3 मार्च 2022 का ज्ञानप्रसाद “पहले पाँव पखारूं,फिर गंगा पार उतारूं- डैमनिया बाबा की अमरकथा
आज का ज्ञानप्रसाद इतना प्रेरणादायक है कि इसे शब्दों में वर्णन करना लगभग असंभव ही है। यह उन सहकर्मियों के लिए एक राम बाण का काम कर सकता है जिन्हे परमपूज्य गुरुदेव की शक्ति पर ज़री सी भी शंका है। दो पार्ट में प्रकाशित होने वाले इस लेख का प्रथम पार्ट आज प्रस्तुत किया जा रहा है। आदरणीय राजकुमार वैष्णव जी ने इसका लिंक कुछ समय पूर्व भेजा था लेकिन अन्य lineups के कारण इसे backdrop में डालना पड़ रहा था। आज जब लिखने को बैठे तो गूगल सर्च देख कर लगा कि हम आदिवासी ग्रामीण डैमनिया बाबा को सर्च नहीं किसी celebrity को सर्च कर रहे हैं। गूगल ,यूट्यूब ,फेसबुक,राष्ट्रिय स्तर के समाचार पत्र,सम्मान पत्र और क्या कुछ नहीं। एक तरफ प्रसन्नता हो रही थी कि शुक्ला बाबा, जयपुर जेल ,मसूरी इंटरनेशनल स्कूल की तरह जिन्हे बहुत ही कम exposure मिला हुआ है,इस महान व्यक्तित्व के प्रकाशन का सौभाग्य भी हमें मिल रहा है तो दूसरी हीनभाव कचोट रहे थे कि हमने इतनी देर क्यों कर दी। डैमनिया बाबा पर वीडियो compile करने की योजना है।

24 आहुति संकल्प दौड़ में रेनू श्रीवास्तव बहिन जी सभी को पछाड़ कर नंबर 1 पर आ गए हैं। उन्हें गोल्ड मैडल प्राप्त करने के लिए हमारी शुभकामना।
चलते हैं ज्ञानप्रसाद के अमृतपान की ओर।
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“पहले पाँव पखारूं, फिर गंगा पार उतारूं”
रामचरितमानस की यह चौपाई कौन नहीं जानता । केवट और प्रभु श्रीराम के बीच हुए इस संवाद ने आज के युग के केवट, सालीटांडा मध्य प्रदेश के आदिवासी संत निषादराज आदरणीय ” डैमनिया बाबा” का स्मरण करा दिया। हम बात कर रहे हैं निमाड़ मालवा के आदिवासी क्षेत्र के साथ-साथ अंचल में आदिवासी संत के रूप में अत्यंत लोकप्रिय, व्यवहार से सीधे सरल किंतु जनहित आदिवासी महान आत्मा की। सार्वजनिक हित के कार्यों में समर्थ, सक्षम एवं समर्पित लगभग 70 वर्षीय इस महान आत्मा का महाप्रयाण तो 8 जून 2020 को हो गया था परन्तु सूक्ष्म रूप में क्षेत्र को आज भी मार्गदर्शन प्राप्त हो रहा है। जिला बड़वानी में आगरा-मुंबई हाईवे से थोड़ा ही अंदर सालीटांडा ग्राम में स्थित गायत्री शक्तिपीठ तथा उनके द्वारा किये गए गुरुकार्यों में उनका समर्पण प्रतक्ष्य दृष्टिगोचर होता है।
अप्रैल 2019 में उनके मार्गदर्शन में ग्राम केली में आदरणीय डॉ चिन्मय पण्ड्या एवं आदरणीया शैफाली पण्ड्या जी की उपस्थिति में विराट 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ के समय उनका पुरषार्थ देखते ही बनता था। जब परमपूज्य गुरूदेव उनके गाँव मे पधारे तो उन्होंने डैमनिया बाबा को “निषादराज” कहा था और खूब काम करने का आशीर्वाद दिया था और डैमनिया बाबा ने किया भी। हजारों की संख्या में आदिवासीयों को गायत्री मंत्र जप और दीक्षा संस्कार के साथ व्यसन मुक्ति का संकल्प दिलाया। आदिवासी समाज में कुरूतियों के उन्मूलन और उन्हें मुख्य धारा में लाने का समर्पित प्रयास किया। अनेक राजनेताओं एवं मुख्यमंत्रियों ने उन्हें सम्मानित भी किया लेकिन पूज्य गुरुदेव के आशीर्वाद से बड़ा सम्मान उन्हें कुछ नहीं लगा।
सालीटांडा के विराट 108 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ के भव्य आयोजन में श्रद्धेय डॉ प्रणव पण्ड्या जी एवं श्रद्धेया शैल दीदी भी स्वयं उपस्थित हुए थे। इस यज्ञ में हजारों आदिवासी भाइयों ने दीक्षा ग्रहण की, आदिवासी सम्मेलन का विशाल आयोजन हुआ था। तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह जी ने डॉ साहब और जीजी से आशीर्वाद भी लिया था। इस भव्य आयोजन को आज भी सभी स्मरण करते हैं । निमाड़ के झाबुआ, खरगोन, खंडवा, अलीराजपुर, बड़वानी, बुरहानपुर, के इलाको में गायत्री ओर गुरुदेव को बाबा ने घर-घर पहुँचाने में श्रेष्ठ कार्य किया। छत्तीगढ़वासियों में भी व्यसन मुक्त ओर समाज में व्याप्त कुरीतियों को जड़ से मिटाकर समाज को स्वस्थ चिंतन दिया।
ऋषियों के सम्मान में मनाई जाने वाली ऋषि पंचमी के अभूतपूर्व आयोजन में बिना आमंत्रण प्रतिवर्ष हज़ारों आदिवासी भाई बहन यज्ञोपवीत धारण करने आते है जो अपनेआप में बहुत बड़ा आयोजन है। सभी की भोजन एवं आवास व्यवस्था बाबा ही निशुल्क करते रहे है। अखिल विश्व गायत्री परिवार के एक सृजन सैनिक, परमपूज्य गुरूदेव के अनन्य शिष्य एवं आदिवासियों को जनेऊ पहनाने वाले, माँस मदिरा, बलि प्रथा जैसी कुरीतियाँ छुड़वाने वाले, आदिवासियों को गायत्री मंत्र का जप सिखाने वाले और जनहित के लिए स्वहित को समर्पित करने वाले “डैमनिया बाबा ” को ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का श्रद्धापूर्वक नमन है। बाबा की ऐसी अनेकों कहानियां हैं ,उनके बारे में जितना बताएं उतना कम है।
“तुम मेरे निषादराज हो। रामावतार के समय की मित्रता अब भी निभाओगे न ?”
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“जा पर कृपा तुम्हारी होई, ता पर कृपा करें सब कोई”
अखंड ज्योति के दिसंबर 2002 के अंक में दो पन्नों का एक लेख प्रकाशित हुआ जिसका शीर्षक था “ “जा पर कृपा तुम्हारी होई, ता पर कृपा करें सब कोई” इस लेख में डैमनिया बाबा की अमृतकथा वर्णित है। कुछ समय पूर्व युगतीर्थ शांतिकुंज के वरिष्ठ कार्यकर्ता आदरणीय राजकुमार वैष्णव जी ने इस लेख का रिफरेन्स हमें भेजा था। हम राजकुमार भाई साहिब के ह्रदय से आभारी हैं। आगे प्रस्तुत की जा रही पंक्तियाँ इसी लेख पर आधारित हैं।
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त्रेता में भगवान राम के साथ निषादराज का भी अवतरण हुआ था। जनजाति वर्ग के निषादराज ने वनवासी श्रीराम, माँ सीता व लक्ष्मण जी को पैर पखारने के बाद नदी पार कराई थी। भगवान राम ने अंत तक मित्रता निभाई एवं अपने सखा को अपने गले लगाकर सम्मानित किया था। राज्याभिषेक के समय पुन: याद किया।
वर्तमान युग के एक ऐसे ही निषादराज स्तर के भक्त की कथा-गाथा आपके समक्ष प्रस्तुत है। यह भक्त मल्लाह तो नहीं था, पर घनघोर जंगलों में रहने वाला निमाड़ का एक आदिवासी था। इसने भी इस युग के श्रीराम परमपूज्य गुरुदेव की प्रज्ञावतार की सत्ता का सान्निध्य पाया एवं उनकी अनंत कृपा उस पर बरसी।
“कथा का आरम्भ यूँ होता है :”
अपनी बीमारी का इलाज कराने यह आदिवासी भाई अपने गाँव से लगभग 7 किलोमीटर दूर सालीकलाँ (सालीटांडा ?) पहुँचा। हमें इस नाम में कुछ शंका लग रही है ,शायद सालीटांडा ही है। संयोग से जिन चिकित्सक, डॉ. सिकरवार, के पास गया, वह परमपूज्य गुरुदेव के शिष्य थे। क्लिनिक में गुरुदेव-माताजी रूपी ऋषियुग्म के फोटो लगे थे। युवक आदिवासी इन्हें देख अपनी बीमारी की बात भूल गया व डॉक्टर साहब से पूछने लगा कि ये दोनों कौन हैं ? परिचय कराने पर वह बोला कि मैं बड़ी उलझन में पड़ा हूँ, रोज स्वप्न में देखता हूँ कि दो पीपल के पत्ते मेरे सामने से उड़ते आ रहे हैं और उनमें मुझे श्रीराम व सीता के दर्शन हो रहे हैं। थोड़ी देर में यह दृश्य बदल जाता है और इनके बदले में मुझे इन बाबाजी और माताजी के दर्शन होने लगते हैं। जब मैंने उनके चेहरे पर ध्यान देकर सोचा, तो वे मुस्कुराने लगे और बोले:
“डेमनिया, तुम्हें मेरा काम करना है। अपनी जाति का उद्धार करना है। तुम कई जन्मों से हमसे जुड़े हो। एक बार हमारे पास आ जाओ।”
अब मुझे समझ नहीं आता कि इनसे मिलने कहाँ जाऊँ? डॉ. सिकरवार ने यह सब जानने के बाद कहा, “इनसे मिलने चलोगे।” डेमनिया ने आर्थिक तंगी एवं यात्रा रूट की अनभिज्ञता की बात कही तो डॉ. सिकरवार ने कहा,”यात्रा का सारा खरच मैं वहन करूँगा। पहले तुम ठीक हो जाओ।” दवा दी गई एवं यात्रा कर दोनों गुरुधाम पहुँचे। कुछ देर प्रतीक्षा के बाद गुरुदेव का ऊपर से बुलावा आ गया। ऐसा लगा कि वह पहले से ही प्रतीक्षा कर रहे थे। गुरुवर ने देखते ही डैमनिया को छाती से लगा लिया और कहा:
डेमनिया की आँखों से अश्रुधारा बहने लगी। गला रुंध गया। कहने लगा कि आज मेरा जीवन धन्य हो गया है। मेरा तन-मन सब आपके चरणों में अर्पित है। आप जो कहेंगे, वही करूँगा। यह बात वर्ष 1971 की थी। उसी वर्ष शक्तिपीठों के निर्माण की घोषणा हुई थी व पूज्यवर का मन था कि आदिवासी क्षेत्र में भी एक शक्तिपीठ बननी चाहिए। परमपूज्य गुरुदेव डैमनिया भाई से बोले,
“तुम अपने यहाँ भी एक शक्तिपीठ बनाओ। हमारा तुम्हारे घर आने का मन है। जब शक्ति पीठ बन जाएगी तब हम प्राणप्रतिष्ठा समारोह में आएंगे। तुम्हारी शक्तिपीठ से आदिवासी क्षेत्र के उद्धार की कई योजनाएं चलाने का मन है।”
डैमनिया असमंजस में पड़ गया कि यह सब कैसे संभव होगा। जो अपने परिवार के रहने के लिए मकान भी नहीं बना पाया हो, वह भला शक्तिपीठ जैसा भव्य निर्माण कैसे कर पाएगा? उसके असमंजस को भगवान ने ताड़ लिया। भक्त को आश्वस्त करते हुए गुरुदेव बोले:
“तुम मात्र शुरुआत कर देना, शेष काम पूरा हो जाएगा, तुम चिंता लेशमात्र भी न करना।”
प्रभु के आश्वासन को सुनकर डेमनिया ने वहीं संकल्प लिया कि मैं अपनी पाँच एकड़ भूमि इस कार्य के लिए दूंगा एवं निर्माण हेतु स्वनिर्मित ईंटें लगवा दूंगा। संकल्प फलित हुआ। सुदामा-निषादराज का संस्करण दुहराया गया। डैमनिया के छोटे से त्याग ने एक शक्तिपीठ का निर्माण कर दिया। देखते-देखते जनसहयोग जुटता चला गया एवं एक वर्ष की अवधि में ही सुदूर घने जंगल व पहाड़ियों के बीच “प्रथम आदिवासी शक्तिपीठ” बन गई।
अब भगवान की वायदा निभाने की बारी थी। परमपूज्य गुरुदेव प्राण प्रतिष्ठा समारोह के दौरे के क्रम में सेंधवा होकर सालीकलाँ पहुँचे। शक्तिपीठ स्थल जहाँ था, वहाँ तक गाड़ी नहीं जा सकती थी। लगभग दो किलोमीटर पैदल का रास्ता था। डैमनिया की झोंपड़ी भी वहीं कुछ दूरी पर थी जहाँ वह परिवार सहित रहता था। गुरुदेव पैदल कीचड़ में, ऊबड़-खाबड़ जमीन में होते हुए शक्तिपीठ पहुँचे। प्राण-प्रतिष्ठा उत्सव संपन्न हुआ। पूरे निमाड़ के परिजन पहुंचे थे।
अगला लेख: डैमनिया के समर्पण का द्वितीय भाग
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प
1 मार्च 2022 वाले लेख के स्वाध्याय के उपरांत 5 सहकर्मियों ने संकल्प पूर्ण किया है। यह सहकर्मी निम्नलिखित हैं :
(1 ) रेनू श्रीवास्तव- 51,(2 )अरुण वर्मा-42,(3 ) संध्या कुमार-38,( 4 ) सरविन्द कुमार -47,(5 ) निशा भारद्वाज-24
रेनू श्रीवास्तव जी 51 अंक प्राप्त करते हुए गोल्ड मैडल विजेता घोषित किये जाते हैं। अरुण वर्मा जी ने संकल्प ले लिया है कि किसी को भी आगे नहीं निकलने देना है। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्
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