कल 26 अप्रैल वाले लेख में हमने शांतिकुंज में चल रहे 5 दिवसीय अन्तः ऊर्जा जागरण शिविर के बारे में व्यक्तिगत विचार रखे थे। ज्ञानप्रसाद पोस्ट होने के तुरंत बाद ही कुछ वीडियोस देखीं और इस विषय पर रिसर्च करने पर पता चला कि शांतिकुंज में कुछ एक शिविर इस दिशा में अवश्य चल रहे हैं। इन शिविरों का निर्धारण प्राण प्रत्यावर्तन की ही तरह साधक के व्यक्तित्व के परिष्कार एवं उच्चस्तरीय साधनात्मक उत्कर्ष के लिए किया गया है। यदि यह साधनाएं सही ढंग से की जाएँ -हर प्रक्रिया में पूरा मन लगाकर भावविह्वल होकर क्रम सम्पन्न हो तो पांच दिन में आध्यात्मिक कायाकल्प जैसी अनुभूति होती है।
हमारे सहकर्मी शांतिकुंज की वेबसाइट विजिट करके अन्य शिविरों की भांति अन्तः ऊर्जा जागरण शिविर की जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं। हम सुविधा के लिए यह लिंक भी दे रहे हैं लेकिन इस लिंक पर फ़रवरी 2020 के बाद की कोई भी जानकारी नहीं है। http://www.awgp.org/social_initiative/shivir/5_days_antaha_urja_jagran_satr
इसी सन्दर्भ में 2012 में प्रकाशित, 65 पन्नों की एक अद्भुत पुस्तक जिसके लेखक ब्रह्मवर्चस हैं, भी उपलब्ध है। ब्रह्मवर्चस लेखक के बारे में हम अपने पूर्वप्रकाशित लेखों में लिख चुके हैं। इस पुस्तक में अधिकतर जानकारी वही है जिसकी हम आजकल चर्चा कर रहे हैं। इस विषय पर गायत्रीधाम सेंधवा मध्य प्रदेश से कुछ वीडियोस भी प्रकाशित हुई हैं ,सहकर्मी देख सकते हैं। एक दिवसीय ऑनलाइन कुटी प्रवेश शिविर जो मौन साधना ही है और जिसे अपने घर रहकर ही सम्पन्न किया जा सकता है, उसकी जानकारी भी शांतिकुंज से मिल सकती है लेकिन उसका लिंक भी हम दे रहे हैं – http://www.awgp.org/social_initiative/shivir/online_antah_urja_shivir
तो इस जानकारी तो इधर ही छोड़ते हुए, हम चलते हैं युगतीर्थ शांतिकुंज स्थित परमपूज्य गुरुदेव के कक्ष में जहाँ साधक गुरुदेव के समक्ष अपनी अनुभूतियों की चर्चा कर रहे हैं। आज के लेख में महाराष्ट्र की साधक योगमाया में जागृत हुई कुंडलिनी का गुरुदेव द्वारा खंडन और इन सत्रों में अनुशासन और साधना का connection जानने का अवसर मिलेगा।
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महाराष्ट्र की साधक योगमाया की कुंडलिनी कल्पना :
बिंदुयोग त्राटक का अभ्यास करते हुए महाराष्ट्र की योगमाया को अनुभव हुआ कि आंखें बंद करते ही तीव्र प्रकाश दिखाई देने लगता है। सविता देवता सूर्य पिंड के रूप में प्रत्यक्ष दिखाई दे रहे हैं। उन पर एकाग्र होते हुए अनुभव में आया कि मूलाधार चक्र से एक प्रवाह ऊपर उठ रहा है। योगमाया उस अनुभूति से गदगद हुई। स्वयं ही कल्पना करने लगी कि कुंडलिनी जागृत हो रही है। गुरुदेव से भेंट के समय उसने अपने अनुभव के बारे में बड़े उत्साह से बताया। आशा कर रही थी कि गुरुदेव उसकी धारणा की पुष्टि करेंगे लेकिन हुआ बिल्कुल ही उलट। गुरुदेव ने कहा कि साधना मार्ग में कोई विघ्न उपस्थित हो रहा है, ध्यान करती रहो, विघ्न दूर हो जाएगा।
योगमाया हैरान सी हो गई। अपनी धारणा की पुष्टि न होती देख उसने खुद ही अपने निष्कर्ष को ज़िद की तरह पकड़े रखा और कहा कि यह कुंडलिनी जागरण नहीं है तो और क्या है? परमपूज्य गुरुदेव ने उसकी धारणा को कल्पना बताया और कहा कि कुंडलिनी जागरण इतना आसान नहीं है कि 1-2 बार ध्यान करने से ही जागृत हो जाए।
उन दिनों कुछ धर्मगुरु कुंडलिनी जागरण के सामूहिक प्रयोग कर रहे थे। उन प्रयोगों में कई साधक एक साथ बैठते-गुरु के निर्देशों के अनुसार अभ्यास करते और फिर उसी के निर्देश पर उछलने, कूदने, नाचने, गाने, रोने चिल्लाने लगते थे। व्यायाम और मनोचिकित्सा में विरेचन (purging) जैसी इन क्रियाओं को कुंडलिनी जागरण का प्रभाव बताया जाता।
कुछ उपदेशक अपने सत्संग कार्यक्रमों में गुरुद्वारा शक्तिपात ( transfer of power ) से कुंडलिनी जगाने का प्रदर्शन भी करते थे। उनमें बहुत से साधक एक जगह बैठ जाते और गुरु भगवान या गुरुमां का प्रवचन होता। सत्संग समय में मौजूद उन गुरु के शिष्य कार्यकर्त्ता ही शोर मचाते कि शक्तिपात हो रहा है। साधकों के मन में जो तरंगे उठ रही हैं उन्हें रोकें नहीं। शक्ति को मुक्त होने दें। वह जैसे भी क्रीड़ा करती है करें। उसके साथ सहयोग करें। इन सत्संगों में भी लोग मर्यादा और अनुशासन तोड़कर नाचने गाने लगते थे।
इस तरह के प्रयोगों के बारे में देख सुनकर ही योगमाया समझने लगी थी कि थोड़े से अभ्यास और ध्यान प्रयोगों से कुंडलिनी महाशक्ति को जगाया जा सकता है। गुरुदेव ने कहा कि हाथ की सफाई या सम्मोहन (hypnosis ,mesmerism) के जरिए देखते ही देखते अगले क्षण आम की गुठली धरती में गाड़ी जाती है। पौधा उगता है और एक डेढ़ फुट के इस पौधे की डाली मेंआम लगाए जा सकते हैं। लेकिन वे सिर्फ देखने के ही होते हैं। असली आम उगाने और लगाने के लिए बरसों की मेहनत चाहिए। बागवान, मालिक और मौसम तीनों का तालमेल बने तभी वास्तविक फल आते हैं। यहाँ हम बाग़बान को साधक मानें,मालिक की परमपिता परमात्मा या गुरु मानें और मौसम को वातावरण मानें तो शायद गलत नहीं होगा। यह तीनों parameter होने के बावजूद समय का अपना महत्व है। हम सबने कबीर जी का दोहा -धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय,माली सींचे सौ घडा, ॠतु आए फल होय – सुना ही है। आजकल greenhouses के controlled environment में सारा वर्ष, किसी भी ऋतू में कुछ भी पैदा किया जा सकता है लेकिन क्या quality प्राकृतिक जैसी है -कतई नहीं।
जिन कार्यक्रमों की बात गुरुदेव ऊपर वाले वाक्य में कर रहे थे,उनमें कुंडलिनी जागरण के लिए प्रायोगिक निर्देश तो दिए जा सकते हैं लेकिन वह केवल वे पाठ पढ़ाने की तरह ही हैं । महाशक्ति का कृपा प्रसाद साधक, गुरु और साधना के उपयुक्त वातावरण का मेल बनने पर ही मिलता है।
अनुशासन से फलित साधना:
पांच दिन के इस प्राण प्रत्यावर्तन उपक्रम में साधकों को विचित्र अनुभव हो रहे थे। साधना का कठोर अनुशासन ही अपने आप में एक अनूठा अनुभव था। पूरे समय मौन और अपने एकांत कक्ष तक ही सीमित रहने का निर्देश जहां तक हो सके अपने आपसे भी बातचीत नही करना है। मन में जो विचार उठें उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करना और उन्हें देखते रहना है। विचारों और भावों में प्रतिक्रिया में उतरना ही अध्यात्म की भाषा में “आत्मालाप” है। इस अवधि में कोई मानवीय सान्निध्य चाहिए तो वह कक्ष में रखे दर्पण से प्राप्त किया जा सकता है। उसके लिए भी समय निश्चित था। अपने आपको दर्पण में देखते हुए अपने कलेवर में बैठे आत्मदेव को जगाने के लिए किए जाने वाले ध्यान के समय ही यह सान्निध्य मिलता था।
सुबह चार बजे से आरंभ हुई दिनचर्या में केवल एक ही बार अपने कक्ष से बाहर निकलना होता था। स्नान ध्यान के बाद माताजी के सान्निध्य में उष:पान के लिए जाने के अलावा साधना कक्ष में ही पूरा समय व्यतीत होता। उस एक घड़ी में साधकों को अपनी कोई समस्या, व्यथा या कठिनाई बताना होती तो वे माताजी से कह देते थे। यों परिजनों का अनुभव था कि कहने की जरूरत नहीं पड़ती थी-पल प्रतिपल लगता था कि गुरुदेव और माताजी का स्नेह दुलार मिल रहा है। प्रत्यक्ष की भांति वह सहज सुलभ है-ध्यान में, जप में, प्राणायाम के समय सोऽहम साधना में और नादयोग के समय उनके मार्गदर्शक उन्हें निरख परख रहे हैं। इस अनुभूति के बावजूद परिजनों को गुरुदेव से प्रत्यक्ष भेंट के लिए अपनी बारी का इंतजार रहता। पांच दिन के सत्र में वह अवसर एक बार ही आता था।
गुरुदेव के प्रवचन इन दिनों नहीं होते थे। साधना संबंधी निर्देश साधना कक्ष में रहते हुए ही मिल जाते थे। गुरुदेव की वाणी उस समय प्रत्यक्ष सुनाई देती थी। फिर भी उनके प्रत्यक्ष दर्शन और सान्निध्य की लालसा तो रहती ही थी। यह अवसर जब भी मिलता साधक की भाव भूमिका कुछ अलग और विशिष्ट स्तर की हो जाती।
To be continued:
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प
26 अप्रैल,2022 के ज्ञानप्रसाद के अमृतपान उपरांत 3 समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :
(1) संध्या कुमार-28 , (2 ) अरुण वर्मा -26,(3) सरविन्द कुमार-30
सरविन्द कुमार जी गोल्ड मैडल विजेता घोषित किये जाते हैं, उनको हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्