19 मई 2022 का ज्ञानप्रसाद-गुरुदेव द्वारा किये गए दो जल उपवास की विस्तृत जानकारी 9
जल उपवास की चल रही इस दिव्य श्रृंखला का नौंवा एवम अंतिम लेख प्रस्तुत करते हुए मन में एक अद्भुत सी संतुष्टि हो रही है। संतुष्टि इस लिए कि कई तथ्यों का पता तो चला ही है,लेकिन उस गुरु को बार – बार नमन वंदन करने को मन करता है जिन्होंने कार्यकर्ता की गलती को स्वीकारते हुए सारा दोष अपने ऊपर ले लिया। इतना ही नहीं जल उपवास के रूप में प्रायश्चित भी किया और संस्थाओं के प्रमुखों के लिए उदाहरण भी प्रस्तुत कर दिया । लेख के अंत में निम्नलिखित पंक्तियाँ अवश्य पढ़ें:
“यह जल उपवास उस विचलन के प्रायश्चित रूप में भी है। यह मान लेना चाहिए कि यह प्रायश्चित किसी सामाजिक और पारमार्थिक अभियान के “प्रमुख” की आचरण मर्यादा के रूप में भी जाना जाएगा।” शत शाट नमन है ऐसे गुरु को।
तो चलते हैं लेख को ओर, शुक्रवार को तो वीडियो ही होगी, एक ऐसी वीडियो जिसे देखकर गुरुभक्ति और भी प्रगाढ़ होगी।
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संरक्षण दोष परिमार्जन की प्रक्रिया गुरुदेव के जल उपवास के रूप में प्रत्यक्ष हो रही थी।
जल उपवास के दिनों में गुरुदेव तीन चार घंटे ही परिजनों से मिलते थे। यों उनका जीवन खुली किताब की तरह सबके लिए सुलभ था। कोई भी व्यक्ति उन तक अपनी पुकार वैखरी वाणी से भी पहुंचा सकता था। वाणी के चार प्रकार हैं -वैखरी,परा,पश्यन्ति और मध्यमा। पांच अक्टूबर से जल उपवास आरंभ होने पर गुरुदेव से मिलने पर थोड़ी रोक लगाई गई। शान्तिकुंज के कायकर्ताओं और गायत्री परिवारजनों के लिए चार घंटे से ज्यादा समय और श्रम देने वालों तथा आत्मिक विकास के लिए प्रखर साधना कर रहे परिजनों के लिए भी मिलने का समय सीमित कर दिया गया। परिजनों तक जल उपवास की जैसे-जैसे सूचना पहुंचती गई, उनका आना शुरु हो गया। यों उन्हें अपने क्षेत्र में ही रहने और शान्तिकुज न आने के लिए कह दिया गया था पर अपनी मार्गदर्शक सत्ता को इस तरह तपते हुए न देखना किसे सहन हो सकता था। उनके आने का सिलसिला शुरु हुआ तो धीरे-धीरे बढ़ता ही गया। गुरुदेव दोपहर बाद नियत अवधि में उनसे मिलते भी रहे। मिलने और दर्शन करने से भी अधिक भावभरा दृश्य उस मुख्य भवन के सामने निर्मित हो गया था जहां से गुरुदेव के कक्ष की खिड़की दिखाई देती थी। मालूम था कि गुरुदेव परामर्श कक्ष में लेटे हुए हैं या एकांत साधना कर रहे हैं।
जल उपवास का प्रभाव गुरुदेव के स्थूल शरीर पर धीरे-धीरे दिखाई देने लगा था। कमजोरी बढ़ने लगी। आश्रम में विद्यमान चिकित्सक उनके रक्तचाप, हृदयगति और तापमान आदि की जांच करते। उन्होंने पाया कि सब कुछ सामान्य है। 29 अक्टूबर तक वजन, रक्तचाप आदि पर कोई भी असर दिखाई नहीं दिया। चिकित्सकों को जो गायत्री परिवार के सदस्य और कार्यकर्ता भी थे आश्चर्य हुआ कि गुरुदेव कमज़ोर तो दिखाई दे रहे हैं पर टेस्ट सभी नार्मल। इस बारे में जब सभी ने पूछा तो गुरुदेव ने कहा,
“सक्रियता में कमी आई है इसलिए शरीर कमज़ोर दिखाई देता है, वस्तुत: है नहीं।”
यह सुनकर चिकित्सकों और कार्यकर्ताओं को संतोष हुआ। लेकिन उनमें एकाध ऐसे भी थे जिनके दिमाग में कुछ और ही चल रहा था।
जल उपवास का कारण और उद्देश्य:
गुरुदेव ने जल उपवास के कारण बताते हुए पांच अक्टूबर के अपने संदेश में कहा था कि इसका एक उद्देश्य साधना विज्ञान की सामयिक शोध (Current research of Science of Sadhna) और उसकी स्थापना करना है। गुरुदेव के कथानुसार साधना पद्धति का निर्धारण करते समय ध्यान रखना होगा कि वह हर साधक की मन:स्थिति,परिस्थिति, स्तर और उद्देश्य के अनुरूप हो। गुरुदेव के उत्तर को सुनकर भी जिन कार्यकर्ताओं की भावुकता में कुछ अन्य विचार आए थे वे गुरुदेव की ओर टकटकी लगा कर देख रहे थे। लेकिन गुरुदेव तो अंतर्यामी हैं, उन्हे बिना कुछ कहे ही सब पता चल गया। जब गुरुदेव की दृष्टि उन पर पड़ी, गुरुदेव ने कहा,
“तुम लोग जो सोच रहे हो, ऐसा है नहीं । सामयिक युग साधना का निर्धारण तो हो चुका है बेटा।”
वे कार्यकर्ता देखते ही रह गए और उन्होंने कुछ नहीं कहा। गुरुदेव ने आगे कहा,
“इन रहस्यों को अधिकतर लोग समझ नहीं पायेंगे। कोई भी साधना केवल पद्धति (method) रच देने से जीवंत नहीं हो जाती। हज़ारों लाखों साधक उसका अनुष्ठान करते है और सूक्ष्म जगत में हलचल उत्पन्न की जाती है तब उस विधान में प्राणों का संचार होता है।”
गुरुदेव ने इसीलिए एक लाख साधकों से स्वर्ण जयंती विशेष साधना करवाई थी। गुरुदेव के यह कहने के बाद वे कार्यकर्ता “स्वर्ण जयंती विशेष साधना” के रूप में संपन्न हो रहे साधना अनुसंधान का हिसाब लगाने लगे। 24-24 लाख गायत्री मंत्र के चौबीस महापुरश्चरण प्रतिदिन, उतने ही या उससे भी अधिक साधकों द्वारा सामूहिक रूप से प्रतिदिन की जाने वाली विपुल (full) साधना, उन साधकों द्वारा व्रत, उपवास, तप और संयमित-अनुशासित जीवनचर्या। इन सबके साथ हिसाब में नहीं आने वाला विस्तार और साथ में ही गुरुदेव द्वारा किया जा रहा अद्भुत, विलक्षण और रहस्यपूर्ण जल उपवास। रहस्यपूर्ण इसलिए कि गायत्री परिवार के सदस्यों में शायद ही किसी को इस अनुष्ठान का सारांश समझ आया हो। परिजन अपनी-अपनी तरह से भी व्याख्याएं कर रहे थे।
गुरुदेव द्वारा साधकों का शुद्धिकरण एवं प्रायश्चित:
मुंबई से हरिद्वार आने वाली देहरादून एक्सप्रेस में बारह साधक रवाना हुए थे। बड़ोदरा, रतलाम और कोटा आते-आते उनकी संख्या 68 हो गई। सभी साधक अलग-अलग डिब्बों में थे और वे स्वर्ण जयंती विशेष साधना भी कर रहे थे। शाम के समय गाड़ी कोटा से पहले झालावाड़ के आसपास पहुंची थी कि साधकों ने सायंकालीन उपासना आरंभ की। स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहे पांच-सात परिजनों ने ही एक दूसरे को पहचाना। झालावाड़ में गाड़ी ज्यादा रुकती नहीं थी। गाड़ी में और भी परिजन थे। थोड़ी देर के स्टापेज की वजह से एक दूसरे के संपर्क में नहीं आए। दिल्ली में गाड़ी ठीक सूर्योदय के समय पहुंची-बल्कि कुछ समय पहले ही। दिल्ली में गाड़ी करीब 40 मिनट रुकती थी। इस बीच कुछ साधकों ने फटाफट नहाने का जुगाड़ कर लिया और स्नान आदि से निवृत्त होकर प्रात:कालीन साधना के लिए बैठ गए। यहाँ पता चला कि मुंबई से दिल्ली तक 40-50 साधक इकट्ठे हो गए हैं। सुबह की साधना- उपासना के बाद ज्यादातर साधक एक ही कम्पार्टमेंट में आ गए और गुरुदेव के जल उपवास के बारे में चर्चा करने लगे। इस चर्चा में जल उपवास के कारणों पर भी बात चली और 3-4 साधकों ने उन तत्वों के बारे में चिंता एवं उत्सुकता जगाई जिसके कारण गुरुदेव upset हुए थे। चर्चा ज्यादा चल नहीं सकी क्योंकि कुछ कार्यकर्ताओं ने तुरंत उत्तर दिया- हम में से कौन है जो शत प्रतिशत गुरुदेव की निर्धारित कसौटियों पर खरा उतरता हो। प्रत्येक में विचलन (deviation) है। क्या हम ऐसा मान लें कि गुरुदेव उस विचलन दोष को दूर करने के लिए अभी यह साधना कर रहे हैं क्योंकि किसी भी साधना पद्धति में फेर बदल करने से परिणाम उलट पलट होने का खतरा रहता है।
गुरुदेव ने कभी भी किसी विचलन का कोई संकेत नहीं किया। यद्यपि आश्रम में और बाहर भी कई परिजनों को इस कार्यकर्ता के बारे में पता चल गया था। क्षेत्रों में प्रचार के लिए भेजी गई टोली का संरक्षक बनाकर भेजे गए उस कार्यकर्ता ने प्रसंगों में अनैतिक आचरण किया था। जब गुरुदेव को इस बात का पता चला तो उन्होंने उसे अपनी भूल मानने और प्रायश्चित करने के लिए कहा। कार्यकर्ता भूल मानने और प्रायश्चित करने के बजाय भाग खड़ा हुआ। कार्यकर्ता के भागने की सूचना मिलने पर गुरुदेव की पहली प्रतिक्रिया थी,
“मेरे आसपास कोई इतना कमज़ोर आदमी काम करता रहा यह अकल्पनीय है। टीम का कोई सदस्य यदि चूक करता है तो उसके प्रमुख की जवाबदेही होती है। विचलन (भागने) का प्रायश्चित किया जाना चाहिए। उस कार्यकर्ता में साहस नहीं है तो जवाबदेही और भी बढ़ जाती है और यह जिम्मेदारी मेरी है। यह जल उपवास उस विचलन के प्रायश्चित रूप में भी है। यह मान लेना चाहिए कि यह प्रायश्चित किसी सामाजिक और पारमार्थिक अभियान के “प्रमुख” की आचरण मर्यादा के रूप में भी जाना जाएगा।”
गुरुदेव ने जल उपवास के कुछ कारणों और घटनाओं का उल्लेख किया था जिन्हे परिजनों ने अपने से जुड़ी मान लिया और संतोष किया।
जल उपवास की दिव्य लेख श्रृंखला का समापन करते हुए हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
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18 मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )सरविन्द कुमार -29 , (2) संध्या कुमार-24, (3) अरुण वर्मा-24
इस सूची के अनुसार सरविन्द कुमार जी गोल्ड मैडल विजेता तो हैं ही लेकिन हम चाहेंगें कि संध्या कुमार जी और अरुण वर्मा जी को भी गोल्ड मैडल प्रदान किया जाये। तीनों ही समर्पित सहकर्मियों को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद