वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ? -पार्ट 5 

22 मार्च 2022 का ज्ञानप्रसाद -क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ? -पार्ट 5 

हम अपने सहकर्मियों का,सहयोगियों का ह्रदय से आभार व्यक्त कर रहे हैं जिनके अथक परिश्रम से “क्या स्वर्ग इस धरती पर ही था ?” की शृंखला सफलता की उन ऊंचाइयों को छू रही है जिसकी हमने  कभी कल्पना भी नहीं की थी। प्रत्येक परिजन अपनी समर्था अनुसार जब भी समय मिल रहा है इस महायज्ञ में अपने समर्पित विचारों की आहुतियां प्रदान करते हुए इस पुनीत कार्य का पुण्य प्राप्त कर रहा है। 

सहकर्मियों के योगदान और कमैंट्स से मिल रही ऊर्जा हमें और अधिक शक्ति और संकल्प से आने वाले लेखों को प्रकाशित करने में सक्षम बनायेगें। हम तो अपनी क्षमता और अल्प बुद्धि से, परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में जो कुछ भी बन पाता  है ,आपके समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं। 

प्रातः की  पावन मंगल वेला में इस श्रृंखला का पांचवां पार्ट प्रस्तुत है। दिव्यता से ओतप्रोत इस भाग  में  आपको जल वाली मोक्षदायनी  गंगा के साथ- साथ आध्यात्मिक गंगा का भी आभास  होगा। आने वाले लेखों में हिमालय की  दिव्यता एवं अलौकिकता प्राचीन ग्रंथों और श्लोकों से कनेक्ट करने का प्रयास करने की योजना है। 

लेकिन उससे पहले हम सबकी  प्रेरणा बिटिया की  ऑडियो  बुक प्रकाशित करेंगें। 8 फरवरी को बेटी ने हमें 2 ऑडियो बुक्स भेजी थीं ,एक हमने  कुछ दिन पूर्व प्रकाशित की थी और दूसरी (यह वाली) 23 मार्च बुधवार का ज्ञानप्रसाद होगा। हर बार की तरह हम आग्रह करेंगें कि अपना धर्म समझते हुए  बेटी की प्रतिभा को प्रोत्साहित किया जाना बहुत ही आवश्यक है।  

तो इन्ही शब्दों के साथ हम आपको कल तक के लिए छोड़ कर जाते हैं।  आप कीजिये आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान और देखिये कितनी ही दिव्य आत्माओं ने इस प्रदेश में तप करके इसको  पावन बनाया है।  

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परमपूज्य गुरुदेव बता रहे हैं कि रावण, कुम्भकरण, मेघनाद आदि को मार डालने के कारण रामचन्द्र जी, लक्ष्मण जी को ब्रह्म हत्या का पाप लगा। इस पाप के फलस्वरूप लक्ष्मण जी को क्षयरोग (TB) और रामचन्द्र जी को उन्निद्र (SLEEPNESS) रोग हो गया। वशिष्ठ जी ने इस पाप से छूटने के लिए उन्हें तप करने को कहा।  लक्ष्मण जी ने लक्ष्मण झूला में और रामचन्द्र जी ने देवप्रयाग में दीर्घ काल तक घोर तप किया। बड़े भाइयों को इस प्रकार तप करते देखकर भरत और शत्रुघ्न ने भी उनका अनुकरण किया। भरत ने ऋषिकेश में और शत्रुघ्न ने मुनी की रेती में तप किया। मुनि की रेती ऋषिकेश से 7 किलोमीटर दूर है। इसी क्षेत्र में बाबा काली कमली वालों का बनाया हुआ स्वर्गाश्रम नामक स्थान है जहाँ आज भी अनेकों सन्त महात्मा तप करते हैं। लक्ष्मण झूला से 30 मील आगे व्यास घाट में व्यास जी ने तप करके आत्मज्ञान पाया था।

देव प्रयाग में ब्रह्मा जी ने भी तप किया था। अलकनंदा और भागीरथी  के संगम का दृश्य    बहुत ही मनोहर है। 

2018  में हमें  भी इस क्षेत्र की दिव्यता का आभास करने हेतु सौभाग्य  प्राप्त हुआ था।  हमने इसी सन्दर्भ में अपने चैनल पर एक संक्षिप्त  वीडियो भी अपलोड की हुई है।  

प्रसिद्ध विद्वान मेघातिथि ने यहीं तप करके सूर्य शक्ति को प्रत्यक्ष किया था। वशिष्ठ तीर्थ भी यहीं है जहाँ वशिष्ठजी ने तप किया था। वहाँ वशिष्ठ गुफा नाम की एक विशाल गुफा भी नगर से कुछ पहले है। रघुवंशी राजा दलीप, रघु और अज ने यहीं तप किये थे, शाप पीड़ित बैताल और पुष्पमाल किन्नरी ने भी अपने पापों से मुक्ति प्राप्त करने के लिए देवप्रयाग के समीप ही तप किया था।

आगे चल कर इन्द्रकील नामक स्थान पर अर्जुन ने तप करके पाशुपति अस्त्र प्राप्त किया था। खाण्डव ऋषि जहाँ तप करते थे उसके समीप बहने वाली नदी खाण्डव-गंगा कहलाती है। श्रीनगर के पास राजा सत्यसंघ ने तप करके कोलासुर राक्षस को मारने योग्य सामर्थ्य प्राप्त की थी। राजा नहुष ने भी यहीं तप करके इन्द्र पद पाया था। वन्हि धारा और वन्हि पर्वत के बीच अष्टावक्र ऋषि का तप स्थान है। राजा देवल ने भी समीप ही कठोर साधना की थी।

रुद्रप्रयाग में नारदजी ने तप करके संगीत सिद्धि प्राप्त की थी। अगस्त मुनि ने जहाँ अपना सुप्रसिद्ध नवग्रह अनुष्ठान किया था वह उन महर्षि के नाम पर अगस्त मुनि कहलाने लगा। शौनक ऋषि ने यहाँ एक यज्ञ किया था। भीरी चट्री के पास मन्दाकिनी के समीप भीम ने तप किया था। इससे आगे शोणितपुर में वाणासुर ने अपने रक्त का यज्ञ करके तपस्या की थी और शिवजी को प्रसन्न करके सम्पूर्ण जगत को जीत लेने में सफलता प्राप्त की थी।

चन्द्रमा को जब क्षय रोग हो गया था तो उसने कालीमठ से पूर्व मतंग शिला से पाँच मील आगे राकेश्वरी देवी स्थान पर तप करके रोग मुक्ति पायी थी। फाटा चट्टी से आगे जमदग्नि ऋषि का आश्रम है। सोमद्वार  से आगे 2 मील पर गौरी कुण्ड है। पास ही नाथ संप्रदाय के आचार्य गुरु गोरखनाथ का आश्रम है। उन्होंने यहीं तप किया था। केदारनाथ तीर्थ में इन्द्र ने जिस स्थान पर तप किया था वह स्थान इन्द्र पर्वत कहलाता है। ऊखीमठ में राजा मान्धाता ने तप किया था। गुप्त काशी के पूर्व मन्दाकिनी नदी के दूसरी पार राजा बलि ने तप किया था, यहीं वलिकुण्ड है। तुंगनाथ के पास मार्कण्डेय जी का आश्रम है। मण्डल गाँव चट्टी के पास बालखिल्य नदी है। यह नदी बालखिल्य ऋषियों ने अपनी तप साधना के लिए अभिमंत्रित की थी। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ यहीं किया था और सन्तान के लिए सौ वर्ष तक तप आयोजन भी इसी स्थान पर किया था।

नन्द प्रयाग से आगे विरही नदी के तट पर सती विरह में दुखी शंकर ने अपने शोक को शाँत करने के लिए तप किया था। कुम्हार चट्टी के 6 मील पश्चिमोत्तर ऊर्गम गाँव है यहाँ राजा अज ने तप किया था। कल्पेश्वर के समीप दुर्वासा ऋषि का स्थान था। एक दिन ऐरावत हाथी पर सवार होकर इन्द्र उधर से निकले तो महर्षि ने उन्हें फूलमाला भेंट की। इन्द्र ने अभिमान पूर्वक उसे हाथी के गले में पहना दिया। इससे क्रुद्ध होकर दुर्वासा ने इन्द्र को शाप दिया था। समीप ही कल्प स्थल है जहाँ पूर्व काल में कल्प वृक्ष का होना माना जाता है। वृद्ध बद्री के पास गुफाएं हैं जहाँ प्राचीन काल में तपस्वी लोग अपनी साधनाएं किया करते थे। 

जोशीमठ में जगद्गुरु शंकराचार्य ने तप किया था, उपनिषदों के भाष्य लिखे थे और ज्योतिष पीठ नामक गद्दी स्थापित की थी। यहीं उन्होंने अपना नश्वर शरीर भी त्यागा। जोशीमठ से छ: मील आगे तपोवन है। यहाँ व्यास जी का वेद विद्यालय था। शुकदेव जी का आश्रम भी यहाँ से समीप में ही है। पाण्डुकेश्वर में पाण्डवों के पिता राजा पाण्डु ने तप किया था। यहाँ से 6 मील आगे हनुमान चट्टी है जहाँ वृद्ध होने पर हनुमान जी ने तप किया है। एक बार भीम उधर से निकले, उन्हें अपने बल पर अभिमान था। हनुमान जी ने कहा:  ऐ वीर! मैं बहुत वृद्ध बन्दर हूँ। अब मुझ से मेरे अंग भी नहीं उठते, तुम मेरी पूँछ उठाकर उधर सरका दो तो बड़ी कृपा हो। भीम ने पूँछ उठाई पर उठ न सकी। तब उन्होंने हुनमान जी को पहचाना और क्षमा माँगी। हनुमान चट्टी के पास अलकनन्दा के उस पार क्षीर गंगा और घृत गंगा का संगम है। पूर्व काल में इनका जल दूध और घी के समान पौष्टिक था। यहीं वैखानस मुनि तप करते थे। राजा मरुत ने यहीं एक बड़ा यज किया था जिसकी भस्म अभी भी वहाँ मिलती है। कर्णप्रयाग में कर्ण ने सूर्य का   तप करके कवच और कुण्डल  प्राप्त किये थे।

गंगोत्री मार्ग में उत्तरकाशी तपस्वियों  का प्रमुख स्थान रहा है। परशुराम जी ने यहीं तप करके पृथ्वी को 21 बार अत्याचारियों से विहीन कर देने की शक्ति प्राप्त की थी। जड़भरत का स्वर्गवास  यहीं हुआ था, उनकी समाधि अब भी मौजूद है। नचिकेता की तपस्थली  भी यहीं है। नचिकेता सरोवर देखने योग्य है। यहाँ से आगे नाकोरी गाँव के पास कपिल मुनि का स्थान है। पुरवा गांव के पास मार्कण्डये  और मतंग ऋषियों को तपोभूमियाँ हैं। इसके पास ही कचोरा नामक स्थान में पार्वती जी का जन्म हुआ था। हरिप्रयाग (हर्षिल ) गुप्तप्रयाग (कुप्ति  घाट) तीर्थ भी इसी मार्ग में पड़ते हैं। आगे गंगोत्री का पुण्य धाम है जहाँ भागीरथी ने तप करके गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर अवतरण किया था। यहाँ अभी भी कितने ही महात्मा प्रचंड तप करते हैं। शीत ऋतु में जब  कभी-कभी तेरह फुट तक बर्फ पड़ती है तब भी यह  तपस्वी बिल्कुल नग्न शरीर रह कर अपनी कुटियाओं में तप करते रहते हैं। गोमुख गंगा का वर्तमान उद्म यहाँ से 18 मील है। उस मार्ग में भी कई महात्मा निवास करते और तप साधना में संलग्न रहते हैं।

सिखों के गुरु गोविंद सिंह ने जोशीमठ के पास हेमकुण्ड में 20 वर्ष तक तप करके सिख धर्म को प्रगतिशील बनाने की शक्ति प्राप्त की थी। स्वामी राम तीर्थ  सबसे प्रिय प्रदेश यहीं  था। वे गंगा और हिमालय के सौंदर्य पर मुग्ध थे। टिहरी के पास गंगा जी में स्नान करते समय वे ऐसे भाव विभोर हुए कि उसकी लहरों में ही विलीन हो गये यानि यहीं पर जल समाधि ले ली।

उत्तराखण्ड को साधना क्षेत्र चुनने में अनेकों दिव्य आत्माओं  ने सूक्ष्म दृष्टि से ही काम लिया है। वे जानते थे कि “हिमालय के हृदय-धरती के स्वर्ग प्रदेश की दिव्य शक्ति” अपनी ऊष्मा को अपने निकटवर्ती क्षेत्र में ही अधिक बिखेरती है इसलिये वहीं पहुँचना उत्तम है। अग्नि का लाभ उठाने के लिये उसके समीप ही जाना पड़ता है। आध्यात्मिक तत्वों की किरणें जहाँ अत्यन्त तीव्र वेग से प्रवाहित होती हैं वह स्थान सुमेरु केन्द्र ही है। केवल पानी वाली गंगा ही वहाँ से नहीं निकली आध्यात्मिक  गंगा का उद्गम भी वहीं है। उस पुण्य प्रदेश-धरती के स्वर्ग  को देख सकना कैसे संभव  हुआ? वहाँ क्या देखा और क्या अनुभव किया? वहाँ की दुर्गमता किस प्रकार सुगम बनी है। इसका विवरण अभी आगे आने वाले लेखों में प्रस्तुत करेंगें।

To be continued : 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प 

21  मार्च 2022 की  प्रस्तुति  के अमृतपान उपरांत 3 समर्पित सहकर्मियों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है, यह समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :

(1) सरविन्द कुमार -25, (2 ) संध्या कुमार -24, (3)  अरुण वर्मा -25  

इस सूची के अनुसार तीनों ही   गोल्ड मैडल विजेता हैं। सभी को   हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्

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