8 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद
ज्ञानप्रसाद लेख शृंखला का इस सप्ताह का अंतिम लेख, गुरुवार का ज्ञानप्रसाद,अमृतवेला में परम पूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से प्रस्तुत है। कल शुक्रवार का ज्ञानप्रसाद देव संस्कृति विश्व विद्यालय पर शूट की गयी केवल पांच मिंट की वीडियो होगी। युगतीर्थ शांतिकुंज द्वारा प्रकाशित यह वीडियो पूरी तरह से HD है और शनिवार को तो आपका लोकप्रिय सेगमेंट होती ही है।
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास करते हैं कि हमारे परिजन पूर्ण समर्पण के साथ आज के ज्ञानप्रसाद की प्रतीक्षा कर रहे होंगें, करें भी क्यों न, गुरुदेव की अमृतवाणी पर आधारित यह सभी लेख हमारे परिजनों की बैटरी जो चार्ज करते हैं, यह charged बैटरी उन्हें दिन भर ऊर्जावान बनाये रखती है। हम अपनेआप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानते हैं कि गुरुदेव ने हमें इस योग्य समझा और हमारे सहकर्मियों ने इस कार्य को सफल बनाने के लिए पूर्ण सहयोग दिया।
आज का ज्ञानप्रसाद भी “युगऋषि का अध्यात्म,युगऋषि की वाणी में” पुस्तक पर आधारित है। पंडित जी और गुरुदेव के रोचक संवाद सुनने को उत्सुक सहकर्मियों को बिना किसी प्रतीक्षा के ज्ञानप्रसाद की ओर लिए चलते हैं।
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पूज्यवर उस दिन की चर्चा समाप्त करके खड़े हो गए और बोले-अब आगे की बात फिर करेंगे। पंडित लीलापत जी कहा गुरुदेव! अभी तो शंकर, राम, कृष्ण कई देवताओं के बारे में आपसे पूछना है। गुरुदेव बोले-अब एक ही दिन में सारा ज्ञान ले लेगा क्या, इस ज्ञान को साथ ही साथ पचाता भी चल, आचरण में ढालने का प्रयास भी कर, तभी इसका लाभ मिलेगा। हमने सोचा, यदि दुनिया में गुरुदेव का अवतार न हुआ होता तो ये ढोंगी धर्माचार्य धर्म का सत्यानाश कर देते और फिर यह कहना सत्य साबित हो जाता कि “धर्म अफीम की गोली है।”
इस वाक्य का अर्थ समझाने के लिए परम पूज्य गुरुदेव ने 103 पन्नों की पुस्तक “क्या धर्म अफीम की गोली है ?” लिखी है। युग निर्माण योजना प्रेस तपोभूमि मथुरा द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का वर्ष 2010 का अंक ऑनलाइन उपलब्ध है। इस पुस्तक के प्रथम चैप्टर में ही गुरुदेव ने लेनिन का रेफरन्स देते हुए लिखा है कि धर्म अफीम की गोली नहीं है। हमारा हिन्दू धर्म क्या,विश्व के किसी भी धर्म की तुलना अफीम की गोली से नहीं की जा सकती। यह तो समय-समय पर उठ रहे राजनेता ही थे जिन्होंने धर्म को अफीम की गोली बनाकर आम जनता को दिया, जनता को mesmerize किया,गुमराह किया।
अलग-अलग मूर्तियों की चर्चा को आगे बढ़ाते हुए जब पंडित जी ने अगले दिन पूज्यवर से शंकर भगवान की भक्ति और उपासना के बारे में समझाने का अनुरोध किया तो गुरुदेव बोले : शंकर भगवान हम सबके अंदर सोए पड़े हैं, उनको जगाने की आवश्यकता है। भगवान शंकर के बाहरी स्वरूप से ही उनके अंदरूनी पक्ष की व्याख्या आसान होगी। भगवान शंकर की जटाओं से गंगा निकलती है, गंगा पवित्रता का प्रतीक है इसलिए मस्तिष्क में सदैव पवित्र चिंतन, शुद्ध विचार होने चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि मैं भगवान का पुत्र अर्थात भगवान ही हूँ। जो कार्य भगवान ने किए, जिन सिद्धांतों का उन्होंने पालन किया, उनका ही पालन मुझे भी करना चाहिए। शेर का बच्चा शेर और हाथी का बच्चा हाथी तथा गुरु का बच्चा गुरु ही तो होना चाहिए। युगतीर्थ शांतिकुंज स्थित विलक्षण मंदिर “भटका हुआ देवता” इसी शिक्षा का तो प्रतीक है।
पंडित जी कहते हैं कि परम पूज्य गुरुदेव ने अपना समस्त जीवन समाज की सेवा में लगा दिया। उनके सिद्धांतों का पालन करते हुए,हम भी तो वही कार्य करेंगे, समाज सेवा का कार्य। गुरु के जीवन चरित्र को अपने जीवन में प्रवेश कराएँगे। जो आशाएँ हमारे गुरु ने हमसे लगा रखी हैं, उनको पूरा करेंगे। जो शपथ हमने ली है उसे पूरा करेंगे, ऐसा उत्कृष्ट पवित्र और शुद्ध चिंतन हमें करना चाहिए। इसी के प्रतीक के रूप में भगवान शंकर की जटाओं से गंगा अवतरित हुई है।
भगवान शंकर के सिर पर चंद्रमा है। चंद्रमा शीतलता का प्रतीक है, शांति का प्रतीक है। इससे हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम कभी भी क्रोध नहीं करेंगे। दिमाग को हमेशा ठंडा रखेंगे। गुरुदेव बताते हैं: सुकरात की पत्नी बड़ी कर्कश स्वभाव की थी। सुकरात से नित्य प्रति अनेकों लोग सत्संग करने आया करते थे। एक दिन प्रात:काल कुछ विद्वानों के साथ सत्संग चल रहा था। उसकी पत्नी ने गाली देना प्रारंभ कर दिया। जब इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ तो उसने बर्तन साफ करने के बाद बचा हुआ गंदा पानी सबके ऊपर डाल दिया। सुकरात बोले-देवी! हम तो समझते थे जो गरजते हैं वे बरसते नहीं हैं,लेकिन आज तो जो गरजे हैं वे बरसे भी हैं । यह सुनकर उनकी पत्नी बहुत शर्मिंदा हुई। विद्वान आगंतुकों ने कहा कि महात्मन, यह स्त्री आपके लायक नहीं है। इस पर सुकरात ने कहा-नहीं ! यह स्त्री मेरे लिए ही उपयुक्त है। यह सदैव परीक्षण करती रहती है कि सुकरात किस मिट्टी का बना है? हमें भगवान शंकर के चंद्रमा से यह प्रेरणा लेते रहना चाहिए कि हमें अपना मानसिक संतुलन बनाए रखना है। रोष प्रकट तो करना चाहिए लेकिन केवल दुष्टता,अनीति, अत्याचार के ही विरुद्ध।
गंगा और चन्द्रमा की व्याख्या देने के बाद परम पूज्य गुरुदेव ने भस्म का तथ्य बताया। भगवान शंकर भस्म लगाते हैं, मुंडों की माला पहनते हैं और मरघट में रहते हैं। इससे हमें शिक्षा लेनी चाहिए कि हम सदा अपनी मौत को याद रखेंगे। जो व्यक्ति मौत को याद रखता है, वह पाप, अत्याचार, अन्याय से युक्त गंदा जीवन नहीं जीता है। सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले विचार करना चाहिए कि आज हमारा नया जन्म हुआ है। रात को मर जाना है, एक दिन का जीवन है तो इसे गंदा,दोष, दुर्गुण से भरा,व्यसनों और दुष्प्रवृत्तियों से युक्त क्यों जिएँ। पूरे दिन इस पर ध्यान रखें कि शरीर से, मन से कोई पाप तो नहीं हो रहा है। मन में गंदे विचार तो नहीं आ रहे हैं, भावनाएँ तो गंदी नहीं हो रही हैं, ऐसा करने पर ही हम भगवान शंकर के भक्त कहलाएँगे। रात को सोते समय विचार करना चाहिए कि अब हम मरने जा रहे हैं। दिन भर के कार्यों पर विचार करना चाहिए। ध्यान करना चाहिए कि हम आत्मस्वरूप में स्थित होकर शरीर को छोड़कर दूर बैठे हैं। हमारा मृत शरीर पड़ा है। इसे लोग श्मशान में ले गए और जला दिया। तीन मुट्ठी भस्म शेष बची। हमारा असली स्वरूप यह तीन मुट्ठी भस्म है। फिर इस शरीर से, मन से कोई पाप क्यों करें। अच्छे कार्य ही क्यों न करें ताकि हमारा जीवन सफल हो जाए। अच्छे कर्म करेंगे तो आगे कम से कम मनुष्य योनि तो मिल ही जाएगी, अन्यथा तमाम निम्न योनियों में कष्ट भोगते हुए जीना पड़ेगा। मनुष्य शरीर मिला था, इससे हम अपना और कितनों का ही भला कर सकते थे। हजारों व्यक्तियों को दिशा दे सकते थे। यह विचार करते-करते सोना चाहिए। यही शंकर भगवान की पूजा है। इस पूजा से शंकर भगवान का आशीर्वाद अवश्य मिलेगा।
इस विषय पर अखंड ज्योति के अप्रैल 2001 के अंक में “हर दिन नया जन्म,हर दिन नई मौत- परम पूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी” शीर्षक से एक विस्तृत लेख प्रकाशित हुआ है। शब्द सीमा के कारण यह लेख आज के ज्ञानप्रसाद में तो शामिल नहीं किया जा सकता, लेकिन पाठक इस लेख का स्वाध्याय करके प्रेरणा ले सकते हैं। आने वाले ज्ञानप्रसाद अंकों में इस विषय पर कभी विस्तार से चर्चा करेंगें लेकिन यहाँ पर इतना ही कह सकते हैं : तनिक कल्पना करके तो देखिये,हर दिन नया जन्म कितना स्फूर्ति भरा होता है; ठीक उसी प्रकार जैसे एक छोटा बच्चा असीमित ऊर्जा एवं स्फूर्ति से भरा होता है।
गुरुदेव कहते हैं कि आजकल भगवान शंकर की पूजा का जो विधान है, उसमें भक्त भगवान शंकर पर जल चढ़ाता है। रोली, चावल, शक्कर, आक, धतूरा, बेल पत्र आदि चढ़ाता है। इससे भगवान शंकर का शरीर गंदा हो जाता है। धतूरे के काँटे और आक से भगवान शायद ही प्रसन्न होते होंगे। ज़रा आप अपने ऊपर डाल इसे सोचें कि आपकी पूजा कोई इसी प्रकार करे तो आपकी क्या हालत होगी। आप ऐसे भक्त को मारने के लिए तैयार हो जाएंगे, जब हम ऐसी पूजा से प्रसन्न नहीं होते तो भगवान कैसे प्रसन्न हो सकते हैं और कैसे आपको आशीर्वाद दे सकते हैं। भगवान शंकर ( शिवलिंग) के ऊपर घड़े में पानी रख देते हैं और चौबीस घंटे स्नान कराते रहते हैं। यदि आपको कोई सर्दी के दिनों में ठन्डे पानी से स्न्नान कराता रहे तो आपकी क्या हालत होगी? जुकाम, खाँसी, बुखार हो जाएगा।
भक्तों को चाहिए कि ऐसी उपासना बंद करें और शंकर भगवान के सिद्धांतों और आदर्शों को अपने व्यवहार में उतारें। आज जिन भाई बहिनों की शिकायत रहती है कि वर्षों से शिव उपासना कर रहे हैं, पूजा कर रहे हैं, शिव चालीसा पढ़ रहे हैं लेकिन कोई लाभ नहीं मिला, उसके कारण को समझना चाहिए कि भगवान शंकर की असली पूजा तभी होगी जब हम उनके गुणों को अपने अंदर धारण करेंगे। अपने चिंतन, चरित्र और स्वभाव में परिवर्तन करेंगे। भगवान शंकर की उपासना से जब जगत गुरु शंकराचार्य को लाभ मिला तो हमें क्यों नहीं मिलेगा। भगवान का प्यार सबके लिए समान रूप से मिलना संभव है लेकिन उसके लिए केवल एक ही शर्त है और वह है “पात्रता की शर्त। ” पात्रता की बात हम ज्ञानप्रसाद लेखों में कई बार कर चुके हैं, अधिक जानकारी के लिए हमारे पाठक पूर्व-प्रकाशित लेख देख सकते हैं। हमारी वेबसाइट https://life2health.org/ पर 635 लेख ( 8 सितम्बर 2022 के अनुसार ) उपलब्ध हैं। आप सर्च विंडो में कोई भी लेख ढूंढ सकते हैं।
साधक को अपनी पात्रता सिद्ध करना होती है। परमात्मा के अनुदान वरदान निरंतर बरस रहे हैं। जिसका जैसा पात्र (बर्तन) होगा, उसको उतनी ही उपलब्धियाँ मिलती हैं। वर्षा में बड़े बर्तन में अधिक एवं छोटे में थोड़ा पानी ही समा सकता है। जिसका पात्र उल्टा होगा यानि जिसने धर्म का मार्ग छोड़कर अधर्म का रास्ता अपनाया होगा, जो देव संस्कृति के सिद्धांत को उलटकर सही समझ रहा होगा, उसका पात्र खाली ही रहेगा। जो इन सिद्धांतों में आस्था रखेगा, उनके अनुसार अपने चिंतन, चरित्र और स्वभाव को विकसित करेगा, उसका पात्र अनुदानों से भरा-पूरा रहेगा।
पंडित लीलापत जी कहते हैं कि हमें पूज्यवर की पात्रता वाली बात समझ आ गई। कुछ लोग कहते है कि हमारे इष्ट भगवान शंकर हैं, कोई कहता है हमारा इष्ट हनुमान जी हैं और कोई अपना इष्ट भगवान कृष्ण को बताते हैं।
यह इष्ट क्या होता है ? क्या एक व्यक्ति का इष्ट एक ही हो सकता है यां किसी व्यक्ति के एक से अधिक इष्ट भी हो सकते ? इस विषय पर हम अपने अगले यानि सोमवार वाले लेख में चर्चा करेंगें क्योंकि आज का लेख इस सप्ताह का अंतिम लेख है।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची :
आज की संकल्प सूची में 7 सहकर्मी उत्तीर्ण हुए हैं और सरविन्द भाई साहिब गोल्ड मैडल से सम्मानित किये जाते हैं।
(1 )अरुण वर्मा -25 ,(2 ) संध्या कुमार-26 , (3 ) सरविन्द कुमार -34 , (4 )निशा भारद्वाज-24 ,(5 )रेणु श्रीवास्तव -27,(6 )अशोक तिवारी -27,(7 ) विदुषी बंता -28
सभी को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हें हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव, धन्यवाद।
इस सूची में बार-बार उत्तीर्ण हो रहे सहकर्मी अमावस की काली रात में टिमटिमाते सितारों की भांति अंधकार में भटके हुए पथिक को राह दिखा रहे हैं। हमारा व्यक्तिगत आभार।