24 अगस्त 2022 का ज्ञानप्रसाद :
पिछले दो लेखों की तरह आज के लेख का आधार भी अखण्ड ज्योति जून 1989 वाला अंक ही है। आज की चर्चा एक ऐसी प्रतिभा को दर्शाती है जिसे चौथी प्रतिभा का संज्ञा देते हुए “प्रखर प्रतिभा” का नाम दिया गया है। यह चर्चा इतनी रोचक है कि हमारे प्रयास के बावजूद इस चर्चा का समापन कल ही हो पायेगा। गुरुदेव अनेकों प्रकार की शक्तियों के बारे में बता रहे हैं लेकिन सबसे उत्तम एवं उच्चकोटि की शक्ति “प्रखर प्रतिभा ही है”
ज्ञानप्रसाद आरम्भ करने से पूर्व हम बताना चाहेंगें कि शुक्रवार को टोरंटो की भव्य रथ यात्रा की वीडियो अपलोड करने की योजना है। यूट्यूब पर ऐसी कईं वीडियोस मिल जायेंगीं लेकिन यह वीडियो हमने शूट की है। हालाँकि हम कहते हैं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का ज़्यादा फोकस गुरुदेव से सम्बंधित है लेकिन यह वीडियो एक exception है।
वीकेंड स्पेशल सेगमेंट में हम “प्रज्ञा अभियान” का वह पार्ट हाईलाइट करेंगें जो आदरणीय चिन्मय पंडया जी की कनाडा यात्रा एवं शांतिवन आश्रम से सम्बंधित है।
तो प्रस्तुत है आजा का ज्ञानप्रसाद।
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शक्ति का संचय भी अनिवार्य:
जब भी हमारे जीवन में कोई दुःख आता है तो समझ लेना चाहिए कि कोई कमज़ोरी इसके साथ अवश्य ही बँधी हई है। अगर हमारा शरीर कमज़ोर हो तो रोग हमें बार- बार घेरते रहते हैं और हम अक्सर कहते हैं कि हमारा resistance कमज़ोर पड़ गया है। रोग आते ही शारीरक कमज़ोरी तो सामने दिखाई देती हैं लेकिन मानसिक कमज़ोरी भी छोड़ती नहीं है। मानसिक कमज़ोरी का कारण होता है कि चिन्तायें सताती हैं। इसी उदाहरण को हम बौद्धिक क्षमता के बारे में apply कर सकते हैं।अगर हमारी बुद्धि काम नहीं कर रही,यानि हमारी बुद्धि किसी और के वश में है तो निश्चित है कि हम पराधीन हैं। जो देश साँस्कृतिक, सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से संगठित नहीं होते,उन्हें ही बाहरी आक्रमण सताते हैं। यही कारण था कि ब्रिटिश भारत पर कितने ही वर्ष राज कर गए, यही थी उनकी divide and rule policy . कभी स्कूल टाइम में Union is strength की शिक्षाप्रद कहानी पढ़ा करते थे, इस कहानी का उपदेश “संगठन शक्ति” को दर्शाता है। संगठित न होने के कारण दुर्बलता आती है। दुर्बलतायें कैसी भी हों ,नारकीय यन्त्रणाओं का कारण होती हैं। इसीलिये कहा गया है “निर्बलता पाप है।” पापी व्यक्ति की तरह निर्बलों को भी प्रकृति इस पृथ्वी पर सुख से जीने का अधिकार नहीं देती है।
इस संसार में ऐश्वर्य की कभी भी कोई कमी नहीं रही है, सम्पदायें और विभूतियाँ पग-पग पर बिछी पड़ी हैं लेकिन इन सम्पदाओं, विभूतिओं एवं साधनों का सुख पाने के लिए भटकते केवल वही हैं जिनके पास उन्हें प्राप्त करने का बल और शक्ति नहीं है। यदि आप निर्बल हैं तो आपके पास की रही सही सम्पत्ति और विभूतियाँ भी छिनने ही वाली हैं। इसीलिए श्रुति कहती है-“बैलमुपास्व” अर्थात् बल की उपासना करो। शक्ति के अभाव में ही पाप पनपते हैं, इसलिये यदि आप शक्तिशाली नहीं हैं तो कितने ही ईश्वर भक्त क्यों न हों, पाप की वृद्धि के आप भी भागीदार हैं। चाहे अपनी भलाई के लिए अथवा संसार के कल्याण के लिए, “शक्ति” जीवन की अनिवार्य आवश्यकता है। इसलिये सर्वप्रथम शक्ति का संचय करें क्योंकि उसी से सुख-संपत्ति, ऐश्वर्य तथा पारलौकिक हित की रक्षा कर सकेंगे।
आगे चलने से पहले हम सब की daily life से सम्बंधित “शक्ति” का एक उदाहरण देना चाहेंगें उसके बाद ही शक्ति एवं उसके विभिन्न प्रकार के विषय पर बात करेंगें।
विज्ञान और विकास की बहुत बड़ी देन है कि हम सबके पास मोबाइल फ़ोन हैं। मूल्य एवं features कम अधिक हो सकते हैं लेकिन बेसिक कार्य करने की क्षमता तो हर किसी फ़ोन के पास है। इस छोटे से उपकरण की शक्ति की महिमा का गुणगान करना आरम्भ कर दें तो शायद असली लेख से भटक ही जाएँ। हम सब इस बात को मानते हैं कि “फ़ोन आधुनिक युग का एक शक्तिशाली उपकरण है।” लेकिन अक्सर इस शक्ति के source को हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं। फ़ोन की शक्ति उसकी बैटरी पर आधारित है और न केवल बैटरी पर बल्कि बैटरी की चार्जिंग पर। अगर फ़ोन से काम लेना है तो उसे नियमित तौर से चार्ज तो करना ही पड़ेगा। अगर हम सब गुरुदेव की युगनिर्माण योजना के सैनिक हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित सैनिक हैं तो फ़ोन हमारा बहुत ही “महत्वपूर्ण हथियार” है। इसकी maintenance करना हमारी ज़िम्मेदारी है ,ठीक उसी तरह जैसे बन्दूक की रख रखाव की ज़िम्मेदारी एक सैनिक की है।बॉर्डर पर एक शक्तिहीन सैनिक का कोई मूल्य नहीं है।
आज के लेख में गुरुदेव “चौथी शक्ति” की बात समझाने की बात कर रहे हैं। आइये देखें कौन सी है यह चौथी शक्ति और बाकी की तीन शक्तियां कौन सी हैं जिन पर सब विकास आदि टिका हुआ है।
तीन शक्तियों की प्रभुता और महत्ता हम सबको मालूम है और इन्ही से संसार में सब कुछ घटित हो रहा है।
(1) बौद्धिक शक्ति यानि बुद्धि की शक्ति जिसमें विज्ञान और साहित्य कला भी सम्मिलित हैं,
(2) शासन-सत्ता, उसके साथ जुड़े हुए साधन और अधिकारी भी।
(3) धनशक्ति, जिसमें उद्योग व्यवसाय, निजी संग्रह एवं बैंक आदि को सम्मिलित किया जाता।
देखा जाता है कि इन्हीं तीनों के सहारे छोटे बड़े, भले-बुरे सभी काम सम्पन्न होते हैं, प्रगति एवं अवगति का श्रेय इन्हीं तीन शक्तियों को मिलता है। सरस्वती, लक्ष्मी, काली के रूप में इन्हीं शक्तियों की पूजा भी होती है। जन-साधारण की इच्छा अभिलाषा इन्हीं को प्राप्त करने में आतुर रहती है। आधुनिक युग में बड़प्पन की यही तीन कसौटियाँ बनी हुई हैं। इन्ही के सहारे वह सब कुछ खरीदा जाता है जो इच्छानुकूल सुविधा साधन अर्जित करने के लिए आवश्यक प्रतीत होता है। आजकल तो इससे भी ऊपर हो चुका है,धन कमाने की होड़, धन संचय की होड़,किसी भी कीमत पर धन कमाकर बड़ा बनने की होड़, धन का वर्चस्व और भी अधिक है। आम तौर पर यह धारणा है कि धन-शक्ति के सहारे अन्य दो शक्तियों को खरीदा जाता है।
बहुत ही कम ऐसे लोग हैं जो प्रलोभन की उपेक्षा करते हैं और सिद्धान्त पर अड़े रहकर कम सुविधा साधनों से काम चलाते हैं और कीचड़ के तालाब में कमलवत् मानवी गरिमा को अक्षुण्ण बनाये रहते हैं। हम सब अक्सर यह statements सुनते ही रहते हैं “ पैसे से कुछ भी ख़रीदा जा सकता है, पैसे के बगैर तो कोई बात तक नहीं करता, पैसा है तो सब कुछ है आदि आदि” ऐसा कह कर हमें अक्सर नीचा दिखाया जाता है।
परन्तु शायद सच्चाई तो यह है: पैसा बहुत कुछ है, लेकिन पैसा ही सब कुछ नहीं है।”
इन परिस्थितयों से निकालने के लिए परम पूज्य गुरुदेव चौथी शक्ति के उदय की बात करते हैं। गुरुदेव बताते हैं कि नवयुग के अवतरण में उस चौथी शक्ति का उदय होगा जो अभी भी किसी प्रकार कहीं-कहीं पर जीवित है लेकिन उसकी प्रधानता कहीं कहीं और कभी-कभी ही दिखाई पड़ती है। इस चौथी शक्ति की दुर्बलता अथवा न्यूनता के कारण अनेकानेक विकृतियाँ उग पड़ी हैं औरउन्होंने जलकुम्भी की तरह जलाशयों को अपने प्रभाव से आच्छादित करके वातावरण को अवांछनीयता से घेर लिया है।
इस चौथी शक्ति का नाम है “प्रखर-प्रतिभा”
सामान्य प्रतिभा तो बुद्धिमानों, क्रिया कुशलों, व्यवस्थापकों और पराक्रम परायणों में भी देखी जाती है। इनके सहारे वे प्रचुर सम्पदा कमाते हैं, यशस्वी बनते हैं और अनुचरों से घिरे रहते हैं। आतंक उत्पन्न करना भी इन्हीं के सहारे संभव होता है। छद्म अपराधों की एक बड़ी श्रृंखला भी चलती है। इस सामान्य प्रतिभा से सम्पन्न अनेकों व्यक्ति देखे जाते हैं और उसके बल पर बड़प्पन का सरंजाम जुटाते हैं। तत्काल उसे हुण्डी की तरह भुना लिया जाता है। अच्छे वेतन पर अधिकारी स्तर का लाभदायक काम उन्हें मिल जाता है, किन्तु “प्रखर प्रतिभा” की बात इससे सर्वथा भिन्न है। प्रखरता से यहाँ तात्पर्य आदर्शवादी उत्कृष्टता से लिया जाना चाहिए। सज्जन और समर्पित संत इसी स्तर के होते हैं। कर्तव्य क्षेत्र में वे सैनिकों जैसा अनुशासन पालन करते हैं। देवमानव इन्हीं को कहते हैं। महामानव युगपुरुष आदि नामों से भी इस स्तर के लोगों का स्मरण किया जाता है।
इनमें विशेषता उच्चस्तरीय भाव संवेदनाओं की होती है। श्रद्धा, प्रज्ञा और निष्ठा जैसे तत्व उन्हीं में देखे पाये जाते हैं। सामान्य प्रतिभावान मात्र धन, यश या बड़प्पन का अपने निज के हेतु अर्जन करते रहते हैं। जिसे जितनी सफलता मिल जाती है वह अपने को उतना ही बड़ा मानता है। लोग भी उसी से प्रभावित होते हैं। उसके सहारे कुछ उपलब्ध कर लेने की इच्छा से अनेकों चाटुकार पीछे फिरते हैं। अप्रसन्न होने पर वे अहित कर सकते हैं। इसलिए भी कितने ही उनका दबाव मानते हैं और इच्छा न होने पर भी सहयोग करते हैं। यह सामान्य प्रतिभा का विवेचन है।
“प्रखर प्रतिभा” संकीर्ण स्वार्थपरता से ऊँची उठी होती है। उसे मानवी गरिमा का ध्यान रहता है। उसमें आदर्शों के प्रति अनन्य निष्ठा का समावेश रहता है। लोक मंगल और सत्प्रवृत्ति-सम्वर्धन में उसे उतनी ही रुचि रहती है जितनी कि किसी लालची में किसी भी कीमत पर इच्छापूर्ण करने के लिए आतुरता पाई जाती है।
“प्रखर प्रतिभा” का दिव्य अनुदान एक प्रकार से दैवी अनुग्रह गिना जाता है। जबकि सामान्य लोगों को लोभ मोह के बन्धनों से क्षण भर के लिए भी छुटकारा नहीं मिलता, “प्रखर प्रतिभा” सम्पन्न लोग जन समस्याओं पर ही विचार करते और उनके समाधान की योजना बनाते रहते हैं। भावनाएँ उभरने पर मनुष्य बड़े से बड़ा त्याग और पुरुषार्थ कर दिखाने में तत्पर हो जाता है। ऐसे लोग असफल रहने पर शहीदों में गिने और देवताओं की तरह पूजे जाते हैं। यदि वे सफल होते हैं तो इतिहास बदल देते हैं। प्रवाहों को उलटना उन्हीं का काम होता है। मनुष्य शक्ति का पुँज है। उसकी बर्बादी तो लिप्सा, लालसा के क्षुद्र प्रयोजनों में होती रहती है। पर यदि कोई सामान्य स्तर का व्यक्ति भी लोक कल्याण के महान प्रयोजनों में जुट जाता है तो फिर उसका अनवरत श्रम चींटी के गिरि-शिखर पर जा पहुँचने का उदाहरण बनता है।
To be continued
इन्ही शब्दों के साथ हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
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आज की 24 आहुति संकल्प सूची:
आज की संकल्प सूची में उत्तीर्ण हो रहे सभी सहकर्मी हमारी व्यक्तिगत बधाई के पात्र है। (1 )अरुण कुमार वर्मा -35 ,(2 )सरविन्द कुमार- 35 ,(3) संध्या कुमार-27 ने संकल्प पूर्ण किया है। अरुण वर्मा और सरविन्द कुमार जी दोनों ही गोल्ड मेडलिस्ट हैं। दोनों को हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। जय गुरुदेव, धन्यवाद।