वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

परम पूज्य गुरुदेव के जन्म से पूर्व  कुछ विलक्षण घटनाएं।

चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1, चैप्टर 2  

आज सोमवार है, सप्ताह का प्रथम दिन, एक दिन के अवकाश के उपरांत सम्पूर्ण  ऊर्जा लेकर हम अपने सहकर्मियों के समक्ष प्रस्तुत हैं।  

आज का  ज्ञानप्रसाद आरम्भ करने से पूर्व अपने सहकर्मियों की विशेष उपलब्धि के लिए हार्दिक बधाई देना चाहेंगें। आज की 24 आहुति संकल्प सूची अपनेआप में एक रिकॉर्ड है जिसने आज तक के सभी Numbers को पार करते हुए एवरेस्ट के शिखर को छुआ है। संकल्प पूरा करने वाले 19 सहकर्मियों को हमारा नमन और कमैंट्स की संख्या 700 प्राप्त करने पर बधाई। आदरणीय रेणु श्रीवास्तव जी ने लिखा था शायद हमारे लिखने का प्रभाव हो रहा हो लेकिन हो सकता है उसका कुछ आंशिक प्रभाव हो, हाँ motivation का प्रभाव तो होता ही है लेकिन अंतर्मन से उठ रही वाणी सबसे उच्च कोटि की होती है। यही कारण है कि गुरुदेव विचारों की बात करते हैं, यह बहुत ही strong tool है।  कारण कोई भी हो, सहयोग और सहकारिता को तो कतई नकारा  नहीं जा सकता। सरविन्द जी और  हमारे बीच हुए  संवाद हम आपके साथ शेयर  कर चुके हैं, रिपीट करना उचित न होगा । 

आज के ज्ञानप्रसाद की बात करें तो कल 20 सितम्बर 2022 का दिन है;  20 सितम्बर 1911 को हमारे गुरुदेव का जन्म हुआ था।  वैसे तो गुरुदेव का जन्म, आध्यात्मिक जन्म के रूप में वसंत पर्व मनाया  जाता है लेकिन जन्म के पूर्व, जन्म के समय और जन्म के बाद की विलक्षण घटनाओं  की जानकारी प्राप्त करना भी कोई कम महत्वपूर्ण नहीं है। तो यही है आज से आरम्भ हो रही लेख श्रृंखला का विषय। इस लेख श्रृंखला का  आधार सुप्रसिद्ध पुस्तक चेतना की शिखर यात्रा पार्ट 1 का द्वितीय चैप्टर है।  इस चैप्टर में “मातृत्व की विलक्षण अनुभूति” subheading में यह वर्णित है।           

गुरुदेव के जन्म के पूर्व उनकी माता जी, जिन्हे परम पूज्य गुरुदेव ताई कहकर पुकारते थे, आदरणीय दानकुंवरि देवी जी के साथ कुछ विलक्षण घटनाएं हुई थीं। आज के लेख में इन  घटनाओं का चित्रण करने का प्रयास है। आने वाले लेखों में जन्म के समय और जन्म के बाद वाली विलक्षणताओं की चर्चा  करेंगें। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म समय कारावास में माता देवकी और पिता वासुदेव जी के साथ कितनी ही विलक्षण घटनाएं हुई थी हमारे सूझवान पाठक भली भांति जानते हैं । यह तथ्य कितना पुरातन और सत्य है कि आशंका का कोई मतलब ही नहीं उठ सकता  है। इस तरह के तथ्य और घटनाएं हमारे गुरुदेव दिव्यता को प्रमाणित करती हैं। 

तो आइये चलें आज के ज्ञानप्रसाद के अमृतपान की ओर।

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गुरुदेव का जन्म :

हमारे पूज्यवर का जन्म 20  सितम्बर  1911 आश्विन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को प्रातः 9  बजे हुआ। पितृपक्ष चल रहा था। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार इन दिनों में  शरीर छोड़ना और जन्म लेना दोनों ही विलक्षण हैं।  कहते हैं  पितृपक्ष में शरीर छोड़ने वालों की आत्मा सीधे पितृलोक चली जाती हैं अथवा  नया शरीर धारण कर लेती हैं। उनकी एक-आध सूक्ष्म  वासना शेष रह जाती है  जिसे पूरा करने के लिए वे शरीर धारण करती हैं। पितृपक्ष में जन्म लेने वाले मानव अपनी वंश -परम्परा के मेधावी पूर्वज होते हैं। वे अपनी परम्परा को आगे बढ़ाने,उसे समृद्ध करने, गौरव बढ़ाने यां पिछले जन्मों  में जिन लोगों का उपकार रह गया हो उसे चुकाने के लिए आते हैं। पितृपक्ष,जन्मकुंडली और जन्म से पूर्व होने वाली घटनाओं के आधार पर आंवलखेड़ा के पंडितों ने कहा : “पंडित रूप किशोर शर्मा जी के घर योगी यति आत्मा प्रकट हुई है। योगी यति आत्मा ऐसी  संन्यासी,त्यागी आत्मा होती है जिसने इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली हो और जो संसार से विरक्त हो।

आगरा,आंवलखेड़ा स्थित एक पुरानी हवेली गुरुदेव व उनके परिवार का निवास था। जलेसर रोड पर स्थित यह हवेली हमें 2019 को देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम तो केवल अन्तः करण में guess ही कर सकते थे कि यह हवेली उस समय कैसी होगी क्योंकि हम एक शताब्दी से अधिक की बात कर रहे हैं। हमारे लिए तो आंवलखेड़ा की धरती किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है – हो भी क्यों न- यह हमारे गुरु की जन्मस्थली है,वह गुरु जो हमें अपने बच्चो की तरह स्नेह देते हैं। हम आग्रह करते हैं कि हमारे पाठक इसी चैनल के वीडियो सेक्शन में आंवलखेड़ा पर आधारित videos देख कर पुण्य के भागीदार बने।

गुरुदेव के माता-पिता, चाचा ,ताऊ सभी इक्क्ठे एक joint family की तरह रहते थे। संयुक्त परिवार होने के कारण सम्बन्धियों-स्वजनों का आना जाना बना ही रहता था। घर ने खासी चहल -पहल रहती थी गुरुदेव के पिता जी पंडित रूप किशोर शर्मा जी उस समय पचपन वर्ष के थे। रूप किशोर जी परिवार में सबसे बड़े थे और ताई सब का पूरा ख्याल रखती थीं। उन्हें जेठानी या सास के बजाय माँ या बड़ी बहन अधिक समझते थे। यह उनका वात्सल्य ही था जो सभी उन्हें इतना आदर सम्मान देते थे। रात्रि के चौथे पहर उठती और देर रात तक सभी का ध्यान रखने में व्यस्त रहतीं।

1911 में ताई को मातृत्व का आभास हुआ। पहली संतान का गर्भ में प्रवेश हुआ। उन्हें विलक्ष्ण से अनुभव होने लगे। अक्सर होता है कि पहली संतान के समय माँ को भय लगता है लेकिन उन्हें कोई भय न महसूस हुआ और न ही कुछ अटपटा। गांव की बड़ी -बूढ़ी स्त्रियों से बात की तो कहने लगीं : “देवता प्रसन्न हो रहे हैं। यह प्रतीतियां वही करवा रहे हैं “

एक सुबह की घटना :

जैसा हम पहले बता चुके हैं ताई जी रात्रि के चौथे पहर उठ कर देर रात्रि तक सभी की देखभाल में व्यस्त रहती थीं, कोई थकावट नही, शरीर में हमेशा स्फूर्ति रहती थी। परन्तु उस दिन पता नहीं क्या हुआ। स्नान इत्यादि से निवृत होकर आगे का सोच रही थीं कि झपकी लग गयी। आँखें खुद ही बंद हो गयीं, याद ही नहीं रहा कि चूल्हे पर दूध चढ़ाया हुआ है। इतनी गहरी झपकी लगी कि ऐसा लगा जैसे  नींद लग गयी हो और कोई सपना देख रही हों। इस तरह के दो सपनों के विवरण  निम्नलिखित पंक्तियों में वर्णित है। 

ताई का प्रथम सपना :

सपना किसी अज्ञात प्रदेश के वन का है। वह उस निर्जन वन में अकेली हैं। चारों ओर सूर्य की स्वर्णिम आभा बिखरी है। पूर्व दिशा में तप्त अग्नि पिंड की तरह सिंदूरी लाल रंग का गोला (सूर्य) उदित हो रहा है। वातावरण की  सुगंध ने ताई को अभिभूत ( मुग्ध ) कर दिया। सूर्य पिंड प्रखर होता जा रहा था। पिंड के मध्य में एक नारी की आकृति झलक दिखा रही थी। स्वर्णिम कांति से युक्त वह आकृति हंस पर बैठी है, उस आकृति के दाएं हाथ में कमंडल और बाएं हाथ में पत्राकार पोथी थी। ताई जी उस समय स्पष्ट देख नहीं पाईं कि कौन सा ग्रन्थ है। वह समझीं कि भागवत है क्योंकि पतिदेव इसी शास्त्र का पाठ और कथा करते थे। यह आकृति कुछ थोड़ी देर बाद ही लुप्त हो गयी। दूध उबल गया था और कुछ तो चूल्हे में भी गिर गया। गिरने की आवाज़ से सपना टूट गया। ताई ने यह सपना पतिदेव को भी सुनाया ,उन्होंने कहा वह भागवत नहीं, वेद है। ताई को यह दृश्य एक बार और भी दिखाई दिया था। दोपहर में खाना वगैरह समाप्त होने पर परिवार जनों का कुशलक्षेम पूछ कर कुछ देर के लिए बैठी थीं।

ताई का दूसरा सपना :

ताई जी ने भाव समाधि की दशा में देखा कि वह एक सरोवर के किनारे खड़ी हुई हैं। इस सरोवर में कमल खिले हुए हैं। एक बड़े कमल पर वही आकृति विराजमान है जो उस दिन सविता मंडल में देखी थी। पूर्व दिशा से विमान उड़ते दिखाई दिए ,उनमें बैठी दिव्य सत्ताएं पुष्प बरसा रही थीं। इस बार भी पतिदेव से पूछा तो उन्होंने कहा : यह आपके अंतर्जगत में हो रही हलचल के संकेत हैं। इन संकेतों को चेतना में होने वाले परिवर्तन भी कह सकते हैं। जब किसी पुण्य आत्मा को शरीर धारण करना होता है और वह गर्भ में प्रवेश कर चुकी होती है तो इस तरह के स्वप्न स्वाभाविक हैं। 

ताई जी के स्वप्न के अतिरिक्त और भी विचित्र घटनाएं देखने को मिलीं। ताई जी बताती थीं कि अचानक घर में सुगंध फैल जाती थी। ऐसा लगता था जैसे कई अगरबत्तियां जलाई हों यां हवन हो रहा हो। यह सुगंध धीरे -धीरे सारी हवेली में फैल जाती थी। हवेली में अचानक ही कई गायों का आना सब को बहुत ही अचंभित करता था। अपनी गायें तो होती ही थीं परन्तु आस पास से 8 -10 गायें और भी आ जाती और रात भर हवेली में ही रुक जातीं। ढूंढने पर जब पंडित जी की हवेली में से मिलतीं तो सभी को बहुत ही अचम्भा होता। साधारण समय में प्रायः पराये पशुओं को भगा दिया जाता परन्तु ताई जी के स्वभाव में विलक्षण परिवर्तन आया,उन्होंने गायों को भगाने के बजाय उनकी सेवा करनी आरम्भ कर दी, उन्हें चारा -पानी देना आरम्भ कर दिया।

मधुमक्खियों के छत्ते :

विलक्षणता का एक और उदाहरण तब मिला जब हवेली में मधुमक्खियां आकर भिनभिनाने लगीं। इनसे ताई जी को असहजता भी हुई। जिस तेज़ी से वह भिनभिनाती आयीं, सप्ताह भर में ही उन्होंने तीन -चार छत्ते बना दिए। परिवार में सभी को असुविधा भी हुई परन्तु एक बात बहुत ही विलक्षण हुई। यह मधुमक्खियां किसी को काट नहीं रही थीं। घर वालों ने मक्खियों को  उड़ाने का उपाय सोचा। गांव में तो एक ही उपाय होता है। आग जला कर धुआँ करना। जब ताई जी को पता चला कि मधुमक्खियों को उड़ाने का प्रयास किया जा रहा है तो उन्हें अच्छा नहीं लगा। हालाँकि सबसे अधिक असुविधा उन्हें ही होती थी और अंदर बाहिर भी वहीँ चलती -फिरती थीं। उन्होंने डाँटते हुए कहा: अगर यह मधुमक्खियां किसी को काट नहीं रही हैं,अपने घरों में शांति से रह रही हैं तो आप उन्हें क्यों हानि पहुंचा रहे हो। ताई जी के डांट-डपटने पर सब शांत हो गए। 

गुरुदेव के पिता पंडित रूप किशोर शर्मा जी कहीं बाहिर गए हुए थे, 8 -10 दिन बाद लौटे तो उन्होंने भी ताई का समर्थन किया। मधुमक्खियों के इस प्रकार छत्ते बनाने का आध्यात्मिक तथ्य  समझाया। कहने लगे ” इस तरह मधुमक्खियों के छत्ते बनना “शिव का संकेत” है। जब कोई दिव्य आत्मा आने वाली होती है तो यह शिव का वरदान है। उनके भेजे हुए प्राणी फूलों की सुगंध और मधु संचित कर ला रहे हैं। यह शिव का अनुग्रह और आने वाली आत्मा का आश्वासन भी है।

क्रमशः जारी -To be continued 

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची :

आज की संकल्प सूची में 19  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। अरुण  जी और सरविन्द भाई साहिब दोनों ही गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते  हैं। 

(1 )राजकुमारी कौरव-32,(2)अरुण  वर्मा-48,(3)कुसुम त्रिपाठी-25,(4) सरविन्द कुमार-46,(5) वंदेश्वरी साहू-26,(6) अरुणा शर्मा-25,(7) राम नारायण कौरव-25,(8) निशा भरद्वाज-30,(9) लता गुप्ता-31,(10) संध्या कुमार-31,(11) राधा त्रिखा-25,(12) विदुषी बंता-25,(13) प्रेमशीला मिश्रा-25,(14) नीरा त्रिखा-26,(15) कोकिला बरोट-24,(16) प्रेरणा कुमारी-31,(17)प्रशांत सिंह-26,(18) रेणु  श्रीवास्तव-33,(19)पूनम कुमारी-26 

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।       

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