वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

OGGP के सहयोगी आद. कुमोदिनी गौरहा जी का कल वाले ज्ञानप्रसाद में योगदान। 

13 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद

आज का ज्ञानप्रसाद ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की समर्पित सहभागी आदरणीय कुमोदिनी गौरहा जी द्वारा प्रस्तुत किया गया है। पंडित लीलापत शर्मा जी और परम पूज्य गुरुदेव के मध्य हुई प्रश्नोत्तरी पर आधारित आजकल चल रही श्रृंखला के लिए बहिन जी की प्रस्तुति अति उत्तम योगदान है जिसके लिए हम उनका  ओर से धन्यवाद् करते हैं। यह प्रस्तुति केवल दो ही पन्नों की है और कल वाले लेख का ही भागहो सकती  है। OGGP के लिए बहिन जी का निस्वार्थ योगदान किसी से छिपा नहीं है। 

आजकल चल रही ज्ञानप्रसाद श्रृंखला का आधार पंडित लीलापत शर्मा जी की पुस्तक  “युगऋषि का अध्यात्म,युगऋषि की वाणी में” है। इस पुस्तक पर आधारित आज तक  जितने भी  लेख आपके समक्ष प्रस्तुत किये हैं इतने  रोचक और शिक्षाप्रद है कि इन्हे  बार-बार पढ़ने से भी दिल नहीं भरता।

तो चलते हैं आज के ज्ञानप्रसाद की ओर।  

गायत्री के स्वरूप का महत्व: 

धर्म शास्त्रों में अनेक देवी देवताओं की चर्चा आती है। जिस प्रकार  उनके अलग- अलग स्वरुप, आकार, प्रकारों का उल्लेख है, उसी प्रकार उनके पूजा विधान और स्वरुप भी  भिन्न-भिन्न बताए हैं। साथ ही यह भी स्पष्ट किया है वे सभी एकाकी और अपूर्ण हैं।  शरीर में अनेक अंग-अवयव होते हैं और  उनके स्वरुप एवं कार्य विधि भी अलग-अलग होते हैं पर वे सभी एक ही शरीर के अन्तर्गत आते हैं। मस्तिष्क उन सब पर नियंत्रण करता है, ह्रदय उनका पोषण करता है। केवल  देखने भर को उनका अलग-अलग अस्तित्व मालूम पड़ता है पर वस्तुत: वैसा होता नहीं है।  समस्त शरीर की स्वस्थ,अल्प-स्वस्थ,सबल, निर्बल, जीवित अथवा मृत दोनों पर उन अवयवों की एक ही गति होती है।  इसी तथ्य को अच्छी प्रकार समझना चाहिए कि समग्र देवता एक ही महातत्व के अन्तर्गत आते हैं। परमब्रह्म की एक-एक शक्ति को देवता के नाम से संबोधित किया गया है।  जिस प्रकार जीभ में  वाणी, नेत्र में दृश्य, मस्तिष्क में बुद्धि, भुजाओं में बल, पैरों में गति होती है, उसी प्रकार परमब्रह्म की अगणित शक्तियां पृथक-पृथक देवताओं के नाम से कही गईं हैं।  उन्हें सशक्त बनाने के लिए पृथक- पृथक अवयवों की भी तेल मालिश आदि पृथक-पृथक क्रियाएं भी की जाती है या की जा सकती हैं  लेकिन वास्तविकता को समझने वाले शरीर की मूल जीवन-शक्ति पाचन-प्रक्रिया,रक्त-शुद्धता आदि पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं क्योंकि जड़ को सींचने से ही पत्तियां-डालियां स्वमेव हरी रह सकती हैं। देवताओं का  पृथक-पृथक पूजन भी किया जा सकता है, उसमें कोई हानि नहीं है पर जो दूरदर्शी होते हैं वे जड़ सींचने की भांति परमब्रह्म की मूल शक्ति पर ही ध्यान केन्द्रित करते हैं और पृथक- पृथक दिखने वाले सभी अवयवों को सशक्त परिपुष्ट बनाते हुए उनके द्वारा प्राप्त हो सकने वाले  लाभों से लाभान्वित होते हैं। 

गायत्री परमब्रह्म की मूलभूत एवं अविछिन्न शक्ति है।  ब्रम्हतत्व मे गतिशीलता, उसकी ब्रम्हाणी शक्ति गायत्री ही पैदा करती हैं, उसी से सब अंग-अवयवों को, देवताओं को पोषण मिलता है। इसीलिए तत्वदर्शी जगह जगह भटकने की अपेक्षा एक ही प्रमुख आश्रय का अवलम्बन करते हैं और जो दर-दर भटकने पर मिल सकता है उसे एक ही स्थान पर प्राप्त कर सकते हैं। गायत्री मूल है अन्य देवता उसकी शाखा, उपशाखा मात्र हैं । वे शक्तियां भी अपना सामर्थ्य मूल शक्तियों से उपलब्ध करके इस योग्य बनी हैं कि अपना क्रियाकलाप विधिवत जारी रख सकें, किसी साधक को अभिष्ट वरदान दे सके।  इसी तथ्य को पुराणों, साधना शास्त्रों में इस प्रकार स्पष्ट किया गया है:

सभी देवी-देवता गायत्री की उपासना एवं स्तुति करते हैं और उसी महाभण्डार से जो उपलब्ध करते हैं उसका अनुदान अपने क्षेत्र में वितरित करते हैं। देवी भागवत के १६ अध्याय के 16वें श्लोक में लिखा है कि गायत्री उपासना वेदों का सारभूत तत्व है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि सभी देवता संध्या सहित गायत्री की उपासना करते हैं।  जो गायत्री को छोड़कर दूसरे मंत्रो की उपासना करता है वह दुर्बुद्धि मनुष्य पकाए हुए अन्न को छोड़कर भिक्षा के लिए घूमने वाले पुरुष के समान है। 

गायत्री उपासना का महत्व भावनात्मक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है।  भावनात्मक और वैज्ञानिक भावना की दृष्टि से विचार किया जाए तो मानव जीवन के चरित्र उत्कर्ष का बीज मंत्र उसे ही कहा जा सकता है।  अनेक व्यक्तियों  को  गायत्री उपासना के फलस्वरूप अनेकों प्रकार के कष्टों से छुटकारा पाते और अनेक सुविधाएं उपलब्ध होते हुए देखकर हमें यह अनुमान लगाना चाहिए कि इस मंत्र में वैज्ञानिक तत्वों का भी समावेश है  जिसके कारण साधक की अन्य: भूमि में आवश्यक हेर फेर उपस्थित होते हैं और व्यक्ति  असफलताओं और शोक संतापो से विजय प्राप्त करते हुए तेजस्वी, समुन्नत,समर्थ एवं सफल जीवन की ओर अग्रसर होते हैं। इसीलिए ऋषि मुनियों ने भी अपने कृत्यों में गायत्री को स्थान दिए रहने का निर्देश दिया है। गायत्री उपासना से व्यक्ति  निश्चित रुप से आत्मोन्नति करता है। 

यह लेख आदरणीय कुमोदिनी गौरहा बहिन जी ने साँझा किया जिसके लिए ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री 

परिवार ह्रदय से आभार व्यक्त करता है।

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आज की 24 आहुति संकल्प सूची :

आज की संकल्प सूची में 9  सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। अरुण जी 48 पॉइंट्स प्राप्त कर गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते  हैं। 

(1 )अरुण वर्मा- 48,(2) संध्या कुमार-28 ,(3 )सरविन्द  कुमार -43,(4) सुमन लता-26,(5 ) कुसुम त्रिपाठी-26,(6)सुजाता उपाध्याय-27,(7) रेणु श्रीवास्तव-32,(8)विदुषी बंता-27,(9)प्रेरणा कुमारी-27    

सभी को  हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई।  सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय  के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव,  धन्यवाद।

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