25 अगस्त 2022 का ज्ञानप्रसाद
आज का ज्ञानप्रसाद कल वाले ज्ञानप्रसाद का दूसरा एवं अंतिम भाग है। कल हमने “प्रखर प्रतिभा” की भूमिका बनाई थी, आज हम देखेंगें कि यह चौथी शक्ति कैसे नवयुग की अधिष्ठात्री कही जाएगी। युगतीर्थ शांतिकुंज में बड़े-बड़े अक्षरों में “नवयुग की गंगोत्री” का सन्देश हमें आकर्षित तो करता ही है साथ में हमारे परम पूज्य गुरुदेव का vision सार्थक होता भी दिखाता है। जिस गति से नवयुग का आगमन होता दिख रहा है, उससे कहीं तीव्र गति से हमें कार्य करने की आवश्यकता है। यह समय बहती गंगा में हाथ धोने का है, कहीं ऐसा न हो कि हम केवल हाथ मलते ही रह जाएँ और अमूल्य योगदान का अवसर हाथ से निकल जाये।
कल का ज्ञानप्रसाद टोरंटो रथ यात्रा आपके लिए तैयार किया जा रहा है लेकिन एक निवेदन करना चाहेंगें कि शनिवार वाला स्पेशल सेगेमेंट अवश्य देखें, कुछ महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने एवं आपके सुझाव लेने की योजना है।
तो आरम्भ करते हैं आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान।
दैवी अनुकम्पा से ही प्रखर प्रतिभा का अनुदान प्राप्त होता है :
जिस प्रकार आकाश बहुत बड़ा है पर उसमें सीमित संख्या में ही तारे चमकते दिखाई पड़ते हैं उसी प्रकार अधिकतर जनसमुदाय को पेट-प्रजनन के अतिरिक्त और कुछ सूझता ही नहीं है। परन्तु जिन पर दैवी अनुकम्पा की तरह प्रखर प्रतिभा अवतरित होती है उनका तो क्रियाकलाप ही हो जाता। यह क्रियाकलाप ऐसा होता है जिसका चिरकाल तक असंख्यों द्वारा अनुकरण अभिनन्दन होता रहता है । भावुक जन इन्हीं को देवदूत, युगअवतार, युगऋषि आदि नामों से पुकारते हैं, हमारे परम पूज्य गुरुदेव इन्ही में से एक हैं
साहित्य सत्संग, प्रेरणा एवं परामर्श आदि द्वारा भी सन्मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन मिलता है, परन्तु वह सब गले उन्हीं के ही उतरता है, जिनके अन्दर भाव संवेदनाएँ पहले से ही जीवित हैं। उनके लिए थोड़ी सी प्रेरणा भी क्रान्तिकारी परिवर्तन कर देती है। सीप में जल की एक ही बूंद मोती उत्पन्न कर देती है लेकिन वही बूँद रेत में गिरने पर अपना अस्तित्व ही गवाँ बैठती है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के एक-एक सदस्य का अनवरत प्रयास है कि विश्व भर की बूँदें सीप में गिर कर मोती बन जाएँ और वह मोती भगवान के मुकुट को सुशोभित करें। परम पूज्य गुरुदेव के अमूल्य साहित्य का अमृतपान आपको इस दिशा में अग्रसर कर रहा है, आशा करते हैं यह अमृतपान औरों का भी मार्गदर्शन करने में सहायक होगा।
यही बात आदर्शवादी परमार्थों के सम्बन्ध में भी लागू होती है। कई बार तो उपदेशकों तक की कथनी और करनी में ज़मीन आसमान का अन्तर देखा पाया जाता है। भावनाओं की प्रखरता रहने पर व्यक्ति अपने व्यस्त कार्यों में से भी समय और मनोबल निकाल ही लेता है जिससे वह अपनी सद्भावना को खाद पानी देकर बढ़ाता रहता है। ऐसे लोगों के संपर्क में आने वालों को भी उसकी गहन भाव-संवेदनाएं इतना प्रभावित कर देती हैं कि उनके लिए भी कुछ कर गुज़रना कठिन नहीं पड़ता।
आम लोग व्यस्तता का बहाना बना कर युगधर्म के कार्य में असमर्थता बताते रहते हैं लेकिन बात वस्तुतः ऐसी है नहीं। युगधर्म यानि परमार्थ के लिए अनेकों समाधान निकल सकते हैं लेकिन जब हम अपनी पूर्व मान्यता पर अड़े रहते हैं और समय की पुकार पर कदम न बढ़ाने का हठ करते हैं, तो समझना चाहिए कि गाड़ी ऐसे खड्ड में गिर गई जहाँ से उसका निकलना कठिन है। अन्यथा विचार करने पर संचित सम्पदा से लेकर परिवार के अन्य साथियों के काम में लगाने जैसे अनेकों मार्ग ऐसे निकल सकते हैं जिनके सहारे शरीर और परिवार के गुज़ारे के साधन जुटते रहें और साथ ही युगधर्म के परिपालन की दिशा में भी बहुत कुछ किया जा सकता है । रिटायर्ड लोगों को पूरा समय मिलता है, लेकिन अगर उन्हें पूरा समय केवल गप्पें हाँक कर, औरों की चुगली करने में बिताना है तो कुछ नहीं हो सकता अन्य कितने ही व्यक्ति ऐसे होते हैं जो घर के आवश्यक काम निबटाने के बाद भी ढेरों समय बचा लेते हैं। इस बचे हुए समय को आलस्य प्रमाद में गँवाने की अपेक्षा अपने निकटवर्ती क्षेत्र में ही सृजन प्रयोजनों में लगकर साथी सहयोगियों की सहायता से आश्चर्यजनक युग साधना सम्पन्न की जा सकती है ।
सूक्ष्म जगत में भी कई बार समय-समय पर ज्वार भाटे जैसे उतार चढ़ाव आया करते हैं। कभी स्वार्थी, लालची, अपराधी, क्रूरकर्मी समाज में बढ़ जाते हैं। स्वयं तो कुछ लाभ उठा भी लेते हैं लेकिन प्रभाव क्षेत्र के अन्य अनेकों का सर्वनाश करते रहते हैं इसे “आसुरी प्रवाह प्रचलन” कहा जा सकता है। जब प्रवाह बदलता है तो उच्च आत्माओं की भी कमी नहीं रहती। एक जैसे विचार ही असंख्यों के मन में उठते हैं और उन सब की मिली जुली शक्ति से सृजन स्तर के कार्य इतने अधिक और इतने सफल होने लगते हैं कि दर्शक जब अवलोकन करते हैं तो आश्चर्यचकित होने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकते। इस स्थिति को दैवी प्रेरणा कहने में भी कुछ अत्युक्ति नहीं है।
नई दुनिया बनाने के लिए प्रखर-प्रतिभा का तूफ़ान:
गुरुदेव आग्रह कर रहे हैं कि इक्कीसवीं सदी में “नई दुनिया” बनाने जैसा कठिन कार्य किया जाना है। इसके लिए प्रचुर परिमाण में “प्रखर प्रतिभा” का उफान तूफान आना है। अनेक व्यक्ति उस संदर्भ में कार्य करेंगे। आँधी तूफान आने पर पत्ते तिनके और धूलि कण तक आकाश तक जा पहुँचते हैं। दैवी प्रेरणा का अदृश्य प्रवाह ऐसा आवेगा जिसमें सृजन सैनिकों की विशालकाय सेना खड़ी दिखाई देगी और उसी प्रकार के चमत्कार करेगी जैसे कि खण्डहर बने जापान को वहाँ के निवासियों ने अणु बम गिरने के बाद भी अपने देश को पहले से भी कहीं बेहतर बना लिया है। रूस, जर्मनी आदि ने भी कुछ ही दशाब्दियों में क्या से क्या चमत्कार कर दिखाये जिन्हे अद्भुत ही कहा जा सकता है और इतिहास में अनुपम भी। सृजन शिल्पी इसी प्रकार संसार के कोने-कोने में प्रकट होंगे।प्रवाह कुछ ऐसा चलेगा जिसमें हर प्रतिभाशाली के लिए सृजन, सुधार और परिवर्तन ही रुचि का विषय रह जायगा।
दुर्बुद्धि ने पिछली एक शताब्दी में कितना कहर ढाया है, यह किसी से छिपा नहीं है। दो विश्व युद्ध इसी शताब्दी में हुए। प्रदूषण इतना बढ़ा जितना कि लाखों-वर्षों में भी बढ़ नहीं पाया था। वन बीमार हो गए, रेगिस्तानों की बढ़ोतरी हुई, अपराधों की बढ़ोत्तरी ने कीर्तिमान स्थापित किये, मद्य, माँस और व्यभिचार ने पिछले सभी रिकार्ड तोड़ दिये। जन संख्या में बढ़ोत्तरी भी अद्भुत क्रम से हुई। जन-साधारण का व्यक्तिगत आचरण लगभग भ्रष्ट आचार स्तर पर जा पहुँचा और भी न जाने ऐसा क्या-क्या हुआ जिसकी चर्चा सुनकर यही कहना पड़ता है कि मनुष्य की तथाकथित वैज्ञानिक बौद्धिक और आर्थिक प्रगति से समस्याएँ, विपत्तियाँ एवं विभीषिकाएँ ही खड़ी कीं । आश्चर्य होता है कि केवल एक शताब्दी में ही इतना अनर्थ किस प्रकार जुटाना और द्रुतगति से क्रियाशील किया जाना संभव हुआ।
अब नया सवेरा उदय होने को है :
अब रात्रि के बाद दिनमान का उदय होने जा रहा है। दूसरे स्तर का प्रवाह चलेगा। मनुष्यों में से असंख्यों में भाव संवेदनाओं का उभार आयेगा और वे सभी ईश्वर कौन है ? कहाँ है? सृजन की, सेवा की, उत्थान की, आदर्श की बात सोचेंगे। इस में लोगों का एक बड़ा समुदाय उगता, उभरता दृष्टिगोचर होगा। गर्मी के दिनों में घास का एक तिनका भी कहीं नहीं दीखता लेकिन वर्षा के आते ही सर्वत्र हरियाली छा जाती है। नये युग का दैवी प्रवाह अदृश्य वातावरण में अपनी ऊर्जा का विस्तार करेगा। फलस्वरूप जिनमें भाव संवेदनाओं के तत्व जीवित बचे होंगे वे अपनी सामर्थ्य का एक महत्वपूर्ण भाग नवसृजन के लिए नियोजित किये हुए दृष्टिगोचर होंगे। व्यस्तता और अभावग्रस्तता के बहाने बनाने वाले एक मज़ाक बन कर रह जायेंगे। उनकी आड़ लेकर कोई भी न अपनी आत्म-प्रवंचना कर सकेगा और न सुनने वालों में से किसी को इस बात का विश्वास दिला सकेगा कि बात वस्तुतः ऐसी भी हो सकती है जैसी कि बहकावे के रूप में समझी या कही जा रही है।
इस अवधि में प्रखर प्रज्ञा के अनेकों छोटे बड़े उद्यान रोपे, बढ़ाये और इस स्तर पर पहुँचाये जा सकेंगे जिन्हें असंख्य नंदनवनों के समतुल्य कहा जा सके। जिन्हें कल्पवृक्ष उद्यानों की समता ही जा सके। श्रेष्ठ मनुष्यों का बाहुल्य ही सतयुग है। उसी को स्वर्ग कहते हैं। नरक और कुछ नहीं, दुर्बुद्धि का बाहुल्य और उसी का व्यापक प्रचलन है। नरक जैसी परिस्थितियाँ उसी में दृष्टिगोचर होती हैं। पतन और पराभव से अनेक अनाचार उसी के कारण उत्पन्न होते हैं, होते रहे हैं। समय परिवर्तन के साथ सहकारिता बढ़ेगी। जन-जन के मन में नव सृजन की उमंग उठेगी और प्रखर प्रज्ञा का दिव्य आलोक सर्वत्र अपना चमत्कार उत्पन्न करता दिखाई देगा। यह चौथी शक्ति नवयुग की अधिष्ठात्री कही जायेगी।
इन्ही शब्दों के साथ हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची:
आज की संकल्प सूची में उत्तीर्ण हो रहे सभी सहकर्मी हमारी व्यक्तिगत बधाई के पात्र है। (1 )अरुण कुमार वर्मा -37 ,(2 )सरविन्द कुमार- 24 ,(3) संध्या कुमार-27 ने संकल्प पूर्ण किया है। अरुण वर्मा गोल्ड मेडलिस्ट हैं। उनको हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव, धन्यवाद।