आत्मबल विषय पर गुरुदेव और पंडित जी के संवाद 

2 अगस्त 2022 का ज्ञानप्रसाद – आत्मबल विषय पर गुरुदेव और पंडित जी के संवाद 

अपने कल वाले लेख को ही आगे बढ़ाते हुए परम पूज्य गुरुदेव और पंडित लीलापत शर्मा जी के संवाद के अनुसार यह कतई नहीं समझा जाना चाहिए कि प्रतीकों का कोई महत्त्व नहीं होता। स्वतंत्रता से पूर्व तिरंगे ध्वज की रक्षा करने के लिए लाखों भारतीयों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, क्योंकि वह तिरंगा कपड़ा हमारी राष्ट्र भक्ति का प्रतीक प्रतिनिधि था। कच्चे सूत का मूल्यहीन धागा कितना महत्त्वपूर्ण बन जाता है जब बहिन उसे अपने पवित्र स्नेह के रूप में भाई की कलाई पर बाँधती है। श्रेष्ठ प्रतीक का, ईश्वर की छवि का महत्त्व और मूल्य है, पर केवल तभी जब उसमें गुंथे हुए गुणों को, भावों को उतना ही महत्त्वपूर्ण और मूल्यवान समझा जाए, याद रखा जाए और व्यवहार में लाकर उनका सम्मान किया जाए। सद्गुणों का व्यक्तिकरण ( personification) लेखन की चमत्कारी कला है जो रूप रहित, आकार रहित गुणों एवं  भावों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए और उन पर सार्थक चिंतन करने के लिए रूप और आकार वाले तेजस्वी देहों का निर्माण करती है। अच्छा हो कि हम अपनी आस्था भगवान के उन विभिन्न स्वरूपों पर समर्पित करने के स्थान पर उनके गुणों और  भावों पर समर्पित करें। तभी हमारी आस्तिकता सार्थक हो पाएगी।

परम पूज्य गुरुदेव ने जीवन भर चिंतन की इस चिन्मय धारा का अनुसरण एवं प्रतिपादन किया। उनके लाखों, करोड़ों  शिष्यों एवं पाठकों को इस प्रभावी चिंतन का स्मरण कराने के लिए आध्यात्मिक वास्तविकताओं से अवगत कराने के लिए आदरणीय पंडित  लीलापत शर्मा ने अपने संस्मरणों का उल्लेख “युगऋषि का अध्यात्म, युगऋषि की वाणी में” शीर्षक  पुस्तक में किया है। पूज्य गुरुदेव से साढ़े चार वर्ष के  घनिष्ट संपर्क की अवधि में प्राप्त हुए मार्गदर्शन को गुरु शिष्य संवाद के रूप में लिपिबद्ध करने वाली यह एक अद्भुत पुस्तक है।  पंडित जी और गुरुदेव से बीच हुए पत्र व्यवहार का वर्णन देती “पत्र पाथेय” पुस्तक में अंतिम पत्र जिसमें गुरुदेव 12 अगस्त 1967 का है। इस पत्र में गुरुदेव पंडित जी को मथुरा आने को आमंत्रित कर रहे हैं। जून 1971 में गुरुदेव मथुरा का सारा कार्यभार पंडित जी  को सौंप कर शांतिकुंज आ  गए थे, तो इस हिसाब से घनिष्ठ सम्बन्ध के साढ़े चार वर्ष ही बनते हैं।        

इस पुस्तक में युग पुरुष के आध्यात्मिक चिंतन को उनकी ही वाणी में प्रस्तुत करने का प्रयास युवा वर्ग में ईश्वर के प्रति अनास्था की प्रवृत्ति को विराम देने में यह प्रयास सार्थक होना चाहिए । ईश्वर की उपासना-साधना के द्वारा अपने चरित्र और चिंतन का सुधार करने और अपने गुण, कर्म, स्वभाव को श्रेष्ठ दिशा की  ओर मोड़ने में यह पुस्तक सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।

आज जब हम ज्ञानप्रसाद की इस कड़ी को लिखने बैठे तो Canadian athelete Terry Fox से आरम्भ करने की प्रेरणा जागृत हुई। यह प्रेरणा और मार्गदर्शन भी परम पूज्य गुरुदेव के अटूट स्नेह के  कारण ही मिला।

आइये आगे बढ़ने से पहले देख लें कौन हैं Terry Fox. 

अगस्त माह का प्रथम सोमवार जो कि यहाँ कनाडा में आज है ( भारत में तो मंगलवार है ) Terry Fox day के नाम से मनाया जाता है। आदरणीय चिन्मय पंडया जब भी यहाँ पर युवाओं को प्रेरणा देते हुए उद्बोधन देते हैं तो इस 22 वर्षीय खिलाड़ी की बात अवश्य ही करते हैं, इस बार भी की थी ,पहले भी की थी। एक्सीडेंट से बाद अपनी कृत्रिम टांग पर 143 दिन की  मैराथन दौड़ में भाग लेते  हुए Fox ने कैंसर रिसर्च की अवेयरनेस  के लिए 5373 किलोमीटर पूर्ण किए। Bone cancer के कारण इस युवा सेलिब्रिटी का स्वास्थ्य इतना बिगड़ गया कि आखिरकार उसे दौड़ रोकनी पड़ी और 1981 में देहांत हो गया। इस मैराथन दौड़ में 2020 के अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण विश्व भर में  कैंसर रिसर्च के लिए लगभग  800 मिलियन डॉलर इक्क्ठे किये जा चुके हैं। संकल्प शक्ति और आत्मबल के इस हीरो को हमारा नमन है। 

इतिहास के पन्नों को खंगालें तो ऐसी कई दिव्य प्रतिभाओं के दर्शन हो जायेंगें जिन्होंने संकल्प शक्ति और आत्मबल के उदाहरणों को चित्रित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी और हम सबके लिए एक जीवंत उदाहरण बन गए। 

पंडित लीलापत शर्मा जी ने जब परम पूज्य गुरुदेव से संवाद करते हुए पूछा कि गायत्री साधना से आत्मबल,शरीरबल और धनबल की प्राप्ति हो सकती है तो गुरुदेव ने कितने ही उदाहरण देकर पंडित जी को एक अबोध शिशु की तरह समझाने  का प्रयास किया। पंडित जी ने यहाँ  तक कह  दिया था कि भौतिकवाद की ज़ंजीरों ने हमें इस प्रकार जकड़ा हुआ है कि गायत्री साधना की बात समझ ही नहीं आती। जब गुरुदेव ने  हनुमान जी ,भगवान बुद्ध ,स्वामी विवेकानंद जैसी  विभूतियों के आत्मबल के उदाहरण दिए तो पंडित जी ने कहा कि यह तो बहुत ही पुराने हैं, इतिहास के पन्नों में  किताबों और ग्रंथों में लिखे हैं, कोई आजकल का उदाहरण देने की कृपा करें। गुरुदेव ने फिर गाँधी जी का उदाहरण दिया। गाँधी जी का उदाहरण 1947 का था, उन्ही के मार्गदर्शन ने हमारा माथा ठनकाया और  Terry Fox का 1981 का उदाहरण दे दिया। इसके बाद के उदाहरण भी अवश्य होंगें। इन सारे उदाहरणों से एक ही निष्कर्ष निकलता है कि जब इरादे फौलाद की भांति पक्के हों तो साथ देने के लिए  भगवान् स्वयं धरती पर अवतरित होते हैं।     

सब सिद्धियों का मूल है  अध्यात्म : गुरुदेव और पंडित जी का वार्तालाप उन्ही की वाणी में :

एक बार जब गुरुदेव डबरा (ग्वालियर) आए तो हमने उनका पूरी श्रद्धा से आतिथ्य सत्कार किया। गुरुदेव प्रसन्न मुद्रा में बैठे थे। हमने पूज्य गुरुदेव से पूछा कि गुरुदेव आप हमें अध्यात्म के मार्ग पर चलाकर ऋद्धि-सिद्धि मिलने की बात तो बता रहे हैं लेकिन हमारा जीवन तो भौतिकवादी रहा है, भौतिकवाद हमारी नस-नस में समाया हुआ है। आप हमें यह बताएं  कि अध्यात्म के मार्ग पर चलकर, क्या हम शरीरबल, बुद्धिबल और धनबल कैसे  प्राप्त कर सकते हैं? यदि यह सब भी मिल सकता हो तो ही आपके बताए मार्ग पर चलेंगे अन्यथा हमारा यह भौतिकवादी जीवन ही अच्छा है।

पूज्य गुरुदेव मुस्कराए और बोले: बेटा,तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। यह समस्या तुम्हारी ही नहीं अन्य लोगों की भी हो सकती है। देखो, अध्यात्म के मार्ग पर चलने वाले व्यक्ति को अपना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य ठीक रखना पड़ता है। तभी वह उपासना, साधना और आराधना में सफल हो सकता है। स्वस्थ नहीं होगा तो भजन कैसे करेगा। यदि आदमी में बुद्धि नहीं होगी, तो बेअकल आदमी कोई भी काम नहीं कर सकता है। वह अपना तथा परिवार का पेट भी नहीं भर सकता है। इसलिए बुद्धिबल भी बहुत आवश्यक है। धन के बगैर कोई काम नहीं हो सकता है। घर का खरच, बच्चों की पढ़ाई, मकान, लड़की की शादी आदि बिना पैसों के कैसे होगी? यह सबकी समस्या है, लेकिन बेटा! तूने शरीरबल, बुद्धिबल और धनबल की बात तो की है, परंतु आत्मबल ( Self confidence,will power ) को तो भूल ही गया। जब आत्मबल होता है तो अन्य सब बल स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। अत: आत्मबल का बहुत महत्त्व है।

इसी वर्ष 8 मार्च को हमने “कब तक मृगतृष्णा में आत्मबल की आहुति चढ़ाते जायेंगें ?” शीर्षक से एक लेख लिखा था जिसमें आत्मबल की चर्चा का आधार  साइंटिफिक था। वैसे तो इन लेखों को लिखने में परम पूज्य गुरुदेव ही हमारा मार्गदर्शन कर रहे  हैं लेकिन इस लेख में उनका मार्गदर्शन बिल्कुल ही विशेष था। भौतिकवाद में ग्रस्त मानव को  समझाना बहुत ही कठिन है कि भौतिकवादी रहकर भी अध्यात्मवादी बना जा सकता है। जब भी किसी ऐसे व्यक्ति से बात  करते हैं तो विरोध तो होता ही है लेकिन उसकी यह भी धारणा होती है कि हम उससे कुछ मांग रहे हैं और बाद में किसी मेम्बरशिप या डोनेशन की बात करेंगें।  लेकिन ऐसी बात नहीं है, गायत्री परिवार की शिक्षा ही देने की है, न कि लेने की। जो लोग युगतीर्थ  शांतिकुंज कुछ दिन ही रह कर आये हैं, ऑनलाइन ज्ञानरथ से कुछ समय से ही जुड़े हैं, समर्पणभरी कार्यशैली से भलीभांति परिचित होंगें, जानते होंगें कि इस छोटे से परिवार के सदस्य क्या ले रहे हैं और क्या दे रहे हैं ,     

पंडित जी ने  पूछा-गुरुदेव! आत्म बल कैसे प्राप्त किया जा सकता है? तो गुरुदेव बोले: बेटा! आत्मबल गायत्री के अंतरंग पक्ष को, उसके आदर्शों और सिद्धांतों को, उनके दर्शन को व्यावहारिक जीवन में उतारने से आता है। गायत्री के बहिरंग और अंतरंग पहलु पर भी हमने किसी लेख में विस्तृत चर्चा की थी। उस समय हमने यही निष्कर्ष निकाला था कि आम लोग गायत्री के बहिरंग( मंदिर जाना, माला फेरना, यज्ञ करना इत्यादि) पक्ष को ही जानते हैं, अंतरंग पक्ष तक तो पहुँच ही नहीं पाते।    

रावण जब मरने लगा तो उसको  शंका यह हुई कि मेरे पास शरीरबल, बुद्धिबल और धनबल तीनों भगवान् राम से अधिक थे। शरीर भी मेरा बहुत बलवान था। बुद्धि भी मेरी बहुत तीव्र थी और धन के लिए तो मेरी सोने की लंका थी। राम के पास तीर कमान के अलावा कोई शस्त्र नहीं था। वानर भालुओं के पास तो बस जंगल के डंडे ही थे। हमारे सारे योद्धा एक से एक बलशाली थे जिनकी सौ-सौ योजन की मूंछे थीं, किंतु उनको भी मार गिराया। भगवान् के पास ऐसा  कौन सा बल था, जिससे मेरी इतनी विशाल सेना  हार गई। रावण ने यह प्रश्न भगवान राम से ही पूछा तो भगवान ने उत्तर दिया: रावण! तुम्हारे पास तीनों बल थे लेकिन आत्मबल नहीं था। उसी के अभाव में सारे बल कमजोर पड़  जाते हैं। रावण ने कहा आत्मबल कैसे प्राप्त होता है ? भगवान बोले-सत्य और न्याय का मार्ग अपनाने से आत्मबल आता है। जप के साथ ईश्वर के सिद्धांतों को जीवन में धारण करने से आत्मबल आता है। रावण बोला-मैंने तो बहुत तप किया, अपना सिर काट-काट कर शिवजी की पूजा की, फिर भी आत्मबल क्यों नहीं आया? भगवान बोले-जो व्यक्ति पवित्र, दोष दुर्गुणों से रहित जीवन जीता है, भगवान के गुणों को अपने अंदर ग्रहण करता है, समाज की सेवा करता है, उसमें ही आत्मबल आता है। तुमने भजन, पूजन, जप, तप व्रत तो किए लेकिन अपने दोष दुर्गुणों को नहीं छोड़ा, पराई स्त्री पर बुरी दृष्टि डाली,पराई नारी का अपहरण किया, क्रोध, अहंकार, अत्याचार, अनाचार और दुराचार का साथ नहीं छोड़ा तो आत्मबल कहाँ से आएगा? ऐसे में भजन, पूजन, तप और शीश काट-काटकर चढ़ाना सब व्यर्थ ही सिद्ध होता है। 

इसी विषय को कल वाले लेख में जारी रखेंगें। आज का लेख को  यहीं पर विराम देते  हुए कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और वह  ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अनजाने में अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।

To be  continued :

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2 अगस्त 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची: 

(1 )रेणु श्रीवास्तव-27,(2) संध्या कुमार-26 , (3) अरुण वर्मा-39 , (4) सरविन्द कुमार-24, (5) प्रेरणा कुमारी-24    

इस सूची के अनुसार सभी सहकर्मी गोल्ड मैडल विजेता हैं, सामूहिक शक्ति को नमन एवं  सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद

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