11 मार्च 2022 का ज्ञानप्रसाद – संकल्प शक्ति से प्राप्त की जा सकती है चमत्कारिक क्षमता
आज कल चल रही आत्मविश्वास और और आत्मबल की श्रृंखला में हमने देखा कि किस प्रकार केवल चार फुट के ‘मास’ नामक युवक ने अपनी अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन करते हुए विश्विख्यात कीर्तिमान स्थापित किये। अब हो हम सबको विश्वास हो जाना चाहिए कि परमपिता परमात्मा ने हमें अद्भुत विभूतियाँ प्रदान की हैं, आवश्यकता है तो केवल अपनेआप को जानने की और उन सुप्त विभूतियों को जागृत करने की। हमने पहले भी लिखा था आज फिर लिख रहे हैं -Never underestimate the unlimited power gifted to us by Almighty God. आज वाले लेख में और सोमवार को प्रकाशित होने वाले लेख में हम “जेन साधना” को समझने का प्रयास करेंगें , ऐसी साधना पद्धति जिससे ‘मास’ अविश्वसनीय प्रतिभा अर्जित की। दोनों लेखों को समझने के उपरांत हमारे पाठक इस निष्कर्ष पर पहुंचेगें कि जेन साधना में और किसी और साधना में कोई बड़ा अंतर् नहीं है। हमने इसे समझने के लिए अखंड ज्योति में प्रकाशित परमपूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित दिव्य लेखों के साथ साथ और भी साहित्य का अध्यन किया और जो अपनी अल्पबुद्धि ने समझा वह आपके समक्ष रख रहे हैं। आशा करते हैं कि इनका सरलीकरण आपको लाभदायक सिद्ध होगा।
कल शनिवार होगा और इस दिन का ज्ञानप्रसाद सारे का सारा अपने सहकर्मियों की contributions पर आधारित होगा। हमें अपने प्रतिभाशाली सहकर्मियों से बहुत कुछ प्राप्त हुआ है, देखते हैं कितना शामिल कर पायेंगें।
तो आइये समझें जेन साधना को इस प्रथम भाग के द्वारा :
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ताओधर्म, बौद्धधर्म से भी पहले जन्मा। बौद्धधर्म और बौद्धधर्म के सम्मिलन से, एक नई धारा, नई जीवन पद्धति, नया दृष्टिकोण निकला। ये जीवन पद्धति अपने विचार में बेहद सीधी-सादी थी, जिसने पश्चिम को बहुत प्रभावित किया। पश्चिम के लोग चर्च, कर्म-कांडों आदि से पहले ही ऊबे थे, इसलिए एक सरल-सहज जीवन शैली उन्हें भानी ही थी। चीन और फिर जापान में जेन की विकास यात्रा काफ़ी लंबी रही और उसमें बौद्धिज्म के आयाम जुड़ जाने से वह सहज बोध का बड़ा माध्यम बन पाया।
जेन सूत्र ज्यादातर लोगों के लिए बिल्कुल अटपटा सा, अनसुना सा फ़्रेज़ हो सकता है लेकिन पश्चिम के लोगों के लिए ये जीवन के ज्यादा करीब एक पूरी की पूरी जीवन पद्धति है, जहां कोई दिखावा नहीं, कोई संस्कार नहीं, कोई कर्मकाण्ड नहीं, विशुद्ध यात्रा ,कहीं पहुंचने की शीघ्रता नहीं, इससे भी साफ कहें तो कोई मंज़िल ही नहीं, बस केवल यात्रा का आनंद।
जेन सूत्र की एक बात बेहद निराली है: मूक वार्ता यानि बिना बोले परस्पर संवाद या बातचीत। चीनी परिक्षेत्र में इससे संबंधित एक कथा बहुत कही जाती है। एक बार किसी प्रसिद्ध जेन गुरु से कोई बौद्ध गुरु मिलने आए। जेन गुरु के शिष्य़ों ने सोचा कि अब बात बनेगी जब मिलेंगे दो महान गुरु। कुछ नया जानने का अवसर होगा, कुछ सीखने को मिलेगा। यही सोचकर शिष्य बहुत उत्साहित थे और इसी उत्साह में वे उन दो महान गुरुओं के बीच होने वाली बातचीत का बेसब्री से इंतज़ार करने लगे। दोनों गुरु अपनी-अपनी कुटिया में बैठे थे, बिल्कुल मौन, निःशब्द। कई दिन गुज़र गए, फिर एक दिन बौद्ध गुरु की रवानगी का समय आ गया। सभी शिष्य अत्यंत मायूस और हताश, ये क्या! विश्व के दो महान गुरु मिलते हैं और इतनी बेरुखी कि उनके बीच एक भी शब्द का आदान-प्रदान नही, क्या ये प्रबल अहंकार है या फिर इसके पीछे कोई बड़ा रहस्य छिपा है? बौद्ध गुरु के वापस चले जाने के पश्चात जेन गुरु के शिष्य बड़े साहस के साथ उनके सामने अपनी समस्या रखते हैं। कुछ पल चुप रहने के पश्चात गुरु जो बताते हैं, वो सभी को हैरान करने वाला था। जेन गुरु कहते हैं कि उन दोनों ने कई दिन लगातार बातचीत की,पर ये कैसे संभव था? दोनों गुरु अलग-अलग कुटिया में नितांत अकेले बैठे अपनी-अपनी साधना में लीन थे,फिर संवाद कैसे और कब हो गया, कब हो गई बातचीत,कहीं गुरु कोई परीक्षा तो नहीं ले रहे संयम की! नहीं,नहीं, गुरु ने बात स्पष्ट करते हुए कहा: मौन संवाद, बिना बोले ही वार्ता हो गयी,बोलने की ज़रूरत ही नहीं रही क्योंकि दोनों बिल्कुल एक ही तल पर, एक ही स्तर पर, एक ही लेवल पर मौज़ूद थे -एक ऐसा लेवल जहां भाषा की, बोली की आवश्यकता मिट जाती है क्योंकि वहां “दो” तो थे ही नहीं, वे एकाकार थे, एक ही हो गए थे। शिष्यों ने फिर जिज्ञासा दिखाते हुए पूछा कि कोई अपने से ही बात कैसे कर सकता है? बातचीत के लिए किसी दूसरे की ज़रूरत तो पड़ती ही है और वहां दूसरा था कहां ? आज के संदर्भों में इस कथानक की बड़ी भारी ज़रूरत है। यही है जेन सूत्र की यात्रा, विशुद्ध यात्रा, जीवंत यात्रा जो शाश्वत है, अनुकरणीय है।
अपनी शक्ति का रहस्य बतलाते हुए ‘मास’ सदा अपनी योग-साधना का वर्णन विस्तारपूर्वक किया करता था।
जापान में जेन साधना भूतकाल में भी बहुत प्रख्यात और सम्मानित रही है। बौद्ध धर्मानुयायी सन्त इसे अपने शिष्यों को बताते सिखाते रहे थे। इस आधार पर मनुष्य केवल आध्यात्मिक ही नहीं, वरन् भौतिक शक्तियाँ भी प्राप्त कर सकता है। जेन-साधना को नटविद्या नहीं, वरन् विशुद्ध योगाभ्यास ही समझा जाना चाहिए। जापान की जुजुत्सु विद्या संसार भर में प्रसिद्ध थी । इसके आधार पर कोई मनुष्य अपने से कहीं अधिक बलवान प्रतिद्वंद्वी को बात ही बात में धराशायी कर सकता था। इसकी पुष्टि करने वाली न केवल दन्त कथाएं ही वहाँ प्रसिद्ध थीं, वरन् जापानी उसमें मास्टर्स भी होते थे।
‘मास’ को बचपन से ही योग विद्या का शौक था। उसने जेन-साधना में कुशल महाभिक्षु फना कोशी से दीक्षा ली और उन्हीं के पास रह कर ‘मास’ विद्या सीखने लगा। उस प्रयोजन के लिए उसने पर्वतों की निर्जन गुफाओं में डेरा डाला और बर्फ से ढकी कन्दराओं में वनस्पतियाँ खाकर साधना जारी रखी। कई वर्ष बाद वापस लौटा, तो उसकी जटाएँ और दाढ़ी बढ़ी हुई थी। लोगों ने उसे पागल समझा, पर इससे क्या वह धुन का धनी अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता ही रहा और आखिर उसने अपने को जेन साधना का सिद्ध पुरुष बना ही लिया।
जापान आदि देशों में जेन साधना का बहुत सम्मान है। वह भारत की योगविद्या का ही एक अंग है। ईसा की पांचवीं शताब्दी में भारतीय बौद्ध भिक्षु चीन गये। उनके नेता का नाम था – धरुम। यह नाम धर्म शब्द का ही बिगड़ा हुआ नाम हो सकता है। उन योगियों ने जहाँ धर्म, सदाचार, अध्यात्म आदि की शिक्षाएँ दी, वहाँ एक विशेष प्रकार की योग साधना की भी शिक्षा दी, जो तब से लेकर अब तक किसी न किसी रूप में उस क्षेत्र में जीवित बनी हुई हैं।
जेन-साधना का मूल आधार मनःशक्ति, संकल्प-बल, एकाग्रता और निर्धारित प्रयोजन से संबंधित श्रद्धा के साथ तत्परता बरतना है। शारीरिक योग के लिए अपनी माँसपेशियों और नस-नाड़ियों पर एकाग्रतापूर्वक अधिकार करना पड़ता है। इससे वे फौलाद जैसी कठोर हो जाती हैं और आक्रमण सहने तथा करने में अपराजेय सिद्ध होती हैं। इसी आधार पर मनःशक्ति को केन्द्रित एवं समर्थ बना कर इस योग्य भी बनाया जाता है कि उससे दूसरे के मनः संस्थान को करारी टक्कर दी जा सके। यह टक्कर भले या बुरे किस प्रयोजन के लिए दी गई और उससे दूसरे का क्या हित – अनहित हुआ, यह प्रयोग करने वाले के उद्देश्य पर निर्भर है, किन्तु इतना हर हाल में निश्चित ही रहता है कि योग-साधना के बल पर शारीरिक एवं मानसिक क्षेत्र में चमत्कारिक क्षमता उत्पन्न की जा सकती है।
अगला लेख: सप्ताह का एक दिन पूर्णतया अपने सहकर्मियों का
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प
9 मार्च 2022 के लेख के स्वाध्याय के उपरांत 6 सहकर्मियों ने संकल्प पूर्ण किया है और 10 मार्च 2022 के लेख के स्वाध्याय के उपरांत 8 सहकर्मियों ने संकल्प पूरा किया है। यह सभी समर्पित सहकर्मी निम्नलिखित हैं :
(1 ) रेणुका गंजीर -24 ,(2 )अरुण वर्मा-39 ,(3 ) प्रेरणा कुमारी-25,( 4 )संध्या कुमार -29, (5 ) सरविन्द कुमार -28 ,(6 )रेणु श्रीवास्तव -26
(1 )रेणुका गंजीर-24,(2 )अरुण वर्मा-36,(3)रेणु श्रीवास्तव-26,(4) सरविन्द कुमार-25,(5 ) लता गुप्ता-24,(6 ) प्रेरणा कुमारी -26,(7 ) संध्या कुमार -26,(8 ) निशा भारद्वाज-27
दोनों ही सूचियों में अरुण वर्मा जी प्रथम स्थान बनाए हुए हैं और गोल्ड मैडल विजेता घोषित किये जाते हैं। लेकिन निशा और लता बहिन जी का धन्यवाद् करते हुए बहुत ही प्रसन्नता हुई है।सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्
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