वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

क्या शांति मंत्र  हमें  शांति दे पाया ?

Mother Nature -प्रकृति माता  के सीने पर जब प्रहार होता है, उसका बलात्कार होता है तो उसके बच्चों का खून अवश्य ही खौलता है, यही दशा है ऑनलाइन ज्ञानरथ के प्रत्येक सदस्य की। इतनी सुन्दर दिव्य प्रकृति का सर्वनाश होते कैसे देखा जाये। प्रस्तुत है पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित करता हुआ यह दुसरा  और अंतिम भाग। 

कल वाले ज्ञानप्रसाद में आप मसूरी इंटरनेशनल स्कूल की उत्पति की 14 मिंट की वीडियो देखेंगें।  वीडियो देखकर आप में गुरुदेव के प्रति और अधिक  श्रद्धा और समर्पण जागृत होने की सम्भावना है।

तो आरम्भ करते हैं आज की क्लास :

*****************************   

जल हम सब की  बहुत बड़ी आवश्यकता है।  लेकिन पीने वाला पानी  भी बिक चुका है।  पहाड़ी क्षेत्रों में 60 से अधिक  जल विद्युत परियोजनाएं आपदा के क्षेत्र के आसपास ही संचालित है। आज हमारे पहाड़  कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक होते प्राकृतिक दोहन से कराह रहे  हैं । आज पहाड़ दु:खी हैं, नदियां अपने वेग को असमय रोके जाने से परेशान हैं। मनुष्य द्वारा किए गए इस दोहन से प्रकृति  अचम्बे में  है, वह नहीं समझ पा रही है कि खुद को स्वतंत्र करें या मानव अस्तित्व के विनाश की ओर अपना कदम बढ़ाए। कब तक प्रकृति हमें सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ती रहेगी।

हम सब जानते हैं कि मानव जीवन प्रकृति पर आश्रित है। प्रकृति एक विराट शरीर की तरह है। जीव-जन्तु, वृक्ष-वनस्पति, नदी-पहाड़ आदि उसके अंग-प्रत्यंग हैं। इनके परस्पर सहयोग से यह वृहद शरीर स्वस्थ और सन्तुलित है। जिस प्रकार मानव शरीर के किसी एक अंग में खराबी आ जाने से पूरे शरीर के कार्य में बाधा पड़ती है, उसी प्रकार प्रकृति के घटकों से छेड़छाड़ करने पर प्रकृति की व्यवस्था भी गड़बड़ा जाती है।

भारतीय फिलॉसोफी  यह मानती  है कि हमारी  देह की रचना पर्यावरण के महत्त्वपूर्ण घटकों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से ही हुई है। इतिहास गवाह है मानव ने प्रकृति को पूजा है। समुद्र मंथन से वृक्ष जाति के प्रतिनिधि के रूप में कल्पवृक्ष निकला था, देवताओं ने  उसे अपने संरक्षण में लिया था , इसी तरह कामधेनु और ऐरावत हाथी का संरक्षण भी ऐसे  उदाहरण हैं। भगवान् कृष्ण की गोवर्धन पर्वत की पूजा की शुरुआत का लौकिक पक्ष यही है कि जन सामान्य मिट्टी, पर्वत, वृक्ष एवं वनस्पति का आदर करना सीखें। सदियों से चलती  आ रही गोवर्धन पूजा आज भी हमें पर्वत और हिमशिखरों की रक्षा की सीख दे जाती  है। फिर हमसे चूक कहां हुई कि हम अपनी  सभ्यता और संस्कृति को भूल कर प्रकृतिक  हत्या करने में लग गए।

प्रकृति की पूजा करने वाले  भारत के इतिहास के पन्नों का अवलोकन करें तो प्रकृति का संरक्षण हमें विभिन्न रूपों में दिखाई देता है ।सिंधु सभ्यता की मोहरों पर पशुओं एवं वृक्षों का अंकन, सम्राटों द्वारा अपने राज-चिन्ह के रूप में वृक्षों एवं पशुओं को स्थान देना, गुप्त सम्राटों द्वारा बाज (Hawk ) को पूज्य मानना, मार्गों में वृक्ष लगवाना, कुएँ खुदवाना, दूसरे प्रदेशों से वृक्ष मँगवाना आदि तात्कालिक प्रयास पर्यावरण प्रेम को ही प्रदर्शित करते हैं। फिर  हम क्यों आज अपने प्रकृति प्रेम को भुलाते  जा रहे हैं।  हमें ज्ञान ही नहीं है कि  सिंधु सभ्यता कैसे खत्म हुई। आज भी हम अटकलों और विवादों के बीच  प्रकृति के सौम्य रूप से खिलवाड़ करने से पहले एक मिनट भी नहीं सोचते। 

वैदिक ऋषि प्रार्थना करते थे  कि पृथ्वी, जल, औषधि एवं वनस्पतियाँ हमारे लिये शान्तिप्रद हों। वैदिक काल से चलता आ रहा शांति मंत्र क्या हमें  शांति दे पाया। यह शांतिमंत्र  शान्तिप्रद तभी हो सकता है जब हम इसका  सभी स्तरों पर संरक्षण करें। तभी भारतीय संस्कृति में पर्यावरण संरक्षण की इस विराट अवधारणा की सार्थकता हो सकती  है, जिसकी प्रासंगिकता आज इतनी बढ़ गई है। 

प्रकृति में बिना रोक-टोक मानव का बढ़ता हस्तक्षेप वातावरण को प्रदूषित कर रहा है।  प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अन्त दिखाई दे रहा है। सरकारों द्वारा चलाई जा रही  योजनाओं पर विचार करना आज के  समय की सबसे बड़ी  आवश्यकता बन गई है। विकास के नाम पर लिखे गए  बड़े-बड़े documents ,manuscripts को समझने की बहुत आवश्यकता है ।आज समस्त विश्व  को सतत (continuous) विकास की महती आवश्यकता है , क्या सरकारें इसे अक्षरस: लागू करेंगी?  निश्चित रूप से सतत विकास से हमारा अभिप्राय ऐसे विकास से है, जो हमारी भावी पीढ़ियों को  अपनी जरूरतें पूरी करने की योग्यता को प्रभावित किए बिना वर्तमान समय की आवश्यकताएं पूरी करे। पर्यावरण संरक्षण, जो सतत विकास का अभिन्न अंग है,  एजेंसियां गंभीरता से नहीं लेती। यदि लेती होती तो फिर अंधाधुंध दोहन, एक ही घाटी में सैकड़ों परियोजनाएं नदी के जल की  बूंद-बूंद निचोड़ कर बेचने का प्रयास न करती। इस अवैध प्रयास को  रोका क्यों नहीं जा रहा।

सतत विकास लक्ष्यों का उद्देश्य सबके लिए समान, न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समृद्ध और रहने योग्य विश्व का निर्माण करना है। विकास के तीनों पहलुओं-सामाजिक,आर्थिक और पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना है। आज हम इन उद्देश्यों से क्यों भटक गए हैं ? चूक कहां हो रही है, मानव विकास की दौड़ में अंधा क्यों  होता जा रहा है। 

सतत विकास सदैव हमारे दर्शन और विचारधारा का मूल सिद्धांत रहा है। सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अनेक मोर्चों पर कार्य करते हुए हमें महात्मा गांधी की याद आती है, जिन्होंने हमें चेतावनी दी थी कि -धरती प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकती है, पर प्रत्येक व्यक्ति के लालच को नहीं। आज क्या हम लालच की पराकाष्ठा को पार करने पर विवश हैं  ऐसी कौन सी मजबूरी है कि हम अपने विनाश की काली गाथा अपने ही हाथों लिखना चाह रहे हैं।

युगों  से हमारे जीवन के तीनों बुनियादी आधार वायु, जल एवं धरती  आज खतरे में हैं। तरक्की और विकास के नाम पर जिंदगी में सुविधा को बढ़ाने के लिए हमने वह सब कुछ खतरे में डाल दिया जिसे प्रकृति ने हमें प्रदान किया था।  पर ध्यान रहे मौसम, प्रकृति और पहाड़ गुलामी बर्दाश्त नहीं करेंगे।  मानव सभ्यता के लिए खतरनाक साबित होगाऔर प्रकृति के इस बलात्कार की सज़ा  हमें उत्तर में खड़ा हिमालय जरूर देगा, चेतावनी स्वरूप दे भी रहा है शायद धौलीगंगा के भयंकर जल प्रवाह ने हमें चेतावनी स्वरूप यह दिखा भी दिया है। संभल जाओ, अपने से हजार गुना बड़े डायनासोर आज कहीं अस्तित्व में नहीं तो फिर मानव अस्तित्व मिटते देर न लगेगी। प्रकृति की रौद्रता को जब 14 करोड़ वर्ष तक राज करने वाली विशालकाय डायनासोर की प्रजाति नहीं झेल पाई तो फिर मानव की औकात ही क्या है? 

सभ्यता के विकास के शिखर पर बैठे मानव के जीवन में अंधाधुन विकास के  खिलवाड़ ने वृक्षों के अभाव में प्राणवायु की शुद्धता और गुणवत्ता को घटा दिया है आज हम शुद्ध ऑक्सीजन के अभाव में दम घुटने को मजबूर खड़े हैं।  पहाड़ों के बीच में पगडंडीया बनाकर खेती करके कुछ फसल उगाने वाले पहाड़ों की समृद्धि प्रचुर संपदा से जड़ी बूटियां निकालकर व्यापार करने वाले तथा नदियों में पानी के संसाधन बना कर जीवन यापन करने वाले पहाड़ के आम और निर्दोष मानव जाति को कब तक विकास और सभ्यता के उन्नत होने की बलि देनी होगी।

विकास के नाम पर पहाड़ों में निरन्तर वन कटाई के कारण भूमि की ऊपरी परत की मिट्टी वर्षा के साथ बह-बहकर समुद्र में जा रही है। इसके कारण बाँधों की उम्र कम हो रही है, नदियों में गाद जमा होने के कारण जरा सा भी बहुत भयंकर बाढ़ का रूप ले लेते हैं। आज समूचे विश्व में हो रहे विकास ने प्रकृति के सम्मुख अस्तित्व की चुनौती खड़ी कर दी है। और इन सभी गतिविधियों का खामियाजा इन्हीं पहाड़ी जनमानस, पशु- पक्षी को देखना होता है।

आज पूरी मानव सभ्यता को यह सोचने की जरूरत है कि क्या हम प्रकृति के दोहन को इतना सीमित नहीं कर सकते कि अपनी जरूरतों को पूरा करने मात्र ही प्रकृति का शोषण करें ।कुछ ऐसा करें कि आने वाली पीढ़ी भी प्राकृतिक नजारों प्राकृतिक संतुलन और प्रकृति की मिठास को उपभोग कर सके ।

क्या ऐसा सार्थक नहीं किया जा सकता कि पर्यावरण संरक्षण और विकास के बीच संतुलन का एक मॉडल तैयार किया जा सके ? निश्चित रूप से विकास सुखदाई है ,आराम तलबी की ओर ले जाने वाला है, विभिन्न सुख-सुविधाओं के साथ  एक कमरे में कैद करने वाला है, पर क्या इन सब की कीमत हमें प्राकृतिक छेड़छाड़ करके ही पूरी करनी होगी।

उत्तराखंड की वादियों में हजारों जल विद्युत परियोजनाएं ,हजारों बांध बनाए जा रहे हैं अभी हाल ही में कुछ माह पूर्व ही ऋषि गंगा जल विद्युत परियोजना शुरू हुई थी । निजी हाथों के व्यापारियों को सौंप दी गई। हमारी साइंस और टेक्नोलॉजी इतनी बढ़ गई है कि हम सेटेलाइट से हर एक उस पल का पता लगा सकते हैं जो हमारे इर्द-गिर्द हो रहा है फिर information Technology  कहां पर फेल हुई  कि इतने बड़े  ग्लेशियर का पिघलना हमें दिखाई न दिया। पता तो हमें सब था लेकिन  निजी व्यापारियों के लाभ के लिए जानकारियां छुपाई गई और आंखें बंद की गई।

क्यों  हमारे Policy makers , हमारी सरकारें हादसों से सबक नहीं लेती? क्यों आम आदमी का जीवन इतना सस्ता हो गया है कि सत्ता पर बैठे लीडरों  की  आंख से उन गरीबों के लिए  एक आंसू भी   नहीं निकलता। क्या  धृतराष्ट्र बनना बंद नहीं किया जा सकता ? हर बार हादसे का इंतजार करते हम क्यों सतर्क नहीं हो रहे?  क्यों हमारी सरकारें कुछ सीमित मुद्दों के सिवा एक स्पष्ट रणनीति बनाकर प्रकृति को संरक्षण प्रदान नहीं कर रही? विचार करें आज अगर मानव नहीं जगा तो शायद मानव के अस्तित्व की कहानियां लिखने वाला भी कोई नहीं होगा।

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

**************************

24 आहुति संकल्प 

30 मार्च 2022 के  ज्ञानप्रसाद-अमृतपान उपरांत 6   समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :

(1) सरविन्द कुमार -32 , (2 ) संध्या कुमार -25  , (3) अरुण वर्मा -29 (4)प्रेरणा कुमारी -26  (5 ) रेणु श्रीवास्तव -34, (6 )पूनम कुमारी -26   

रेणु  श्रीवास्तव बहिन जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने पर हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी-अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्  

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s



%d bloggers like this: