16 मई 2022 का ज्ञानप्रसाद- गुरुदेव द्वारा किये गए दो जल उपवास की विस्तृत जानकारी 7 आज का लेख आरम्भ करें उससे पहले उन सभी सहकर्मियों का धन्यवाद् करना चाहते हैं जिन्होंने हमारी संक्षिप्त यात्रा के लिए शुभकामना सन्देश से ऊर्जा प्रदान कराई। हाँ हम मानते हैं कि हमने व्यस्तता के कारण अनुशासन की अवहेलना की है जो शुभरात्रि सन्देश न भेज सके और न ही सूचित कर सके, इसके लिए क्षमा प्रार्थी हैं। दो मास के Vancouver प्रवास के बाद कल हम अपने घर वापिस आ गए हैं। 4000 किलोमीटर दूर Vancouver में हमारे बड़े बेटे का परिवार है।
आज जब लेख लिखने की भूमिका बना रहे थे तो कई प्रकार के विचारों का आदान प्रदान हो रहा था। एक विचार जो हमें युवावस्था के दिनों में ले गया वह था थिएटर में मूवी देखने का वातावरण। मूवी में मध्यांतर के बाद जब सिनेमा हाल में जाते थे तो आगे की कहानी जानने की इतनी उत्सुकता होती थी कि प्रतीक्षा करना कठिन होता था। हाथ में पॉपकॉर्न, अँधेरे में अपनी सीट ढूंढना और साथ में ही पर्दे पर देखते हुए कई बार किसी से टकरा भी जाना य गिर जाना। ठीक उसी प्रकार की स्थिति आज हमारे अन्तःकरण में थी जब हमने मथुरा के जल उपवास पर लिए मध्यांतर के बाद पुस्तकों के पन्ने उलटने आरम्भ किये। मई की 2 तारीख से आरम्भ की हुई जल उपवास की दिव्य शृंखला में क्या कुछ ग्रहण किया हम सबके समक्ष है। जल उपवास के विशाल विषय के स्वाध्याय में से मिले bonus के रूप में कई रत्नों की जानकारियां भी कोई कम न थीं। इन में से मायावती आश्रम के गम्भीरानन्द जी, गीताप्रेस गोरखपुर के गोयन्दका जी, मौनी बाबा की कथा,सहस्रांशु यज्ञ जैसी ऐसी स्मृतियाँ हैं जिन्हें अनेकों बार पढ़ने के बाद भी ऐसा अनुभव होता है कि बार-बार पढ़ते ही जाएँ। पिछले पन्ने जब भी खोले यह दिव्य ट्रेलर नेत्रों के आगे चलचित्र की भांति चलने लगे। यही है हमारे गुरुदेव के दिव्य साहित्य की विशेषता – एक अटूट छाप सी छोड़ जाते हैं।
हम पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं कि मध्यांतर के बाद वाली कथा- “युगतीर्थ शांतिकुंज का 1976 वाला जल प्रवास” और भी रोचक, दिव्य और ज्ञानवर्धक होने वाला है। आज के लेख में कन्हैयालाल जी की व्यथा का वर्णन रोचक तो है ही लेकिन इतनी दूर रहते हुए, संपर्क साधनों के आभाव में परिजनों को गुरुदेव के जल उपवास की अनुभूति कैसे हो गयी। शायद इसी को कहते हैं “ह्रदय का कनेक्शन”
तो प्रस्तुत है इस शृंखला का सातवां पार्ट
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शायद 2 अक्टूबर 1976 का दिन ही होगा जब गुरुदेव ने शांतिकुंज स्थित अपने कक्ष में गोष्ठी के दौरान चौबीस दिन के जल उपवास की घोषणा कर दी। इस घोषणा का पता शांतिकुंज के अधिकतर कार्यकर्ताओं को भी नहीं चला। यूँ तो परिजन इस तथ्य से परिचित रहे हैं कि वर्ष की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का निर्धारण वसंत पर्व पर ही होता रहा है लेकिन 1976 का वसंत पर्व जो 5 फरवरी को था, इस तरह का कोई संकेत नहीं था। किसी को कुछ नहीं पता था कि गुरुदेव निकट भविष्य में इतना बड़ा निर्णय लेने वाले हैं।
वैसे तो परिजनों को गुरुदेव के स्वास्थ्य और शरीर के बारे में अधिक चिंता नहीं थी क्योंकि गायत्री तपोभूमि मथुरा की स्थापना के समय भी 24 दिन का जल उपवास किया था और उस तप साधना के प्रत्यक्षदर्शी परिजन अब भी मौजूद थे। वे बताते थे कि
“उस समय गुरुदेव के शरीर में कैसा अद्भुत प्राण प्रवाह बहता था। जल उपवास के दौरान गुरुदेव अक्सर कंबल या चादर ओढ़े रहते थे, लकड़ी के तखत पर सोते थे और किसी को भी अपने पैर नही छूने नहीं देते थे। परिजनों के प्रति दुलार व्यक्त करते हुए उनके सिर पर हाथ रखने, थपथपा देने वाला स्पर्श तो उन्होंने बंद कर दिया था। उन परिजनों का मानना था कि गुरुदेव के चुंबकीय स्पर्श से इस बार भी वंचित रहना पडेगा।”
वैसे तो हम इस प्रतिबंध की चर्चा अपने 2 मई 2022 वाले लेख में कर चुके हैं लेकिन फिर से रिपीट करना कोई अनुचित नहीं होगा। इसी बहाने पाठकों को revision का अवसर मिल जायेगा।
पटना के केदारनाथ सिंह जी ने मथुरा के जल उपवास के समय स्पर्श पर पाबन्दी के बारे में पूछा था कि क्या कारण है? गुरुदेव ने टालने की कोशिश की। केदार नाथ सिंह अपने प्रश्र पर अड़े रहे और घुमा-फिरा कर पूछते ही रहे।
“`गुरुदेव को कहना ही पड़ा कि जल उपवास के समय उनके शरीर में और शरीर के आसपास दिव्य ऊर्जा संचारित होने लगेगी। उस ऊर्जा को ग्रहण करने की सामर्थ्य हर किसी में नहीं होती। अपरिपक्व स्थिति में उससे हानि भी हो सकती है। इसलिए स्पर्श की पाबन्दी है। लकड़ी का तख्त, उस पर दरी और मथुरा उपवास के दौरान ज्येष्ठ मास की गर्मी में भी ओढ़ने के लिए कम्बल जैसी व्यवस्था का उद्देश्य भी ऊर्जा के विकिरण (radiations) को रोकना ही रहा होगा।”
कन्हैयालाल श्रीवास्तव जी की व्यथा:
1976 में शांतिकुंज में एक कार्यकर्ता ऐसे भी थे, जिन्होंने गायत्री तपोभूमि की स्थापना का समय देखा था ओर गुरुदेव के शरीर पर जल उपवास का प्रभाव भी देखा था। कन्हैयालाल श्रीवास्तव नामक कार्यकर्ता जल उपवास का निश्चय सुनकर एकदम विचलित हो उठे। 24 दिन तक निर्जल निराहार की घोषणा सुनते ही उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली। घोषणा के बाद कुछ ही क्षण बीते होंगे कि वे फूट फूट कर रोने लगे। आसपास के कार्यकर्ताओं ने उन्हें संभाला और गोष्ठी से उठाकर बाहर ले गए। उन्हें बाहर ले जाते देख गुरुदेव ने कहा, “किसी तरह की चिंता मत करो कन्हैयालाल, 29 अक्टूबर को हम लोग फिर मिलेंगे और माताजी के बनाए व्यंजन खाएंगे।” 5 अक्टूबर को गुरुदेव की जल उपवास आरम्भ करने की योजना थी।
कन्हैयालाल का विलाप इस पर भी नहीं रुका था। गोष्ठी से जिन कार्यकर्ता की बांह पकड़कर वे बाहर आए थे, उनसे उन्होंने कहा था, “ हमें पता है मथुरा के जल उपवास में गुरुदेव की क्या दशा हो गई थी? उनसे उठते नहीं बना था। मंदिर से यज्ञशाला तक आने के लिए कार्यकर्ताओं को सहारा देना पड़ता था। बड़ी मुश्किल से गुरुदेव यज्ञशाला तक पहुंच सके थे।”
उन्होंने उस जल उपवास को याद किया और 4 अक्टूबर को गुरुदेव का जल उपवास आरंभ होने से एक दिन पहले फिर कहा, “कहीं ऐसा न हो कि गुरुदेव इस तरह अपनी लीला समेट रहे हों। तपोभूमि की स्थापना के समय गुरुदेव ने जल उपवास खोलते समय कहा था कि चौबीस वर्ष बाद हम एक नये अध्यात्म जगत में प्रवेश करेंगे। उस प्रवेश से हजारों लोग व्यथित होंगे। लेकिन महाकाल किसी के व्यथित होने से अपने इरादे बदल तो नहीं देता।”
कन्हैयालाल जी ने हिसाब लगा लिया था कि तपोभूमि की स्थापना के चौबीस वर्ष पूरे हो रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने लोकांतर यात्रा का निश्चय कर लिया हो। लगे हाथों वह यह भी कह रहे थे कि चौबीस साल पहले गुरुदेव स्वस्थ युवा थे। उनके शरीर में दम खम था। उस वक्त भी वे उपवास के बाद बहुत कमजोर हो गए थे। उपवास की अवधि में भी गुरुदेव कमज़ोर ही दिखाई देते थे। अब तो उनका शरीर वृद्ध हो गया है,पैंसठ वर्ष से अधिक। पता नहीं उनकी काया उपवास के प्रभाव को सह भी पाए या नहीं। कहते कहते उनका गला रुंध गया।
चौबीस दिन के जल उपवास की घोषणा से जब शांतिकुंज में रहने वाले कार्यकर्ताओं को पता चला तो वह भी बहुत ही चिंतित और दुःखी हुए थे । निश्चिंत और अप्रभावित सिर्फ माताजी थीं। साफ ओर दो टूक वाक्यों में उन्होंने कहा था कि गुरुदेव ने जो कहा है, उसमें तनिक भी संदेह करने की जरूरत नहीं है। आप अपने मन की शंकाओं को तूल नहीं दें, उनके वचनों पर विश्वास करें।
चकित कर देने वाला पक्ष:
जल उपवास का निर्णय जिस समय किया गया था तब तक अखंड ज्योति अक्टूबर 1976 का अंक छपकर परिजनों के पास पहुंच गया था। उन दिनों परिजनों के पास कोई संदेश पहुंचाने या कार्यक्रम देने का अखंड ज्योति ही एकमात्र माध्यम था। सूचना संचार का तंत्र इतना विकसित नहीं हुआ था कि उसका उपयोग कर गायत्री परिवार की हजारों शाखाओं तक जल उपवास की सूचना पहुंचाई जा सके। आश्रम में निवास करने वाले कार्यकर्ताओं ने अपने स्वजन संबंधियों को और मित्र परिचितों को पत्र लिख कर जल उपवास की जानकारी दी। उन दिनों फोन की सुविधा भी इतनी सुलभ नहीं थी कि तुरंत सूचना दी जा सके। दूर संचार विभाग के लैंडलाइन फोन ही थे और उनका विस्तार भी अधिक नहीं हुआ था। STD सुविधा भी चलन में नहीं आई थी। दूर बात करने के लिए टेलीफोन एक्सचेंज में ट्रंककाल बुक कराना होता और अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता था। लिहाजा उपलब्ध संचार सेवाओं में से केवल डाक विभाग ही था जिससे गुरुदेव के जल उपवास की सूचना परिजनों तक पहुंचाई जा सकी। जब तक लोगों तक जानकारी पहुंची होगी तब तक जल उपवास का एक अंश पूरा ही हो गया।
लेकिन बात इतनी ही नहीं है। चकित कर देने वाला पक्ष तो यह था कि जल उपवास आरम्भ होने के दूसरे तीसरे दिन से ही गायत्री परिवार की शाखाओं से सहयोगी कार्यक्रमों के समाचार आने लगे। परिजन बताने लगे कि उन्होंने अपने यहां सिलसिलेवार उपवास शुरु कर दिए हैं। स्थानीय शाखा कार्यालयों में जैसी भी हो सकी व्यवस्था की गई थी। एक दो कमरों में या कार्यकर्ताओं के निवास पर लोगों ने अखंड जप आरम्भ कर दिया था। परिजन वहां 24-24 घंटे के उपवास करने लगे थे ओर उस दिन का बचा हुआ भोजन, अन्न या उसके मूल्य के बराबर की राशि गायत्री परिवार के प्रयोजनों में लगाने के लिए अलग रख रहे थे। डाक द्वारा सूचना पहुंचने और जवाब आने में लगभग एक सप्ताह लगा होगा। लेकिन 7 अक्टूबर को मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, गोवा, हिमाचल, पंजाब और हरियाणा आदि प्रांतों से करीब 300 पत्र आ गए। इन पत्रों में यद्यपि गुरुदेव के जल उपवास का संदर्भ नहीं दिया गया था लेकिन स्थानीय स्तर पर जो आयोजन शुरु हुए थे वे गुरुदेव के इस तप से जुड़े हुए ही प्रतीत हो रहे थे।
जल उपवास की सूचना विलक्षण ढंग से लोगों तक पहुंची। गायत्री तपोभूमि मथुरा में तो यह संवाद उपवास के निर्धारण की शाम को ही पहुंच गया।
अपने पाठकों से आज का लेख यहीं पर समाप्त करने की आज्ञा लेते हैं। कामना करते हैं कि सुबह की मंगल वेला में आँख खुलते ही इस ज्ञानप्रसाद का अमृतपान आपके रोम-रोम में नवीन ऊर्जा का संचार कर दे और यह ऊर्जा आपके दिन को सुखमय बना दे। हर लेख की भांति यह लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। धन्यवाद् जय गुरुदेव।
To be continued: क्रमशः जारी
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14 मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )अरुण वर्मा -24 , (2) संध्या कुमार-25
इस सूची के अनुसार दोनों ही भाई बहिन गोल्ड मैडल विजेता हैं उन्हें हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनको हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद्