वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव के जल उपवास से निकल कर आयी मौनी बाबा की कथा। 

11 मई 2022 का ज्ञानप्रसाद-गुरुदेव के जल उपवास से निकल कर आयी मौनी बाबा की कथा।अगर हम गूगल  सर्च बार में मौनी बाबा शब्द टाइप करें तो भिन्न भिन्न entries दिखाई देंगीं।इसलिए इस बात की चर्चा किये बिना कि तपोभूमि मथुरा में कौन से मौनी बाबा ने तांडव नृत्य से साधकों का मन मोह लिया था हम सीधे चलते हैं आज के अतिरोचक ज्ञानप्रसाद की ओर  जो किसी भी चलचित्र से कम नहीं है। शब्दसीमा के कारण 24 आहुति संकल्प सूची न प्रकाशित करने के लिए क्षमा प्रार्थी हैं। 

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हम सब जानते हैं कि प्रत्येक साधना एक अद्भुत विज्ञान है और प्रत्येक साधक एक आध्यात्मिक वैज्ञानिक है । यदि मेरे इस कथन की सत्यता और प्रमाणिकता को परखना है तो आपको मौनी बाबा के बारे में जानना चाहिए ।

विंध्याचल की पर्वतमालाओं तथा माँ विंध्यवासिनी के मंदिर के निकट ही मौनी बाबा की गुफा थी ।विंध्यवासिनी मंदिर काशी और प्रयागराज के मध्य गंगा के पावन तट पर स्थित है। बाबा अपने दो शिष्यों के साथ माँ गायत्री की अखंड साधना में लीन इसी गुफा में रहते थे । माँ गायत्री की निरन्तर साधना तथा गायत्री महामंत्र के जप और ध्यान के प्रभाव से उनका व्यक्तित्व सूर्य की तरह प्रखर तेज से आलौकित रहता था । वह एक ऐसे सिद्ध साधक थे जिनके पास विभिन्न सिद्धियाँ और विभूतियाँ सजह उपलब्ध थी । उनकी ख्याति दूर – दूर तक फैली हुई थी । 40 वर्ष से उन्होंने मौन व्रत ले रखा था और किसी से मिलते-जुलते और बातचीत नहीं करते थे । मौन रहने के कारण ही लोगों ने उन्हें मौनी बाबा कहना शुरू कर दिया था। बाबाजी मौन भले ही रहते थे लेकिन सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते थे । जो भी उनके पास आया कभी निराश होकर नहीं लौटता था । इसलिए सभी की उनके प्रति अटूट श्रृद्धा थी । बाबा बड़े ही शांत और दूरदर्शी स्वभाव के थे । सूर्य सा तेज उनके मुखमंडल पर हमेशा दीप्तिमान रहता था ।

जब भी उन्हें किसी वस्तु की आवश्यकता होती थी, वे संकेत देकर या भूमि पर लिखकर समझा देते थे । बाबाजी की जरूरतें कुछ खास नहीं थी । दो अंगोछा और लंगोटी में काम चला लेते थे । भोजन में नीम, बेल और तुलसी पत्र पीसकर खा लेते थे । उनका जीवन पूरी तरह से एक तपस्वी का जीवन था ।

बाबा के आशीर्वाद से जिन्हें लाभ होता वह दूसरों को बताते जिससे दिन प्रतिदिन उनकी गुफा पर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी और उनकी साधना में विघ्न पड़ने लगा। इसलिए बाबाजी ने नीचे वाली गुफा में अपने दो शिष्यों को बिठा दिया और स्वयं ऊपर की गुफा में जाकर साधना करने लगे। मौनी बाबा के शिष्य भी कोई साधारण नहीं थे । उन्हें भी बाबाजी की कृपा से सिद्धियाँ प्राप्त थी। इसलिए अब वही लोगों को आशीर्वाद देकर नीचे से ही विदा कर देते थे । 

मौनी बाबा जिस राज्य में रहते थे वहाँ का राजा निसंतान था । राजा स्वभाव से बड़ा ही दयालु, पराक्रमी और धर्मपरायण था। राजा की तरह रानी भी बड़ी ही धार्मिक स्वभाव की विदुषी थी। उन्हें दुःख था तो केवल इस बात का कि उनके कोई संतान नहीं है । संतान प्राप्ति के लिए राजा और रानी ने विभिन्न ज्योतिषियों द्वारा बताये गये कई व्रत और उपवास किये किन्तु निराशा ही मिली। तभी रानी की किसी दासी ने मौनी बाबा के पास जाने को बोला ।

मौनी बाबा के चमत्कारों की कहानियाँ दोनों ने सुन रखी थी । किन्तु वह इतने निराश हो चुके थे कि अब उनमें किसी के पास जाने की इच्छा नहीं थी। किन्तु रानी कहाँ हार मानने वाली थी। जब रानी ने महाराज से मौनी बाबा के पास जाने की इच्छा व्यक्त की तो पहले तो महाराज ने मना कर दिया किन्तु फिर रानी की बात रखने के लिए राजा ने मौनी बाबा को राजदरबार में ही बुलाने का फैसला किया | जब यह बात रानी को पता चली तो उन्होंने महाराज के निर्णय का विरोध करते हुए कहा, “महाराज ! याचक दाता के पास जाता है, न कि दाता याचक के पास।” रानी की बात logical थी इसलिए महाराज मौनी बाबा के पास जाने के लिए राज़ी हो गये ।

जब राजा ने सेना सजाने के आदेश दिया तो रानी फिर बोली, ” महाराज ! हम वहाँ कोई युद्ध करने नहीं जा रहे बल्कि एक याचक कि भांति कुछ मांगने जा रहे हैं, अतः हमें एक याचक के वेश में ही वहाँ जाना चाहिए।”

दूसरे ही दिन दोनों मौनी बाबा की तपस्थली की ओर चल दिए। तपस्थली का वातावरण बड़ा ही शांत एवं मनोरम था। निकट ही झरनों की कल-कल और पक्षियों की चहचहाहट मधुर संगीत बिखेर रही थी। दर्शनार्थी बाबा के शिष्यों से आशीर्वाद लेकर जा रहे थे। राजा रानी दोनों ने बाबा के शिष्यों को प्रणाम किया और वहाँ बैठ गये। कुछ देर बाद रानी ने बाबा के दर्शनों की अभिलाषा व्यक्त की।

अब तक बाबा के शिष्यों के अलावा ऊपर वाली गुफा ने कोई नहीं गया था लेकिन आज पता नहीं क्यों शिष्यों ने इन्हें रोका नहीं। दोनों ने गुफा में प्रवेश करते ही देखा कि गुफा में बाबा के तप और शक्ति का अनुपम तेज बिखरा हुआ था। राजा ने इससे पहले ऐसा महान तपस्वी नहीं देखा था। दोनों ने बाबा को दण्डवत प्रणाम किया। बाबा ने दाहिना हाथ उठाया तो दोनों ने सोचा शायद बाबा मौन तोड़ेंगे। लेकिन बाबा कुछ नहीं बोले। वह काफी देर वहाँ बैठे रहे लेकिन बाबा ने तो मौन व्रत धारण कर रखा था ।

राजा तो प्रतिदिन वहाँ नहीं आ सकता था लेकिन उसने रानी को बाबा के पास जाने की अनुमति दे दी । रानी प्रतिदिन तपस्थली पर जाती, आस-पास साफ सफाई करती और घंटों इसी आस में बैठी रहती थी कि बाबा मौन तोड़ेंगे और मुझसे बात करेंगे। दिन पर दिन बीतते गये और बरसात का मौसम आ गया । एक दिन बहुत खूब तेज बारिश हो रही थी । बिजली, बादल, आंधी और तूफान से भयावह वातावरण बना हुआ था लेकिन ऐसे में भी रानी अपने संकल्प से नहीं डिगी। वह पूरी तरह से भीग चुकी थी लेकिन फिर भी वह गुफा के पास पहुँच ही गई। पहाड़ों पर फिसलने के कारण उसे कई जगह चोट भी आई और रक्त भी बहने लगा। एक बार तो रानी गहरी खाई में गिरते-गिरते बची। इतने कष्ट के बावजूद उसकी निष्ठा बनी रही । रानी की ऐसी दयनीय दशा देख मौनी बाबा का ह्रदय करुणा से भर गया । मौन तोड़ते हुए करुण स्वर में बोले,” बेटी ! तू इतना कष्ट क्यों सह रही है, आखिर तुझे क्या चाहिए ? क्यों तू इस संकटकाल में अपनी जान-जोखिम में डालकर मेरी कुटिया तक आई है ?” पहले तो रानी को विश्वास ही नहीं हुआ कि बाबा बोल उठे हैं । वह ख़ुशी से बाबा की ओर दौड़ पड़ी और उनके चरणों में प्रणाम करते हुए बोली,”बाबा ! मैं अभागिनी निसंतान हूँ, मुझे संतान चाहिए,आपके दर से कोई निराश नहीं जाता,बाबा, मुझे भी पुत्रवती होने का आशीर्वाद दीजिये।” बाबा तो करुणा के सागर थे,बोल दिए, “जा तुझे पुत्र होगा।” बाबा से वरदान पाकर रानी प्रसन्नतापूर्वक लौट आई।।

उसके बाद बाबा ने ध्यान में जाकर देखा तो पता चला कि रानी के भाग्य में तो कोई संतान है ही नहीं, लेकिन बाबा तो आशीर्वाद दे चुके थे। उनका आशीर्वाद झूठा कैसे हो सकता है। उसी क्षण उन्होंने निश्चय किया कि मैं स्वयं रानी की कोख में जन्म लूँगा। उन्होंने समाधी लगाई और प्राण त्याग दिए। दूसरे दिन जब रानी तपस्थली पहुँची तो बाबा का पार्थिव शरीर पड़ा था और दोनों शिष्य उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे। रानी दुःखी होकर लौट आई।

मौनी बाबा के पुनर्जन्म की कथा:

बाबा के आशीर्वाद के अनुसार कुछ दिनों बाद रानी गर्भवती हो गई। राजमहल में चारों ओर खुशियों का माहोल छा गया,राजा के नीरस जीवन में फिर से सरसता आ गई। यथासमय एक सुंदर राजकुमार ने जन्म लिया लेकिन वह जन्म से ही मौन था। राजा ने अनेकों वैद्य और ज्योतिषियों को बताया लेकिन कोई भी राजकुमार से एक शब्द भी न कहला सका| वैसे राजकुमार के शरीर में ऐसी कोई कमी नही थी कि उन्हें गूंगा कहा जा सके। जब सभी प्रयास निरर्थक हो गये तो राजा ने घोषणा कर दी कि जो कोई भी राजकुमार को बोलवा देगा उसे आधा राज्य दिया जायेगा। 

मेधावी राजकुमार ने कुछ ही समय में सारी विद्याएँ और कलाएं सीख ली। एक दिन राजकुमार मंत्री के पुत्र के साथ आखेट खेलने के लिए जंगल में गया। हालाँकि राजकुमार को हिंसा बिल्कुल भी पसंद नहीं थी लेकिन फिर भी वह मंत्री के पुत्र के साथ गया। सारा दिन भटकने पर भी कोई शिकार नहीं मिला। वापस लौटने लगे तो तभी रास्ते में झाड़ियों में से एक हिरण बोल पड़ा । सिपाही टूट पड़े और उसका शिकार कर दिया। हिरण की दयनीय दशा देख राजकुमार का ह्रदय करुणा से भर गया और वह बोल उठा,

“तू क्यों बोला, आज नहीं बोलता तो बच जाता। देख मैं बोला तो दुबारा जन्म लेना पड़ा और तू बोला तो तुझे मृत्यु के मुंह में जाना पड़ा। हाय रे भाग्य ! बिना सोचे-विचारे बोलना भी कितना दुःखमय हो सकता है।” 

जब राजकुमार खुद से यह बात कर रहा था तभी मंत्री का लड़का उसके पास ही खड़ा था । वह राजकुमार के बोलने से अचंभित था। उसने तुरंत राजमहल जाकर राजकुमार के बोलने की घटना राजा को सुनाई। पहले तो राजा को विश्वास नहीं हुआ फिर उसने पूछा,”क्या सच में राजकुमार बोलता है ? राजा से झूठ बोलने की सज़ा तुम जानते हो न ?” मंत्री का लड़का बोला,”आप खुद ही राजकुमार से पूछकर देख लीजिये, महाराज ! प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता!”

भरी सभा में राजकुमार को बुलाया गया । सभी उत्साहित थे कि आज राजकुमार बोलेगा, अगर न बोला तो मंत्री के पुत्र को फांसी की सज़ा हो जाएगी । राजकुमार आया और उसे बोलने के लिए कहा गया लेकिन राजकुमार गूंगे की तरह खड़ा रहा।राजा को गुस्सा आया और उसने मंत्री के पुत्र को फांसी देने का आदेश दे दिया। राजा ने सोचा इसने आधे राज्य के लोभ में आकर झूठ बोला है। जल्लाद आया और मंत्री-पुत्र को फांसी होने ही वाली थी कि राजकुमार चिल्ला पड़ा – “छोड़ दो उसे।” राजकुमार के यह शब्द सुनकर सभी के चेहरे खिल उठे।

इसके बाद राजकुमार ने अपने पूर्वजन्म की बात बताई। राजकुमार बोला – ” राजन ! में विध्यांचल के पर्वतों में रहने वाला वही मौनी बाबा हूँ जिसके पास आप और रानी पुत्र प्राप्ति की कामना लेकर आये थे। रानी की श्रद्धा और निष्ठा देखकर मेरा हृदय करुणा से भर गया और मैंने उसको पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया किन्तु मुझे बाद में ज्ञात हुआ कि रानी के भाग्य में कोई संतान नहीं थी। इसलिए अपने आशीर्वाद को पूरा करने के लिए मुझ स्वयं को रानी की कोख से जन्म लेना पड़ा। अब रानी निसंतान होने के दुःख से उबर गई है अतः अब मैं पुनः अपनी तप साधना करने जा रहा हूँ।” इतना कहकर राजकुमार वापस अपनी तपस्थली की ओर चल दिया ।

साधना की महिमा यदि समझना हो तो मौनी बाबा को समझ लेना चाहिए जिन्होंने गायत्री साधना के लिए अपना सारा राज्य छोड़ दिया। जिन्होंने एक स्त्री की अभिलाषा पूर्ण करने के लिए स्वयं को एक जन्म तक न्योछावर कर दिया । धन्य हे वह संत और वह लोग जिन्हें ऐसे संत के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मौनी बाबा को शत शत नमन !

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