वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सहकर्मियों की कलम से -अगस्त 13, 2022 

हम सभी का सबसे लोकप्रिय सेगमेंट “सहकर्मियों की कलम से” एक बार फिर आपके लिए प्रस्तुत है। शब्द सीमा से बाधित होने के कारण हम केवल इतना ही कह सकते हैं कि आज के contributors को नमन एवं धन्यवाद् है जिन्होंने इतना परिश्रम करके आदरणीय चिन्मय पंड्या जी के अंग्रेजी उद्बोधन का हिंदी अनुवाद किया। विश्वास कीजिये यह एक बहुत ही कठिन कार्य था। उनके परिश्रम का उचित सम्मान यही है कि आज के लेख को पढ़ा जाए। 

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आदरणीय विदुषी बंता जी:

ॐ श्री गुरु सत्ताए नमः आ. डॉ त्रिखा भाई सा. को भाव भरा नमस्कार 

आ. डॉ चिन्मय पाण्ड्य भैया जी का उद्बोधन जो उन्होंने Renison यूनिवर्सिटी में दिया बहुत ही प्रेरणा दायक व ज्ञानवेर्धक है, जीवन को किस प्रकार उत्कृष्ट बनाएं इस पर बहुत ही अच्छी तरह से प्रकाश डाला है। भारत का योगसूत्र, कौटिल्य नीति, पतंजलि, द्वेत अद्वेत वेदांत आदि पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए ऋषि मुनिओ ने इन मे क्या ढूँढा, प्रकाश डाला है उन्होंने बताया कि सभी के अंदर एक तत्व उस परमात्मा का अंश विद्यमान है सभी में असीम शक्ति विद्यमान है अपने अंदर उस छुपी हुईं शक्ति को जागृत करने की आवश्यकता है सभी के जीवन में अपार अवसर आते है उस अवसर को गंवाएं नहीं बल्कि उसका अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाने में सदुपयोग करें पारस पत्थर की कहानी से इसे समझाने का प्यास किया है शेर के बच्चे की कहानी का भी उन्होंने वर्णन किया कि कैसे उसने अपनी शक्ति को पहचाना। स्वामी विवेकानंद, वरदराज जो कि संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् थे उनका भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि गुरु जी ने 5 चीजों पर विशेष बल दिया है एकता, मनुष्यता, दिव्यता, समानता और करुणा कृपा ये सभी गुण मनुष्य को ऊपर उठाते हैं। टेक्नोलॉजी पर बोलते हुए कहा कि ये वरदान भी है और अभिशाप भी इसके चलते सब बनावटी दुनिया में जी रहे है लोगों के अंदर धैर्य खत्म होता जा रहा है, मानसिक शांति ख़त्म हो गई है।  सभी के प्रति करुणा का भाव रखना चाहिए। एक दूसरे के प्रति प्रेम का भाव रखना चाहिए अपने जीवन में कुछ न कुछ जरूर कोई उद्देश्य रखें व दृढ़ संकलपित रहें।  एक बंगाली औरत की कहानी सुनाई कि कैसे अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति से अस्पताल खड़ा कर दिया, उसने एक कदम आगे बढ़ाया सभी लोग जुड़ते चले गए, सुहासिनी नाम की महिला थीं। आगे उन्होंने कहा कि मोबाइल के चलते जिंदगी कितनी अकेली पढ़ गई है।  ग्रुप्स में बैठ कर भी सब अपने- अपने मोबाइल में व्यस्त रहते है उन्होंने और भी कई कहानियो के माध्यम से सभी का मार्ग दर्शन किया है।  pics के माध्यम से सभी ने उन लोगों की योग्यता तो देखी ही होंगी जो अपंग होते हुए भी अपने जीवन को शानदार बनाते चले गए, हमें गर्व है सभी पर। 

मानवीय मूल्यों पर डॉ चिन्मय भैया जी ने बहुत ही उत्कृष्ट व मनोबल बढ़ाने के बहुत सारे  उदहारण दिए जिससे मनुष्य उसे आत्मसात करते हुए अपने जीवन को श्रेष्ठ व सम्मुन्नत बना सकता है। 

विस्तार में न जाते हुए अपनी लेखनी को विराम देते है। आ डॉ त्रिखा भाई सा. का हृदय से धन्यवाद व आभार प्रकट करते है इस अमूल्य वीडियो से हम सभी को रूबरू कराने के लिए हमने इसे कई लोगों लोगों को फॉरवर्ड की है। सभी को प्रणाम जय माँ गायत्री उषा काल का भोर वंदन 

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आदरणीय रेनू श्रीवास्तव जी : यही  है गुरुदेव का युगनिर्माण योजना।

जयगुरूदेव,सभी सहयोगियों को सादर नमन।आज के ज्ञानरथ में त्रिखा भाईजी ने चिन्मय जी का उद्बोधन जो उन्होंने Renison University कॉलेज  में “मानवीय उत्कर्ष” विषय पर  दिया उसका audio डाला जिसमें मानवीय मूल्यों पर विस्तार से उदाहरण सहित वर्णन किया। जीवन के कुछ  अनमोल पहलू  तथा ईश्वर के अस्तित्व का भी वर्णन किया। ईश्वर हमें दिखाईं नहीं पड़ते पर उनके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता।जिस प्रकार पानी में चीनी मिलाने पर नहीं दिखती   पर जब हम टेस्ट करते हैं तो उसमें मिठास महसूस करते हैं उसी प्रकार ईश्वर हमारे अन्दर है पर  हम देख नहीं पाते। हमारी संस्कृति में हर प्राणी में,  हर जगह ईश्वर के अस्तित्व को  महसूस करते हैं। हमारे पास अवसर हैं  पर  पहचान नहीं पाते। अवसर बार-बार नहीं मिलता उसे तलाश कर लाभ लेना पड़ता है। एक उदाहरण में उन्होंने इंगलैंड में  एक विद्यार्थी का उदाहरण दिया कि वह डिप्रेशन में रहता था तथा नशे की आदत के कारण कई बीमारियों का शिकार हेा गया  उसका मुख्य कारण था कि वह अपने पिता से नाराज रहता था। उसे ऐसा लगता था कि पिता उसकी अवहेलना करते हैं और इच्छा पूरा नही कर रहे हैं। चिन्मय जी ने उसे रिश्ते का मूल्य समझाने का प्रयास किया धीरे -धीरे कुछ बातें  समझ आई तथा सामान्य जीवन जीने लगा। बाद मे भारत में बस्तर जो कि मध्य प्रदेश का आदिवासी बाहुल्य  प्रदेश है, प्रवास के दौरान उसे  एक किसान परिवार को अपनी गरीबी में भी खुश देखकर एहसास हुआ कि कम साधन में भी इन्सान कितना खुश तथा सुखी रह सकता है क्योंकि उसका परिवार उसके साथ था। बाद में जब वह  लौट कर अपने पिता के पास आया तो   और दोनों गले मिलकर खूब रोये। जीवन को बोझ समझने के बजाये भगवान का दिया उपहार समझ उन्हें धन्यवाद देना चाहिये। यह जीवन हमें किसी उदेश्य के लिये मिला ,इसे यूँ ही गवाने के लिये नहीं मिला।

बहिन जी ने कठिन परिश्रम से यह अनुवाद दो शिफ्टों में किया था। 

कल के  संवाद को आगे बढ़ाते हुये यह कहना है कि मनुष्य अपने अन्दर दैवीय गुणों को विकसित  करें तो जीवन स्वर्ग समान  हो जायेगा। चिन्मय जी के शब्दो में जीवन यात्रा  B  से शुरु होकर   D में समाप्त हो जाती  है अर्थात् जन्म से मृत्यु तक।  हम स्वार्थ से वशीभूत होकर संसार में उलझ कर  रह  जाते हैं। हमारे अन्दर देवता और दानव दोनों के  गुण विद्यमान है । यह हम पर निर्भर है कि किसका चुनाव करें।अधिकता की होड़ में अपने नैतिक मूल्यों को समाप्त करते हैं जिसे कई उदाहरण देकर समझाया गया  है।अच्छाईयों काे अपनाकर अपना तथा परिवार समाज का कल्याण कर सकते हैं। हमारा जीवन सुखमय होगा साथ में दूसरों का भी भला कर सकते हैं।अरविन्द,विवेकानन्द और महाभारत  का भी उदाहरण दिया।आपसी वैमनस्यता के कारण कौरवों का नाश हुआ। कई  और उदाहरण दिए । एक गाँव की अनपढ़ महिला के  पति की  इलाज के बिना  मृत्यु हो गई क्यों कि गाँव में इलाज की सुविधा नहीं थी। उस महिला के निश्चय किया कि वह अपने बेटे  को डाक्टर बनायेगी और लोगों के इलाज के लिये  हॉस्पिटल बनायेगी। दृढ़ संकल्प और आत्मबल की शक्ति से उसने  दोनों कार्य किए। बेटे ने भी अपने क्षेत्र में खूब नाम कमाया।आत्मबल और दृढ़ संकल्प के बहुत सारे उदाहरण भरे पड़े हैं। मनुष्य में अच्छाईयों का समावेश हो तो मनुष्य में देवत्व का उदय होगा।आज के युग में टेक्नोलोजी  का ताे विकास हो रहा है पर रिश्तों का ह्रास हो  रहा है जिस कारणअपनों से दूर होते जा रहे हैं और अकेले होते जा रहे हैं।आधुनिक साधनों पर निर्भरता बढती जा रही है हम उसी में चिपक कर रह गये।यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि  इसका प्रयोग कैसे करें। जीवन आसान होने  के बजाये जटिल होता जा रहा है। परिवार का मूल्य नगण्य होता जा रहा है। आपसी रिश्तों में दूरियाँ बढ गई। किसी के पास आज समय नहीं है । भागदौड़ की ज़िंदगीं   सिर्फ मशीन बन रह गयी है। यह जीवन सेवा- लोक कल्याण,परोपकार के निमित्त ईश्वर ने  हमें दिया। हमारे गुरुदेव ने अपने शरीर को तपाया, लोक कल्याणार्थ अपना तन -मन-धन समर्पित किया।

यहाँ पर्यावरण की भी बात कही। यह प्रकृति भी ईश्वर की रचना है।  हमें इसकी रक्षा के लिये हर संभव प्रयास करते रहना है। हम सब जानते है कि पेड पौधै हमें जीवनदायिनी आक्सीजन प्रदान करते हैं। गुरुदेव ने हर अवसर पर जैसे जन्म दिवस,विवाह दिवस या कोई  अन्य अवसर पर वृक्षारोपण कर पर्यावरण को संचित  करने की प्रेरणा दी है क्योंकि यह हमारी सम्पदा है। यहाँ भी उदाहरण आया है कि एक बुजुर्ग दम्पति केा संतान नहीं था उन्हें  शान्तिकुंज की ओर से उपहार में वृक्ष दिया गया और वृक्ष लगाकर संतान की तरह सेवा करने के लिये कहा गया ,उसके बाद वे प्रसन्न रहने लगे ।धीरे-धीरे उस उदेश्यपूर्ण कार्य में करीब 1000 लोग  वृक्षारोपण अभियान से जुड़े।

यदि मन में दृढ़ संकल्प और आत्मबल है तो शारीरिक अक्षमता भी रूकावट नहीं बन सकती। उद्बोधन में एक वीडियो भी दिखाई गयी जिसे  देखकर समझ सकते हैं  कि शक्ति  और इरादे मजबूत हों  तो दूसरों के लिये प्रेरणा बन सकते हैं।आज के युवाओं में दिशानिर्देश की आवश्यकता है उन्हें अच्छे विचार धारा की ओर प्रेरित किया जाये। 

अन्त में गायत्री मंत्र के  शाब्दिक अर्थ का विश्लेषण कर उसकी महत्ता को समझाया। चिन्मय जी के  उद्बोधन की  वहाँ की जनता ने भी सराहना किया तथा धन्यवाद प्रस्ताव के साथ समापन हुआ। गायत्री परिवार के लिये यह गर्व तथा सौभाग्य का विषय है। 

जयगुरूदेव,सादर नमन भाई जी ।इसलिये मैंनें हिन्दी में विश्लेषण लिख रही हूँ ताकि सभी समझें।आपने Grace time दे दिया अतः आज पूरा करूँगी।यहाँ के समयानुसार आधी रात से अधिक हो जाता है।कोई बात नहीं विचार गुरुदेव के हैं जो सब के समझ में आये।हार्दिक धन्यवाद। .

आदरणीय संध्या कुमार जी:

परमपूज्य गुरुसत्ता को सादर नमन, वन्दन, पूजन आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा भाईजी को सादर नमन, धन्यवाद, आभार आज आपने आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पांडेयजी के Renison University College Canada  का “मानवीय उत्कर्ष”पर लेक्चर प्रस्तुत किया है, जिसमें उन्होंने मानवीय मूल्यों पर एवं सर्वत्र ईश्वर की उपस्थिति पर अत्याधिक बल दिया है, उन्होंने परम पूज्य गुरुदेव के इस विश्वास पर बल दिया कि मनुष्य के जीवन में सार्थक उद्देश्य होना आवश्यक है,  आदरणीय हेनरी जी का ब्लड डोनेट करना, आदरणीय सुहासीनी जी का अस्पताल निर्माण करवाना, 67 वर्षीय महिला को शांतिकुंज की तरफ से उनके जन्मदिन पर पेड़ उपहार में देना एवं उन महिला का अपने गांव की अनगिनत महिलाओं को वृक्षारोपण हेतु प्रोत्साहित करना, सर्वोच्च नागरिक सम्मान से सम्मानित होना, उद्देश्यपूर्ण जीवन की सार्थकता सिद्ध करता है ,जो बेहद हर्ष एवं गर्व का विषय है। आदरणीय चिन्मय जी ने वीडियो क्लिप दिखाई जिसमें जेसिका, निक विजिसीक ने शारीरिक कमी के बावजूद जीवन के सकारात्मक पहलू को अपनाते हुये अपना जीवन सार्थक करते हुए दूसरों के लिये उदाहरण सिद्ध कर दिये।आदरणीय चिन्मय जी ने कहा कि जीवन में उद्धेश्य साधते हुए उत्थान करना चाहिए, मैं अच्छा इंसान बनूँ और मानव जाति के कल्याण हेतु कुछ कर सकूँ यही उद्धेश्य होना चाहिये।  युवाओं में असीम शक्ति है उसे सही दिशा मिलनी चाहिये।  सही मार्गदर्शन के अभाव में यही शक्ति गलत रास्ते पर जाती है। डॉक्टर चिन्मय जी ने अपने जीवन का आदर्श परमपूज्य गुरुदेव को बताते हुए कहा कि हमने शुरू से उनको देखा।  उन्होंने 3400 पुस्तकें लिखी, गायत्री परिवार की स्थापना की,  मानव कल्याण, समाज उत्थान के लिये ही निस्वार्थ भाव से कार्य किये, उन्होंने गायत्री मंत्र का सार भी यही बताया कि परम शक्ति मुझे सन्मार्ग पर चलाओ, स्वयं अच्छा इंसान बनना एवं मानवजाति के लिए अच्छा करना ही सन्मार्ग है, आदरणीय चिन्मय जी ने अनेक उद्धेश्य पूर्ण कहानियों के माध्यम, अनेक व्यक्तियों के माध्यम से अपनी बातें बड़े महत्वपूर्ण तरीके से स्पष्ट की हैं, वीडियो बार बार देखने  की इच्छा होती है, यह बेहद ज्ञानवर्धक एवं  प्रेरणादायक है, इस हेतु आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा भाईजी को बारम्बार आभार,धन्यवाद। आदरणीय डॉक्टर चिन्मयजी के ज्ञान को नतमस्तक प्रणाम करती हूँ, उनकी वाणी अद्भुत है, व्यक्तित्व में अद्वितीय तेज है, वह युग पुरुष हैं उन्हें सादर नमन।

सरविन्द कुमार -25 ,रेणु श्रीवास्तव -33,संध्या कुमार-27, अरुण वर्मा-27,सुमन लता-26, प्रेरणा कुमारी -24 , रेणु बहिन जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की हार्दिक बधाई   

 

 

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