“सप्ताह का एक दिन पूर्णतया अपने सहकर्मियों का” यह एपिसोड प्रस्तुत करते हुए हमें बहुत ही प्रसन्नता हो रही कि कितने ही परिजनों ने अपनी contributions भेज कर सप्ताह के इस एकमात्र स्पेशल सेगमेंट को सफल बनाने में अपना योगदान प्रदान किया। यूट्यूब की शब्द सीमा के कारण हमें कुछ एक contributions को अगले सप्ताह के लिए शिफ्ट करना पड़ा लेकिन हमारा संकल्प है कि हम किसी का योगदान व्यर्थ नहीं जाने देंगें और सभी हमारे लिए सम्मानजनक है।
आज की 24 आहुति संकल्प सूची प्रकाशित न करते हुए हम अपने सहकर्मियों से करबद्ध क्षमाप्रार्थी है। जैसा कि हमारे सहकर्मी भलीभांति जानते हैं कि आदरणीय रेणु श्रीवास्तव जी और अरुण वर्मा जी के phones पर यूट्यूब न चल सकी जिसके कारण दोनों ही समर्पित सहकर्मी कमेंट न कर पाए। हो सकता है इस तरह के और भी हों जिन्हे यह असुविधा हुई। इसलिए अगर सभी को पूर्ण अवसर नहीं प्राप्त हुआ तो सूची प्रकाशित करना उचित नहीं लगता है।
आज के लेख में चार contributions हैं। साधना सिंह बहिन जी ,ज्योति गाँधी बहिन जी ,कुमुदनी गौरहा बहिन जी और अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल। कुमुदनी बहिन जी का कमेंट आज ही यूट्यूब पर पोस्ट हुआ था। ज्योति बहिन जी की बात तो हम थोड़ी सी पिछले सप्ताह कर चुके हैं ,उसके उपरांत व्हाट्सप्प पर उन्होंने कुछ और वृतांत भेजा। हमारी फ़ोन पर भी बात हुई और एडिटिंग के बाद आपके समक्ष उनकी अनुभूति प्रस्तुत कर रहे हैं। चारों सहकर्मियों का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं और आशा करते हैं कि इसी तरह ऑनलाइन ज्ञानरथ के प्रति सहकारिता व्यक्त करते हुए गुरुभक्ति का परिचय देते रहेंगें।
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1.साधना सिंह जी की अनुभूति :
भाई साहब सादर प्रणाम
मेरा सबसे बड़ा अनुभव यह है कि जन्मों- जन्मों से कोई भी मेरे परिवार में गायत्री परिवार से जुड़ा हुआ नहीं था। अवश्य ही यह मेरे पिछले जन्म के कर्म ही होंगें जो मुझे गुरुदेव का सानिध्य प्राप्त हुआ। जब से मैं जुड़ी मेरा जीवन चमत्कार से भरा हुआ है। एक-एक सांस गुरुदेव का दिया हुआ है। 2016 में जब मुझे कैंसर हुआ तो पीजीआई लखनऊ के डॉक्टरों का कहना था कि मेरे पास मात्र 8 दिन का समय है। यह अनुदान चमत्कार नहीं तो और क्या है कि मैं अब पूरी तरह स्वस्थ हूं। अभी कुछ दिनों से जो प्राण प्रत्यावर्तन के लेख आ रहे हैं, तब से मुझे ऐसा लग रहा है कि गुरुदेव की प्राण शक्ति मेरे अंदर आ रही है। पिछले रविवार मुझे ध्यान और जप के समय बेचैनी हो रही थी। ऐसे लग रहा था जैसे कोई मुझे बुला रहा हो, शाम होते-होते दो कार्यक्रम आ गए। पहला कार्यक्रम आया कि भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा की डेट आ गयी है और दूसरा कार्यक्रम था 15-16 मई को होने वाला हवन। इस हवन कार्यक्रम का भी पत्र मिल गया। मैंने रविवार शाम को ही 7:00 बजे महिला गोष्ठी आयोजित की और सबसे विचार लिया कि कार्यक्रम कैसे आगे करना है, तब जाकर मुझे थोड़ी शांति मिली
गुरुदेव से यही प्रार्थना है कि वह हमें शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करते रहें ताकि हम सभी परिजन मिलकर उनके कार्यक्रम को आगे बढ़ाते रहेंजय गुरुदेव जय महाकाल
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2.ज्योति गाँधी जी की आंवलखेड़ा अनुभूति
बात 25 फरवरी 2021 की है, मैं अपने परिवार के साथ मथुरा घूमने गई, उससे पहले बहुत समय से मेरे मन में यह इच्छा थी कि मैं गुरुदेव की जन्मभूमि आंवलखेड़ा जाऊं। सभी गायत्री परिजन जानते ही होंगे कि गुरुदेव को उनके हिमालय वासी दादा गुरु ने केवल 15 वर्ष की आयु में आंवलखेड़ा में ही दर्शन दिए थे। मैं उस स्थान को देखने के लिए बहुत समय से उत्सुक थी। इसलिए मथुरा जाने से पहले मैंने अपने पति से यह शर्त रखी थी कि मैं पहले आंवलखेड़ा जाऊंगी और बाद में मथुरा। वह सहर्ष तैयार हो गए। हम 25 फरवरी को अपनी ही कार से सुजालपुर मध्य प्रदेश से रवाना हुए और शाम होते-होते हम आंवलखेड़ा शक्तिपीठ पहुंचे। वहां पहुंचे तो देखा कि कोरोना नियमों के कारण शक्तिपीठ के गेट बंद थे। मेरे पति कार से उतरे और गेट पर दस्तक दी , समय लगभग शाम 6:45 रहा होगा। दस्तक सुनकर अंदर से एक भाई साहिब आए, उन्होंने कहा,”अब गेट नहीं खोल सकते , आपको दर्शन करने हैं तो सुबह आइएगा।” मेरे पति ने विनती की कि हम इंदौर से आए हैं, हमें दर्शन करने हैं लेकिन उन्होंने साफ मना कर दिया। मेरे पति ने देखा अब तो कोई बात बनती नहीं दिखती, कार में बैठते बोले ,” चलो अब मथुरा चलते हैं ,आंवलखेड़ा फिर कभी आएंगे।” लेकिन मेरा मन नहीं मान रहा था। मुझे बार-बार ऐसा लग रहा था कि काश हमें फिर से कोई बुला ले। मन उदास हो गया था या यूँ समझे कि मन रूआंसा सा हो रहा था। मन में सोच रही थी कि मैं कितने समय से तमन्ना लेकर पहली बार यहां आई हूं लेकिन यह तमन्ना भी पूरी न हो सकी । हम वापस जाने को तैयार थे, ड्राइवर गाड़ी मोड़ ही रहा था कि फिर से गेट से एक भाई आए और बोले, “आप पीछे के गेट से आ जाइए और दर्शन कर लीजिये।” बस फिर क्या था ! यह सुनते ही मैं आश्चर्यचकित हो गई और गुरुदेव को मन ही मन धन्यवाद् करने लगी ,गुरुदेव से कहने लगी कि गुरुदेव सच में आप अपने बच्चों को कभी निराश नहीं होने देते। आपके द्वार पर कोई आए तो वह निराश कैसे जाए, यह नहीं हो सकता। हम पीछे के गेट से अंदर पहुंचे सबसे पहले मां गायत्री, गुरुदेव माता जी के दर्शन किए। फिर मैंने वहां के कार्यकर्ता (बाबूजी जो वहीं रहते हैं ) उनसे कहा कि हमें गुरुदेव की जन्मभूमि के दर्शन करने हैं। फिर अभी हम यहां से चले जाएंगे। उन्होंने कहा कि आप यहां इतनी दूर से आए हो, तो सबसे पहले भोजन प्रसाद ग्रहण करो। गुरुदेव की आज्ञा मानकर हमने भोजन किया। फिर लगभग रात 9:00 बजे हम बाबूजी के साथ गुरुदेव की हवेली पहुंचे। बाबू जी ने गेट खुलवाया और सबसे पहले गुरुदेव की वह कोठरी देखी जहां गुरुदेव साधना किया करते थे। यही वह कोठरी थी जहाँ 15 वर्ष की आयु में हिमालय वासी दादा गुरु ने एक प्रकाशपुंज में प्रकट होकर दर्शन दिए थे। दादा गुरु ने बालक श्रीराम ( हमारे गुरुदेव ) को पिछले 3 जन्मों की झांकियां एक चलचित्र की भांति दिखाईं। ऑनलाइन ज्ञानरथ के सहकर्मी इस विषय पर प्रकाशित हुई अनेकों पुस्तकें, वीडियोस, ऑडियो बुक्स आदि से भलीभांति परिचित होंगें।
सच कहूं मैं तो उस भूमि के दर्शन कर भावविभोर हो गई और बार बार नमन करती हुई अपनेआप को धन्य मानती रही। मेरा मन गुरुदेव की बाल्यावस्था को लेकर कल्पना में खोए जा रहा था। बहुत देर तक मैं उस कोठरी को निहारती रही जो आज भी वैसी ही है जैसी गुरुदेव के समय में थी। (जैसा कि कार्यकर्ता भाई जी ने बताया ) कोठरी के दर्शन उपरांत हमने वह स्थान देखा जहां पूज्यवर बाल्यावस्था में अपने साथियों के साथ गोष्ठी लिया करते थे। बाद में कुछ एक सीढ़ियां चढ़ कर हम ऊपर गए जहाँ भव्य श्री सूर्य मंदिर स्थापित किया गया था। कार्यकर्ताओं के हम हृदय से आभारी हैं उन्होंने हमें कुछ ही समय में और रात्रि को ही पूरी हवेली के दर्शन करवा दिए ; मन तृप्त हो गया। बार बार ह्रदय में गुरुदेव का धन्यवाद् कर रही थी कि मेरे गुरु ने आज मुझे बुला ही लिया और मेरी इच्छा पूर्ति कर दी जिसके लिए मैं कितने ही समय से उत्सुक थी ,नमन करते हैं हम आपको गुरुदेव,धन्य हो आप।
हवेली के दर्शन उपरांत हम शक्तिपीठ वापिस आए और रात्रि वहीँ रुके। अगले दिन लगभग 5:00 बजे उठे तो ऐसा अनुभव हुआ कि यात्रा की सारी थकान गुरुदेव के सानिध्य में दूर हो गई। स्नान आदि से निवृत होकर ,दर्शन करने के उपरांत हम मथुरा के लिए रवाना हो गए।
ऐसी अनुभूतियां जीवन में तभी होती हैं जब ऐसे सद्गुरु हमारे जीवन में आते हैं और उनकी कोई विशेष अनुकम्पा रही होती है। मैं अपनेआप को बहुत ही सौभाग्यशाली मानती हूं, कि ऐसे महान युग दृष्टा ,अंतर्यामी का सानिध्य मुझे और मेरे परिवार को प्राप्त हुआ। ऐसे गुरु को पाकर हम सब धन्य हो गए जो अपने बच्चों से इतना प्यार करते हैं।
धन्यवाद् जय गुरुदेव
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3.गायत्री शक्तिपीठ मस्तीचक और अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल बिहार की सूचना अनुसार 300 बेड के एक और नेत्र हस्पताल और श्री रमेश पुरम का शिलान्यास आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पंड्या जी के करकमलों से हुआ। हम चिरंजीवी बिकाश शर्मा और आदरणीय मृतुन्जय तिवारी भाई साहिब का हृदय से धन्यवाद् करते हैं जो हमें अपनी गतिविधिओं से संपर्क में रखते हैं।इस समारोह का ज़ूम द्वारा प्रसारण हुआ जो भारतीय समानुसार दोपहर 12 से आरम्भ हुआ। हमारे यहाँ कनाडा में रात 12 बजे का समय होने के बावजूद कुछ रिकॉर्ड करने का प्रयास किया। सीवान में चिन्मय भाई साहिब के प्रवास का लिंक हमारी प्रेरणा बिटिया ने भेज दिया। प्रेरणा बिटिया के समर्पण और सक्रियता को हम सब नमन करते हैं और हमारा व्यक्तिगत धन्यवाद्। वह लिंक भी नीचे दे रहे हैं।
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4.कुमोदनी गौरहा जी की अनुभूति :
प्राण प्रत्यावर्तन के सातों लेख बहुत ही ज्ञानवर्धक, अनुकरणीय प्रेरणा दायक और अदभूत है।महान आत्मा कभी भी अपने को महान नहीं मानते हमारे गुरु महाकाल के अवतारी थे पर हमेशा अपनेआप को सामान्य ब्यक्ति के रुप में प्रस्तुत करते थे। ना जाने कितनों को धन, स्वास्थ्य,पुत्र, पुत्री, जीवन दान दिये कभी प्रत्यक्ष तों कभी परोक्ष रूप से पर कभी भी जताये नहीं मेरी बेटी सुमति भी तों मुझे गुरुदेव के आशीर्वाद से मिली हैं। मैंने कई ज्योतिष को दिखाया सभी ने कहा कि आपके भाग्य में नौकरी नहीं है पर दो बार गायत्री अनुष्ठान की अनुष्ठान के दौरान मुझे ऐसा लगता था मानो गुरुदेव सर पर हाथ रख कर कह रहे हैं बिटिया चिंता मत करना तुम्हारे गुरु हैं ना तुम्हारे प्रारब्घ परिवर्तन करनें के लिए बेटी दुखी हो तों ये पिता सुखी कहा रह पायेगा और दूसरा अनुष्ठान पूरा होते ही मुझे गवर्मेंट जाब मिल गई धन्य है हमारे गुरु महाकाल कोटि कोटि प्रणाम सभी का
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धन्यवाद् जय गुरुदेव। सोमवार को एक और नई शृंखला का शुभारम्भ