वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

प्रकृति किसी बड़े विनाश के पहले हमें चेतावनी जरूर देती है

नौ दिन तक हम लगातार धरती के स्वर्ग का अध्यन करते रहे ,उस स्वर्ग की दिव्यता को निहारते रहे, चप्पे चप्पे पर हमने परमपूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म संरक्षण में, तपोवनी संत  माँ सुभद्रा के सूक्ष्म  सानिध्य में उत्तराखंड के उस क्षेत्र में अध्यन किया जिसे स्वर्ग का विशेषण दिया गया है। यह विशेषण केवल आधुनिक साहित्य पर ही आधारित नहीं है बल्कि पुरातन साहित्य भी इसका साक्षी है। साधकों ने इस क्षेत्र में आध्यात्मिक तत्व की प्रचंड तरंगें प्रवाहित होते देखी  हैं। 

लेकिन बड़े दुःख की बात है की बात है कि हमारी प्रकृति माँ, धरती माँ, हमारा वातावरण सीने में इतने घाव लिए हुए है कि  ग्लेशियर और हिमशिखर पिघलने को विवश हो रहे हैं और विकास के नाम  पर  प्रकृति बलिदान हो रही है। 

हम पृथ्वी को, प्रकृति को माता मानते हैं ,इसीलिए हम इसे धरती माता य Mother Nature कहते हैं।    और उस पर  निर्मित आकृति शैलाभिदेहम ( धरती की सम्पदा )  को पिता की तरह पूजते हैं।  आज का मानव इतना स्वार्थी क्यों हो गया है, क्यों  पालन करने वाली  प्रकृति के प्रति वह इतना क्रूर हुआ जा रहा है। क्या अब  इस  अंधी दौड़ को  रोकने का समय नहीं आ गया? अवश्य ही आ  गया है। 

प्रकृति किसी बड़े विनाश के पहले हमें चेतावनी जरूर देती है, ठीक उसी प्रकार जैसे हमारी माँ हमें गलत मार्ग पर जाने से रोकती अवश्य है। यदि अभी भी हम  सजग न हुए तो  तो मानव का अस्तित्व खत्म होना निश्चित है। अगर हम प्रकृति माँ  का लगातार शोषण करते रहेंगें तो  प्रतिशोध तो अवश्य ही  होगा। समय-समय पर पर्वतराज हिमालय ( हिमालय पिता ) ने हमें warning दी लेकिन हम उस  warning को अनसुना करते रहे परिणाम हमारे समक्ष हैं। 1991 में उत्तरकाशी का भूकंप, 1998 में मालपा भूकंप, 1999 में चमोली भूकंप,  2013 का केदारनाथ का तबाही वाला मंजर, 2021 में ग्लेशियर के पिघलने और चमोली घाटी ऋषि गंगा और धौली गंगा का सैलाब। यह तो हमने कुछ एक के नाम ही दिए हैं। 

डॉक्टर अनिल जोशी जो  Himalayan Environmental Studies and Conservation Organisation (HESCO) के जन्मदाता हैं उन्होंने इस दिशा में  सरकारों को बहुत प्रेरित किया है।  उनका कहना है कि उत्तराखंड की भूमि Earthquake prone है और ऊँचे भवनों  का निर्माण एक दम रोकना ही एक विकल्प होगा।  उन्होंने observatory की भी सिफारिश की है ताकि भूंचाल से पहले ही warning दी जा सके। 1973 का  चिपको आंदोलन इस दिशा में इतना प्रभावशाली था कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर इस आंदोलन की गूँज सुनाई पड़ी। 

कितने दुःख की बात है कि हम विकास की race लगाते-लगाते इतने भटक गए हैं कि हमारे पास पीने का पानी भी  निशुल्क नहीं  है। क्या इस मानव ने कभी सोचा था कि इतनी  भरपूर प्राकृतिक  सम्पदा के होते हुए भी पीने का पानी बोतलों में खरीदना पड़ेगा। आज हम में से अधिकतर लोग bottled water ही प्रयोग करते हैं, tap water पर किसी को कोई विश्वास नहीं है क्योंकि pollution level घातक स्टेज पर हो गया है।  पानी की बात तो हम सब जानते हैं लेकिन ताज़ा हवा, Pure Air भी अब निशुल्क नहीं रही है।  आइये ज़रा देखें हम क्या कह रहे हैं। 

भारत में Pure Himalayan air का  10 लीटर का  कैन 550 रुपये में बिक  रहा  है। यह विचार कनाडा की कंपनी Vitality Air  से आया, जिसने बोतलबंद हवा बेचना शुरू किया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया का एक ब्रांड Auzair  आया, जो भारत में भी अपने उत्पाद बेच रहा है। उनकी 7.5 लीटर ताज़ी  हवा की बोतल की कीमत करीब 1,500 रुपये है। 2014  में आरम्भ हुई Vitality air नामक कंपनी ने  कनाडा के Banff, Alberta क्षेत्र से फ्रेश वायु को compressor की सहायता से cylinders में भरकर विश्व के उन स्थानों  पर मार्किट करना आरम्भ किया जहाँ air quality की गंभीर समस्या है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने  नई दिल्ली को सबसे प्रदूषित शहर के रूप में टैग किया है।  यहाँ  Vitality air  बोतलबंद हवा 3-लीटर और 8-लीटर के cylinder  में उपलब्ध है। इस  twin-pack  की कीमत 1,450 रुपये से 2,800 रुपये के बीच है यानि  12.50 रुपये प्रति सांस। विश्व के महानगरों में पर्यावरण का वह दशा हो चुकी है कि मानव सुबह उठते ही सबसे पहला काम जो  करता है वह है air quality index चेक करना और उसी index के आधार पर air purifier का level adjust करना ताकि हम आराम से सांस ले सकें ,खिड़कियां ,दरवाज़े खोलें कि न – क्या  यही विकास है ? इसी को विकास का नाम दिया जाता है।प्रकृति के आगे आज का मानव इतना  विवश है।  पिछले कई वर्षों से अलकनंदा घाटी पर अनगिनत बिजली परियोजनाओं का जाल बिछाया जा रहा है ,पेड़ों को काटा जा रहा है ,पत्थरों के सीने को चीर कर पहाड़ों में सुरंग बनाई जा रही है , प्राकृतिक रूप से  जल को बोतलों में भरकर बेचने का प्रयास ज़ोरों  पर है। नतीजन पहाड़ crack हो  रहे हैं और नदियां उफनाने को मजबूर हो रही है।निश्चित रूप से यदि यह कहा जाए कि अथक प्रयास और तपस्या से लाई गई भागीरथी  पर यदि इंसानी सेंध ना रोकी गई तो मानवता के लिए और मानव अस्तित्व के लिए पर्यावरण के साथ किया गया यह खिलवाड़ कहीं डायनासोर की तरह हमारे अस्तित्व को खत्म करने की वजह न बन जाए।

हम सब जानते हैं उत्तराखंड की पूरी इकॉनमी  पहाड़ों पर टिकी हुई है।  वहां पैदा होने वाली जड़ी बूटियां, जानवर, पशु, पक्षी तथा लोग विषम परिस्थितियों में रहकर अपना जीवन यापन करते हैं। आज विकास की अंधी दौड़ में और प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के क्रम में हमने दो प्लेटों पर टिके हुए हिमालय को इतने घाव दे दिए हैं कि  पावर प्रोजेक्ट तथा अन्य योजनाओं के नाम पर स्टोन क्रशिंग, बारूद ब्लास्टिंग, तथा प्रतिदिन  कटने वाले पहाड़ों पर हो रही निर्दयता, चल रही बड़ी-बड़ी मशीनों  से जख्मी होते पहाड़, लैंड स्लाइड तथा असमय गिरने पर मजबूर हो रहे हैं ।अंधाधुंध  हो रही  वृक्षों की कटाई जो कि highways और basic needs  के नाम पर रोज़  ही काटे जा रहे हैं, जिनकी  जड़ों  में यह पर्वत बंधे हुए थे, मजबूती से धरती के साथ अपनी पकड़ बनाये हुए थे, आज  पेड़ों के बिना  अपनी  स्थिरता की दुहाई दे रहे हैं।जरा सी गतिविधि से  भरभरा कर गिरने पर मजबूर हो रहे हैं।

हमारे सहकर्मी इस विषय पर भलीभांति शिक्षित हैं।  प्रतिदिन गायत्री परिवार द्वारा  पर्यावरण संरक्षण ,वृक्षारोपण जैसे दिव्य कार्यों को किया जा रहा है। हमारे जैसे अल्प बुद्धि और अनुभवहीन व्यक्ति के लिए इस विषय पर चर्चा करना बेतुका सा लगता है लेकिन अपनी माँ के सीने पर होते हुए प्रहार को सह पाना भी तो असहनीय है।  इसलिए इन पंक्तियों में  हम अपने  ह्रदय की व्यथा व्यक्त  करने का प्रयास कर रहे हैं , इसका दूसरा और अंतिम भाग कल प्रस्तुत किया जायेगा।

To be continued:

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प 

28   मार्च 2022 की  प्रस्तुति  के अमृतपान उपरांत 4  और 29 मार्च की प्रस्तुति के उपरांत 3 समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :

28 मार्च : (1) सरविन्द कुमार -32 , (2 ) संध्या कुमार -24 , (3)  अरुण वर्मा -37  (4)प्रेरणा कुमारी -31  { विजेता अरुण वर्मा }

29 मार्च (1 )अरुण वर्मा -24 , (2)सरविन्द  कुमार-31,(3 ) संध्या कुमार -25 { विजेता सरविन्द कुमार }  

अरुण वर्मा और  सरविन्द कुमार  जी दोनों  गोल्ड मैडल विजेताओं को   हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्  

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