परमपूज्य गुरुदेव की प्रेरणा से प्रस्तुत की जा रही जल उपवास की वर्तमान श्रृंखला चेतना की शिखर यात्रा 2 ,3, अखंड ज्योति के कुछ अंक,कुछ वीडियोस की सहायता से संकलित की गयी है। अब तक के तीन लेखों में बहुत कुछ लिखा जा चुका है और आने वाले लेखों में अभी बहुत कुछ लिखना बाकि है।
4 मई वाले लेख में सहस्रांशु ब्रह्मयज्ञ की पूर्णाहुति का रेफेरेंस आया था तो प्रेरणा हुई कि जल उपवास और प्राणप्रतिष्ठा के साथ-साथ इस सामूहिक तपश्चर्या का संक्षिप्त विवरण भी दे दिया जाए तो कुछ भी अनुचित नहीं होगा। हमारे सहकर्मी गायत्री तपोभूमि मथुरा में गुरुदेव द्वारा सम्पन्न किये गए यज्ञों से भलीभांति परिचित होंगें लेकिन फिर भी हम बताना चाहेंगें कि 1958 में इस युग के महानतम 4 दिवसीय सहस्र कुण्डीय गायत्री यज्ञ का सूत्रपात इसी तपस्थली से किया गया था जिसमें 4 लाख लोगों ने भाग लिया। नरमेध यज्ञ, सरस्वती यज्ञ,रूद्र यज्ञ ,महामृत्युंजय यज्ञ , विष्णु यज्ञ ,शतचंडी यज्ञ ,नवग्रह यज्ञ ,चारों वेदों के मंत्र यज्ञ ,ऋग्वेद यज्ञ ,सामवेद यज्ञ , अथर्ववेद यज्ञ, यजुर्वेद यज्ञ ,ज्योतिष्टोम ,अग्निष्टोम , श्रोत यज्ञ आदि इसी गायत्री तपोभूमि में सम्पन्न हुए। हम तो अपनेआप को बहुत ही भाग्यशाली मानते हैं कि हमें इस दिव्य तपस्थली की भूमि का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तपोभूमि पर आधारित कई वीडियो आप हमारे चैनल पर देख सकते हैं। वर्तमान विषय से सम्बंधित इस वीडियो लिंक को आप क्लिक कर सकते हैं। https://youtu.be/4VlTR9CVFUE
तो आइये परमपूज्य गुरुदेव की उपस्थिति का आभास करते हुए मंगलवेला में आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें।
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24-24 लाख के 24 महापुरश्चरण पूरे करने पर हमने 1950 की आश्विन की नवरात्रियों में पूर्ण निराहार, केवल जल के आहार पर जो आवास तपश्चर्या की थी, उसमें गायत्री माता का कुछ विशेष संदेश एवं प्रकाश प्राप्त हुआ। एक वर्ष में 24 लाख गायत्री मंत्र जाप का अर्थ है 60 मालाएं और उससे भी बढ़कर 24 वर्ष तक अनवरत- ऐसी थी हमारे गुरु की साधना।
प्रतिदिन मार्गदर्शक सत्ता के आदेशानुसार 24 महापुरश्चरणों का जो संकल्प किया था, वह पूरा हो जाने पर अपने आध्यात्मिक पिता (गुरु) के आदेश की पूर्ति हो गई। अब गायत्री माँ की बारी थी, उनके चरणों में मस्तक रखकर आदेश माँगा तो उन्होंने “सहस्रांशु ब्रह्मयज्ञ” करने का आदेश दिया और उसका सारा विधान भी बताया। आज्ञा को शिरोधार्य करना ही एक मात्र हमारा कर्त्तव्य था। उनके चरणों को साक्षी मानकर इस महायज्ञ का संकल्प कर लिया गया। एक मास तक योजना बनाने के उपरान्त 1950 की कार्तिक से इसका प्रारम्भ भी कर दिया गया।
गायत्री माँ की प्रेरणाओं से आरम्भ हुए इस गायत्री सहस्रांशु ब्रह्मयज्ञ की योजना इस प्रकार है।
(1) यह यज्ञ किसी एक ही स्थान तक सीमित न रह कर 1000 स्थानों में होगा।
(2) जैसे सूर्य की 1000 रश्मियाँ होती हैं, शेषनाग जी के 1000 मुख हैं, ब्रह्मरंध में 1000 पंखुड़ियां होती हैं, उसी प्रकार यह यज्ञ भी 1000 ऋत्विजों( यज्ञ करवाने वाले- prounced as Ritwijon ) द्वारा पूर्ण होगा।
(3) इस यज्ञ में 125 करोड़ गायत्री महामन्त्र का जप किया जायेगा।
(4) 125 लाख आहुतियों का हवन होगा।
(5) 125 हजार उपवास होंगे।
(6) 125 हजार व्यक्तियों को गायत्री विद्या का समुचित ज्ञान कराया जाएगा।
यह कार्य इतना विशाल है कि कल्पना मात्र से मस्तक चकरा जाता है। आज के युग में भोग और स्वार्थ की प्रधानता है, धार्मिक प्रवृत्ति के मनुष्य कोई बिरले ही होते हैं। ऐसी दशा में इतनी बड़ी संख्या में ऋषियों का तत्पर होना कठिन प्रतीत होता है। परन्तु दूसरे ही क्षण नव आशा का संचार होता है कि
“महाशक्ति अपना काम स्वयं करेगी।” हमें तो केवल निमित्त मात्र बनना है।”
हमें सहस्रांशु ब्रह्मयज्ञ की प्रेरणा देने वाली प्रेरक शक्ति ही प्रधान साधन बनेगी। हमारे जैसे तुच्छ व्यक्ति तो “अपनी अयोग्यता और कार्य की महानता”-इन दोनों की तुलना करने मात्र से काँप जाते हैं।
यह बात भली प्रकार समझ लेने की है कि यह महायज्ञ अत्यन्त गम्भीर सत्परिणाम उत्पन्न करने वाला है। इसमें युग परिवर्तन के बीज छिपे हुए हैं। जैसे नव प्रभात की पूर्व सन्ध्या में ब्राह्मी साधना आवश्यक होती है, उसी प्रकार नानाविधि पाप तापों से आस देने वाली इस घनघोर अन्धकारमयी निशा का परिवर्तन करके शान्तिदायक, सतोगुणी उषा के स्वागत में यह यज्ञ किया जा रहा है। इसमें सम्मिलित होना हर एक जागृत आत्मा का पवित्र कर्त्तव्य है।
तप से ही शक्ति उत्पन्न होती है। सृष्टि के आदि से लेकर अब तक जिस किसी ने भी कोई भौतिक या आत्मिक वरदान पाया है वह तप द्वारा ही पाया है। समस्त सुखों, सम्पत्तियों, सफलताओं, शक्तियों का कारण तप है। जब तप की पूँजी समाप्त हो जाती हैं तो बड़े-बड़े प्रतापी कटे हुए वृक्ष की तरह भूमि पर गिर पड़ते हैं। वह आत्मबल जिसके द्वारा परमात्मा को प्राप्त किया जाता है, वह ब्रह्मतेज जिससे समस्त संसार काँपता है, वह दिव्य शक्ति जिसके कारण समस्त सम्पदाएँ सक्रिय होती हैं, इस सहस्रांशु यज्ञ द्वारा एक महान् तपश्चर्या का आयोजन किया गया है। सहस्रों ऋत्विजों की सम्मिलित शक्ति उत्पन्न होगी, उसके द्वारा लोक कल्याण का भारी प्रयोजन सिद्ध होगा।
त्रेता युग में ऋषियों ने अपना थोड़ा-थोड़ा रक्त संचय करके एक घड़ा भरा था और उसे भूमि में गाड़ दिया था। उस घड़े से सीता जी उत्पन्न हुईं और रावण के विनाश एवं रामराज्य की स्थापना का कारण हुईं। देवताओं की सम्मिलित शक्ति से ही माँ दुर्गा उत्पन्न हुई थी, जिनके द्वारा भयंकर असुरों का विनाश हुआ। आज भी अनेक प्रकार के पाप-तापों से, अनीति, अभाव और अविचारों से मानव जाति पीड़ित है। इस स्थिति के निवारण के लिए सहस्रों ऋत्विजों के सम्मिलित तप से एक ऐसी प्रचण्ड शक्ति का जन्म होगा जो दुष्टों का विध्वंस करके शान्तिदायक भविष्य का निर्माण करेगी।
यह यज्ञ इस युग का असाधारण एवं अभूतपूर्व यज्ञ है इसलिए इसके परिणाम अत्यन्त महान होंगे। इसके पीछे प्रभु की प्रचण्ड प्रेरणा, एक महान योजना सन्निहित है। इसमें सम्मिलित होकर साधना करना अपनी अलग अकेली साधना की अपेक्षा अनेकों गुना उत्तम है। लंका ध्वंस के लिए वानरों को और गोवर्धन उठाने में ग्वाल बालों को जो श्रेय प्राप्त हुआ था वही श्रेय इस महान यज्ञ के ऋत्विजों को भी प्राप्त होगा। यों साधारण रीति से भी जो लोग श्रद्धापूर्वक माता का आँचल पकड़ते हैं उन्हें आशाजनक परिणाम प्राप्त होते हैं । हमें अपने दीर्घकालीन अनुभव के आधार पर यह सुनिक्षित विश्वास है कि कभी भी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती परन्तु इस यज्ञ में सम्मिलित होकर साधना करने के सत् परिणाम की आशा तो बहुत अधिक की जा सकती है क्योंकि यह एक सामूहिक प्रयास है। इस यज्ञ मे किसने कितना भाग लिया? इसका परिणाम संसार के लिए कितना कल्याणकारक सिद्ध हुआ? सम्मिलित होने वालो को व्यक्तिगत रूप से क्या लाभ हुआ? इन सब बातो का एक सचित्र इतिहास भी बनेगा और युग युगान्तरों तक इसमें सम्मिलित होने वालों का यश प्रकाशवान रहेगा।
यह यज्ञ सम्भवतः 24 मास मे पूरा हो जाने की आशा है पर आवश्यकतानुसार यह तीन वर्ष भी चल सकता है। इसमे धार्मिक प्रवृत्ति के कोई भी द्विज, स्त्री-पुरुष प्रसन्नतापूर्वक भाग ले सकते हैं । कम से कम एक वर्ष तक सम्मिलित रहना आवश्यक है, अधिक चाहे जितने समय तक शामिल रहा जा सकता है। किसी भी मास की अमावस्या या पूर्णमासी से साधना प्रारम्भ करके इस यज्ञ में सम्मिलित हो सकते हैं।
कम से कम गायत्री की 5 माला (540 मंत्र) का जप नित्य करना चाहिये और रविवार को 1 माला अधिक जपनी चाहिये। इस प्रकार एक वर्ष मे 2 लाख जप पूरे होंगें ।
540 x 108 +52 x 108 =202716
जिन सज्जनों को अवकाश और उत्साह हो उन्हें अधिक जप करना चाहिए। जो पूरा गायत्री मंत्र न जप सके वे लघु पंचाक्षरी गायत्री (ॐ भूभुवः स्वः) की साधना कर सकता है।
प्रत्येक मास की पूर्णमासी या अन्तिम रविवार को 108 गायत्री मन्त्रों का हवन करना चाहिए। जो सज्जन हवन न कर सके वे हमारे लिए 1080 (दस माला) जप कर दें । बदले में हम उनके लिए 108 आहुतिओं का हवन कर देंगे। उपवास प्रत्येक रविवार को रखना चाहिए, फल, दूध पर रहने की जिन्हे सुविधा न हो वे एक समय बिना नमक का अन्नाहार लेकर उपवास कर सकते हैं। गायत्री माता का चित्र स्थापित करके उसको प्रतिदिन धूप, दीप, नैवेद्य, अक्षत, पुष्प आदि से पूजा, आरती वन्दन आदि करने को आराधना कहते है। ऋत्विज के लिए आराधना भी आवश्यक है। जो सज्जन निराकार उपासक हो, वे धूप बत्ती आदि में अग्नि की ज्योति प्रज्वलित करके उसे माता का प्रतीक मान कर पूजा आराधना कर ले।
यह यज्ञ सहस्र अश्वमेधों से अधिक महत्वपूर्ण है। इसमें सम्मिलित होने वाले ऋत्विजों को जो शक्ति और शान्ति मिलेगी वैसी अकेली स्वतन्त्र साधना से मिलनी सम्भव नहीं है। इस सम्मिलित तपश्चर्या से संसार का भी लाभ होगा और अपना भी। लोक कल्याण के लिए किया हुआ पुण्य परमार्थ अपने लिए भी कल्याणकारक ही होता है। तप का धन ही मनुष्य जीवन का वास्तविक धन है। इसे संचित करना धन जमा करने से अधिक बुद्धिमानी की बात है।
हमारे अनेक मित्र हमसे बहुधा पूछते रहते हैं कि हमारे योग्य कोई सेवा हो तो बताइए। हमारी आवश्यकताएँ बड़ी सीमित हैं इसलिए व्यक्तिगत रूप से हमें कभी किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं होती पर आज वह अवसर आया है, जिसके लिये हम अपने सभी मित्रों और समस्त संबन्धियों को सहायता और सेवा के लिए आमन्त्रित करते है। ऐसा हम इस लिए कहते हैं कि जितना बड़ा बोझ कन्धे पर लिया है वह अनेक साथियों के हार्दिक सहयोग से ही उठाया जाना सम्भव है। यदि यह यज्ञ पूरा न हुआ तो हमें मर्मान्तक कष्ट होगा और उसकी शान्ति के लिए हमें ऐसा प्रायश्चित करना पड़ सकता है जो हमारे प्रेमियों के लिए दुःख का कारण होगा। इस कार्य में विशेष रूप से हाथ बटाने की अपने हर प्रेमी से हमारी हार्दिक प्रार्थना है। इस महान यज्ञ में साझीदार बनने के लिए हम उन सभी आत्माओं को आमंत्रित करते हैं जिनके अन्दर दिव्य प्रकाश काम कर रहा हो, जिनके अन्तःकरण में माता की दिव्य प्रेरणा काम कर रही हो। इस आमन्त्रण को स्वीकार करना, इस साझेदारी में सम्मिलित होना कितना श्रेयष्कर है इसकी कोई भी सत्पात्र परीक्षा कर सकता है।
जब हम यह अंतिम पैराग्राफ लिख रहे थे तो हमें लगा कि इसका एक एक शब्द ऑनलाइन ज्ञानरथ के लिए भी हो सकता है. बहुत बार हमारे अन्तःकरण से ऐसी भावना उजागर हुई है। हमें विश्वास है कि यही भावना हम सबको एक अटूट डोर में बांधे हुए है।
आज का लेख यही पर समाप्त करने की आज्ञा चाहते हैं और आप प्रतीक्षा कीजिये आगे आने वाले बहुत ही रोचक संस्मरण की, जय गुरुदेव।
To be continued:
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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4 मई 2022, की 24 आहुति संकल्प सूची:
(1 )अरुण वर्मा -36 , (3) सरविन्द कुमार-28
इस सूची के अनुसार अरुण वर्मा जी गोल्ड मैडल विजेता हैं उन्हें हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई।
सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिनका हम हृदय से नमन करते हैं, आभार व्यक्त करते हैं और जीवनपर्यन्त ऋणी रहेंगें। धन्यवाद्