“शारदीय-नवरात्रि एक शक्ति-साधना महापर्व”

26 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद

आज सप्ताह का प्रथम दिन सोमवार है और सभी परिजन नवीन ऊर्जा के साथ ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने को उत्सुक होंगें। शारदीय नवरत्रि के कारण इस बार का सोमवार तो अतिरिक्त ऊर्जा का स्रोत है और सौभाग्यवश आदरणीय सरविन्द पाल जी के पुरषार्थ से आज का ज्ञानप्रसाद भी इस विषय पर आधारित है। 

हमारे लिए बहुत ही प्रसन्नता का क्षण है कि आदरणीय सुमन लता बहिन जी के पुरषार्थ से एक नए सहकर्मी आदरणीय पवन जैन जी को इस समर्पित परिवार में स्वागत करने का सौभाग्य भी आज के पावन दिन पर ही प्राप्त  हो रहा है। वरिष्ठ सहकर्मी पवन जी के बारे में व्हाट्सप्प और फ़ोन से जितनी भी जानकारी प्राप्त हो पायी है स्पेशल सेगमेंट में शेयर करने का प्रयास करेंगें।     आइये हम सब पवन जैन जी का हृदय से स्वागत करें। 

कल से एक बार फिर हम परम पूज्य गुरुदेव के बाल्यकाल का लाइव टेलीकास्ट प्रसारित करने का प्रयास करेंगें। 

इन्ही ओपनिंग रिमार्क्स के साथ प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद- सौजन्य सरविन्द पाल 

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सरविन्द पाल जी बताते हैं कि हम प्रतिवर्ष दोनों नवरात्रि महापर्व पर 24000 गायत्री महामंत्र का 9 दिवसीय लघु अनुष्ठान का संकल्प लेकर 9 दिन तक प्रतिदिन 27 माला गायत्री महामंत्र का जाप करते हैं, अस्वाद भोजन का सेवन करते हैं  जिसमें केवल दूध या फल ही लिया जाता है। इस वर्ष भी आज से यानि  26 सितम्बर से आरम्भ हो रहे  शारदीय नवरात्रि महापर्व के दौरान  9 दिन 24000 गायत्री महामंत्र का लघु अनुष्ठान व 108 पाठ गायत्री चालीसा का अस्वाद उपवास का  संकल्प लिया है। हम प्रतिदिन 27 माला गायत्री महामंत्र का जाप व 12 पाठ गायत्री चालीसा का पाठ करेंगे। परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य चरणों में यही हमारा  छोटा सा संकल्प है। 

शारदीय-नवरात्रि एक शक्ति-साधना:

युग निर्माण योजना पत्रिका  के सितम्बर 2020 अंक के अनुसार  भारतीय संस्कृति में परम पिता परमेश्वर को माँ के रूप में देखने और उस रूप में उसकी उपासना, साधना व आराधना करने का प्रचलन है जो कि अपने यहाँ की एक मौलिक विशेषता है। महर्षि अरविन्द  की दृष्टि में यह भारत की ही विशेषता है कि नवरात्रि के रूप में तो इसकी उपासना, साधना व आराधना का विशिष्ट पर्व मनाया जाता है और इसे शक्ति-साधना पर्व भी कहा जाता है। यह प्रथा आदिकाल से चली आ रही है।   शक्तिपूजा का यह पर्व आज भी अगम्य आस्था के साथ जारी है एवं भारतीय संस्कृति का प्रत्येक कालखण्ड इसकी चर्चा, विवेचना एवं साधना से भरा पड़ा है l ऋग्वेद के दशम अध्याय में उपलब्ध संग्रह में “शक्ति की व्यापकता” का  बहुत ही सुन्दर शब्दों  में वर्णन  किया गया है जो निम्नलिखित है :  

“मैं ही ब्रह्मद्वैषी को मारने के लिए रुद्र का धनुष चढ़ाती हूँ, मैं ही सेनाओं को मैदान में लाकर खड़ा करती हूँ, मैं ही आकाश और पाताल में सर्वत्र व्याप्त हूँ, मैं ही सम्पूर्ण जगत की अधीश्वरी हूँ, मैं ही परब्रह्म को अपने से अभिन्न रूप में जानने वाली पूजनीय देवताओं में प्रधान हूँ और सम्पूर्ण भूतों में मेरा ही  प्रवेश है” 

इसी तरह सभी ग्रंथों  में शक्ति-साधना का उल्लेख मिलता है l महाभारत युद्ध आरम्भ होने से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने माँ दुर्गा की उपासना की ताकि अर्जुन युद्ध में विजयी हों, भगवान श्री राम द्वारा माँ दुर्गा की उपासना का उल्लेख रामकथाओं में मिलता है। पुराणों में भी शक्ति-साधना की महिमा का विस्तार से उल्लेख मिलता है l मार्कण्डेय पुराण में शक्ति की व्यापकता का उल्लेख तीन रूपों में किया गया है- महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती l महाकाली आसुरी शक्तियों की संहारक है, अहंकार का नाश करती हैं और ज्ञान की तलवार से अज्ञान को नष्ट करती है। महालक्ष्मी ऐश्वर्य की देवी है जो कुबेर का भंडार भर देती है और हर प्रकार की समृद्धि प्रदान करती है। ज्ञान की देवी महासरस्वती विवेक की देवी है जो विद्या, साहित्य, संगीत, विवेक और ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं l मार्कण्डेय पुराण के अनुसार ब्रह्मा जी मार्कण्डेय ऋषि को कहते हैं कि देवी का पहला रूप शैलपुत्री है और इसी क्रम में अन्य रूप ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघन्टा, कुष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिध्दिदात्री हैं।  इन्ही रूपों को नवदुर्गा के रूप में पूजा जाता है और देवी के रूप को सर्वत्र व्याप्त देखा जा सकता है। समस्त प्राणियों में यही चेतना, बुद्धि, स्मृति, धृति, शक्ति, श्रद्धा, कांति, तुष्टि, दया आदि रूपों में विराजमान है और प्रत्येक इंसान के अंतःकरण में मातृशक्ति व मातृप्रवृत्ति के रूप में ही प्रवाहित है l सत, रज व तम गुणों के आधार पर यह क्रमशः महासरस्वती, महालक्ष्मी व महाकाली के रूप में जानी जाती हैं और विविध नाम-रूपों में विवेचित देवी के स्वरूप मूलत: एक ब्राह्मी शक्ति में सिमट जाते हैं जिसे प्रचलित रूप में “गायत्री” नाम से जाना जाता है। 

नवरात्रि के पावन महापर्व पर प्राचीनकाल में गायत्री-साधना का ही एकमात्र प्रसंग मिलता है लेकिन  मध्यकाल के अंधेरे में हेरा-फेरी कर अनेक रूप दिखाए गए हैं, इसके बावजूद  प्रधानता गायत्री की रही है l सनातन संस्कृति में तो पूरी तरह एकरूपता, एकनिष्ठा, एक दिशा और एक लक्ष्य का ही निर्धारण था l ज्ञान और विज्ञान के आधार वेद थे और उपासना, साधना व आराधना का समूचा विधि-विधान गायत्री की धुरी पर टिका हुआ था l उन दिनों सर्वसाधारण के लिए दैनिक संध्या वंदन में गायत्री महामंत्र ही उपासना का मेरुदंड था और योगी-तपस्वी इसी के सहारे अपना महान लक्ष्य प्राप्त करते थे l देवताओं और अवतारों की शक्ति का स्रोत भी यही था। नवरात्रि के पावन अवसर पर गायत्री मंत्र को केन्द्र बनाकर विशिष्ट शक्ति-साधना, अनुष्ठान आदि सम्पन्न किए जाते थे l

शारदीय नवरात्रि महापर्व की ऋतुसंधि की मधुरवेला स्वयं में एक विशिष्टता  लिए होती है क्योंकि  इस समय सम्पूर्ण प्रकृति अपने चरम उत्कर्ष पर होती है l इन  दिनों मानव शरीर की काया अपने अंदर इक्क्ठे हुए  विजातीय तत्व को बाहर फेंकने के लिए ज़ोर  मारती है। आध्यात्मिक साधनाओं के लिए भी  ऋतुसंधि की इस वेला से बढ़कर और कोई अवसर नहीं हो सकता है l यदि इसके साथ युगसंधि का दुर्लभ सुयोग भी जुड़ा हो तो इसका महत्व सौ गुना हो जाता है। इसलिए  सभी आत्मीय सहकर्मियों से निवेदन है कि नवरात्रि के इस पावन महापर्व को हाथ से बिल्कुल न जाने दिया जाए व समुचित तैयारी के साथ आत्मशोधन,आत्मोत्कर्ष में भागीदारी सुनिश्चित करना एक  बहुत ही सराहनीय प्रयास होगा l नवरात्रि उपासना, साधना व आराधना में 24000 गायत्री महामंत्र जाप वाले लघु अनुष्ठान के नियमों का पालन करना होता है और इसमें 27 माला नियमित जपनी पड़ती है जो  सामान्यता 3 घंटे में पूरी हो जाती है l इस अवधि में उपवास का नियम कड़ाई से किया जाए तो बहुत अच्छा है अन्यथा ब्रह्मचर्य से रहने वाला अनिवार्य नियम टूट सकता है क्योंकि अनुष्ठान में ब्रह्मचर्य का पालन सबसे ज्यादा अनिवार्य होता है l उपवास कई तरह का हो सकता है: फल, दूध, शाकाहार, खिचड़ी, दलिया आदि  जिसे  अस्वाद उपवास के रूप में भी लिया जा सकता है। मिर्च-मसाले  का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए, बिना नमक व शक्कर के भोजन का इस्तेमाल किया जाए तो वह भी एक प्रकार का उपवास ही है l अपनी शारीरिक व मानसिक स्थिति के अनुसार ही उपवास का संकल्प लेना चाहिए। भोजन आदि के इलावा तीन अतिरिक्त तीन नियमों का पालन भी करना चाहिए :(1) कोमल शय्या का त्याग और भूमिशयन या तख्त पर सोना, (2) अपनी शारीरिक सेवाएं स्वयं अपने हाथों से करना, (3) हिंसा युक्त वस्तुओं का त्याग अर्थात चमड़े से बनी वस्तुओं से बिल्कुल दूर रहना l इन तीन नियमों के अतिरिक्त जप की पूर्णाहुति के लिए हवन भी किया जाना चाहिए और पूर्णाहुति के तत्पश्चात प्रसाद वितरण व सामर्थ्यानुसार कन्याभोज अति  उत्तम है l जो लोग 24000 गायत्री महामंत्र का लघु अनुष्ठान न कर सकते हों वे प्रतिदिन 270 गायत्रीमंत्र लेखन कर 9 दिन में कुल 2400 गायत्री महामंत्र लिखकर भी सरल अनुष्ठान कर सकते हैं l 

शारदीय नवरात्रि के शक्ति-साधना पर्व के इस पुनीत-पावन अवसर में किया गया साधनात्मक पुरुषार्थ हमारे आत्मोत्कर्ष की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है। अवतरित शक्ति का एक अंश उस ज्ञान को सक्रियता में बदल सकता है जो शक्ति के अभाव में भारी बोझ बना हुआ है जिसके नीचे हम दबे-पिसे जा रहे हैं। इस शक्ति का एक अंश उस भक्ति के लिए ईन्धन का काम कर सकता है जिसके अभाव में भक्ति कोरी भावुक बनकर उपहास का पात्र बनी हुई है l इस शक्ति का एक अंश उस श्रद्धा व समर्पण को निष्ठा में बदलकर इसकी सार्थकता सिद्ध कर सकता है जो शक्ति के अभाव में कुंठित होकर दम तोड़ रही है l 

आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी आत्मीय सहकर्मियों  से करबध्द निवेदन है  कि अपने-अपने घरों में  26 सितम्बर  2022 सोमवार से शारदीय नवरात्रि  शक्ति-साधना महापर्व पर साधनात्मक पुरुषार्थ में संकल्पित भागीदारी लेकर इसे सफल बनाएं, चाहे शारदीय नवरात्रि महापर्व हो या चैत्र नवरात्रि का महापर्व हो दोनों में एक ही तरह के लाभ हैं और गायत्री साधना के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण दिवस हैं।  ऐसे शुभ अवसरों से कभी भी  विलग न हों और इस महापर्व पर बढ़ -चढ़कर हिस्सा लें ताकि अपने जीवन का कायाकल्प किया जा सके। जिसने अपनेआप को इस शक्ति-साधना में लगा दिया, समझो उसका जीवन धन्य हो गया। 

अगर कोई परिजन इतना करने में भी असमर्थ है तो  वह केवल आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार से  जुड़कर दैनिक  प्रकाशित हो रहे ज्ञानप्रसाद  लेखों, वीडियोस और “अपने सहकर्मियों की कलम से” स्पेशल सेगमेंट का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन/स्वाध्याय करते हुए, कमेन्ट्स के रूप में अपने विचारों की आहुति डालकर भाव भरी Reply करके अपनी सहभागिता सुनिश्चित करता रहे तो भी उसका जीवन शत-प्रतिशत धन्य हो सकता है। इस कथन में तनिक भी संदेह व संशय नहीं है क्योंकि हम और आप सब स्वयं इसके प्रत्यक्ष उदाहरण  हैं l हम अपने व्यक्तिगत अनुभव से कह सकते हैं कि जब से हम आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में जुड़े हैं तब से आजतक हम अपने अंतःकरण में आमूल-चूल परिवर्तन का अनुभव कर रहे हैं। आमूल-चूल परिवर्तन ऐसा परिवर्तन होता है जिसमें स्थिति पूरी तरह से बदल जाए। 

हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि  सभी इस शक्ति-साधना में पुरुषार्थ लगाकर अपना जीवन धन्य बनाएंगे और अपने आनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का नाम रोशन करेंगे। 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची :

आज की संकल्प सूची में 12 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। अरुण  जी सबसे अधिक अंक प्राप्त करने के कारण गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते  हैं। 

(1 )राजकुमारी कौरव-33 ,(2)अरुण  वर्मा-45 ,(3 ) सरविन्द कुमार-33 ,(4) संध्या कुमार-32 ,(5) प्रेरणा कुमारी-26,(6 ) रेणु  श्रीवास्तव-28 ,(7 )पूनम कुमारी-26,(8) सुजाता उपाध्याय-31 ,(9) सुमन लता-25,(10) नीरा त्रिखा-26,(11)विदुषी बंता-24,(12) प्रशांत सिंह-24   

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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