12 जुलाई 2022 का ज्ञानप्रसाद – बेटे की मृत्यु के बाद पंडित लीलापत जी की मनःस्थिति पार्ट 2

आज का लेख 11 जुलाई वाले लेख की ही extension है। बेटे राम की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु के उपरांत पंडित लीलापत जी के मन में गायत्री साधना के बारे में क्या शंकाएं उठी, एक साधक का मन कैसे डांवाडोल हो गया और परम पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन ने कैसे न केवल उस स्थिति से निकाला बल्कि लेखन के लिए प्रेरित किया। गुरुदेव की प्रेरणा से पंडित जी ने 10 पुस्तकें लिख डालीं। हम जिन पुस्तकों के माध्यम से आपके समक्ष यह लेख प्रस्तुत कर रहे हैं उन्हें स्कूल जाने का अक्सर भी प्राप्त नहीं हुआ था। गुरुदेव कहते है: जब दिल प्रेरित होता है और ईश्वरीय शक्ति एक माध्यम का चयन करती है, तो किसी अन्य क्षमता की आवश्यकता नहीं होती।
आशा करते हैं कि आज के लेख से हमारे पाठक भी अवश्य ही प्रेरित होंगें और गुरुशक्ति को पहचानेगें।
लेख आरम्भ करने से पहले दो शब्द :
पंडित जी के व्यक्तित्व पर लेखों की शृंखला का चयन परम पूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन और निर्देश ही हो सकता है। हम यह लेख गुरुपूर्णिमा के पावन दिवस के दौरान लिख रहे हैं और ऐसे शिष्य के बारे में लिख रहे हैं जिनकी व्याख्या के लिए हमारे पास कोई शब्द ही नहीं हैं। आज का लेख 5 जुलाई से आरम्भ हुई इस शृंखला का छठा और इस सप्ताह का द्वितीय लेख है, कितने और लिखे जायेंगें अभी कहना संभव नहीं है। आदरणीय सरविन्द कुमार जी ने भी गुरु-शिष्य पर लेख भेजा है जिसे गुरुवार को प्रस्तुत किया जायेगा, शनिवार को आप गुरुदेव की वह ह्रदय स्पर्शी वीडियो देखेंगें जो उन्होंने किसी गुरुपूर्णिमा पर ही रिलीज़ करवाई थी, बोलते बोलते गुरुदेव का गला भी भर आया था।
तो प्रस्तुत है आजा का ज्ञानप्रसाद।
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बेटे राम की मृत्यु से पंडित जी क्या सोच रहे थे, निम्नलिखित पंक्तियाँ वर्णन कर रही हैं :
मैंने कई बार सोचा कि क्या मेरी सारी पूजा, मेरे समर्पण का परिणाम केवल यही है? मैं दूसरों को कैसे बता सकता हूं कि आध्यात्मिक पथ प्रगति, खुशी और शांति के लिए एक निश्चित मार्ग है? कई भक्तों ने मुझे गायत्री उपासना पर सवाल उठाते हुए लिखा भी, लेकिन मैं उनके रुख को स्वीकार करने को तैयार नहीं था। मुझे एक बार भी मां गायत्री के आशीर्वाद पर संदेह नहीं हुआ, लेकिन लगा कि जो कुछ भी हुआ वह मेरे भीतर कुछ कमी के कारण था। एक बार नहीं, बल्कि कई बार मेरे विश्वास, मेरी पूजा, मेरी सेवा, गुरुदेव के प्रति मेरे समर्पण को लेकर संदेह पैदा होता था। वही मानसिक स्थिति दिन-रात बनी रहती थी और यहाँ तक कि प्रार्थना-कक्ष में गायत्री माता की छवि के सामने प्रार्थना के लिए जाते समय भी दर्द बना रहता था और पादुकाओं के सामने झुकते समय मन लगातार डगमगाने लगता था। एक दिन मानसिक दबाव इतना असहनीय हो गया कि मुझे लगा जैसे मेरा सिर फट जाएगा। उस समय मेरे दिल में गुरुदेव की आवाज सुनाई दे रही थी। वह आवाज़ कह रही थी ,
“न तो आध्यात्मिक अंतःप्रेरणा, न ही तुम्हारे समर्पण में,पूजा में कोई कमी है,आपने जो मार्ग अपनाया है, वह लोगों की सेवा करने का मार्ग भी सही है। आप क्यों सोचते हैं कि इन सब के बावजूद बेटे राम ने आपको छोड़ दिया है। सच यह है कि उपरोक्त सभी के परिणामस्वरूप राम आपके साथ बने रहे, अन्यथा वह बहुत पहले ही छोड़ देने वाले थे।”
तभी मुझे अनुभूति हुई कि गुरुदेव राम के विवाह की अनुमति क्यों नहीं दे रहे थे। मुझे ऐसा लगा कि माता जी ने राम का विवाह करने के लिए अपने विशेषाधिकार का उपयोग किया था और पूज्य गुरुदेव ने कुछ वर्षों तक उसके जीवन-काल को बढ़ाया। माता जी की संचित आध्यात्मिक उपलब्धि का एक हिस्सा राम को प्यार और समर्पण के लाभ के लिए दे दिया और उसके जीवन को चार और महीनों तक बढ़ा दिया। इसके पीछे उनकी सोच थी कि बच्चों की देखभाल अच्छी तरह से एक संरक्षित क्षेत्र में की जानी चाहिए, और मथुरा के लिए इससे बेहतर जगह और क्या हो सकती है? यह चार महीनों के भीतर पूरा किया गया था।
मेरे दिल में गुरुदेव की आवाज गूंज रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे गुरुदेव कह रहे हों:
“आपके लिए दिल टूटना स्वाभाविक है, लेकिन इंदिरा बहु के दर्द की तुलना अपने दर्द के साथ करें। उसके लिए यह सब सहन करना कितना गंभीर है? आपका दर्द भावनात्मक रूप से अधिक है, इंदिरा के लिए तो उसके अपने भविष्य का और तीन बच्चों के भविष्य का सवाल है। इन समस्याओं का सामना करते हुए भी, वह शांत है। इसलिए अपना दर्द सहना सीखें। याद रखें, मैं हमेशा आपको अपने साथ अपने दौरों पर ले गया था। आप मथुरा से निकलने से पहले और उद्घाटन के समय वार्डों में मेरे साथ थे। विभिन्न गायत्री पीठों में आप मेरे साथ थे। जब आपके लिए मेरा साथ देना संभव नहीं था, तो मैंने कार्यक्रमों के उद्घाटन के लिए जाना बंद कर दिया। आप मेरे अविभाज्य (inseparable) हैं ,मैं और आप एक ही हैं “
मैंने गुरुदेव से पूछा, “अब, आपका निर्देश क्या है?” इसका उत्तर भी दिल से आया। गुरुदेव ने कहा, “लिखना शुरू करो”। मैंने कहा, “गुरुदेव, मुझे स्कूल जाने तक का अवसर तो कभी नहीं मिला, तो मैं क्या लिखूंगा। मैं पढ़ने में और पत्रों का उत्तर देने में सक्षम हूं। शायद मैंने अभी अपना वाक्य खत्म ही किया था कि गुरुदेव ने कहा,
“बस इतना ही ? इसके बारे में तुम क्यों चिंता करते हो ? कबीर कौन से शिक्षित व्यक्ति थे ? वह भी तो पढ़ना और लिखना नहीं जानते थे। तब भी ईश्वर ने उन्हें अपने अनुभवों को गाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने गाना शुरू कर दिया और इस स्तर का गहरा साहित्य सामने आया कि विश्वविद्यालयों में पढ़े-लिखे पुरुष भी कबीर को समझने के लिए अपना पूरा समय और प्रतिभा खर्च करते हैं फिर भी वे संतुष्ट नहीं हैं कि वे इसे पूरी तरह से अपने दिलों में समाहित कर पा रहे हैं। जब दिल प्रेरित होता है और ईश्वरीय शक्ति एक माध्यम का चयन करती है, तो किसी अन्य क्षमता की आवश्यकता नहीं होती है। अगर कबीर, सूरदास या मीरा की भांति तुम भी अपने आप को ईश्वरीय शक्ति के खेल के लिए एक बांसुरी की धुन मान लो तो धुन खुद ब खुद बजेगी ।”
गुरुदेव ने मुझे बहू इंदिरा के बारे में भी सांत्वना दी और कहा,
“चौबीस वर्ष पूर्व तुमने जब स्वयं मेरे आगे आत्मसमर्पण कर दिया था तो अब चिंता क्यों कर रहे हो ? मुझे बहु इंदिरा की ज़िम्मेदारी निभानी है, न कि तुम्हारी। वह मिशन के लिए काम कर रही होगी। बेटी होने के नाते पहले वह मिशन के लिए अप्रत्यक्ष रूप से काम कर रही थी, लेकिन अब वह युग निर्माण के लिए पूरी तरह से काम करेगी और अपनी क्षमता को साबित करेगी ”।
गुरुदेव ने मुझे लिखने के लिए सुबह उठने की सलाह दी, और मैंने उन्हें कहा आप ही मुझे खुद बताओ क्या लिखना है। मैंने लिखने के लिए बैठना शुरू किया और प्रेरणा आई कि मुझे गुरुदेव के 1971 से पहले वाले व्याख्यानों को लिखना शुरू करना चाहिए जो गुरुदेव शिविरों में देते थे। इसलिए मैंने उनके नोट्स की खोज शुरू कर दी जो मैंने काफी समय पहले इक्क्ठे किये थे । सौभाग्य से मैं उनका पता लगाने में सक्षम भी था, लेकिन लेखन और संदर्भों को समझना मुश्किल था। यहाँ भी गुरुदेव ने मुझे आश्वस्त किया कि
“मुझे बस एक बार बैठना होगा। दृढ़ संकल्प के साथ उन्हें पढ़ें और सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
इस प्रेरणा से मेरे लिए इन नोटों से लिखना शुरू करना मेरे लिए कोई कठिन न था। प्रकाशन शुरू हुआ और दस पुस्तकों की एक श्रृंखला प्रकाशित हुई। जब से हम इन लेखों को लेख रहे हैं, लगातार यह जिज्ञासा रही है कि दस पुस्तकों की सूची कहीं से उपलब्ध हो सके। कुछ एक को हम ढूढ़ने में सफल भी हुए हैं लेकिन सभी दस प्राप्त करने का प्रयास अभी भी जारी है। जैसे जैसे पुस्तकें मिलती जा रही हैं हम आपके साथ शेयर किए जा रहे हैं
पंडित जी लिखते हैं कि गुरुदेव की जीवनी भी इस तरह से लिखी गई थी। लिखने के लिए नियमित रूप से बैठना बिल्कुल उसी तरह था जैसे नियमित रूप से हम प्रार्थना के लिए बैठते हैं। गुरुदेव 80 साल इस धरती पर रहे । मेरे पास उनके दिव्य रूप को समझने की क्षमता नहीं है, लेकिन उनका नश्वर रूप भी अकल्पनीय रूप से विशाल है। यह कार्य इतना कठिन और घटनाओं से भरा हुआ था कि संकलन में कई वर्ष लग गए लेकिन गुरुदेव की कृपा से सब आसानी से पूरा हो गया। ऐसा होता है गुरु का मार्गदर्शन।
हम तो यही कहेंगें ” जिसके सिर ऊपर तू स्वामी, सो दुःख कैसा पावे” सिख धर्म का बहुचर्चित श्लोक पूर्णतया सत्य है।
हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
कल वाले ज्ञानप्रसाद में इस दुःखद स्थिति का आगे वाला पार्ट प्रस्तुत करेंगें
To be continued : क्रमशः जारी
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8 जुलाई 2022 को प्रकाशित वीडियो की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )संध्या कुमार-24 , (2 )अरुण वर्मा-24 , (3 )प्रेरणा कुमारी -27 ,(4 ) सरविन्द कुमार-27
आज की सूची के अनुसार प्रेरणा कुमारी और सरविन्द कुमार जी गोल्ड मैडल विजेता हैं, उन्हें हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद