29 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद
चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 3
सप्ताह का चौथा दिन गुरुवार, मंगलवेला-ब्रह्मवेला का दिव्य समय, अपने गुरु की बाल्यावस्था- किशोरावस्था को समर्पित,परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में आज का ऊर्जावान ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है। आशा करते हैं इस लेख की दिव्यता, शुभरात्रि सन्देश तक आपको ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।
ज्ञानप्रसाद लेखों, वीडियोस इत्यादि के उद्देश्य से तो सभी परिजन भलीभांति परिचित हैं। एक बार फिर से दोहराते हुए कहते हैं कि अपने गुरु की शक्ति के बारे में बताना, गुरु में विश्वास दिलाना हम सब का परम कर्तव्य है। हमने कल वाले कमेंट्स में भी कुछ ऐसे ही विचार दर्शाये थे। छपको अम्मा की कथा तो 100 वर्ष पूर्व घटी थी,कोई कह सकता है कि यह सब मनघडंत है, डैमनिया बाबा, जिन्हे आज का निषादराज कहा गया है आजकल के समय की है।
आज का लेख परम पूज्य गुरुदेव के जीवन के उन दिनों को समर्पित है जब उनकी आयु केवल 12 वर्ष की थी। निम्नजाति की महिला छपको अम्मा की प्रेरणादायक कथा से गायत्री परिवार का बच्चा-बच्चा परिचित है। शायद ही कोई ऐसा साधक होगा जिसने कभी न कभी उद्बोधनों में इस कथा का अमृतपान न किया होगा। कल हमने इस दिव्य कथा का प्रथम भाग प्रस्तुत किया था, आज दूसरा भाग प्रस्तुत कर रहे हैं। हमारे पाठकों ने हमें बताया है कि यह कथा इतनी रोचक और शिक्षाप्रद है कि मन करता है कि इस लाइव टेलीकास्ट को देखते ही जाएँ लेकिन एकदम ब्रेक हो जाती, लाइव टेलीकास्ट में भी तो कमर्शियल ब्रेक होती है। हमारे द्वारा planned ब्रेक का कारण यूट्यूब की शब्द सीमा तो है ही, साथ में लेख को रोचक और complete बनाने के लिए कई और reference भी देने होते हैं। इसी उद्देश्य का पालन करते हुए से आज हम श्रद्धेय जीजी की वीडियो का लिंक दे रहे हैं जिसमें वह बता रही हैं कि परम पूज्य गुरुदेव कहते थे “छपको का आशीर्वाद मुझे यहाँ ले आया”, साथ में ही यह कहना चाहेंगें कि ओरिजिनल लेख में संत एकनाथ जी की कथा का केवल reference ही दिया था, हमने उस पूरी कथा को आपके समक्ष वर्णित किया है।
अब एक महत्वपूर्ण सूचना :
कल यानि शुक्रवार को वीडियो प्रकाशित करने की प्रथा को violate करते हुए हम इस लेख का तीसरा और अंतिम भाग प्रस्तुत करेंगें। Niagara Falls पर आधारित वीडियो शनिवार को और स्पेशल सेगमेंट रविवार को प्रकाशित किये जायेंगें। मंगलवार 4 अक्टूबर को कम्पलीट छुट्टी की योजना है। यह फेरबदल हमारी व्यक्तिगत व्यस्तता की कारण किया गया है जिसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं।
आइये चलें आंवलखेड़ा की उस दिव्य हवेली के द्वार पर जहाँ उस समय के भागवत के प्रकांड पंडित रूपकिशोर जी हमारे गुरुदेव को इस कार्य के लिए आशीर्वाद दे रहे हैं और छपको अम्मा की सेवा को एक पुरश्चरण के समान बता रहे हैं।
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अछूत सेवा के अनोखे प्रायश्चित का निर्वाह करते हए ताई जी ने मिट्टी के बर्तन में रोटियाँ और दाल सब्जी रख दी। भोजन देख कर श्रीराम ने दो रोटी और दाल सब्जी ली और बस्ती की तरफ बढ़ गए। वहाँ छपको को जगाकर रोटी खिलाई। अपने हाथ से भोजन कराते हुए श्रीराम और छपको दोनों ही आनन्द विभोर थे। छपको को खाना खिलाकर सुलाकर श्रीराम वापस लौटे। घर पर जिस कोठरी में उनके लिए प्रबंध था उसी में बैठकर भोजन किया। दिन भर घर से बाहर नहीं निकले। बाहर निकलने पर कोई लाभ नहीं था। गाँव भर में खबर फैल गई थी कि श्रीराम बस्ती में जाते हैं। छपको की मरहम पट्टी करते हैं। उन्हें अस्पृश्यता दोष लग गया है, इसलिए किसी को उनका संसर्ग नहीं करना चाहिए। गाँव वालों ने अपने बच्चों को श्रीराम के साथ खेलने से सख्त मना कर दिया था।
सात आठ दिन की मरहम पट्टी और उपचार के बाद छपको का घाव सूख गया। बुखार भी नहीं रहा। वह अपने हाथ से खाना बनाने लगी, तब श्रीराम ने बस्ती में जाना बंद किया। इस बीच अलवर में भागवत कथा सम्पन्न कर पिताश्री घर लौट आए थे। देहरी पर पाँव रखते ही उन्होंने श्रीराम को बाहरी कोठरी में जमीन पर चटाई बिछाए सोते हुए देखा। तुरन्त पूछा कि क्या हुआ? यहाँ क्यों? छोटे भाई यानि देवलाल चाचा ने पूरा घटनाक्रम सुना दिया। उन्हें आशा थी कि शौचाचार यानि शुद्धिकरण का इतनी कड़ाई से पालन हुआ देख कर बड़े भैया प्रसन्न होंगे। आज तक आँवलखेड़ा और आस-पास के गाँवों में किसी ने भी बस्ती में जाकर अपना धर्म नहीं बिगाड़ा था। ऐसी स्थितियाँ ही नहीं बनी थीं कि कोई निर्णय लेना पड़े। अपने यहाँ स्थिति बनी और छोटे भाई ने अपने भतीजे के लिए ही दृढ़ व्यवस्था दे दी। धर्माधिकारी का दायित्व अच्छी तरह निभा लेने के लिए सराहना भी होगी। श्रीराम के चाचा मन ही मन प्रसन्न हो रहे थे कि उन्हें बड़े भाई से ऐसी सज़ा देने के लिए पुरस्कार मिलेगा लेकिन हुआ इसके बिल्कुल ही उलट। पंडित जी ने कहा देवलाल तुमने यह क्या किया? भागवत परिवार में किसी को सेवा टहल के लिए प्रायश्चित करना पड़े, यह धर्म विरुद्ध है। उन्होंने श्रीराम की पीठ थपथपाई और कहा पुत्र तुमने भागवत धर्म के मर्म को समझ लिया है। इस बीच आस-पास के लोग भी हवेली में आ गए थे। वे पण्डित जी को प्रणाम करने आए थे। लेकिन देवलाल को उलाहना मिलते देख ठहर गए थे। पण्डित जी कह रहे थे तुमने संत एकनाथ की कथा तो सुनी है न। एकनाथ जी ने गंगोत्री से लाया गंगाजल रामेश्वरम में भगवान् शिव पर न चढ़ा कर एक गधे को पिला दिया था और भगवान् ने उसे अभिषेक के रूप में ग्रहण कर लिया था।
परम पूज्य गुरुदेव के पिताश्री पंडित रूपकिशोर जी के इस सीन को कुछ समय के लिए रोक कर आइये संत एकनाथ जी की अटूट श्रद्धा का सीन देखें।
संत एकनाथ जी गंगोत्री से गंगाजल लेकर रामेश्वरम में भगवान शंकर पर चढ़ाने के लिए चले। कांवर में दोनों तरफ एक-एक घड़ा गंगाजल भरकर नंगे पैरों भयंकर कष्ट सहते हुए चले जा रहे थे, न भूख की परवाह, न तेज धूप की। चलते चलते पैरों में छाले पड़ गए थे परंतु एकनाथ जी को तो बस एक ही धुन लगी थी-रामेश्वरम भगवान पर जल चढ़ाकर सेवा संपन्न करने की धुन। इन सब कष्टों के सामने वह भला कहां गिरने वाले थे। सफर लम्बा था और मन में भगवान रामेश्वरम। काफी समय से सफर तय करते श्री एकनाथ जी ने लंबी दूरी तय कर ली थी। इस दूरी को तय करने में उनको रास्ते में विराम भी लेने पड़े थे, लेकिन थक कर चूर हो चुके एकनाथ जी के सामने आनंद की बात यह थी कि अब मंजिल दूर नहीं थी। पथिकों की वार्ता से आभास हो रहा था कि भगवान रामेश्वरम अब नजदीक ही हैं। संत एकनाथ बहुत प्रसन्न हो रहे थे कि अब मैं यह जल शीघ्र ही भगवान को अर्पित करके आनंद मनाऊंगा। लेकिन यह क्या, थोड़ा सा आगे बढ़ने पर संत एकनाथ देखते हैं कि एक गधा प्यास के कारण तड़पते हुए मरणासन्न स्थिति में पहुँच चुका है। यह घटना ऐसे प्रदेश में हुई थी जहाँ कहीं दूर-दूर तक पानी नहीं था। इसलिए देखने वाले केवल अफसोस जता कर आगे बढ़ जाते थे। धरती पर पड़े-पड़े वह गधा बड़ी असहाय दृष्टि से जल ले जाने वालों की ओर देख रहा था। संत एकनाथ जी को दया आई। उन्होंने सोचा चलो मैं एक घड़ा जल इस प्यासे जीव को पिलाए देता हूं और दूसरा घड़ा भगवान को अर्पित कर दूंगा। यह सोच कर एकनाथ जी ने अपनी कांवर को नीचे उतारा, प्यासे गधे को गंगाजल का एक घड़ा गधे को पिला दिया। गंगाजल पीकर उस गधे में जीवन के लक्षण लौटने लगे लेकिन अभी भी वह प्यास से बेदम हो रहा था। वह बैठने का प्रयत्न करने लगा परंतु बैठ नहीं पा रहा था और दूसरे घड़े के जल की ओर देख रहा था। संत एकनाथ जी ने सोचा कि इस प्रकार इसका जीवन न बच सकेगा अतः संत राज ने अपनी भगवान को जल चढ़ाने की इच्छा का त्याग करते हुए जल का दूसरा घड़ा भी उसे पिला दिया। जल पीकर वह गधा उठ कर खड़ा हो गया और एक ओर को चल दिया। एकनाथ जी खाली काँवर एक ओर पटककर वापस चलने लगे। सोचा भगवान पर जल चढ़ाने का पुण्य न मिला तो न सही लेकिन एक प्यासे की जान तो बच गई। लेकिन यह क्या- एकनाथ जी ने देखा कि वह गधा तो उनकी ओर ही वापिस आ रहा था। गधे ने मनुष्यों की भाषा में बोला,” संत आओ गले मिलें और एक दूसरे को निहाल कर के प्रसन्नता व्यक्त करें।”
आश्चर्यचकित संत का समाधान करते हुये गधे ने कहा, “मैं ही रामेश्वरम् हूँ। सच्चे भक्त का दर्शन करने हेतु इस मार्ग पर पड़ा प्यास से तड़पता रहता था। पुजारी बहुत निकलते थे, पर दयालु संत आप ही मिले, आज मेरा दर्शन मनोरथ पूर्ण हो गया।”
संत एकनाथ पीड़ित गधे के रूप में भगवान् को देखकर उनके चरणों में गिर पड़े और बोले,” प्रभु अब में सदा आपके “दरिद्रनारायण” स्वरूप की ही पूजा करूंगा और पीड़ितों-पतितों की सेवा में निरत रहकर आपकी सच्ची भक्ति में संलग्न रहूँगा।”
ईश्वर के प्रति भरपूर श्रद्धा दर्शाता संत एकनाथ जी का यह सीन और परम पूज्य गुरुदेव की छपको अम्मा के प्रति श्रद्धा,दोनों ही उन साधकों के लिए एक बहुत ही प्रभावशाली मार्गदर्शन का कार्य कर सकता है जिन्हे सर्वशक्तिमान ईश्वर की शक्ति में तनिक भी शंका हो।
बालक श्रीराम के पिताश्री कह रहे थे, “जीवन परमात्मा की देन है। जीवन की रक्षा से बड़ा कोई धर्म नहीं है।” कुछ देर चुप रह कर वह फिर बोले, “लेकिन तुम्हारा भी कोई दोष नहीं है। समाज की मान्यताएँ ही गड़बड़ाई हुई हैं। यह मान्यताएं अधिक दिन तक नहीं चलने वालीं। समय बदलेगा, धीरे-धीरे सब बदलेगा।” फिर पुत्र श्रीराम की ओर देखकर उन्होंने कहा, “पुत्र, समझो,तुम्हारा भी एक पुश्चरचरण हो गया समझो,जुग,जुग जियो पुत्र,प्रसन्न रहो।”
शब्द सीमा के कारण इस रोचक विषय को कल तक स्थगित करना पड़ेगा।
हर लेख की भांति यह लेख भी बहुत ही ध्यानपूर्वक कई बार पढ़ने के उपरांत ही आपके समक्ष प्रस्तुत किया जा रहा है, अगर फिर भी अनजाने में कोई त्रुटि रह गयी हो तो हम करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। पाठकों से निवेदन है कि कोई भी त्रुटि दिखाई दे तो सूचित करें ताकि हम ठीक कर सकें। धन्यवाद्
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आज की संकल्प सूची में 10 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। अरुण जी गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते हैं।
(1 )अरुण वर्मा-51,(2 )सरविन्द कुमार-32 ,(3)संध्या कुमार-30, (4)अशोक तिवारी-25,(5)कुमोदनी गौरहा-26, (6)नीरा त्रिखा-24,(7)पूनम कुमारी -25,(8 )विदुषी बंता-24,(9)सुजाता उपाध्याय-25,(10) सुमन लता-25
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव, धन्यवाद।