22 जून 2022 का ज्ञानप्रसाद – ज्ञानयज्ञ की लपटें आकाश को छूएँगी।
ज्ञानयज्ञ श्रृंखला का सातवां और अंतिम लेख अपने सहकर्मियों के श्रीचरणों में समर्पित करते हुए जिस असीम आनंद की अनुभूति हो रही है उसके लिए कोई भी शब्द नहीं हैं। इन लेखों को मिले response के लिए हम जीवन भर आपके आभारी रहेंगें।
ज्ञानयज्ञ से उठ रही आकाश को छूती लपटों को हमने परमपूज्य गुरुदेव के 1940 के प्रथम होली सन्देश से जोड़ने का प्रयास किया है। 2013 में प्रकाशित “युगऋषि के सन्देश” पुस्तक को 1940 के होली सन्देश के साथ जोड़ना गुरुदेव की प्रेरणा के बिना कहाँ संभव हो सकता था – नमन करते है ऐसे गुरु को – कृपया इसी तरह मार्गदर्शन करते रहें।
तो प्रस्तुत है हमारा यह नवीन प्रयास।
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गुरुदेव पुस्तक में बता रहे हैं कि हमें अपना विचार-क्षेत्र बढ़ाना है। अब तक केवल अखण्ड ज्योति और युग निर्माण योजना पत्रिका से ही अपना संपर्क क्षेत्र विनिर्मित करते रहे हैं। जो इन्हें पढ़ते हैं, उन्हीं तक अपने विचार पहुँचते हैं। इस छोटे से वर्ग से ही समस्त विश्व को परिवर्तित करने का स्वप्न साकार नहीं हो सकता। हमें प्रसार के लिए बड़े कदम उठाने होंगे। झोला पुस्तकालय,अंश दान और समयदान प्रक्रिया इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए है। व्यक्ति को अपने लिए ही कमाते नहीं रहना चाहिए। उसकी कमाई में समाज का भी अधिकार है। इस अधिकार को संतुलित बनाने के लिए दान को एक अनिवार्य धर्म-कर्त्तव्य माना गया है। जो दान नहीं करता और अपनी कमाई आप ही खाता रहता है, उसे मनीषियों और शास्त्रों ने चोर माना है। हमारा कोई भी परिजन चोर नहीं कहलाएगा, उसे दानी ही बनना चाहिए और दान की सार्थकता तभी है जब उसके पीछे उपयोगिता और विवेक का पुट हो।
सद्ज्ञान प्रसार करके जनमानस को बदलने से बढ़कर दान की और कहीं सार्थकता हो नहीं सकती। हम पहले ही बता चुके हैं कि ब्रह्मदान सबसे बडा परमार्थ है। ज्ञानदान से ज्ञानयज्ञ की लपटें आकाश को छूने लगेंगी और पाताल तक को प्रभावित करने लगेंगी। गुरुदेव बहुत ज़ोर देकर कह रहे हैं कि यह पंक्तियाँ पढ़कर ही पुस्तक उठाकर एक कोने में न रख दी जाए वरन कुछ करने के लिए आवश्यक साहस और उत्साह पैदा किया जाए। हमें विश्वास है कि आपने हमारे किसी भी अनुरोध को नज़रअंदाज़ नहीं किया है और इस बार भी ज्ञानयज्ञ की हमारी संकलित प्रक्रिया को अधूरी नहीं रहने देंगें। यह प्रक्रिया अखण्ड ज्योति परिवार, गायत्री परिवार और युग निर्माण योजना के कुछ लाख सदस्यों तक ही सीमित नहीं रहने दी जा सकती। इसे देशव्यापी, विश्वव्यापी बनाना है। ज्ञानयज्ञ से बढ़कर दानशीलता को चरितार्थ करने का और कोई माध्यम शायद ही इस संसार में दूसरा होता है। इसी ज्ञान के प्रति गुरुदेव हमारी आँखें मार्च 1940 की अखंड ज्योति के होली सन्देश में चित्रित शब्दों में खोलते हैं। गुरुवर कहते हैं कि जब यह अंक आपके पास पहुंचेगा तो आप सभी होली का पर्व मना रहे होंगें। गरीब, अमीर सभी अपनी स्थिति के अनुसार होली मनाने की तैयारी कर रहे होंगे। पकवान, मिष्ठान, बनाने की तैयारियां हो रही होगी, नये कपड़े बन रहे होंगे, बच्चे होलिका दहन का तमाशा देखने और धूलि उड़ाने के लिए उस समय की घड़ियां गिन रहे होगे। रंग खेलने के लिए, मुँह पर गुलाल मलने के लिए मित्र गण, प्रेमी प्रेमिकाएं व्याकुल हो रहे होंगे। व्यापारी इस अवसर पर अधिक बिक्री होने की आशा से दुकानें सजा रहे होंगे, मजदूर लोग उस दिन काम न करना पड़ेगा की सोच से प्रसन्न हो रहे होंगें, हंसते खेलते बालकों को देखकर माता पिता खुश हो रहे होगे। जगह-जगह गाने बजाने का ठाठ जमा होगा। लोगों की इस प्रसन्नता को देखकर प्रकृति भी चुप न बैठेगी। बसंत महाराज अपना वैभव इस पीड़ित दुनिया के ऊपर बिखेर रहे होंगे । नन्हे-नन्हे पौधों से लेकर विशाल वृक्षों तक सब हरियाली से भरपूर होंगे। अपने फूलों की सुरभी दशों दिशाओं में उड़ाकर आनन्द का झरना बहा रहे होंगे। अखंड ज्योति के पाठक क्या इस उत्सव से अलग होगे? नहीं। वे भी इस हंसी खुशी में भाग ले रहे होंगे, उनकी प्रसन्नता में भाग लेता हुआ मैं भी आनन्दित हो रहा हूँ और अपनी शुभकामना की लहरें उन तक भेजने का प्रयत्न कर रहा हूँ।
बहुत ही उत्तम पंक्तियाँ :
होलिकोत्सव का यह त्योहार उस प्यास की एक धुंधली तस्वीर है जिसकी इच्छा मनुष्य को हर समय बनी रहती है वह हैं “मौज! आनंद! खुशी! प्रसन्नता! हर्ष! सुख! सौभाग्य! “ यह सब कितने सुन्दर शब्द हैं इनका चिन्तन करते ही नसों में एक बिजली सी दौड़ जाती है। मनुष्य युगों से आनन्द की खोज कर रहा है, उसका अन्तिम लक्ष्य ही अखण्ड आनन्द है। राजहंस का स्वभाव है कि वह हर समय मोतियों की तलाश में जगह-जगह भटकता फिरता है। विभिन्न प्रकार के पत्तों पर पड़ी हुई ओस की बूँदें उसे मोती दिखती हैं , उन्हें लेने के लिए बड़े प्रयत्न के साथ वहाँ तक पहुँचता है पर चोंच खोलते ही बूँद गिर पड़ती है और राजहंस अतृप्त का अतृप्त ही बना रहता है। एक पौधे को छोड़ कर दूसरे पर, दूसरे को छोड़कर तीसरे पर और तीसरे को छोडकर चौथे पर जाता है लेकिन संतोष कहीं नहीं मिलता। वह भ्र्मपूर्ण स्थिति मे पड़ा हुआ है, जिन्हें वह मोती समझता है असल में ओस की बूंदे हैं। वह तो मोतियों की एक झूठी तस्वीर मात्र है। तस्वीरों से मनुष्य टकरा रहा है। दर्पण की छाया को अपनी कार्य संचालक बनाना चाहता है। इस प्रयत्न में उसने असंख्य युगों का समय लगाया है परन्तु तप्ति अब तक नहीं मिल पाई है। इच्छा अब तक पूरी नहीं हो सकी है।
आनंद की खोज मे भटकता हुआ मानव दर-दर भटकता फिरता है। मानव सोचता है, बहुत सा रुपया जमा करें, उत्तम स्वास्थ्य रहे, रमणियों से भोग करें, सुस्वाद भोजन करें, सुन्दर वस्त्र पहनें, बढ़िया मकान और सवारियाँ हों, नौकर चाकर हों, पुत्र,पुत्रियों, वधुओं से घर भरा हो, उच्च अधिकार प्राप्त हों, समाज में प्रतिष्ठा हो, कीर्ति हो, यह चीजें मनुष्य प्राप्त करता है, जिन्हें यह चीजें उपलब्ध नहीं होतीं वे प्राप्त करने की कोशिश करते हैं, जिनके पास हैं वे उससे भी अधिक लेने का प्रयत्न करते हैं। कितनी ही मात्रा में यह चीज़ें मिल जाएँ पर पर्याप्त नहीं समझी जाती, जिससे पूछिये यही कहेगा मुझे अभी और चाहिये। इसका एक ही कारण है:
स्थूल बुद्धि तो समझ भी लेती है कि काम चलाने के लिये इतना काफी है लेकिन सूक्ष्म बुद्धि भीतर ही भीतर सोचती है यह चीज़ें अस्थिर हैं, किसी भी क्षण इनमे से कोई भी चीज़ कितनी ही मात्रा मे बिना पूर्व सूचना के नष्ट हो सकती है इसलिये अधिक संचय करो ताकि नष्ट होने पर भी कुछ बचा रहे। यही नष्ट होने की आशंका अधिक संचय के लिए प्रेरित करती रहती है, फिर भी नाशवान चीज़ों का नाश होता ही है। यौवन ठहर नहीं सकता, लक्ष्मी किसी की दासी नहीं है, मकान, सवारी,घोड़े, कपड़े भी स्थायी नहीं, भोजन और मैथुन का आनन्द कुछ क्षण ही मिल सकता है। हर घड़ी उसकी प्राप्ति होती रहना असंभव है। जिनकी आज कीर्ति छाई हुई है कल ही उनके माथे पर ऐसा काला टीका लग सकता है कि कहीं मुंह दिखाने को भी जगह न मिले। सारे आनंदों को भोगने के मूल साधन शरीर का भी तो कुछ ठिकाना नहीं। आज ही बीमार पड़ सकते हैं, कल अपाहिज होकर इस बात के मोहताज बन सकते हैं कि कोई मुँह मे ग्रास रख दे तो खा लें।
इन सब तस्वीरों मे आनंद की खोज करते करते चिरकाल बीत गया लेकिन राजहंस को ओस ही मिली। मोती नहीं मिला क्योंकि मोती की तो खोज ही नहीं की गयी । मानसरोवर की ओर तो मुँह ही नहीं किया। लम्बी उड़ान भरने की तो हिम्मत ही नहीं बाँधी। परों को फड़फड़ाया परन्तु फिर मटर के खेत में मोतियों का खजाना दिखाई पड़ गया। मन ने कहा, ज़रा इसे और देख लें । आँखो से न दीख पड़ने वाली मानसरोवर में मोती मिल ही जायेगे इसी की क्या गारंटी है। फिर ओस चाटी और फिर फड़फड़ाया। फिर वही, यही पहिया चलता रहता है।
आप अपने जीवन में कितनी होलियों मना चुके, कितनी दिवालियां बिता चुके, ज़रा उँगलियों पर गिन कर बताइये तो कितनी बार आपने धूमधाम से तैयारियां कीं और कितनी बार आनन्द सामग्री को विसर्जित किया। आपने उनमें खोजा, कछ क्षण पाया भी, परन्तु ओस की बूंदे ठहरी कब? वे दूसरे ही क्षण जमीन पर गिर पड़ीं और धूलि में समा गईं । इस बार की होली भी ऐसी ही होनी है। गुरुदेव चाहते हैं कि आप इस होली पर खूब आनंद मनायें और साथ ही यह भी चिन्तन करे कि जिसकी यह छाया है उस अखण्ड आनन्द को आप कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? आपकी युग-युग की प्यास कैसे बुझ सकती है? इस अंधेरे में कहाँ से प्रकाश मिल सकता है जिससे अपना स्वरूप और लक्ष्य की ओर बढ़ने का मार्ग भली प्रकार देखा जा सके ? सच्चे अमृत को हम कैसे और कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं ?
आइये, उस अखण्ड आनंद को प्राप्त करने के लिए हृदयों में होली जलावें । सच्चे ज्ञान की ऐसी उज्जवल ज्वाला हमारे अन्तरों में जल उठे जिसकी लपटें आकाश तक पहुँच कर अन्तर के कपाट खोल दें और उस दीप्त प्रकाश में हम अपना स्वरूप परख सकें, पड़ोसी भी उस प्रकाश का लाभ प्राप्त करें । चिरकाल के जमा हुए झाड़ झंखाड़ इस होलिका की ज्वाला मे जल जावें । विकारों के राक्षस जो अँधेरी कोठरी मे छिपे बैठे हैं और हमे भीतर ही भीतर खाए जा रहे है इसी होलिका में भस्म हो जावें । अपने सब पाप तापों को जला कर हम लोग शुद्ध स्वर्ण की भांति चमकने लगें। उसी निर्मल शरीर से वास्तविक आनन्द प्राप्त किया जा सकेगा। यही है आज मेरी प्रार्थना।
जय गुरुदेव धन्यवाद्
समापन
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21 जून 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )रेणु श्रीवास्तव -24 , (2) संध्या कुमार-28 , (3) अरुण वर्मा-37 (4) सरविन्द कुमार-38, (5) पूनम कुमारी- 27
इस सूची के अनुसार अरुण वर्मा और सरविन्द कुमार गोल्ड मैडल विजेता हैं, दोनों को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद