18 मई 2022 का ज्ञानप्रसाद- 1 लाख साधकों द्वारा “स्वर्ण जयंती की विशेष साधना”
17 मई 2022 के ज्ञानप्रसाद में गुरुदेव जल उपवास का उद्देशय और एक विशेष प्रकार की साधना की चर्चा कर रहे थे। गुरुदेव ने इस साधना को “स्वर्ण जयंती की विशेष साधना”- का नाम दिया। हमें भी जानने की जिज्ञासा हुई कि इस साधना की विशेषता क्या थी और जल उपवास के साथ क्या सम्बन्ध था, आज के लेख में इस विषय को समझने का प्रयास करेंगें।
साधना स्वर्ण जयंती
वर्ष 1975 की गीता जयंती 14 दिसंबर को थी इस दिन गुरुदेव ने कहा कि अगले वर्ष वह एक लाख साधकों को चुनेंगे और उन्हें गायत्री की विशेष साधना सिखाएंगे। यह घोषणा शांतिकुंज परिसर में आयोजित एक कार्यक्रम में की गई थी। गीता जयंती पर पर्व देवता के पूजन के समय की गई इस घोषणा को सुनकर वहां उपस्थित परिजन थोड़े चकित हुए। समारोह में शिविरार्थियों के अलावा आश्रम में निवास कर रहे कार्यकर्ता और बाहर से आए परिजन भी थे। उस समय गायत्री परिवार का तेजी से विस्तार हो रहा था और परिजनों को आश्चर्य इसलिए हो रहा था कि एक लाख साधकों की ही सीमा क्यों? 1975 में गायत्री परिवार के सदस्यों की संख्या 15-20 लाख के आसपास थी। सामान्य दृष्टि में उचित तो यह है कि साधकों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। एक लाख साधकों का मंडल बनाने और उन्हें विशिष्ट साधना में नियोजित करने की सूचना आश्रम के बाहर विभिन्न स्थानों, शहरों में काम कर रहे कार्यकर्ताओं तक भी पहुंची।
गुरुदेव ने उस आयोजन में कहा था कि अब से 50 वर्ष पहले (1926) उन्होंने अपनी मार्गदर्शक सत्ता की प्रेरणा से और उसी के सान्निध्य में चौबीस वर्ष तक चलने वाले चौबीस महापुरश्चरण आरंभ किए थे। उसी मार्गदर्शक सत्ता का संदेश है कि एक लाख साधकों को उस स्तर के तो नहीं, लेकिन एक विशिष्ट साधना प्रयोग में नियोजित किया जाए। इस प्रयोग से एक लाख साधकों द्वारा सामूहिक रूप से 24 लाख मंत्रों के 24 महापुरश्चरण प्रतिदिन संपन्न किए जाने थे। बेसिक गणित के अनुसार एक वर्ष में 24 लाख गायत्री मंत्र करने के लिए प्रतिदिन 60 मालाएं जपने की आवश्यकता है।
सामूहिक प्रयास से होने वाले प्रभाव से हमारे पाठक भली भांति परिचित हैं। अभी दो दिन पूर्व ही 15, 16 मई 2022 को बुद्धपूर्णिमा के पावन पर्व पर सम्पूर्ण विश्व में सामूहिक यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें करोड़ों साधकों ने अपने-अपने घरों में ही यज्ञ सम्पन्न किये। वर्ष 2022 की बुद्धपूर्णिमा को यज्ञ दिवस के रूप में मनाया गया।
परमपूज्य गुरुदेव के करकमलों से लिखित पुस्तक “सामूहिक यज्ञ योजना” एक बहुत ही सरल लेकिन उच्च कोटि की पुस्तक है। गुरुदेव इसके cover page पर ही लिखते हैं कि जिस प्रकार आजकल यंत्रों (मशीनों) की सहायता से भौतिक जीवन के अनेकों सुख साधन उत्पन्न किये जाते हैं उसी प्रकार प्राचीन काल में मन्त्रों के द्वारा मानव जीवन की सभी आवश्यकताओं को सरल करने का विज्ञान विकसित हुआ था। शब्द विद्या एक बड़ी विद्या है। किस शब्द के बाद क्या शब्द कितने उतार चढ़ाव से बोला जाये तो उससे कौन सी ध्वनि तरंगें (sound waves) निकलती हैं और उनका सूक्ष्म प्रकृति पर तथा मनुष्य की भीतरी चेतना पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसी रहस्य को जानने में ऋषियों ने हज़ारों वर्षों तक परिश्रम किया था और शब्द विद्या के वैज्ञानिक तथ्यों को जानकर मन्त्र शास्त्र की रचना की थी। यही मन्त्र अगर सामूहिक तौर से उच्चारण किये जाएँ तो इनका प्रभाव कितने गुना होगा और प्रत्येक साधक को कितना अंश मिलेगा, इसका अनुमान हम स्वयं ही लगा सकते है। हमें तो इस सन्दर्भ में क्रिकेट मैच या फिर किसी और मैच का उदाहरण समझ में आता है। मैच के जीतने और ट्रॉफी प्राप्त करने का श्रेय सभी खिलाड़िओं को जाता है। कई बार गोलकीपर एक भी गोल नहीं कर सकता लेकिन उसके योगदान को तो नकारा नहीं जा सकता। यज्ञशाला में स्वयंसेवकों की ड्यूटी सामग्री प्रदान करना होता है,उन्हें शायद मन्त्र उच्चारण करने का समय ही न मिलता हो लेकिन योगदान और श्रेय तो उन्हें भी मिलता है। इसी पुस्तक में गुरुदेव ने बहुत ही सरलता से समझाया है कि 24 लाख के अनुष्ठान के लिए 5 या 9 कुंडीय यज्ञशाला में कितने साधक बैठने चाहिए, उनका बैठने का क्रम क्या होना चाहिए , कितनी आहुतियां देनी चाहिए और कितने समय में यह साधना पूरी की जा सकती है। हम जानते हैं हमारे पाठकों को इस विषय में बहुत रूचि है लेकिन अब हम “स्वर्ण जयंती की विशेष साधना” की ओर बढ़ने की आज्ञा लेते हैं ।
गुरुदेव ने इस साधना का उद्देश्य बताते हुए कहा कि जितनी साधना उन्होंने 24 वर्ष में की थी, उतनी ही साधना वह अपने बच्चों से एक ही दिन में करवाना चाहते हैं। यह अभियान आगामी वसंत पंचमी (5 फरवरी 1976) से आरंभ किया जाना था।
इस विशिष्ट साधना प्रयोग के लिए गुरुदेव ने एक विशेष नाम दिया था। “स्वर्णजयंती वर्ष की विशेष साधना।” स्वर्ण जयंती वर्ष नाम 50 वर्ष पूर्व गुरुदेव की आरंभ की गई महापुरश्चरण श्रृंखला को ध्यान में रखकर दिया गया था। इस विशिष्ट संबोधन का उद्देश्य प्रतिदिन होने वाले महापुरश्चरणों में पर्व समारोह का उत्साह भरना भी था। एक लाख साधक गुरुदेव के शब्दों में युग की कुण्डलिनी जगाने का पुरुषार्थ कर रहे थे। इस साधना का संरक्षण हिमालय के गुह्य क्षेत्र में बैठी, तप रही दिव्य आध्यात्मिक सत्ताएं कर रही थीं। संरक्षण दोष परिमार्जन की प्रक्रिया परमपूज्य गुरुदेव के जल उपवास में प्रतक्ष्य हो रही थी।
गुरुदेव के इस आह्वान और प्रयोग की सूचना क्षेत्रों में फैलते ही परिजनों के पत्र आने लगे। कुछ परिजन तो अगले दो चार दिनों में शान्तिकुंज आने लगे। वे पत्रों द्वारा या खुद यहां आकर पूछ रहे थे कि एक लाख साधकों में उनका भी नाम है या नहीं। यदि नहीं है तो आग्रह था कि उनका नाम भी समिलित किया जाए।
एक लाख साधकों का चयन वसंत पंचमी तक कर लिया जाना था। गुरुदेव ने कहा था कि चयन कर लिया गया है। यह अभियान हिमालय के गुह्यप्रदेश में विश्व के आध्यात्मिक और उनसे प्रेरित लौकिक क्रियाकलापों का संचालन कर रही दिव्य शक्तियों द्वारा संचालित किया जा रहा है। वे स्वयं सिर्फ मार्गदर्शन करते हुए दिखाई भर दे रहे हैं । एक लाख साधकों के चुनाव, साधन, अनुष्ठान, संरक्षण और दोष परिमार्जन की व्यवस्था हिमालय के उन्हीं दिव्य पुरुषों द्वारा की जा रही है। जरूरी नहीं कि एक लाख साधक ही यह साधना क्रम अपनायें। जिनकी भी निष्ठा और उत्कंठा हो वे इस उपासना अनुष्ठान में लगें। सफलता और सार्थकता की कसौटी यह है कि साधना क्रम बिना रुके चलना चाहिए और वह संपन्न भी नियत समय पर हो जाए।
साधना क्रम का विधान अगले महीने जनवरी 1976 की अखण्ड ज्योति में भी छपा। इससे स्पष्ट हो गया कि विधि विधान को गुप्त रखने जैसी कोई प्रक्रिया नहीं है। वह सबके लिए खुला है। नियत समय पर, निश्चित समय तक इसे संपन्न करना आवश्यक था। समय सूर्योदय से पूर्व करीब दो घड़ी अर्थात पैंतालीस मिनट पहले आरंभ करने का था। सूर्य उदय होने तक इसे संपन्न कर लिया जाना चाहिए । इस साधन विधान को अपनाने के लिए कार्यकर्ताओं में अदभुत उत्साह उभरा।
शांतिकुंज में समाचार मिल रहे थे कि शाखाओं में अखंड ज्योति के जनवरी 1976 अंक में प्रकाशित ‘अपनों से अपनी बात’ स्तंभ का गीता रामायण की तरह पाठ किया जा रहा है। जिन लोगों के पास पत्रिका नहीं पहुँचती थी, वे भी विशेष साधना में भागीदार बन रहे हैं । उन्होंने अपने लिए ‘स्वर्ण जयंती वर्ष की विशेष साधना’ लेख की photocopies तैयार करा लीं हैं । जिनके लिए यह संभव नही हो सका उन्होंने लेख की नकल कर प्रतिलिपि बना ली। वसंत पंचमी में अभी समय था। साधना का विधिवत आरम्भ उसी दिन होना था, लेकिन उत्साही साधकों ने विधि का पता चलते ही अभ्यास आरंभ कर दिया। यह मान ही लिया कि विशिष्ट साधकों की मंडली में उनका नाम तो शामिल होगा ही।
पश्चिम बंगाल में दक्षिणेश्वर मंदिर के पास कृष्णानंद चट्टोपाध्याय नामक कार्यकर्ता गीता जयंती पर शान्तिकुंज में ही थे। वहां उन्होंने गुरुदेव का संदेश सुना था। शिविर से लौटते ही उन्होंने साधना आरम्भ कर दी। विधि विधान तब मालूम नहीं हुआ था। कृष्णानंद ने दो वर्ष पहले प्राण प्रत्यावर्तन साधना शिविर में भी भाग लिया था। उस समय गुरुदेव जिस साधना का अभ्यास करा रहे थे, उसे ही जारी रखा। बीच में थोड़ी शिथिलता आई थी, उसे दूर कर लिया। महाशिवरात्रि के दिन उन्होंने अपने आपको स्वर्ण जयंती साधना में निरत होने वाले साधकों की मंडली का सदस्य मान लिया और प्रात: सायं दोनों समय भगवान सविता देव को साक्षी मानते हुए भगवती गायत्री महाशक्ति की आराधना करने लगे। जब तक नया विधान मालूम नहीं हो गया, तब तक इसे ही चलाते रहें। इस बीच कृष्णानंद को एक अनूठा अनुभव हुआ।
मंदिर के पास जिस बस्ती में कृष्णानंद रहते थे, वहां पास में एक बगीची थी। बगीची में एक छोटा सा मंदिर भी था। प्रांगण में भजन कीर्तन के कार्यक्रम होते रहते थे। कभी कभार सत्संग आदि का आयोजन भी होता। महाशिवरात्रि बीते 3-4 दिन हुए होंगे। बगीची में कुछ भक्त श्रद्धालु एकत्र हुए। वे किसी संत में दैवी गुणों की चमत्कारी क्षमताओं की संभावना के बारे में चर्चा कर रहे थे। कुछ लोगों का मानना था कि चमत्कारी क्षमताएँ होती हैं और कुछ का कहना था कि नहीं होती। चर्चा बढ़ते-बढ़ते विवाद में बदल गई और एक बहस का रूप धारण कर गई। उपस्थित श्रद्धालु ज़ोर-ज़ोर से बोलने लगे और अपना पक्ष बताने लगे। विवाद और जोर पकड़ता कि उस स्थल पर एक साधु ने प्रवेश किया और लगभग फटकारते हुए से कहा, ‘यह बहस बंद करो। ईश्वरीय गुणों की संभाव्यता के बारे में चर्चा से क्या लाभ?’
उन साधकों या बुद्धिजीवियों में से एक ने कहा, “हम ईश्वर के दिव्य गुणों की नहीं, उत्तरांचल में विद्यमान एक संत के गुणों की चर्चा कर रहे हैं। उनके बारे में बहुत लोगों का मानना है कि वे अलौकिक महापुरुष हैं और संकल्प मात्र से कुछ भी करने में सक्षम हैं।”
ऐसी थी हमारे गुरुदेव की प्रसिद्धि ! कृष्णानंद तो गुरुदेव को जानते थे, उनके साथ सत्र किये थे लेकिन बगीची में एकत्र हुए श्रद्धालुओं को गुरुदेव के बारे में कैसे पता था।
ऐसे संस्मरण तो कई हैं लेकिन हम अपनी लेखनी को यहीं विराम देने की आज्ञा लेते हैं और कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
To be continued: क्रमशः जारी
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17 मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )सरविन्द कुमार -26 , (2) संध्या कुमार-24, (3) अरुण वर्मा-26
इस सूची के अनुसार तीनों ही competitor गोल्ड मैडल विजेता हैं, सभी को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद