वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गायत्री नगर प्रयोगशाला है न कि धर्मशाला 

1 जून  2022 का ज्ञानप्रसाद – गायत्री नगर प्रयोगशाला है न कि धर्मशाला 

गायत्री नगर की इस श्रृंखला का यह तृतीय लेख है।  पहले दो लेखों की भांति इसमें भी बहुत ही ज्ञान, मार्गदर्शन और जानकारी शामिल की गयी है।  सबसे महत्वपूर्ण  बात जो इसमें वर्णन की गयी है और जो शीर्षक में  भी highlighted है वह यह है कि गायत्री नगर कोई धर्मशाला नहीं है ,यह एक प्रयोगशाला है जिसमें युगशिल्पियों को गढ़ने के प्रयोग किये जायेंगें। गुरुदेव कह रहे हैं कि मनुष्य में देवत्व और धरती पर स्वर्ग का अवतरण कोरी कल्पना ही तो नहीं है।  आइए हम सब अपने अंदर झांक कर देखें कि 42 वर्ष (2022 ) में अपने गुरु के इस संकल्प में हम कितना सफल हो पाए हैं। आज के ज्ञानप्रसाद में गायत्री नगर में  बसने के selection process को भी जानने का अवसर मिलेगा।  

तो चलें ज्ञानप्रसाद की ओर:    

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गुरुदेव बता रहे हैं कि गायत्री नगर  का उद्घाटन विक्रमी संवत् 2037 के प्रथम दिन से किया जा रहा है। 1980 की चैत्र नवरात्रि (17 से 25 मार्च) इसके लिए शुभ मुहूर्त समझा गया है । जागृत आत्माओं में से कुछ चुने हुए लोगों का एक छोटा सा  परिवार इस नगर में  बसाने की योजना  है । “वसुधैव कुटुम्बकम्” की संरचना का एक छोटा नमूना गायत्री नगर में देव परिवार बसाकर किया जा रहा है।  

यहाँ निवास करने वालों को अपना जीवन-यापन उन चारों कार्यक्रमों को अपनाते हुए करना होगा जिन पर आत्म-कल्याण और लोक कल्याण के स्वार्थ और परमार्थ के दोनों उद्देश्य भली प्रकार पूरे होते हैं । (1) साधना (2) स्वाध्याय (3) संयम (4) सेवा।  इन चार तथ्यों का समन्वय ही सच्चे अर्थो में जीवनोद्देश्य की पूर्ति कर सकता है । प्रस्तुत देवनगर में बसने वालों को शारीरिक नित्यकर्मो के अतिरिक्त इन्हीं चार कार्यक्रमों में निरत रहना पड़ेगा । व्यक्ति की शारीरिक और  मानसिक स्थिति के अनुरुप उनके कार्यक्रम बना दिये जायेंगे।

शरीर से जर्जर और रोगी, अशिक्षित, असंस्कृत एवं अनुशासनहीन, स्वभाव के संकीर्ण, विग्रही लोगों को गायत्री नगर में बसाना असंभव होगा । जो अपनी शारीरिक, मानसिक स्थिति से इस आदर्श संरचना का गौरव बढ़ा सकें और इस वातावरण में अपनेआप  को ढाल सकें वे ही  यहाँ रह सकेंगे । आरम्भ में प्रयोग के लिए चार महीने की  अवधि रखी  गयी है । इतने समय में जिनकी पटरी बैठ जाय वे ही  स्थायी रुप से आ सकेंगे । इस  प्रयोगकाल (Experimental time)  के चार महीनों में सभी को अपना निर्वाह-व्यय स्वयं वहन करना होगा, इसके उपरान्त यदि आर्थिक स्थिति स्वावलम्बन जैसी नहीं है तो ब्राह्मणोचित निर्वाह के लिए मिशन की ओर से भी प्रबन्ध हो सकता है। लेकिन एक बात समझने वाली है कि आर्थिक सहायता उन्हीं के लिए संभव हो पायेगी जिनकी earning नहीं है। कहीं यह न सोच लिया जाए कि मिशन की ओर से दी जा रही आर्थिक सहायता  घर वालों को देने के लिए है। धन  प्राप्त करने का ताना-बाना बुनने वालों को सफलता न मिल सकेगी। आर्थिक रुप से स्वावलम्बी या बिना स्वावलम्बी सभी को अपनी “श्रम साधना” से समान रुप से निरत रहना होगा। आलस्य और प्रमाद बरतने, अनुशासन न मानने  की छूट किसी को भी न मिल सकेगी। जिस किसी के पास भी प्रतिभा है ,कुछ कर गुज़रने की आग है उसके लिए गायत्री नगर में अनेकों प्रकार के  कार्य हैं।  सभी कार्यों का विवरण देना तो संभव नहीं है लेकिन कुछ एक उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं : 

(1) ब्रह्मवर्चस्-शोध-संस्थान के कार्यक्रमों में स्वाध्याय एवं अनुसंधान का विशाल कार्यक्षेत्र पड़ा है । सुशिक्षितों एवं अध्ययनशीलों के लिये वह कार्य रुचिकर रहेगा। 

(2) गायत्री नगर में विभिन्न  स्तर के सत्र निरन्तर चलेंगे जिनमें नवयुग के अनुरुप जीवन ढालने और कार्यक्रम अपनाने का प्रशिक्षण अनवरत चलता रहेगा। जो जीवनदानी प्रशिक्षण प्रदान करने की  क्षमता रखते हों वह परीक्षण  विभाग में योगदान दे सकेंगे। 

(3) गायत्री शक्ति पीठें  देश भर में बड़ी संख्या में बन रही हैं। जो परिजन आश्रम को चलाने एवं कार्यक्षेत्र को जगाने की प्रतिभा से सम्पन्न हैं, वे इन शक्तिपीठों में  थोड़े-थोड़े समय के लिए भेजे जाते रहेंगे। 

(4) जन-जागरण एवं लोकशिक्षण के लिये देश-विदेश में अनगणित  छोटे-बड़े सम्मेलन होते रहते हैं, उनमें वक्ता एवं गायक की भूमिका निभा सकने वाले परिजन  बहुत ही लाभदायक सिद्ध हो सकते हैं।  

(5) गायत्री-नगर में बसे परिवारों के बच्चों तथा महिलाओं को सुशिक्षित करने में सहायक,अध्यापक, प्रौढ़ महिलाएँ भी आगे आ सकती हैं । 

इसी प्रकार के अनेकों  कितने ही छोटे बड़े  काम हैं  जिनमें सेवा साधना भली-प्रकार होती रह सकती है। इसमें अपनी भाव भूमिका, योग्यता बढ़ाने  और सेवा का भी आनन्द मिलता रह सकता है।

जो परिवार के उत्तरदायित्वों से निवृत्त हो चुके हैं उन्हें प्राथमिकता दी जायेगी । पत्नी समेत भी रहा जा सकता है। विशेष परिस्थितियों में छोटे कुटुम्ब वाले भी रह सकते हैं। बच्चों के प्रशिक्षण की गुरुकुल जैसी उपयुक्त व्यवस्था बनाई जा रही है। सभी की दिनचर्या  ऐसी बनाई जा रही है जिसमें समय की बर्बादी तनिक भी न हो। नित्यकर्म के अतिरिक्त उपासना, स्वाध्याय और व्यक्तित्व को सुसंस्कृत  बनाने वाली संयम-साधना का उपक्रम ऐसा सुनियोजित रहेगा जिसमें अव्यवस्था की असुरता को जीवनक्रम में प्रवेश पाने की गुंजायश ही न रहे। अपने हाथ से  भोजन बनाने की सुविधा भी है और सामूहिक भोजनालय की व्यवस्था भी। दैनिक जीवन की अन्य आवश्यकतायें पूरी करने वाले सभी साधन गायत्री नगर में मौजूद हैं।

वरिष्ठों, सेवानिवृत्तों, उपार्जन उत्तरदायित्वों से छुटकारा पाने वालों एवं अविवाहितों के लिये गायत्री नगर में निवास हर दृष्टि से सन्तोष और आनन्द से भरा पूरा रहेगा। यहाँ यह बताने की बात आवश्यक प्रतीत हो रही है कि हम नियम तो बना रहे हैं लेकिन कई बार बहुत ही unique सी स्थिति हो सकती, जिसमें  बातचीत से, स्थिति को समझकर  उसका भी प्रबंध हो  सकता है।  अपवाद( exception ) के रुप में छोटे परिवार वाले भी स्थान पा सकते हैं जिनको अब तक मन-मसोस कर रहना पड़ा है। उपयुक्त वातावरण की तलाश में जो अनेकों  आश्रमों में भटकते फिर रहे थे  और निराश होकर लौटते रहे हैं उनके लिये यह घोषणा देवी-सन्देश की तरह है ।

गायत्री नगर में बसने का selection process: 

इसलिए हम तो यही कहेंगें कि जिनकी मनःस्थिति एवं परिस्थिति इस वातावरण में निवास करने की  हो वे संपर्क  स्थापित करें और प्रक्रिया को आरम्भ करने के लिए आवेदन करें। 

आवेदन के साथ अपना विस्तृत परिचय, अब तक के जीवन क्रम का विवरण, आयु, जाति, स्वास्थ्य, शिक्षा, अनुभव, अभ्यास, सेवा, रुचि आदि की समस्त जानकारी विस्तार पूर्वक लिख दें। साथ ही गायत्री नगर में  रहने पर निर्वाह-व्यय सम्बन्धी व्यवस्था का उल्लेख कर दें। इन आवेदनों पर विचार करने के उपरान्त ही किन्हीं को स्वीकृति दी जा सकेगी। स्मरण रहे प्रथम चरण में चार महीने की अस्थाई स्वीकृति ही मिलेगी। स्थायी निवास का निर्धारण इन चार महीनों  में बैठी ताल-मेल के आधार पर ही सम्भव हो सकेगा।

गायत्री नगर में देव-परिवार बसाने  की व्यवस्था उस लक्ष्य का प्रथम प्रत्यक्ष चरण है  जिसमें मनुष्य में देवत्व के उदय और धरती पर स्वर्ग  के अवतरण का संकल्प प्रकट किया जाता रहा है। स्थान सीमित है । भावभरी आत्मायें इसमें प्रवेश पाने की बात सोचें और तैयारी करें।

जनमानस  के  परिष्कार की  प्रक्रिया जब प्रौढ़ स्थिति  तक पहुंचेगी तो प्रशिक्षण और परिवर्तन  का तंत्र भी  मानवी  संख्या  तथा परिस्थिति को  ध्यान में रखते हुए  हुए समर्थ एवं विशाल बनाना पड़ेगा। आरम्भ तो छोटे से ही होता है। अग्नि प्रज्वलत के लिए माचिस या चिंगारी  ही अग्रणी होती है। उद्यान बाद  में दृष्टिगोचर  होते हैं, पहले तो नर्सरी ही  बनती है। भव्य भवन खड़े होने से पहले  उनके नक़्शे  या मॉडल ही सामने आते हैं। गायत्री नगर की गतिविधियों को नव युग का श्रीगणेश ही कहना चाहिए।

क्या धरती पर स्वर्ग  का अवतरण सम्भव है य कोरी कल्पना ही है ?

धरती पर स्वर्ग  का अवतरण सम्भव है या नहीं? मनुष्य में देवत्व का उदय कोरी कल्पना ही  है या संभव  भी ? इन प्रश्नों का उत्तर वाणी से देने का समाधान नहीं होगा। जन-जन को विश्वास दिलाने और उत्साह बढ़ाने के लिए “प्रयोगशाला” का आश्रय  लेना पड़ेगा। परीक्षण (Experiment) और प्रतिफल( Result)  ही समाधान कारक हो सकते हैं। प्रश्नों के इस कोलाहल में  मीडिया में इतना कुछ कहा और दिखाया गया है कि लोगों  को कानों पर विश्वास नहीं रहता । अब स्थिति ऐसी बन चुकी है कि प्रमाणिकता की  मान्यता आँखों  के निर्धारण पर आ टिकी है। ऐसी दशा में विज्ञान को ही  प्रयोगशालाओं का आश्रय नहीं लेना पड़ रहा है वरन् व्यवहार और निर्धारण की  प्रामाणिकता सिद्ध करने के लिए भी प्रयोगशालाओं की शरण में ही जाना पड़ेगा।

विश्व परिवार के लिए  किस प्रकार के  प्रशिक्षण और  प्रचलन निर्धारण किये जाएँ ,उनका परीक्षण भी कसौटी पर कसा हुआ है। इसी  प्रयोजन के लिए गायत्री नगर बना है।देव परिवार के लिए गायत्री नगर बना रहें हैं। सबसे पहले तो  देव परिवार को  बसाया जाना है। देवालयों में यह प्रक्रिया  अपनाई जाती है। इमारत बनती है, प्रतिमा गढ़ी जाती है, पूजा  वेदी तक पहुँचाई जाती है। इतना सब कर  चुकने के उपरान्त ही पड़ितों को प्राण-प्रतिष्ठा की सामग्री लेकर वहाँ पहुँचना होता है। प्राण-प्रतिष्ठा का कृत्य कर  चुकने के उपरान्त ही प्रतिमा की अराधना आरम्भ होती है। अगर गायत्री नगर को  देवालय माना जाय तो देव परिवार को उसकी प्राण प्रतिष्ठा कह सकतें है।

जब हम गायत्री नगर को बसाने की बात कर रहे हैं तो हम कहना चाहेंगें कि  गायत्री नगर में भीड़ भरना कठिन नहीं था। इशारा करते ही 24 लाख के  परिवार( 1980 के आंकड़ें) के कितने ही सदस्य यहाँ  आ जाते कि  कहीं तिल रखने की भी जगह न मिलती।  पर हमें  वैसा नहीं करना है। धर्मशाला,पाठशाला  और प्रयोगशाला, में  क्या अन्तर होता है ?  यह जानने वाले ही  समझा सकते हैं कि गायत्री नगर न मुसाफिर खाना है और न सराय। उसका ढाँचा नवयुग के अनुरुप मनुष्य  ढालने की फैक्ट्री का स्वप्न लेकर ही खड़ा किया गया है। उत्पादन आरम्भ होने से पहले अब  कुशल कारीगरों की तलाश हो रही है।

अगले दिनो सामान्य नागरिकों को भी मानसिक आरोग्य लाभ करने के लिए बुलाया जायगा। पर इससे पहेले डाक्टर, कम्पाउण्डर, ड्रेसर,हेल्पर, नर्स, चौकिदार, सफाईदारों की व्यवस्था होनी आवयश्क है। मरीज की भीड़ आ  जाये और  न चिकित्सक हों, न व्यवस्थापक हो , तब तो सुधार क्या होगा। पूरा नरक ही बन जायगा। प्रीतिभोज के लिए अतिथियों को बुलाने में इतनी कठिनाई नहीं होती, जितनी कि हलवाई तथा खाद्य सामग्री की व्यवस्था बनाने में होती है। गायत्री नगर की  प्रशिक्षण प्रक्रिया से लाभ उठाने के लिए आने वालों की कमी नहीं रहेगी। सुसंस्कारिता की घोर आवश्यकता समझी जा रही है जिसके  बिना  व्यक्ति भूत  और घर  शमशान बना हुआ है। सुधार का विश्वास दिलाया जा सके तो भले मनुष्य लाखों करोड़ो की संख्या में “शान्ति के आश्रम स्थल” में प्रवेश पाना  चाहेगें।

अभी बहुत कुछ बाकि है : Stay tuned

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इन्ही शब्दों के साथ कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे । हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।

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31 मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची के अनुसार संध्या कुमार जी (28  ),अरुण वर्मा (25  ), पूनम कुमारी (25 ) और प्रेरणा कुमारी ( 24 ) ने संकल्प पूर्ण किया है  और संध्या कुमार जी  गोल्ड मैडल विजेता हैं। संध्या जी  हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद 

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