13 वर्षीय बालक श्रीराम की ननिहाल यात्रा 1

3 अक्टूबर  2022 का ज्ञानप्रसाद 

चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 4  

सप्ताह का प्रथम  दिन सोमवार, मंगलवेला-ब्रह्मवेला  का दिव्य समय, अपने गुरु की बाल्यावस्था- किशोरावस्था  को समर्पित,परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में आज का ऊर्जावान ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है। आशा करते हैं इस लेख की दिव्यता, शुभरात्रि सन्देश तक आपको ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।

ज्ञानप्रसाद लेखों, वीडियोस इत्यादि के उद्देश्य से  तो  सभी परिजन भलीभांति परिचित हैं। एक बार फिर से दोहराते हुए कहते हैं कि अपने गुरु की शक्ति के बारे में बताना, गुरु में  विश्वास दिलाना हम सब का परम कर्तव्य है।

प्रायः जब हम सप्ताह का आरम्भ करते हैं तो रविवार के अवकाश के बाद संचित हुई ऊर्जा की बात करते हैं लेकिन इस बार  यह वाक्य नहीं लिखा जा सकता क्योंकि अवकाश तो हुआ ही नहीं ,सभी सहकर्मी अनवरत 7 दिन परिश्रम करते रहे। इतना ही नहीं, हमने उन्हें अपनी नन्ही सी पोती के आगमन की  सूचना देकर और भी व्यस्त कर दिया। इस सूचना पर अभी तक शुभकामना सन्देश आ रहे हैं ,सभी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। कल पूर्ण अवकाश रहेगा,आपको थोड़ा आराम मिलेगा।    

कुछ दिन पूर्व जब परम पूज्य गुरुदेव के बाल्यकाल की “श्रीराम-लीला” का शुभारम्भ किया था तो हमने कहा था कि हमें कोई अनुमान नहीं है कि इस विषय पर हम कब तक लिखते रहेंगें,कितने लेख लिखेंगें। स्थिति आज भी वैसी ही है। 

आज से आरम्भ हो रही लेख श्रृंखला भी बहुत ही रोचक है। आशा करते हैं कि इस लेख शृंखला  में भी   सभी सहकर्मी पूरी तरह involve होकर इसे और रोचक बनायेगें। हम सबने देख लिया है कि एक-एक लेख में कितनी प्रेरणा और शिक्षा भरी  पड़ी है, इस शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के एक-एक सदस्य का परम कर्तव्य है। 

तो आइये आनंद लेते हैं  13 वर्षीय बालक श्रीराम की ननिहाल यात्रा का। 

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1924 का पहला या दूसरा महीना था। श्रीराम अपने पिता के साथ ननिहाल गए। वहाँ भागवत सप्ताह का आयोजन था। पारायण करने वाले विद्वान दूसरे ही थे, पंडित रूपकिशोर जी को जामाता की हैसियत से निमंत्रित किया गया था। ताई जी वहाँ पहले ही पहुँच चुकी थीं। पिता और  पुत्र कथा आरम्भ के एक दिन पहले आँवलखेड़ा से रवाना हुए और यथासमय पहँचे। रास्ते में बालक श्रीराम  ने पिता जी  से कछ जिज्ञासाएँ की या यों कहें कि छपको प्रसंग के समय मन में उठे कछ सवाल रखे। एक सवाल यह था कि आप भागवत का उपदेश करते हैं। उस अधिकार से भी छपको की सेवा को उचित ठहरा सकते थे,आपने  कल्याण पण्डित को गायत्री उपासना का हवाला क्यों दिया? पिताश्री ने समझाया; इसलिए कि भागवत शास्त्र गायत्री मंत्र की ही व्याख्या है। भागवत ही नहीं सभी शास्त्र इसी का विस्तार है। यह बीज रूप है। पण्डित जी ने समझाया कि भागवत् शास्त्र को गायत्री ने ही अधिकृत किया है। उसका आरम्भ गायत्री से हुआ है, इसलिए वह भागवत है। 

ननिहाल तक का रास्ता इस विषय पर चर्चा में कट गया कि गायत्री सभी शास्त्रों का, इस युग के प्रतिनिधि ग्रंथ भागवत का आधार है, क्योंकि वह सनातन धर्म का भी आधार है। उन्होंने समझाया, वाल्मीकि ने गायत्री के चौबीस अक्षरों के आधार पर चौबीस हजार श्लोकों  में रामकथा लिखी थी। रामायण की जो प्रतियाँ इस समय मिलती है उनमें पूरी रामायण में एक निश्चित अंतराल से एक श्लोक  गायत्री के एक अक्षर से आरम्भ होता है। उसी अंतराल के बाद एक श्लोक  अगले अक्षर का उद्घोष करता है। कुछ सौ वर्ष  पहले गोस्वामी तुलसीदास ने लोकभाषा में रामकथा गानी चाही। उन्होंने  सनातन धर्म का स्वरूप उस समय के अनुरूप समझाना चाहा तो रामायण और भागवत दोनों का आश्रय लिया। रामायण से उन्होंने भगवान का चरित्र लिया और भागवत से भक्ति । दोनों का समन्वय कर उन्होंने रामचरितमानस लिख दिया। भागवत भूमि के सेवन के दिन प्रात: संध्या के बाद उन्होंने ग्रंथ की रचना आरम्भ की थी। साधक किसी को भी अपना इष्ट बनाए, उसे गायत्री जप से ही आरम्भ करना पड़ता है। 

श्रीकृष्ण के आंगन में कुछ देर रुक कर उन्होंने कहा, “यों समझो कि गायत्री मंत्र चाबी है और सभी साधनाएँ कोष भण्डार। इस चाबी  के बिना भक्ति ज्ञान और योग का भण्डार सुलभ नहीं होता।” सप्ताह पारायण की अवधि में पिताश्री गायत्री महिमा के साथ भागवत शास्त्र और धर्म की बातें बताते रहे। उन बातों में श्रीराम का मन अच्छी तरह लग रहा था। कथा पूरी होने के दिन पिता पुत्र दोनों वापस चलने की तैयारी करने लगे। ताई जी ने भी चलने का मन बनाया। बाद में किसी को छोड़ने के लिए आना पड़े इससे अच्छा है कि साथ ही निकल आया जाय। 

साथ चलना तय हो गया सो ताई जी ने कहा, “यहाँ तक आए हैं, मथुराजी पास में ही हैं,अगर आपको असुविधा नहीं होती हो तो द्वारिकाधीश के दर्शन  करते चलें।” इस  नए कार्यक्रम में लगने वाले समय का हिसाब लगाते हुए पण्डित जी सोचने लगे। ताईजी ने अपनी बात को थोड़ा और वजन दिया और कहा, “ पुत्र श्रीराम भी साथ में ही है। उसने भी द्वारिकाधीश के दर्शन नहीं किए हैं। यमुनाजी के दर्शन भी हो जाएंगे।” ताई जी का आग्रह सुन कर पण्डित जी हँसे। उन्होंने मथुरा  होते हए आँवलखेड़ा  लौटने का कार्यक्रम बना लिया। इस तरह निकलने पर यात्रा में दो दिन और लग जाने थे।

ब्रज मण्डल में घने छायादार वृक्षों का अभाव रहा है। रेत और धूल मिट्टी से सने रास्ते में यात्रियों को प्रायः असुविधा ही होती है लेकिन जिन दिनों इस परिवार ने मथुरा का रास्ता लिया उन दिनों जाड़े का मौसम था। उतरते हुए माघ के दिनों में कड़कड़ाती ठंड पड़ती थी, इसलिए सहपऊ नगर  से मथुरा आते हुए असुविधा नहीं हुई। गुनगुनी धूप ने जाड़े को दूर भगा दिया और दोपहर ढलने से पहले ही मथुरा के पास आ गए। मुश्किल से दो ढाई किलोमीटर की दूरी रही होगी, सामने एक पहाड़ी  दिखाई दी। पहाड़ी के ऊपर मन्दिर था। घण्टियों की आवाज आ रही थी, इससे लगता था कि लोग आते जाते होंगे।

आपने भगवान् को देखा है ?

श्रीराम ने पिताश्री से पूछा यह किसका मन्दिर है। नगर के बाहर होने से अनुमान लगाया कि यह  ग्राम देवता का मंदिर होगा। नगर या बस्ती की सीमा शुरू होने के पहले हर जगह इस तरह के स्थान होते हैं। पुत्र ने मंदिर देखने की इच्छा जताई। ताई जी और साथ के लोगों सहित सभी पहाड़ी पर  चढ़ गए। मंदिर में गोविन्द जी की प्रतिमा स्थापित थी। उनके दर्शन कर थोड़ी देर सुस्ताने लगे। गर्भगृह के बाहर बने चबूतरे के नीचे कुछ क्षण बैठे ही थे कि गरजती हुई आवाज गूंजी ‘जय जय राधे’। पण्डित जी ने देखा एक साधु उनकी ओर देखता हुआ चला आ रहा है। लम्बी दाढ़ी और सिर के उड़े हुए बालों वाले इस संन्यासी की उम्र 60-65  के आस-पास रही होगी। पण्डित जी ने उन्हें प्रणाम कहा। साधु ने उत्तर में पूछा, “ कुछ आहार बचा है भगत ?।” ताई जी ने अपनी गठरी में से चार पूड़ियाँ निकाली और उन पर अचार रख कर पण्डित जी की ओर बढ़ाया। पण्डित जी ने वह भोजन साधु को आदर पूर्वक दे दिया। जीते रहने की दुआ देता हुआ साधु जिस दिशा से आया था, उस दिशा में जाने लगा। ताई जी के पास चुपचाप बैठे श्रीराम यह सब देख रहे थे। साधु को जाते हुए देखते ही उन्होंने आवाज़ लगाई  और पूछा, “बाबाजी आपने भगवान् को देखा है।” साधु बच्चे की आवाज से ठिठका और कुछ संभलते हुए  बोला, “नहीं। लेकिन देखना चाहता हूँ। उन्हें पाने के लिए ही उनकी भूमि में भटक रहा हूँ।” इतना कह कर साधु निहारने लगा। श्रीराम ने कहा, “बाबाजी भटकना छोड़िए और  भगवान् की भूमि का सेवन कीजिए। वे यहीं मिलेंगे।” बात बहुत सीधी सरल थी, लेकिन साधु के मन को पता नहीं कहाँ छू गई। साधु ने सेवन का न जाने क्या समझा कि वह गोविन्द जी के मंदिर के बाहर मिट्टी में लोट-पोट होने लगा। रज का स्पर्श पा कर जैसे उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा हो । वह अनुग्रहीत सा कहे जा रहा था, “तुमने राह दिखा दी  बच्चा । मेरा भटकाव पूरा हो गया। प्रभु तो मिले ही हुए हैं, मैं ही अपने नेत्र  बंद किए था।” यह कहते हुए साधु ने बालक श्रीराम को प्रणाम करना चाहा।  इससे पहले कि साधु महाराज पास आते,ब्राह्मण कुमार (गुरुदेव) दूर दौड़ गए थे।

पिताश्री और ताई जी, दोनों साधु और पुत्र के संवाद को सुनकर चुपचाप बैठे रहे थे। श्रीराम के दौड़ लगाने पर उन्होंने रुकने के लिए कहा और रुकने पर उठ कर साथ चल दिए। द्वारिकाधीश तक की यात्रा इसके बाद चुपचाप सम्पन्न हुई। रास्ते में कोई कुछ नहीं बोला। 

मथुरा पहुँच कर ताई जी ने द्वारकाधीश के दर्शन किए। श्रीराम ने मंदिर और मथुरा के बारे में पिताश्री से अनेक प्रश्न किए। इन प्रश्नों में कौतूहल और जिज्ञासा दोनों भाव समाहित थे। द्वारकाधीश मंदिर मुश्किल से दो सौ साल पुराना है। सन् 1814  में बनवाए इस मंदिर में भगवान् श्रीकृष्ण की राजसी प्रतिमा विराजमान है। द्वारिकाधीश के दर्शन करने के बाद पूरा परिवार कटरा केशवदेव गया। भगवान कृष्ण का जन्म वहीं हुआ समझा जाता है। कटरा केशवदेव से निकल कर परिवार विश्राम घाट पहुँचा। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि केशवदेव मंदिर में जहाँ पहले कंस किला था, वहां  से भगवान् सीधे यमुना किनारे गए थे। उन्होंने और बलदाऊ ने कुछ समय यमुना तट पर बिताया था। भक्तों की भाषा में कंस और उसके रक्षकों से हुए संघर्ष के कारण भगवान् को जो थकान  हुई थी उसे यमुना तट पर दूर किया था। जिस जगह भगवान् ने विश्राम किया, उसे विश्राम घाट कहते हैं। बालक श्रीराम ने पिताजी से पुछा कि क्या हम लोग भी यहाँ केशव मंदिर के दर्शन से हुई थकान उतारने यहाँ आए हैं। यह जगह हमारे लिए भी विश्राम घाट है। नटखट पुत्र की बात सुनकर पिता हँसे बिना न रहे। 

तो मित्रो आज का लेख यहीं पर समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं ,एक दिन छोड़ कर यानि बुधवार को विश्रामघाट की बात करेंगें। 

हर लेख की भांति यह लेख भी बहुत ही ध्यानपूर्वक कई बार पढ़ने के उपरांत ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा  है, अगर फिर भी अनजाने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। पाठकों से निवेदन है कि कोई भी त्रुटि दिखाई दे तो सूचित करें ताकि हम ठीक कर सकें। धन्यवाद् 

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आज की संकल्प सूची में 7  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। प्रेरणा कुमारी  गोल्ड मैडल से सम्मानित की जाती है ।

(1 )अरुण वर्मा-24 ,(2 )सरविन्द कुमार-25,(3)संध्या कुमार-33,(4) प्रेरणा कुमारी-38,(5 ) सुजाता उपाध्याय-27,(6)नीरा त्रिखा -25,(7)प्रशांत सिंह-24  

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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