बाबा ने कहा, “विधि ने  तुम्हारे लिए कुछ और ही विधान रचा है।”

13 अक्टूबर  2022 का ज्ञानप्रसाद

चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 5   

सप्ताह के  चतुर्थ दिन गुरुवार की ब्रह्मवेला के  दिव्य समय में आपके इनबॉक्स में आज का ऊर्जावान ज्ञानप्रसाद आ चुका  है। अपने गुरु की बाल्यावस्था- किशोरावस्था  को समर्पित, परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में लिखा गया यह ज्ञानप्रसाद हमारे समर्पित सहकर्मियों को  रात्रि में आने वाले शुभरात्रि सन्देश तक ऊर्जा प्रदान करता रहेगा ।

सहकर्मियों की अनुभतियाँ अनवरत आ रही है, उनका धन्यवाद् करते हैं। कृपया पिक्चर भेजने की कृपा भी  करें। 

आपके कमैंट्स बता रहे हैं कि हर लेख को पढ़ते समय लगातार जिज्ञासा हो रही है कि  आगे क्या होने वाला है। यही जिज्ञासा प्रस्तुतकर्ता को भी हो रही है क्योंकि इस अनंत ज्ञान को compile करना केवल गुरुदेव की प्रेरणा से ही संभव हो पायेगा।

तो कठिया बाबा की वार्ता को आगे बढ़ाते हुए आइये देखें कि संत महाराज ने हिमालय सत्ता के बारे में क्या संकेत दिया। 

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काठिया बाबा ने बगीची में ठहरे श्रीराम को गायत्री माँ की प्रतिमा वाले स्थान के संबंध में विलक्षण बातें बताईं। उनमें एक तो यही थी कि त्रेता युग में इसी  जगह पर दुर्वासा मुनि ने गायत्री साधना की थी। कंस का वध करने के लिए जाते हुए श्रीकृष्ण और बलराम ने यहाँ संध्या-वंदन किया था। समय-समय पर हुए यज्ञ अनुष्ठानों के बारे में भी बताया और अपने साथ चलने के लिए कहा। यही वह स्थान है जहाँ 1953 में गुरुदेव के द्वारा तपोभूमि मथुरा की स्थापना हुई। इसका डिटेल्ड विवरण आने वाले लेखों में देने की योजना है।  

बूटी सिद्ध महाराज से भेंट :

श्रीराम उनके साथ चल दिए। बगीची से करीब तीन किलोमीटर दूर एक टीले के पास जाकर वे रुक गए। वयोवृद्ध लोग उस टीले को “गायत्री टीले” के नाम से जानते हैं। बाबा श्रीराम को टीले के ऊपर ले गए। वहाँ एक कुटिया में वयोवृद्ध संत लेटे हुए थे। दोनों ने उन्हें प्रणाम किया। इन संत का नाम बूटी सिद्ध महाराज था। तीस-चालीस वर्ष से उन्होंने मौन व्रत लिया हुआ था। किसी से बोलते नहीं थे। जरूरत होती तो इशारों से बात कर लेते। कभी कभार लिखकर भी अपनी बात कह देते। वे अलवर के रहने वाले थे और दसियों वर्ष  से यहाँ आकर रहते थे। काठिया बाबा ने ही बूटी सिद्ध महाराज के बारे में बताया कि उन्होंने एक करोड़ जप किया है। निष्ठापूर्वक किए गए जप से उन्हें गायत्री का अनुग्रह मिला और आत्म साक्षात्कार हो गया। सिद्धि के बाद उन्होंने टीले पर गायत्री की एक प्रतिमा स्थापित की और मथुरा के चतुर्वेदी ब्राह्मणों का भंडारा किया। कुटिया में गायत्री की स्थापना के बाद वह अपने ढंग का भव्य और अद्वितीय आयोजन था। इसके लिए आवश्यक साधनों की व्यवस्था कहाँ से हुई, इसके  बारे में बूटी सिद्ध बाबा के अलावा किसी को कुछ नहीं मालूम । लोगों का मानना है कि बूटी सिद्ध बाबा के पास कोई “विलक्षण यंत्र” है। उसकी आराधना करते ही साधन स्वयं ही प्रकट हो जाते हैं। बाबा के पास दुःखी, संतप्त और रोगी लोग भी आया करते थे। बाबा  कुछ कहते तो नहीं थे, केवल हाथ उठाकर ही आशीर्वाद देते थे। उनके हाथ का उठना ही संकट का निवारण होना मान लिया जाता था और कई लोगों के संकट सचमुच में दूर हो भी जाते थे। धौलपुर और अलवर रियासत के राजा उनके पास आया करते थे। बूटी बाबा स्वयं कहीं नहीं जाते थे। एकांत सेवन के लिए जाना होता,तो कुटिया के पास बनी गुफा में चले जाते थे। काठिया बाबा ने बूटी सिद्ध महाराज से श्रीराम का परिचय कराया। उनकी साधना और निष्ठा से बूटी सिद्ध बाबा ने अभिभूत हो “दोनों हाथ उठाकर आशीष दिया और फिर गले से भी लगा लिया।” काठिया बाबा इसके बाद अपनी राह चले गए और श्रीराम वापस बगीची में आ गए। इस भेंट के कुछ दिन बाद बूटी सिद्ध बाबा ने अपना शरीर छोड़ दिया।

इस बगीची में ही किसी श्रद्धालु से सुना था कि वृंदावन में यमुना के पार एक “संत” आए हैं। वे यमुना और गंगा का किनारा छोड़कर कहीं नहीं जाते। किनारे पर एक मचान (प्लेटफॉर्म) बनाकर रहते हैं। वहीं बैठकर लोगों से बात करते हैं। कभी कभार मचान के पास जमीन पर बनी झोंपड़ी में भी रहते हैं। साधना उपासना के बाद थोड़ा-बहुत समय बचता है, वह जनसंपर्क में लगाते हैं। उन सब के बारे में अन्य लोगों से तरह-तरह की बातें सुनी। उन्हें भूख-प्यास नहीं लगती। कभी किसी से कुछ आहार लेते नहीं देखा। उन्हें शौच आदि के लिए भी नहीं जाना पड़ता। भूख-प्यास पर विजय प्राप्त कर लेने से काफी समय बच जाता है। उस समय का उपयोग ध्यान-धारणा में करते हैं। उन संत की आयु के बारे में भी विचित्र बातें कहीं जाती थी। कोई कहता है कि वे दो सौ वर्ष के हैं, किसी के अनुसार छह-सात सौ साल के है। हमारे बाबा या परबाबा ने भी उन्हें इसी अवस्था में देखा था। शरीर और स्वास्थ्य के अनुसार वे तीस-पैतीस साल से ज्यादा के नहीं लगते थे। लोगों का कहना था कि योग की सिद्धियों के आधार पर वे अपने आपको इस योग्य बनाए रखते हैं। यह भी कि वे जब चाहे अपना कायाकल्प कर लेते हैं। उसी शरीर को नया कर लेते हैं या चाहें तो पुराने शरीर का त्याग कर वैसे ही रूप-रंग का नया शरीर रच लेते हैं। श्रीराम इन बातों को कौतूहल के साथ सुनते। सुनकर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते। उनके मन में सिर्फ उत्सुकता जगी और वृंदावन की राह पकड़ी। गर्मी का मौसम था, यमुना तब आज की तरह सूखी नहीं थी। काफी पानी बहता था। आजकल तो मई, जून के महीनों में इतनी सूख जाती है कि उसे पैदल चल कर पार किया जा सकता है, लेकिन तब बहुत पानी बहा करता था। 

प्रणाम है बच्चा :

यमुना पार करने के लिए नाव चलती थीं। श्रीराम उन संत का पता पूछते तलाशते किनारे तक पहुँचे। नाव से नदी पार की और संत के मचान तक पहुँचे। दोपहर का समय था । संत मचान पर बैठे थे। नीचे चार-पाँच लोग खड़े थे। उन्होंने दो सौ मीटर से ही श्रीराम को देख लिया और स्नेह से पुकारा, “आओ ऋषि कुमार,तुम्हारा ही इंतजार था बच्चा।” बाबा की पुकार सुनकर  श्रीराम ने पीछे मुड़कर देखा। उन्हें लगा कि शायद किसी और को बुला रहे हैं। बाबा ने फिर वही पुकार की और कहा, “हम तुम्हें ही कह रहे बालक श्रीराम।” नाम सुन कर संशय दूर हो गया। श्रीराम के मन में आगे बढ़ने में अभी तक जो झिझक थी, वह दूर हो गई। वह स्वाभाविक गति से कदम बढ़ाते हुए सीधे मचान के पास पहुंचे और बाबा को प्रणाम किया। उन्होंने दोनों हाथ उठाए और कहा, “तुम्हें भी प्रणाम है बच्चा।”  यह सुनकर वहाँ खड़े दूसरे लोग चौंक कर देखने लगे। वहाँ आने वाले श्रद्धालुओं को बाबा प्रणाम का उत्तर ‘आशीर्वाद है बच्चा’ या ‘सुखी रहो बच्चा’ कहकर देते थे। यहाँ बारह-तेरह साल के किशोर को प्रणाम का उत्तर प्रणाम से दे रहे हैं। बाबा ने कुछ समय के बाद जो कहा उससे उन लोगों का विस्मय थोड़ा छटा । बाबा ने कहा, “तुम्हारे आने की खबर लग गई थी बच्चा। उन दैवी आत्माओं से ही आभास हुआ कि तुम आ रहे हो। बहुत प्रसन्नता हुई।”

श्रीराम चुपचाप सुनते रहे, “गायत्री मंत्र का पाठ करो बच्चा।”  कहकर बाबा खुद गायत्री मंत्र पढ़ने लगे। वे वैष्णव संत थे और सभी श्रद्धालुओं से द्वादश अक्षर मंत्र’ ॐ नमः भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का उच्चारण कराते थे। बाबा ने गायत्री मंत्र का पाठ करने के बाद कहा:

“तुम सावित्री सिद्ध हो बच्चा। तुम्हें बड़े काम करने हैं। हिमालय की आत्माएँ हैं न बच्चा, वहाँ बड़े योगी-मुनि रहते हैं । वहाँ की गुफाओं में वास करते हैं । पता नहीं कितने सौ सालों से वहाँ तप कर रहे हैं। उनका आशीर्वाद तुम्हें मिला है। वे आत्माएँ तुम्हारा बहुत सहयोग करेंगी।”

 बाबा इससे आगे बहुत कुछ कहते रहे। उनके प्रवचन में हिमालय के रहस्य और सिद्ध लोक की सांकेतिक जानकारी थी। बाबा का भाषा ज्ञान कमजोर था। वे सधुक्कड़ी हिंदी बोलते थे। शब्दों के अनुसार अर्थ से उनका मंतव्य समझने में कोशिश करें तो शायद भ्रमित हो जाए। उनके भाव को ही समझा जा सकता था।

श्रीराम ने पूछा,

“बाबा आपके बारे में कई बातें सुनने को मिलती हैं,आपके चमत्कारों का क्या रहस्य है?” बाबा ने कहा, “भगवान् द्वारा रची गई इस “दुनिया” से बड़ कर  कोई चमत्कार नहीं है। हम नहीं जानते बच्चा कि लोग हमारे बारे में क्या कहते हैं? यहाँ आने वाले सभी भक्तों के लिए हम दुआ मनाते हैं। फलवती हो जाए तो ईश्वर की कृपा है, नहीं हो तो भगवान की इच्छा। उसकी इच्छा के बिना कुछ भी संभव  नहीं होता बच्चा।” फिर उन्होंने अपनी आयु के बारे में कहा, “शरीर मरणधर्मा (नश्वर) है, इसकी उम्र का क्या पूछना। गंगा यमुना के बीच जिस गाँव में इस शरीर का जन्म हुआ, वहाँ लोग तिथि तारीख लिखकर नहीं रखते थे। वहाँ के लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं बच्चा । इसीलिए पता नहीं शरीर कितने बरस का हुआ।”

स्पष्ट हुआ कि इस उत्तर के कारण ही लोग बाबा की आयु के संबंध में अनुमान लगाते थे। वह अनुमान स्वाभाविक से ज्यादा ही रहता होगा। फिर कहने लगे,

“तुम्हारी उम्र के थे तभी घर छोड़ दिया। नर्मदा के किनारे काफी समय रहे। द्वारका, रामेश्वर, पुरी और बद्रीनाथ जी गए, अन्य तीर्थों में भी गए। फिर गंगा मइया का किनारा चुन लिया।माँ ने कहा तो कभी यमुना मइया के तट पर चले आए। अब घूमना-फिरना बंद।” बाबा इसके बाद थोड़ा रुके और फिर बोले, “लेकिन विधि ने  तुम्हारे लिए कुछ और ही विधान रचा है। तुम्हारे गुरुदेव समय पर तुम्हें सब कुछ बतायेंगे।”

श्रीराम ने यह पूछना जरूरी नहीं समझा कि गुरुदेव से हमारी भेंट कब होगी। वह बाबा के उपदेश या संकेत सुनकर उसी शाम लौट आए।

यहीं पर हम इस श्रृंखला का एक बार फिर सोमवार तक इंटरवल करेंगें क्योंकि कल तो video day है और उसके बाद का दिन सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट होगा। लखनऊ 108 कुंडीय यज्ञ की वीडियो तो केवल सात ही मिंट की है लेकिन इसे 13 वीडियोस देख कर  extract किया गया है।     

हर लेख की भांति यह लेख भी बहुत ही ध्यानपूर्वक कई बार पढ़ने के उपरांत ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा  है, अगर फिर भी अनजाने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। पाठकों से निवेदन है कि कोई भी त्रुटि दिखाई दे तो सूचित करें ताकि हम ठीक कर सकें। धन्यवाद् 

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आज की  24 आहुति संकल्प सूची में 8  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है लेकिन गोल्ड मैडल से तीन सहकर्मी,अरुण जी,संध्या जी और वंदना जी सम्मानित किये जाते हैं  ।

(1 )अरुण वर्मा-38 ,(2 )सरविन्द कुमार-27,(3)संध्या कुमार-38,(4)सुजाता उपाध्याय-24 ,(5 )रेणु श्रीवास्तव-24,(6)वंदना k-38,(7 )प्रेरणा कुमारी-28,(8) कुमुदनी गौरहा-26     

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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