वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

1973 की प्राण प्रत्यावर्तन साधना- एक विस्तृत जानकारी-7

प्राण प्रत्यावर्तन साधना पर आधारित लेख श्रृंखला का यह सातवां और अंतिम लेख है।  परमपूज्य गुरुदेव के सानिध्य में सम्पन्न हुई यह  साधना केवल एक वर्ष (1973 -74 ) ही चली थी।  बाद में यही साधना अन्य नामों से चलती रही और आज 2022 में  5 दिवसीय अन्तः ऊर्जा जागरण सत्र युगतीर्थ शांतिकुंज द्वारा करवाए जा रहे हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ के कई समर्पित सहकर्मियों, साधकों ने इन सत्रों ने भाग लिया और अपनी अनुभूतियों से हमें अवगत कराया। इन 7 लेखों में हमने प्राण प्रत्यावर्तन साधना का  बहुत ही बारीकी से अध्ययन किया है। समर्पित सहकर्मियों ने कमैंट्स के माध्यम से अपनी input डालने में कोई कसर नहीं छोड़ी।  हम अपने सहकर्मियों के जीवनपर्यन्त  ऋणी रहेंगें।  

गुरुदेव के सानिध्य में साधना कर रहे 7 साधकों-अवधेश प्रताप,नरेन भाई, राधावल्लभ, माधवाचार्य, योगमाया, स्वयं प्रकाश और दयाशंकर की अनुभूतिओं से हमें जो ज्ञान प्राप्त हुआ उसे अन्य परिजनों से शेयर करके गुरु भक्ति का प्रमाण देना हमारा कर्तव्य है।

तो आज की कक्षा आरम्भ करने से पूर्व हम आपसे क्षमा प्रार्थी है कि शुक्रवार का ज्ञानप्रसाद  वीडियो के माध्यम से होने के बावजूद आज लेख  ही  प्रस्तुत कर रहे हैं। इसका कारण यह है कि आज का लेख इस श्रृंखला का अंतिम लेख है और सोमवार तक postpone करना अनुचित था। शनिवार का दिन तो अपने सहकर्मियों का ही होता है। सोमवार को एक नई श्रृंखला का शुभारम्भ होने वाला है।    

लेख का अंत 24 आहुति संकल्प सूची से ही  होगा।  

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साधक दयाशंकर का परमपूज्य गुरुदेव से  साक्षात्कार:

प्राण प्रत्यावर्तन लेखों की वर्तमान श्रृंखला में हम देखते आ रहे हैं कि  साधक को 5 दिन में से किसी एक दिन कुछ समय के लिए परमपूज्य गुरुदेव से अकेले में साक्षात्कार करने का सौभाग्य प्राप्त होता था। आज अल्मोड़ा उत्तराखंड से आये एक साधक दयाशंकर का साक्षात्कार होना था। दयाशंकर ने पूज्यवर से एक विचित्र प्रश्न किया, प्रश्न क्या यह तो एक स्थिति थी। 

घटना उन दिनों की है जब  दयाशंकर अल्मोड़ा के पास किसी  वन्य क्षेत्र में सामूहिक साधना कर रहे थे । यह साधना बौद्ध लामा जिग्मे दोरजी के सानिध्य में हुई थी।  साधना के दौरान उद्बोधन के समय दोरजी ने कहा था कि हिमालय क्षेत्र की किसी  गुफा में चौबीस सिद्ध आत्माओं  के शरीर सुरक्षित हैं। यह  सिद्ध  पिछले ढाई हजार वर्ष के अंतराल में  विभिन्न अवसरों पर हुए हैं और सभी ने निर्वाण की अवस्था में शरीर छोड़ा है। उन सिद्धों के कई-कई शिष्य भी थे। दयाशंकर दोरजी की बात गुरुदेव को बताते हुए कह रहे थे कि इन  शिष्यों ने अपनी मार्गदर्शक सत्ता के निर्देश पर ही उन शरीरों को संभाल कर रखा। शरीर संभाल कर रखने का कोई उद्देश्य तो  नहीं बताया था लेकिन  अलग अलग तरह से यही कहा था कि इनका विनाश  नहीं होने देना है। गुह्य विद्या एवं आलौकिक  विधि से तैयार किए लेपों का प्रयोग कर शरीरों की रक्षा की गई थी।

मिश्र में जिस तरह ममियों (dead bodies) की रक्षा की गई थी, दिवंगत शरीर रखे गए थे, उससे भी अधिक  जटिल विधि इन शरीरों की रक्षा के लिए अपनाई गई थी। ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि  ममियों के शरीर का उपचार तो एक ही बार किया गया था, सिद्धों के शरीर का ध्यान तो निरंतर रखना था। दोरजी के सान्निध्य में हुए शिविर में दयाशंकर समेत आठ साधक ही शामिल हुए थे। दयाशंकर के  अनुसार चौबीस सिद्धों के काय कलेवरों पर भविष्य में कोई प्रकार के प्रयोग किए जाने वाले हैं।

दयाशंकर का मर्म:

दोरजी ने इस विवरण में एक बहुत ही  महत्त्वपूर्ण बात कही थी। दयाशंकर उसी बात   का मर्म समझने के लिए गुरुदेव से यह वृत्तांत सुना रहे थे। उन चौबीस शरीरों के बारे में दोरजी का कहना था कि सात शरीर एक ही साधना परंपरा से आए हैं। यह परंपरा अपने इष्ट का ध्यान सूर्य के रूप में करती रही है। सूर्य की शक्ति को वह मां के रूप में देखती है। उस परंपरा का एक सिद्ध  पुरुष अभी  भी जीवित है जो  समिल्लित  शक्ति लेकर काम कर रहा है। दोरजी ने उस सिद्ध का जो स्वरूप बताया था, वह गुरुदेव से मिलता जुलता था। इन दिनों काम कर रहे  उस सिद्ध का नाम भी दोरजी ने  “श्री” से आरंभ होता हुआ कहा था।

बौद्ध लामा दोरजी  बस्ती से दूर ही रहते थे । लोगों से मिलते जुलते भी कम थे,जनसंपर्क लगभग न के बराबर ही था। दयाशंकर एक खोजी किस्म के  लगनशील साधक थे।  यही कारण था  कि उन्हें दोरजी की बातें रोचक लगीं और  वह अपनी तरह के कुछ और साथियों के साथ दोरजी के सान्निध्य में बैठ सके। उन्होंने गुरुदेव को  बताया कि मैंने दोरजी से इस युग के सक्रिय सिद्ध पुरुष के बारे में बहुत पूछा लेकिन वह कुछ अधिक  नहीं बोले । दयाशंकर ने गुरुदेव से जिज्ञासा व्यक्त की कि कहीं वह सिद्ध योगी आप तो नहीं हैं।

गुरुदेव ने इस प्रश्न को महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने कहा कि तुम यहाँ प्राण प्रत्यावर्तन  साधना के लिए आये हो और यह साधना अध्यात्म की ऊंची कक्षा का अभ्यास करने वाली है, तुम्हे इसी साधना  पर ध्यान देना चाहिए। इस तरह की जिज्ञासाओं में नहीं उलझना चाहिए। दयाशंकर ने थोड़ी ज़िद  की तो गुरुदेव ने कहा कि 

“मैं वह व्यक्ति नहीं हूँ जिसके लिए दोरजी ने इशारा किया है। अगर मैं वह व्यक्ति हूँ भी तो तुम्हे क्या फर्क पड़ेगा, क्या तुम्हारी प्रगति और प्रसिद्धि  अधिक हो जाएगी ?”

गुरुदेव का यह तर्क सुनकर दयाशंकर चुप हो गए।  कुछ क्षण बाद वह फिर बोले, “दोरजी ने हिमालय की गुफाओं में चौबीस काय कलेवर बिना प्राण के सुरक्षित रखने की बात कही है, वह कहाँ तक सही है ?” दयाशंकर के कौतूहल पर गुरुदेव मुस्कुराए और  बोले, “हिमालय अध्यात्म की एक विराट प्रयोग भूमि रहा है। यहाँ  हजारों वर्षों  से तरह-तरह के प्रयोग होते रहे हैं। दोरजी ने  जिन शरीरों की चर्चा  की है, वे अतीत में हो चुके महान साधकों के हैं। अनवरत  साधना करते-करते शरीर के परमाणु भी चैतन्य हो उठते हैं। प्राण निकल जाने के बाद भी वे परमाणु जीवंत ही रहते हैं। आगे कभी उनका कोई उपयोग हो सके इसके लिए उन शरीरों को सुरक्षित रखा गया होगा। तुम्हे  अभी इस ऊहापोह में नहीं जाना चाहिए।”

हमारे पाठकों के यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि यह उच्कोटि की वैज्ञानिक  व्याख्या वह महापुरुष कर रहे हैं जिन्होंने बहुत बार कहा है कि हम तो गांव के विद्यालय से   पांचवीं पास  हैं। यह उन लोगों के लिए एक solid eye opener है जो  परमपूज्य गुरुदेव की शक्ति पर किन्तु-परन्तु, तर्क-कुतर्क करते हैं। इस तथ्य को stamp करने के लिए हम एक वीडियो का लिंक दे रहे हैं जिसमें आदरणीय महेंद्र शर्मा जी, शांतिकुंज के व्यवस्थापक ,गुरुदेव की शक्तियों का वर्णन कर रहे हैं।  लगभग 10000 लोग इस वीडियो के देख चुके हैं, पांचवीं पास वाली बात आप वीडियो के 8:15  मिंट पर देख सकते हैं। ऐसी शक्तियां बता कर ही हम  सच्ची गुरुभक्ति का परिचय दे सकते हैं।

साधकों ने गुरुदेव से इस तरह के और भी प्रसंग कहे। उनमें कई रहस्यों से भरे हुए थे तो कई नितांत सामान्य किस्म के। गुरुदेव ने उनका समाधान तो किया लेकिन सावधान रहने के लिए कहा कि रहस्यों में उलझ कर नहीं रह जाना है। बहुत सी रहस्यमयी अनुभूतियां अपनी आंतरिक स्थिति की सूचना  देती हैं। अगर उन्हीं में रस लेते रहे तो साधक की प्रगति रुक सकती है। शिविर आत्मिक प्रगति के लिए है इसलिए यहां अपनी अनुभूतियां कह कर फूलों और मधुर फलों के मोह से मुक्त हो जाना चाहिए।

समापन, इतिश्री  

हर  बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं। 

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27  अप्रैल,2022 की 24 आहुति संकल्प सूची:

(1) संध्या कुमार-25, (2 ) अरुण वर्मा -29,(3) सरविन्द कुमार-24 प्रेरणा कुमारी-26  

इस सूची में तो सभी ही विजेता दिख रहे हैं, सभी को  हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। 

28 अप्रैल,2022  की 24 आहुति संकल्प सूची:

(1) संध्या कुमार-24, (2 ) अरुण वर्मा -41,(3) सरविन्द कुमार-41, प्रेरणा कुमारी-24 

इस सूची में अरुण वर्मा जी और सरविन्द जी bracketed होकर विजेता हैं ,दोनों को हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई।

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सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्

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