प्राण प्रत्यावर्तन साधकों के आवास और आहार के बारे में हमने 19 अप्रैल वाले लेख में वर्णन किया और इस साधना के कठिन selection process का विवरण 20 अप्रैल को प्रकाशित किया था।
आज हम Real-Life Experience को समझने का प्रयास करेंगें। आने वाले लेखों में जब साधकों की अनुभतियाँ प्रकाशित करेंगें तो समझने में और भी सहायता मिलेगी । सम्पूर्ण दिनचर्या, भिन्न -भिन्न साधना क्रम, साधना के सोपान(steps ) इत्यादि का ज्ञान होने पर हम पूर्णतया सहमत हो जायेंगें कि
“यह प्राण प्रत्यावर्तन साधना युग परिवर्तन की गतिविधियों का आधार बनी। प्रत्यावर्तित जीवन सांसारिक मोहमाया से छूटकर लोकसेवी वानप्रस्थ में बदलता चला गया।”
इन लेखों को understandable बनाने के लिए हमने सरलीकरण में कोई कसर नहीं छोड़ी है, अगर किसी स्थान पर कठिनता आ रही है तो वह कंटेट की आवश्यकता के कारण है उदाहरण के लिए पंचकोशों को explain करना एक अलग ही विषय है। हो सकता है समझने के लिए बार-बार पढ़ना पड़े, हमें तो पढ़ना पड़ा है।
हम जानते हैं कि हमारे पाठक ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने में बहुत ही उत्सुक हैं, तो बिना किसी विलम्ब के सीधे चलते हैं आज के लेख की ओर।
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दिनचर्या का विभाजन:
सामान्यक्रम में इस दिनचर्या को इस तरह विभाजित किया गया था ।
1) प्रातः 4:00 बजे उठना
2) 4:00 से 5:00 शौच -स्नान
3) 5:00 से 6:30 तक साधना का “प्रथम सोपान”
4) 6:30 से 7:00 बजे जलपान
5) 7:00 से 7:30 तक वस्त्र धोना, सफाई, व्यायाम
6) 7:30 से 10:00 तक साधना का “द्वितीय सोपान”
7) 10:00 से 10:30 भोजन
8) 10:30 से 1:30 विश्राम, स्वाध्याय, मनन, चिन्तन
9) 1:30 से 2:30 प्रवचन
10) 2:30 से 3:00 जलपान
11) 3:00 से 5:00 तक साधना का “तृतीय सोपान”
12) 5:00 से 5:30 शौच आदि
13) 5:30 से 6:00 में भोजन
14) 6:00 से 7:00 टहलना
15) 7:00 से 8:00 भाव संगीत
16) 8:00 से 4:00 तक शयन ।
मध्याह्न 10:30 से 1:30 और साँय 5:00 से 7:00 की अवधि में हर दिन व्यक्तिगत परामर्श के लिए प्रत्येक साधक को एकान्त समय मिलता ।
साधना के लिए जो तीन सोपान (Steps) निर्धारित किए गए थे, उनमें 10 सूत्री क्रियाकलापों का समावेश था जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
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प्रथम सोपान: 5:00 से 6:30 प्रातः
1) प्रातः 5:00 से 5:15 शिथिलीकरण मुद्रा : शवासन-शरीर को बिना तनाव का बनाना, अधिकाधिक शिथिल करना, मृतक जैसी स्थिति में शरीर में ढीलापन लाना ताकि मांसपेशियों का तनाव समाप्त हो सके और ध्यान-धारणा में कोई विघ्न न आए।
2) 5:15 से 5:30 उन्मनी मुद्रा: मन को विचारों से खाली कर देना । प्रलय काल जैसी स्थिति का विचार करना जैसे कि नीचे नील जल, ऊपर नील आकाश के बीच अपने को अकेले अबोध बच्चे की तरह कमल पत्र पर पड़े हुए बहते जाने की भावना करना । संसार में वस्तुओं और व्यक्तियों का बिल्कुल अभाव अनुभव करना । बिल्कुल मौन का का ध्यान करना । इस ध्यान से मन खाली हो जाता है और ध्यान पर चित्त को एकाग्र करना सरल हो जाता है।
3) 5:30 से 6:30 खेचरी मुद्रा: जिव्हा को तालू पर उलटकर ब्रह्मरंध्र से टपकने वाले आनन्द और उल्लास को सामान्य स्तर की अमृत बिन्दुओं का रसास्वादन करना । आनन्द, सन्तोष, हर्ष, उल्लास अर्थात् प्रगति के लिए उमंग उत्साह का अनुभव करना।
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द्वितीय सोपान :7:30 से 10:00
ये तीन साधनाएँ डेढ़ घण्टे में करने के उपरान्त एक घण्टे के अवकाश के बाद प्रभातकालीन दोपहर के प्रथम भाग में की जाने वाली साधनाओं का क्रम आता था । जिनका स्वरूप कुछ इस प्रकार था –
1 ) 7:30 से 8:00 तक आधा घण्टा गायत्री मंत्र की पाँच मालाओं का जप । जप काल में आधे समय मल-मूत्र सनी मलीनता के कारण माता का अपनी गोद में न लेना, स्नान कराया जाना और पोंछा जाना। तदुपरान्त माता की गोद में प्यार-दुलार एवं मिलना। जप के अन्त में अपनी उपलब्धियों को जल रूप मानकर ब्रह्मवर्चस के प्रतीक भगवान आदित्य के चरणों में समर्पित और विसर्जित करना।
2 ) 8:00 से 8:45 पौन घण्टा सोऽहम् साधना:आरम्भ के पन्द्रह मिनटों में स्वास के साथ ‘सो’ की तथा बाहिर निकालते समय ‘हम’ के ध्यान की भावना करना। उसके उपरान्त स्वास के रूप में महाप्राण का शरीर के रोम-रोम में प्रवेश और ‘हम’ के रूप मे निकृष्ट स्तर की अहंता का बहिष्कार करना ।
3 ) 8:45 से 9:30 पौन घण्टा बिन्दुयोग त्राटक: प्रकाश बत्ती पर दृष्टि जमाना। ऑखे बन्द करना और भूमध्य भाग आज्ञाचक्र मे प्रकाश ज्योति का ध्यान जमाना । उस प्रकाश का शरीर के प्रत्येक अवयव एवं मन के प्रत्येक स्तर में प्रवेश अनुभव करना और अपनी सत्ता के कण-कण में दैवी प्रकाश की ज्योति जगमगाती हुई अनुभव करना।
4) 9:30 से 10:00 आधा घण्टा नादयोगका पूर्वार्द्ध: भगवान को बंसी जैसी पुकार प्रेरणा में अपने लिए आवाहन का आमंत्रण मानना और रास नृत्य की तरह ईश्वरीय संकेतों पर थिरकने लगने की भावविभोर स्थिति में पहुंचना।
साधना के इस द्वितीय सोपान के पूरा होने के बाद अगले तृतीय सोपानको बारी आती है।
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तृतीय सोपान:3:00 से 5:00
1) 3 :00 से 3:45 पौन घण्टा आत्मवोध: दर्पण में अपनी छवि देखते हुए अब तक के अवरोधों के लिए अपने को उत्तरदायी मानते हए भर्त्सना करना और भविष्य मे सत्पथ गमन के लिए अनुरोध, अनुग्रह करना । इसी शरीर में शैतान और भगवान की परस्पर विरोधी सत्ताएँ अवस्थित देखना । दोनों में से एक को चुनना । आत्मसत्ता के भीतर समाए हुए इष्ट देव का अभिवन्दन और प्रत्यक्ष करना । भविष्य में उसे देवस्तर का बनाने का विश्वास करना। उसी उज्ज्वल स्वरूप को ईश्वर प्राप्ति का प्रत्यक्ष कारण मानना और उस स्तर के लिए अभी से श्रद्धांजलि समर्पित करना।
2) 3:45 से 4:30 पौन घण्टा तत्वबोध: शरीर और आत्मा को अलग करना । अपने शरीर को मृतक स्थिति -कुत्तों, कौओ, कोड़ों, द्वारा खाया जाना, जलाया, गाड़ा जाना । अपने को किसी ऊंचे स्थान पर बैठकर यह सब दृश्य देखने की स्थिति में रहना । शरीर और मन को आत्मा का उपकरण वाहन मात्र समझना। उनके स्वार्थ और अपने स्वार्थ में अन्तर करना। उपलब्ध क्षमता में से कितना अंश इन वाहनों के लिए रखना और कितना आत्म-कल्याण के लिए रखा जाना चाहिए, इसका निर्णय करना ।
3) 4:30 से 5:00 आधा घण्टा नादयोग का उत्तरार्द्ध : इस बार उच्च दृष्टिकोण अपनाकर संसार में मनुष्यों में बिखरे हुए उत्कृष्टता के तत्व का अनुभव करना और विधेयात्मक दृष्टिकोण के अनासक्त मनः स्थिति के फलस्वरूप मिलने वाले स्वर्गीय आनन्द की अनुभूति में संगीत ध्वनि के साथ-साथ हर्षोल्लास भरे भाव नृत्य में सलग्न होने की अनुभूति करना ।
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प्रत्यावर्तन सत्रों के इस दस सूत्री (3+4 +3) साधनाक्रम मे पाँच योगों का अदभुत रीति से समायोजन किया गया था
(1) लययोग
(2) बिन्दुयोग
(3) प्राणयोग
(4) ऋजुयोग
(5) नादयोग ।
इस एक ही साधनाक्रम मे पाँच योग साधनाएँ जुड़ी गुंथी है। इन्हे पाँचकोशों के अनावरण का प्रयोजन पूरा करने वाली “पंचकोशी उच्चस्तरीय गायत्री साधना” भी कह सकते है।
प्रातः प्रथम सोपान में खेचरी मुद्रा लययोग है। दूसरे सोपान में सोऽहम् साधना प्राणयोग के अंतर्गत आती है। आज्ञाचक्र मे ज्योति अवतरण बिन्दुयोग है। नादयोग के दो प्रयोग ब्रह्म सम्बन्ध और मनोनिग्रह का प्रयोजन दो बार में पूरा करते है। तीसरे सोपान में आत्मबोध और तत्ववोध की साधना ऋजुयोग के दो पक्ष है। लययोग से आनन्दमय कोश, बिन्दुयोग से अन्नमयकोश, प्राणयोग से प्राणमय कोश, नादयोग से मनोमयकोश और ऋजुयोग से विज्ञानमय कोश की जाग्रति होती है।
इनमें से प्रत्येक योग की अपनी सिद्धियां है। खेचरी मुद्रा से अमरत्व की, देवत्व प्राप्ति, देव सत्ताओं के साथ आदान-प्रदान होता है। बिन्दुयोग से अदृश्य दर्शन होते हैं, व्यक्तित्व में विदयुतीय प्रवाह का अभिवर्द्धन होता है । प्राणयोग से स्थिरता, सुदृढ़ता, साहसिकता एवं तेजस्विता की वृद्धि, अभय एव पराक्रम में कौशल की वृद्धि होती है। नादयोग से दिव्य श्रवण, वायरलेस जैसा चेतन स्तर उपयोग सूत्र का उठना संभव होता है । ऋजुयोग से आत्मसाक्षात्कार स्वर्ग एवं मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है।
यह सब सिद्धियो के संकेत भर हैं । वस्तुतः उनका सीमाबन्धन नहीं किया जा सकता कि वे कितने प्रकार और कितने स्तर की हो सकती हैं। यह साधक की मन:स्थिति पर निर्भर है। दर्पण पर साधना करने के छोटे-से विधान को ही ले लें। उसमें “छाया पुरुष सिद्धि” की समस्त सम्भावनाएँ विद्यमान हैं । अपने ही स्तर का एक नया सूक्ष्म व्यक्तित्व उत्पन्न कर लेना “छाया पुरुष” कहलाता है। पाँचकोशो में पांच छाया पुरुष तक सिद्ध कर लेने की गुंजाइश है। वे विश्वस्त सेवक का कार्य करने में निरन्तर जुटे रह सकते हैं । प्राणयोग के सहारे प्राण चिकित्सा से कठिन रोगों को सरलतापूर्वक दूर करने में सफलता मिल सकती है। ये सभी पाँच योग जिस सूत्र मे गूंथे गए थे वह मंत्रयोग हैं गायत्री महामंत्र की साधना सभी सिद्धियो का आधार है।
इस साधनाक्रम में, इन साधना सत्रों में जिन्होंने भी भागीदारी ली वे उन चार दिनों की स्मृतियों, अलौकिक अनुभूतियो को अभी तक भूले नहीं है। प्रायः सभी का सर्वमांन्य अनुभव यही है कि उन दिनों चौबीसों घण्टे पूरे शरीर मे विदयुत प्रवाह-सा दौड़ता रहता था। ऐसा लगता था मानो गुरुदेव अस्तित्व में नए प्राण का संचार कर रहे हैं । प्राणों के इस प्रवाह को जिसने भी धारण किया वे अविच्छिन्नरूप से सदा के लिए उनके अपने हो गए। यही नहीं अपने में ऐसे साहस, मनोबल , प्राणबल अनुभव करने लगे कि युग निर्माण मिशन की बड़ी से बड़ी जिम्मेदारी को आसानी से उठाते चले गए। इन सत्रों की उपलब्धियों , अनुभूतियों को यदि संक्षेप मे कहा जाय तो यही कहना होगा कि
“यह प्राण प्रत्यावर्तन साधना युग परिवर्तन की गतिविधियो का आधार बनी। प्रत्यावर्तित जीवन सासारिक मोहमाया से छूटकर लोकसेवी वानप्रस्थ में बदलता चला गया।”
To be continued:
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प
“सप्ताह का एक दिन पूर्णतया अपने सहकर्मियों का” 23 अप्रैल,2022 के अमृतपान उपरांत 2 समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :
(1) संध्या कुमार-27 , (2 ) अरुण वर्मा -31
तीनों ही सहकर्मी गोल्ड मैडल विजेता घोषित किये जाते हैं, उनको हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्