1 सितम्बर 2022 का ज्ञानप्रसाद
कल वाले लेख का समापन हमने निम्लिखित ऋचा से किया था। आज इसी पर संक्षेप में चर्चा करेंगें और स्वामी आनंद सरस्वती जी की पुस्तक “यह धन किसका है” में से कुछ उदाहरण का सहारा भी लेंगें।
“ओम ईशावास्यमिदं सर्वं यत्ंिकच जगत्यां जगत्। तेन त्येक्तेन भुञजीथा मा गृधः कस्य स्विद्धनम्।”
विश्व की समस्त समस्याओं का समाधान और व्यक्ति के संतुलित एवं सच्चे विकास की बात किसी एक श्लोक में समाया है, तो वह ईशोपनिषद का पहला मंत्र है। इस ऋचा से एक साथ सतत विकास, पर्यावरण सुरक्षा, प्रदूषण मुक्ति, बेरोजगारी, महंगाई, आधुनिक जीवन शैली से जुड़ी समस्त वैयक्तिक और सामाजिक चिंताओं का समाधान संभव है। उपनिषद का यह मंत्र व्यक्ति को एक आध्यात्मिक मार्ग के आरोहण का रास्ता दिखाता है। हमें सत्य और ऐसे जीवन की ओर ले जाता है, जहां सुख भोग की तकनीक के साथ संपूर्ण सृष्टि के विकास एवं पोषण का लक्ष्य सध जाता है। शुरुआत होती है।
यह ऋचा बताती है कि समस्त जगत परिवर्तनशील है और इसमें जो कुछ है, उन सबमें ईश्वर व्याप्त है। हमें त्याग के साथ अपना पोषण करना चाहिए और किसी के भी धन का लोभ न करें। हम पूरा जीवन इसी माया और भ्रम में जीते हैं कि यह घर मेरा है, यह धन और यह यश, यह वंश, यह पद और प्रतिष्ठा मेरी है। पूरा जीवन हम इस भ्रांति के मायाजाल में चक्कर काटते हैं। सवाल है कि क्या यह जन्म मेरी इच्छा से होता है। क्या मेरी मृत्यु मेरी इच्छा से होगी? क्या हम अपनी इच्छा या मन से क्रोध, प्रेम, यश, पद या संतान की प्राप्ति करते हैं! कदाचित नहीं। सब माध्यम से होता है, किसी में हमारी इच्छा नहीं होती है। हमारा कुछ नहीं है। जन्म और मृत्यु के बीच की यात्रा में यह सब कुछ होता है जो किसी माध्यम से ही संभव होता है। लेकिन यह मानव पागलों की भांति “अपना मानने को , अपना समझने के मायाजाल में उलझा रहता है । हमेशा यही कहता रहता है यह घर मेरा है , घर के बाहिर name plate लगाकर रखता है, घर को नाम देते हैं, यहाँ तक कि घर के बाहिर बड़ी बड़ी डिग्रियां यहाँ तक कि रिटायर होने के बाद भी रिटायर्ड DSP, रिटायर्ड प्रिंसिपल इत्यादि लिख कर प्रसन्न होता रहता है । जब भूख, नींद और मन पर हमारा नियंत्रण नहीं तो कुछ भी हमारा कैसे हो गया? भूख लगना एक बायोलॉजिकल क्रिया है ,नींद आना एक बायोलॉजिकल और प्राकृतिक क्रिया है। जीवन में सारी भावनाएं, वस्तुएं और स्थितियां किसी क्षितिज से हमारे समक्ष उपस्थित होती हैं और कुछ अंतराल पश्चात चली जाती हैं। वह क्षितिज, वह छोर और वह उत्स स्थल ही ईश्वर है और जो जीवन तथा सृष्टि में आच्छादित हो जाता है।
इसी सन्दर्भ में महात्मा आनंद स्वामी सरस्वती जी एक बहुत ही सटीक उदाहरण देकर समझाते हैं कि “कस्य स्वित् धनम् ? (किसका है यह धन ?)” का अर्थ क्या है।
एक किसान कहता है:
“मेरा है यह धन क्योंकि मैंने हल चलाया है,मैंने बीज बोया है, मैंने ही धरती को जल से सींचा है, मैंने ही उपज की रक्षा की इसलिए यह धन मेरा है।”
पुलिसवाले कहते हैं:
“वाह वाह ! यह धन तुम्हारा कैसे है ? हम चोर डाकुओं से इसकी रक्षा करते हैं, इसलिए यह धन हमारा है।”
सैनिक कहते हैं:
“चोरों और डाकुओं से भी बढ़े-चढ़े हैं विदेशी आक्रान्ता । हम सीमा पर खड़े रहकर उन विदेशी आक्रान्ताओं से जूझते रहे हैं, इसलिए यह धन हमारा है।”
एक पंडित जी आगे बढ़कर कहते हैं:
“वाहवाह, लोगों को सदाचार का उपदेश हम देते रहे, हम इन्हें बताते रहे कि यह धन-वैभव सब माया है और इसके पीछे मत भागो। हम ही इन्हें बताते रहे कि दूसरे के धन को छीन लेना पाप है। हमारे इस उपदेश से ही इस धन की रक्षा हई, इसलिए यह धन हमारा है।”
पंडित जी की पत्नी ने कहा:
“मेरे बिना तुम यह उपदेश कैसे दे सकते थे? मैं तुम्हारी सहायता करती रही, इसलिए यह धन मेरा है।”
और
पंडित जी की सन्तान ने कहा:
“तुमने हमारे लिए ही तो पंडिताई की, इसलिए धन हमारा है।”
एक अन्य व्यक्ति बोल उठा:
“तुम सभी भूल रहे हो। धन सदा बलशाली का होता है।मैं बलशाली हूँ इसलिए यह धन मेरा है।”
स्वामी जी कहते हैं :
कुछ वर्ष पूर्व रणवीर ने मुझे दिल्ली के किसी हकीम महोदय की हँसी वाली बात सुनाई। हकीम साहिब के तीन नवयुवक बेटे थे। अपनेआप पर और अपने पुत्रों के बल पर हाकिम महोदय बहुत अभिमान था। यह उन दिनों की बात है कि जब लोग पाकिस्तान से आकर दिल्ली में दूसरों के मकानों पर अधिकार जमा रहे थे। हकीम महोदय ने रणवीर से कहा,”मुझे भी कोई मकान बता दो। मैं भी बलशाली हूँ और मेरे बेटे भी बलवान् हैं, हम उस पर अधिकार जमा लेंगें।” रणवीर ने सोचते हुए कहा, “एक मकान है उसका किराया भी कुछ नहीं यां यह कहिये कभी किसी ने इस मकान का किराया दिया ही नहीं। इस मकान पर सदा बलवानों ने ही अधिकार जमाया है। आप भी बलशाली हैं, उस पर अधिकार कर लीजिये।”
हकीम महोदय बोले, “दिखाओ वह मकान, देखें मुझसे अधिक बलशाली कौन है ? मैं हूँ, मेरे तीन बेटे हैं, मेरे पास बन्दूक भी है।”
रणवीर ने कहा, “आइये,मेरी गाड़ी में बैठिये। मैं आपको एक मकान दिखाता हूँ जिसका किराया कभी किसी ने दिया नहीं, जिस पर सदा शक्ति द्वारा अधिकार होता आया है।” वह हकीम महोदय को मोटर में बैठाकर लाल किले के सामने ले गया और बोला, “यही है वह मकान, जिस पर सदा शक्ति द्वारा ही अधिकार किया गया है, जिसका किराया कभी किसी ने दिया ही नहीं।”
उसके पश्चात् हकीम महोदय ने क्या कहा, इस बात को जाने दीजिये परन्तु यह बात तो सच है कि धन सदा बलवान् का ही है, शक्तिशाली का ही है। परन्तु इस बलवान् और शक्तिशाली के पास भी क्या यह धन सदा रहता है ? एक दिन ऐसा भी आता है जब बलवान् के पास भी यह धन नहीं रहता। धन-वैभव-सम्पत्ति-सब ज्यों-के-त्यों पड़े रहते हैं और बल का अभिमान करने वाला भी इस दुनिया से चला जाता है। एक दिन आता है जब बलशाली अन्तिम साँस लेकर इस संसार से चलता बनता है और धन-वैभव-सम्पत्ति सब यहीं रह जाती है।
फिर किसका है यह धन ?
आप कहेंगे कि यह बात तो वेद भी पूछता है ‘कस्य स्वित् धनम् ?’ (किसका धन है ?’) और जब वेद पूछता है तो तुम कैसे जानते हो कि धन किसका है ? परन्तु यह बात नहीं, मेरे भाई ! वेद पूछता नहीं, उत्तर देता है। वह कहता है, ‘कस्य स्वित् धनम् ?’ ‘क’ कहते हैं भगवान को। ठीक पढ़ना हो तो यों कहना चाहिये-क-अस्य स्वित धनम् ? अर्थात् प्रजापति, ईश्वर जो है, उसका धन है।
हमें समझाने के लिए हमारे ऋषियों ने ईश्वर के तीन रूप निश्चित कर रखें हैं। इनकी तीन पत्नियाँ भी निश्चित कर रक्खी हैं। ईश्वर के तीन रूप हैं-ब्रह्मा, विष्णु और महेश। ब्रह्मा की पत्नी का नाम महासरस्वती, विष्णु की पत्नी का नाम महालक्ष्मी और महेश या महादेव की पत्नी का नाम है महाकाली ,पार्वती। विष्णु को नारायण भी कहते हैं। लक्ष्मी और नारायण सदा संग-संग रहते हैं। नारायण भगवान् ईश्वर होने के बावजूद भी लक्ष्मी के बिना कभी नहीं रहते। इनकी पूजा करने वाले दोनों को लक्ष्मी-नारायण कहकर दोनों की एक साथ पूजा करते हैं। कुछ लोग कहेंगे, ‘क्यों जी! यदि भगवान विष्णु नारायण और ईश्वर होकर भी लक्ष्मी के बिना नहीं रह सकते तो फिर हम लक्ष्मी के पीछे क्यों न भागें ? हम धन-वैभव-सम्पत्ति का संग्रह क्यों न करें?’ परन्तु क्या आप जानते हैं कि भगवान् विष्णु महालक्ष्मी के साथ किस प्रकार रहते हैं ? भगवान् लेटे रहते हैं और महालक्ष्मी उनके पाँव दबाती रहती है,उनकी सेविका बनकर,और हम? हम लक्ष्मी के पाँव दबाते रहते हैं इसके दास और सेवक बनकर। धन के लिए हम प्रत्येक काम करने को तैयार रहते हैं-सचाई को छोड़ना पडे, झूठ को अपनाना पड़े, धर्म को छोड़ना पड़े, पाप की राह पर चलना पड़े, देश के साथ द्रोह करना पड़े, भाई को भाई से लड़ाना पड़े, देश में फूट जगानी पड़े, कुछ भी करना पड़े, धन-वैभव के लिए हम कुछ भी करने को तैयार हैं। धन मिलना चाहिये, चाहे वह किसीभी विधि से क्यों न मिले। जो कोई धन दे, उसकी इच्छा के अनुसार हम प्रत्येक बात करने को तैयार हैं। धनवाला कोई भी हो, हम उसके हाथ बिकने को तैयार हैं।
परन्तु एक बात सुनिये ! मैं धन का विरोधी नहीं हूँ, धन कमाने के विरुद्ध नहीं हूँ। वेद भी धन का विरोधी नहीं है। धन के बिना मनुष्य का निर्वाह ही नहीं होता परन्तु यह भी समझने वाली बात है कि धन होता क्या है ?
धन प्रकृति का ही एक रूप है । संसार में तीन सत्ताएँ सनातन हैं, सदा से हैं। 1.प्रकृति, 2.जीव तथा 3.परमात्मा। प्रकृति के रूप बदलते रहते हैं । एक रूप नष्ट होता है, दूसरा बन जाता है। स्थूल शरीर की जब मृत्यु होती है तो हम जला देते हैं, दफना देते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं शरीर के अंदर भांति भांति के chemical products होते हैं जो समय के साथ decompose होते हैं और उनमें से भिन्न भिन्न गैसें निकलती हैं जिसके कारण दुर्गन्ध पैदा होती है, ठीक वैसी ही दुर्गन्ध जैसी मांस को फ्रिज में न रखकर बाहिर रखने से आती है। स्थूल शरीर के समाप्त होने के साथ ही इस शरीर को बनाने वाले हिस्से एक नया रूप धारण कर लेते हैं। राख बनती है। एक लम्बे अंतराल के पश्चात् राख मिट्टी का रूप धारण कर लेती है। मिट्टी से पौधे उगते हैं,अनाज, सब्जी, फल,मिट्टी के एक रूप को छोडकर वे दूसरा रूप धारण कर लेते हैं। इस अनाज, फल, फूल और सब्ज़ी से प्राणियों के शरीर का पोषण होता है यानि शरीर बनता है। इस शरीर से प्रजनन से अन्य शरीर उत्पन्न होते हैं। प्रकृति वही है, बार-बार इसका रूप बदलता जाता है। इसका अन्त कभी होता नहीं। वह सदा से है, सदा रहेगी। इसका कोई आदि नहीं, कोई अन्त नहीं। ऐसे ही जीवात्मा और परमात्मा भी सदा से हैं और सदा रहेंगे। उनका कोई आदि नहीं, कभी अन्त नहीं होगा।
तो फिर तीनों में अन्तर क्या है ?
यह अंतर् हम अपने अगले लेख में देखेंगें। आज के लिए इतना ही।
एक बार फिर से हम सप्ताह के अंत यानि लोकप्रियता की ओर बढ़ रहे हैं तो हम आपके लिए लायेंगें हमारे जन्म उत्सव की कोई छोटी सी वीडियो। वीडियो अपलोड करने का उद्देश्य विज्ञापन नहीं परन्तु कर्मकांड की जानकारी और समझाना है। बहुतों को यज्ञ के सारे स्टेप्स की अर्थ सहित जानकारी अवश्य ही होगी लेकिन बहुतों के लिए यह लाभदायक भी हो सकती है।
कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची:
आज की संकल्प सूची में केवल दो सहकर्मी ही उत्तीर्ण हुए हैं। (1 )सरविन्द कुमार- 26 और (2 ) संध्या कुमार-27 , दोनों ही गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उनको हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव, धन्यवाद।