21 जून 2022 का ज्ञानप्रसाद – विज्ञापनबाज़ी से सस्ती वाहवाही मत लूटें
आज के ज्ञानप्रसाद में हम ज्ञानयज्ञ की लेख श्रृंखला का छठा भाग प्रस्तुत कर रहे हैं। इन सभी लेखों में छिपे ज्ञान को उजागर करने का उद्देश्य केवल एक ही है -अपने गुरु के साहित्य को जिसे गुरु के अंग कहा जा सकता है -सम्मान देना,जन-जन के अंतर्मन में स्थापित करना, यह सुनिश्चित करना कि मात्र पन्ने ही उल्टे-पल्टे जा रहे हैं या इस ज्ञान से विचार क्रांति और युगनिर्माण योजना जैसे बड़े प्रयासों में योगदान दिया भी जा रहा है कि नहीं। इस प्रयास की पुष्टि तो 24 घण्टों के अंदर आपके कमैंट्स से हो ही जाती है। कमैंट्स -काउंटर कमैंट्स, 24 आहुति संकल्प ,गोल्ड मैडल सम्मान आदि सभी प्रयास कोई वाहवाही कमाने की दिशा में नहीं है बल्कि अपने सहकर्मियों के साथ सहकारिता से गुरुदेव के मिशन में हाथ बटाने का प्रयत्न है। आज का लेख इसी वाहवाही और विज्ञापनबाज़ी को दर्शा रहा है।
तो आइये करें ज्ञानप्रसाद का अमृतपान।
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साधनों का नियोजन ज्ञानयज्ञ में करें:
पुण्य-परमार्थ की अंतश्चेतना यदि मन में जागे तो उसे “सस्ती वाहवाही” लूटने की मानसिक दुर्बलता से टकराकर चूर-चूर न हो जाने दिया जाए। आमतौर से लोगों की ओछी प्रवृत्ति नामवरी लूटने का ही दूसरा नाम पुण्य मान बैठती है और ऐसे काम करती है, जिनकी वास्तविक उपयोगिता भले ही कुछ भी न हो पर उनका विज्ञापन अधिक हो जाए। गुरुदेव कहते हैं कि मंदिर, धर्मशाला बनाने आदि के प्रयत्नों को हम इसी श्रेणी का मानते हैं। वे दिन लद गए जबकि मंदिर जन-जाग्रति के केंद्र रहा करते थे। वे परिस्थितियाँ चली गईं जब धर्मप्रचारकों और पैदल यात्रा करने वाले पथिकों के लिए विश्रामगृहों की आवश्यकता पड़ती थी। अब व्यापारिक या शादी-ब्याह संबंधी स्वार्थपरक कामों के लिए लोगों को किराया देकर ठहरना या ठहराना ही उचित है। मुफ्त की सुविधा वे क्यों ले और क्यों हैं?
कहने का तात्पर्य यह है कि इस तरह के विडंबनात्मक कामों से शक्ति का अपव्यय बचाया जाना चाहिए और उसे जनमानस के परिष्कार कर सकने वाले कार्यों की एक ही दिशा में लगाया जाना चाहिए। हमें नोट कर लेना चाहिए कि आज की समस्त उलझनों और विपत्तियों का मात्र एक ही कारण है-मनुष्य की विचार-विकृति (Thought Disorder ) . दुर्भावनाओं और दुष्प्रवत्तियों ने ही शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, पारिवारिक, राजनीतिक आदि सभी संकट खड़े किए हैं। बाहरी उपचारों से पत्ते सींचने से कुछ नहीं बन पड़ेगा, हमें संकट की तह तक जाना चाहिए और जहाँ से संकट उत्पन्न होते हैं, उस छेद को बंद करना चाहिए। शायद यह कहना गलत न होगा कि विचारों और भावनाओं का स्तर गिर जाना ही समस्त संकटों का केंद्रबिंदु है। हमें इसी मर्मस्थल पर तीर चलाने चाहिए। हमें ज्ञानयज्ञ और विचारक्रांति को ही इस युग की सर्वोपरि आवश्यकता एवं समस्त विकृतियों की एकमात्र चिकित्सा मानकर चलना चाहिए और उन उपायों को अपनाना चाहिए जिनसे मानवी विचारधारा एवं आकांक्षा का स्तर ऊँचा किया जा सके।
ज्ञानयज्ञ की सारी योजना इसी लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई गई है। हमें अर्जुन को लक्ष्य भेदते समय मछली की आँख देखने की तरह केवल युग की आवश्यकता विचारक्रांति पर ही ध्यान एकत्रित करना चाहिए और केवल उन्हीं परमार्थ-प्रयोजनों को हाथ में लेना चाहिए जो ज्ञानयज्ञ के पुण्य-प्रयोजन पूरा कर सकें। अन्यान्य कार्यक्रमों से हमें अपना मन बिल्कुल हटा लेना चाहिए। शक्ति बखेर देने से कोई काम पूरा नहीं हो सकता। परिजनों को हमारा परामर्श यही है कि अगर वे परमार्थ भावना से सच में कुछ करना चाहते हों तो उस कार्य को हज़ार बार इस कसौटी पर कस लें कि इस प्रयोग से आज की मानवीय दुर्बुद्धि को उलटने के लिए अभीष्ट प्रबल पुरुषार्थ की पूर्ति इससे होती है या नहीं।
शारीरिक सुख-सुविधाएँ पहुँचाने वाले धर्म-पुण्यों को अभी कुछ समय के लिए रोका भी जा सकता है, वे बाद में भी हो सकते हैं, लेकिन आज की तात्कालिक आवश्यकता तो “विचारक्रांति एवं भावनात्मक नवनिर्माण” ही है सो उसी को आपत्ति धर्म (युगधर्म) मानकर हमें उसी प्रयोजन में व्यस्त हो जाना चाहिए। ज्ञानयज्ञ के कार्य इमारतों की तरह प्रत्यक्ष तो नहीं दिखते और स्मारक की तरह वाहवाही लूटने का प्रयोजन तो पूरा नहीं करते फिर भी उपयोगिता की दृष्टि से ईंट-चूने की इमारतों की तुलना में इन “भावनात्मक परमार्थों” का परिणाम लाख-करोड़ गुना अधिक है। ऐसा इसलिए है कि भावनात्मक परमार्थ कार्यों में चलते फिरते सिद्धपीठों की,शक्तिपीठों की रचना होती है। अभी कुछ दिन पहले ही गुरुदेव के महाप्रयाण को समर्पित अपनी ऑडियो बुक में हमारी सबकी प्रिय और युवा बेटी प्रेरणा कुमारी ने शक्तिपीठों के प्रति अंतर्वेदना को व्यक्त किया था। इतनी छोटी सी बच्ची हमें वह शिक्षा दे गयी जिसे बहुत से वरिष्ठ भी नज़रअंदाज़ किये, आँख मूँद कर देखते पाए गए हैं। सही मानों में यही है युवा शक्ति, युवा रक्त, युवा विचार,युवा अंतरात्मा जिसे प्रोत्साहन देना हर किसी मनुष्य का (अगर वह सच में मनुष्य है तो) परम कर्तव्य है।
वाहवाही के सन्दर्भ में गुरुवर ने भी इस बात को बार बार दोहराया है कि हमें वाहवाही लूटने की तुच्छता से आगे बढ़कर वे कार्य हाथ में लेने हैं जिनके ऊपर मानव जाति का भाग्य और भविष्य निर्भर है। यह प्रक्रिया ज्ञानयज्ञ के संचालक बने बिना और किसी तरह पूरी नहीं होती। आइए हम सब ऑनलाइन ज्ञानरथ के ज्ञानयज्ञ के संचालक बनकर अपने-अपने क्षेत्र के परिजनों को निमंत्रण दें और आग्रह करें कि इस यज्ञ में आहुतियां डालना एक अत्यंत पुण्य का कार्य है। इस छोटे से परिवार के प्रत्येक सदस्य का एक ही लक्ष्य रहे:
“जनमानस का परिष्कार, विकृत चिंतन का निवारण व जनमानस में परिष्कृत दृष्टिकोण का प्रतिष्ठापन”
यही है गुरुदेव का विचारक्रांति अभियान, यही है इस युग का सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण धर्मानुष्ठान- ज्ञानयज्ञ। इस छोटे से परन्तु बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर हमने पिछले सोमवार से आज तक कितने ही लेख लिख डाले और कमेंटस के द्वारा कितने ही सहकर्मियों ने चर्चा करते हुए विस्तृत विश्लेषण किये। यही है ऑनलाइन ज्ञानरथ के लेखों की novelty, जिस भी विषय को हाथ में लेना है उसे सरल बनाते हुए पूरी तरह से समझना है और अंतःकरण में उतारना है। समझ आने के बाद दूसरों को भी समझाना है। इससे कम में काम नहीं चलने वाला। अगर हम ऐसा न कर पाए तो विश्व भर के पुस्तकालयों में अरबों पुस्तकों की भांति गुरुदेव का साहित्य भी book-shelfs पर पड़ा रहेगा, ऐसा तो हम होने नहीं देंगें। यह हमारे गुरु के साहित्य का,गुरु के शरीर के अंगों का घोर अपमान होगा और हमारे लिए डूब मरने जैसा होगा।
परमपूज्य गुरुदेव की युग निर्माण योजना इन्हीं प्रयत्नों में प्राणपण से संलग्न है।गुरुदेव ने केवल एक ही बात हमारे गले उतारने का प्रयल किया है और वह है कि अगर कभी किसी के भी मन में तनिक भी पुण्य-परमार्थ की बात हो तो उसे अस्त-व्यस्त दिशाओं में मत बिखेरें। एक trained शूटर की भांति अपने टारगेट पर केंद्रित होकर शिकार करें और परिणाम देखें। जो लोग लोकसेवा के नाम पर चल रहे उपहासास्पद काम कर रहे हैं उनसे दूर रहें, वह केवल आत्मविज्ञापन के लिए किए गए कार्य हैं।
यही है ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार की कार्यशैली, एक ऐसा परिवार जिसकी दिव्य यज्ञशाला में सभी समर्पित सहकर्मी प्रतिदिन आहुतियां अर्पित करते ज्ञानयज्ञ की लपटों को आकाश छूने के लिए कृतसंकल्पित हैं।
गुरुदेव के साहित्य को पढ़ना, पढ़कर समझना, समझने के बाद औरों को समझाना, readership क्षेत्र का विस्तार करना- यही है कमेंट-काउंटर कमेंट प्रथा का तात्पर्य। किसी कारण अगर यह उद्देश्य पूर्ण नहीं भी होता है तो इतना तो पता चल ही जाता है कि किस- किस ने गुरुदेव के साहित्य को, हमारे लेखों को पढ़ा है, हमारी वीडियोस को देखा है, प्रेरणा बिटिया को ऑडियो बुक्स को सुना है। इस प्रक्रिया से पाठक का अंतःकरण अवश्य ही हिलेगा क्योंकि यह साहित्य है ही ऐसा। इसने बड़े बड़ों को हिला कर रख दिया है। इस प्रकार उठ रही हलचल के निवारण हेतु वह कमेंट करेगा ही करेगा ताकि उसका pressure release हो जाए। हम बहुत ही स्वाभाविक एवं प्राकृतिक बात कर रहे हैं। किसी नौसिखिये गायक को music concert में ले जाइये, दिल को छू जाने वाले संगीत की तान पर उसके होंठ स्वयं ही हिलना आरम्भ हो जायेंगें। किसी नौसिखिये डांसर को dance club में ले जाइये ,स्वयं ही उसके पांव थिरकने लग पड़ेंगें। यह भावनाओं का खेल है जिसमें अंतरात्मा का योगदान होता है। हमारे गुरुदेव की प्रत्येक बात भी भावना स्तर की ही है।
इन्ही शब्दों के साथ हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
To be continued :
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19 जून 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )रेणु श्रीवास्तव -24 , (2) संध्या कुमार-25 , (3) अरुण वर्मा-31 सरविन्द कुमार-32
इस सूची के अनुसार अरुण वर्मा और सरविन्द कुमार गोल्ड मैडल विजेता हैं, दोनों को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद