों को जताया कि सचमुच में भगवान् आए थे। यजमानों ने मंदिर में चाँदी के सिक्के चढ़ाए और पेड़ों के भोग- भंडारे के लिए अलग से दक्षिणा दी।

साधु गोपालदास की बात याद आई कि:

“भगवान् सब जगह हैं। जहाँ याद करो, तन्मयता से पुकारो, वहीं प्रकट हो जाते हैं। नहीं पुकारो तो सामने आ जाने पर भी पहचान में नहीं आते।” 

पूरे घटनाक्रम को श्रीराम ने शांतिपूर्वक देखा और कोई बिना कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगीची से बाहर आ गए। पंडों ने समझा कि यह बालक भी यजमानों के साथ ही आया होगा ।उन्हें क्या पता कि इस बालक ने  उनकी आयोजित नाटकीय दिव्य लीला का सच अपनी आँखों से देख लिया है।

वृंदावन की यात्रा पूरी हुई। मथुरा में एक दिन के लिए उस बगीची में रुके, जहाँ काठिया बाबा से भेंट हुई थी। उस विग्रह के सामने कुछ देर पालथी लगा कर बैठे, जिसे गायत्री का बताया गया था। मन में हिलोरें आने लगीं। लगा जैसे कुछ संकेत मिल रहे हैं, निर्देश आ रहे हैं। समय भागा जा रहा है, श्रीराम  बड़े हो रहे हैं। बीस-पचीस-तीस-चालीस साल की उम्र पार कर गए हों । अपनेआप को चालीस की अवस्था का अनुभव करते हुए लग रहा है कि इसी स्थान पर है बहुत से लोग साधना कर रहे हैं, आरती हो रही है, यज्ञ हवन हो रहा है। लोग आ रहे हैं,जा रहे हैं। यह प्रतीति कुछ देर बनी रही फिर तिरोहित हो गई। इसी स्थान पर 1953  में गायत्री तपोभूमि की स्थापना हुई। 

संध्या संपन्न कर अगली सुबह द्वारिकाधीश के दर्शन करते हुए आगरा के लिए रवाना हो गए। चलते समय ताई जी के लिए प्रसाद लेने की बात भी याद रही। आँवलखेड़ा वापस लौटे तो माँ को जैसे आभास हो गया था कि बेटा आने वाला है। वह द्वार  पर खड़ी मिली। चिरंजीव ने आकर पाँव छुए और माँ ने आशीर्वाद दिया। कहा कि मेरा लाल अब होशियार हो गया। अब बच्चा नहीं रहा। जिम्मेदारी उठाने लायक हो गया। ठाकुर जी ने मेरी चिंता  दूर कर दी है 

आँवलखेड़ा लौट आने के बाद जीवन का क्रम सामान्य ढंग से चलने लगा। खेती बाड़ी, पुश्तैनी व्यवसाय और यजमानों का आना-जाना पहले की तरह फिर शुरु हो गया। पिताश्री का अभाव सभी को खलता था। घर के लोगों ने सलाह दी कि श्रीराम को भी उसी काम से लगाया जाए, उठती उम्र है। लेकिन किशोर मन बदलाव की  बात सोचता था, ज़्यादती  के सामने न झुकने या ज्यादती करने वालों से हर संभव असहयोग करने का नाम ही गाँधी था।

परम पूज्य गुरुदेव के अगले चरण का अति  रोचक प्रसंग कल मंगलवार को प्रस्तुत करेंगें। 

 हर लेख की भांति यह लेख भी बहुत ही ध्यानपूर्वक कई बार पढ़ने के उपरांत ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा  है, अगर फिर भी अनजाने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। पाठकों से निवेदन है कि कोई भी त्रुटि दिखाई दे तो सूचित करें ताकि हम ठीक कर सकें। धन्यवाद् 

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आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 10 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है और अरुण अरुण जी  गोल्ड मैडल सबसे अधिक 57 अंक प्राप्त करते हुए गोल्ड मैडल विजेता हैं। 

(1 )अरुण वर्मा-57,(2 )सरविन्द कुमार-33,(3)संध्या कुमार-33,(4)सुजाता उपाध्याय-24,(5 )रेणु श्रीवास्तव-28 ,(6)वंदना कुमार-24,(7 )प्रेरणा कुमारी-29,(8) प्रेमशीला मिश्रा-25,(9) पूनम कुमारी-24,(10) विदुषी बंता-24      

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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