छपको अम्मा की कथा का तीसरा एवं अंतिम पार्ट

30 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद

चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 3 

सप्ताह का पांचवां  दिन शुक्रवार, मंगलवेला-ब्रह्मवेला  का दिव्य समय, अपने गुरु की बाल्यावस्था- किशोरावस्था  को समर्पित,परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में आज का ऊर्जावान ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है। आशा करते हैं इस लेख की दिव्यता, शुभरात्रि सन्देश तक आपको ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।

ज्ञानप्रसाद लेखों, वीडियोस इत्यादि के उद्देश्य से  तो  सभी परिजन भलीभांति परिचित हैं। एक बार फिर से दोहराते हुए कहते हैं कि अपने गुरु की शक्ति के बारे में बताना, गुरु में  विश्वास दिलाना हम सब का परम कर्तव्य है।

आज से दस दिन पूर्व जब परम पूज्य गुरुदेव के बाल्यकाल की “श्रीराम-लीला” का शुभारम्भ किया था तो हमने कहा था कि हमें कोई अनुमान नहीं है कि इस विषय पर हम कब तक लिखते रहेंगें,कितने लेख लिखेंगें। स्थिति आज भी वैसी ही है, आगे आने  वाले लेख भी इतने रोचक हैं कि जब तक हम अपनी लेखनी के माध्यम से अपने समर्पित परिवार के साथ brainstorming discussion नहीं कर लेते हमें चैन नहीं आने वाला। हम सबने देख लिया है कि एक-एक लेख में कितनी प्रेरणा और शिक्षा भरी  पड़ी है, इस शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के एक-एक सदस्य का परम कर्तव्य है। 

कल शनिवार को कनाडा स्थित विश्वप्रसिद्ध Niagara Falls की 24 मिनट की वीडियो  प्रस्तुत की जाएगी। पर्यटन की दृष्टि से महत्वपूर्ण इस वीडियो में बुद्धिजीवियों ने आध्यात्म का रंग घोल कर इसे एक नया रूप दिया है। सप्ताह का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट इस बार शनिवार के बजाए रविवार को प्रस्तुत किया जा रहा है क्योंकि मंगलवार 4 अक्टूबर को सम्पूर्ण अवकाश रहेगा। 

इस अपडेट के साथ प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद। 

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पिताश्री के आशीर्वाद ने श्रीराम का उत्साह बढ़ा दिया। कोठरी से निकल कर वह  सीधे बस्ती  की ओर गए और वहाँ छपको अम्मा को पुकारा। छपको अम्मा ने मन ही मन कहा- सुबह ही तो यह ब्राह्मण कुमार कह कर गया था कि  “अब नहीं आऊंगा” तो  अब क्यों आ गया है? छपको को गाँव वालों का डर भी सता रहा था। अभी तक झोंपड़ी में पड़ी उपचार करा रही थी। श्रीराम के आने पर गाँव में क्या प्रतिक्रिया है, इसका भान नहीं था। गाँव में जाना शुरू करेगी तब पता नहीं क्या होगा। चिंता में डूबी जा रही थी कि श्रीराम की पुकार ने फिर झिंझोड़ दिया। पहले तो यही  विचार उठा कि गाँव वालों के किसी फैसले की सूचना लेकर आए होंगे,शायद आगाह करने के लिए। वह किसी विचार पर स्थिर होती इससे पहले ही ब्राह्मण कुमार “अम्मा-अम्मा” कहते भीतर उपस्थित थे। वाणी में उल्लास गूंज रहा था और चेहरे पर गर्व, जैसे कोई बड़ी सफलता प्राप्त कर ली हो। पता नहीं छपको ने  बालक श्रीराम के गर्व को पहचाना कि  नहीं या फिर पहचान सकने के बावजूद ध्यान नहीं दिया लेकिन अम्मा ने कहा, “ब्राह्मण देवता आप यहाँ न आया करो। अब मैं ठीक हूँ। आपको यहाँ आते देख लोग मुझे गाँव में घुसने नहीं देंगे।” छपको अम्मा के ब्राह्मण कुमार शायद इस  स्थिति को समझ गए थे। उन्होंने कहा, “आप चिंता न करें अम्मा,चाचा ने जो प्रायश्चित बताया था, पिताजी ने उसे मना कर दिया हैऔर  मुझे आशीर्वाद दिया है कि आपकी सेवा कर मैंने अच्छा काम किया।” छपको को अपने कानों पर सहसा विश्वास नहीं हुआ। श्रीराम ने ज़ोर  देकर कहा, “मैं सच कह रहा हूँ अम्मा” यह सुनकर अम्मा के चेहरे पर संतोष, निश्चिंतता और खुशी की मिली-जुली चमक फैल गई। अपने भावों को व्यक्त करते हुए उसने दोनों हाथ ऊपर उठा दिए जैसे आशीर्वाद दे रही हो। श्रीराम ने कहा अब किसी तरह का संकोच मत करना। इतना कहकर वे हवेली की ओर चल दिए।

लेकिन बात यहीं पर खत्म नहीं हो गई। पण्डित रूपकिशोर जी  के निर्णय ने गाँव के पण्डितों एवं  अन्य निवासिओं को भी नाराज़  कर दिया था। पुत्र ने नादानी में अपराध कर लिया। प्रायश्चित से वह शुद्ध हो गया। यहाँ तक तो ठीक था  लेकिन पण्डित जी ने किस आधार पर उसके कृत्य को पुण्य ठहरा दिया और  प्रायश्चित को ज़्यादती बताया। सभी कह रहे थे कि हमारा  विश्वास है कि पुत्र मोह आड़े आ गया। पुत्र  मोह ने पण्डित जी का धर्म-अधर्म विवेक छीन लिया है। इस बात को तूल देने में बाहिर वाले तो क्या, अपना कहने वाले स्वजन-संबंधी भी पीछे नहीं थे क्योंकि वह पण्डित जी की प्रतिष्ठा से जलते थे। तीन चार दिन में ही यह आलोचना अपने चरम पर पहुंच गयी। जलेसर के भागवती पण्डित कल्याण शर्मा के नेतृत्व में पिताश्री को चुनौती मिली। शर्मा जी घर आए और पण्डित जी को कह गए- आप अपने पक्ष को शास्त्र सम्मत सिद्ध कीजिए नहीं तो  पण्डित समुदाय से क्षमा मांगनी पड़ेगी। कल्याण जी के तेवर में विरोध या द्वेष कम लेकिन  संशय का भाव अधिक दिखाई दे रहा था। इस स्थिति में संवाद करके समाधान ढूंढना ही उचित था। इसलिए पण्डित रूपकिशोर शर्मा जी (गुरुदेव के पिता जी) ने उनका उत्तर पंचायत में देने को कहा। संध्या के समय पंचायत बैठी। पण्डित जी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि आचार पहला प्रमाण है। पुत्र श्रीराम ने महामना मालवीय जी से यज्ञोपवीत ग्रहण किया है। वह प्रातः सायं नियमित संध्या एवं  गायत्री साधना  कर रहा है। शास्त्र वचन है कि यदि कोई श्रद्धा विश्वास से  तीन वर्ष तक गायत्री का जप कर ले तो ब्राह्मीभूत  हो जाता है। श्रीराम नैष्ठिक गायत्री उपासक है और किसी को नहीं लगना चाहिए कि अछूत कही जाने वाली छपको की सेवा कर, उसने धर्मविरुद्ध आचरण किया है। उसके मन में सेवा की प्रेरणा तो भगवती गायत्री से आनी चाहिए। 

नैष्ठिक उपासना और आचार के प्रमाण ने ही आधे से अधिक  लोगों को चुप करा दिया। फिर शबरी प्रसंग से उन्होंने समझाया कि उसके जूठे बेर खाने के बावजूद  भी भगवान् की मर्यादा भंग नहीं हुई, तो अपने से छोटों या निम्नजाति  की सेवा करने से मनुष्य का पतन कैसे हो सकता है ? पण्डित जी ने अनेक उदाहरण और शास्त्र वचनों के प्रमाण देकर निरूपित किया कि “अस्पृश्यता अपराध है।” निम्नजातिओं  से घृणा करना पाप है। पण्डित रूपकिशोर जी के प्रतिपादन की किसी के पास काट नहीं थी। भागवती कल्याण जी ने उनके लॉजिक को विवेक और धर्मसम्मत बताया। श्रीराम के आचरण  में कोई दोष नहीं है। उन्होंने इतनी ही सावधानी रखने के लिए कहा कि समाज के आग्रह का भी थोड़ा निर्वाह करना चाहिए। गाँव में विरोध सचमुच धीरे-धीरे कम हो गया। यह पण्डित पंचायत के अलावा श्रीराम के व्यवहार और सेवा भाव के कारण भी था। 

छपको की सेवा और उससे उत्पन्न विवाद का समाधान होने के तुरन्त बाद श्रीराम अपने अलग हुए साथियों को ढूंढते हुए उनके पास गए। घर वालों के डर से ही वे अलग हुए थे। वरना मन में श्रीराम की मित्रता और सहचर्या  की ललक उनके मन में भी रहती थी। अपने मित्र के बुलाने और घर से लोगों का दबाव ढीला पड़ने पर सभी साथ आ गए। अपने मित्रों को साथ लेकर श्रीराम ने स्वयंसेवकों का छोटा सा दल बनाया। इन लोगों को मरहम पट्टी और प्राथमिक उपचार की जानकारी दी। यह विद्या किसी स्कूल या शिविर में नहीं सीखी थी। ताई जी को परिवार में छोटी मोटी बीमारियों का इलाज करते देखा था। चोट, मोच आदि आने पर पट्टी बाँधते, मालिश करने की कला भी उन्हीं से सीखी थी। श्रीराम ने टोली के सदस्यों को यह कला सिखा दी। मौसम बदलने पर उन दिनों कोई न कोई बीमारी फैलने लगती थी। सर्दी बुखार, फोड़ा-फुंसी  और पेट की बीमारियाँ आम बात थीं। आज भी गाँवों में ये रोग फैलते हैं। आज  की तुलना में उन दिनों की दशा हज़ार गुना खराब रही होगी। बारह-तेरह साल के श्रीराम ने अपने स्तर पर ही इन बीमारियों से लड़ने की ठानी। स्वयंसेवकों की टोली हर जगह इलाज के लिए तो नहीं जा सकती थी। उसका उपाय यह सोचा कि रोजमर्रा की समस्याओं के नुस्खे समझाएँ जाएँ,नुस्खे जुटाएँ। पालतू पशुओं को होने वाली बीमारियों के घरेलू उपचार भी ढूँढे। उन्हें भी लिखा और अपने साथियों को उनकी नकल तैयार करने में लगाया। इस तरह कई प्रतियाँ तैयार हो गई। पर्चेनुमा ये पोस्टर आँवलखेड़ा ही नहीं आसपास के गाँवों में भी चिपकाए। पर्चे ज्यादा संख्या में नहीं थे, उन्हें चिपकाने के लिए मंदिर, स्कूल, धर्मशाला या चौपाल जैसी जगहें चुनी गईं जहाँ लोगों का आना जाना बना रहता था। जिन दिनों यह काम चल रहा था,उन्हीं दिनों गाँव में बुखार फैला । लोगों को उसका नाम मालूम नहीं था। बदन में जोरों का दर्द उठता और फिर भट्टी की तरह तप उठता था। संभवतः वह मलेरिया बुखार रहा होगा। उन दिनों ऐसे किसी बुखार को तुरन्त ठीक कर देने वाली दवा भी नहीं आई थी। छटपटाने और हायहाय करने के सिवा किसी के सामने कोई चारा नहीं था। श्रीराम ने ताईजी से ऐसे बुखार का नुस्खा समझा । तुलसी,अदरक, लौंग आदि चीजें यहाँ वहाँ से जुटाईं  और पशुशाला  में पत्थर जमा कर चूल्हा बनाया। उसी  पर काढ़ा पकाया और जिन जिन लोगों को बुखार आया था सबको पिलाया, दिन में तीन बार काढ़ा  पिलाने में टोली के सभी सदस्य व्यस्त रहते थे। खाने-पीने की सुध भी भूल गए। बुखार के खिलाफ खोले गए इस मोर्चे में श्रीराम दल की ही जीत हई। ठीक होने के बाद लोगों को बता भी दिया कि बुखार आने पर इस तरह की औषधि लिया करें। इस तरह के पुरषार्थ ने बालक श्रीराम को लोगों में एक विवेकशील नेता बना दिया। 

हम अपने पाठकों को यह स्मरण करा दें  कि यह उस समय के संस्मरण  हैं जब परम पूज्य गुरुदेव की आयु  केवल 12-13 वर्ष ही थी ।  

छपको अम्मा की कथा का समापन यहीं पर होता है ,सोमवार को बाल्यकाल के एपिसोड को ही आगे बढ़ाने की योजना है। 

हर लेख की भांति यह लेख भी बहुत ही ध्यानपूर्वक कई बार पढ़ने के उपरांत ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा  है, अगर फिर भी अनजाने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। पाठकों से निवेदन है कि कोई भी त्रुटि दिखाई दे तो सूचित करें ताकि हम ठीक कर सकें। धन्यवाद् 

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आज की संकल्प सूची में 8   सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। अरुण  जी  गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते  हैं।

(1 )अरुण वर्मा-53 ,(2 )सरविन्द कुमार-28  ,(3)संध्या कुमार-29,(4)अशोक तिवारी-24 ,(5)पूनम कुमारी -24 ,(6 )विदुषी बंता-31,(7) प्रेरणा कुमारी-24,(8) रेणु श्रीवास्तव-28 

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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