
1 मार्च 2022 का ज्ञानप्रसाद -गायत्री तपोभूमि मथुरा की स्थापना- पार्ट 2
कल वाला ज्ञानप्रसाद प्रकाशित करने के उपरांत आदरणीय अनिल मिश्रा जी ने व्हाट्सप्प पर कमेंट करते हुए गायत्री तपोभूमि गोंडा उत्तर प्रदेश के बारे में जानकारी दी। यह जानकारी महत्वपूर्ण तो है ही साथ में विस्तृत भी है। हमारा प्रयास था कि इस समय चल रही गायत्री तपोभूमि की चर्चा से साथ ही इसको प्रकाशित किया जाये लेकिन यूट्यूब की शब्द सीमा के कारण हमें इस जानकारी तो कल वाले ज्ञानप्रसाद में प्रकाशित करना होगा। यह जानकारी उपलब्ध कराने के लिए अनिल भाई साहिब का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के समर्पण को देखते हुए युगतीर्थ शांतिकुंज में वरिष्ठ जीवनदानी एवं परमपूज्य गुरुदेव के सहकर्मी, प्रोफेसर विश्व प्रकाश त्रिपाठी जी ने अपनी शुभकामनाएं भेजी हैं। हम यह शुभकामनाएं उन्ही के शब्दों में आपके समक्ष रख रहे हैं। जहाँ हम आदरणीय त्रिपाठी जी का धन्यवाद् कर रहे हैं वहीँ अपने परिवार के प्रत्येक सदस्य के भी आभारी हैं जिनके कारण ऑनलाइन ज्ञानरथ को इतना सम्मान मिल रहा है। कुमाऊँ यूनिवर्सिटी में कानून के प्रोफेसर और डीन की पदवी को त्याग कर अपना समस्त जीवन गुरुसत्ता के चरणों में समर्पित करने वाले त्रिपाठी जी को ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का नमन है।
आइये ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें :
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मन्दिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम तीनों दिन चलता रहा। 22 जून गंगा दशहरा एवं गायत्री जयन्ती के पुण्य पर्व पर मध्याह्न काल को शुभ मुहूर्त में माता जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा वेद मन्त्रों के साथ सम्पन्न हुई। प्रतिमा की भव्यता देखते ही बनती थी। दर्शन को ऐसा लगता था मानों प्रसन्न मुद्रा में जैसे आशीर्वाद दे रही हों। उत्सव के विभिन्न अवसरों की चलती फिरती सिनेमा फिल्म खींची गई जो छोटे और बड़े सिनेमाओं में आसानी से दिखाई जा सकेगी। कितने ही फोटो भी लिये गये जो सम्भवतः अखण्ड ज्योति के अगले अंकों में छपेंगे। गुरुदेव 24 दिन के उपवास के कारण अत्यन्त दुर्बल हो गये थे। उनका 117 पौण्ड का शरीर भार घट कर 95 पौण्ड रह गया था, शरीर काम नहीं करता था फिर भी वे तख्त पर पड़े हुए आगन्तुकों से निरन्तर कुशलक्षेम पूछना, पूछे हुए प्रश्नों के उत्तर देना तथा व्यवस्था का संचालन करना जारी रखे थे। दुर्बलता इतनी अधिक थी कि खड़े होते ही शरीर काँपता था, पर चेहरे का तेज और वाणी का रस तनिक भी कम नहीं हुआ था। गंगा जल पीकर 24 दिन पूरे करने से उनका आत्मतेज कितना निखर गया है इसकी झाँकी हर आँख वाले को होती थी। वे बहुत कम बोल पाते थे, पर उपस्थित लोगों में से हर व्यक्ति यह अनुभव करता था मानों उसे परा और पश्यति वाणियों द्वारा बहुत ही महत्वपूर्ण शिक्षा दी जा रही है।
जिन लोगों को इस पुनीत अवसर पर उपस्थित रहने का सौभाग्य मिला वे इन दिनों को धन्य मान रहे थे। सभी व्यक्ति एक प्रकृति के होने के कारण प्रेम, आत्मीयता, सौहार्द एवं भावना का झरना झर रहा था। ऐसा अनुभव होता था मानों स्वर्गीय सुख यहाँ से फूट पड़ता हो। अधिकाँश व्यक्ति एक दो दिन पहले आ गए थे और यज्ञ से एक दो दिन पीछे गये। पर यह समय कुछ घण्टों की तरह बीत गया। किसी की भी इच्छा इस स्वर्गीय आनन्द को छोड़ने की न थी। कई व्यक्ति तो जाते समय बालकों की तरह फूट फूट कर रोये, यों वियोग से दुःख तो सभी को हुआ, परिस्थितियों के कारण, मजबूरियों के कारण, जाना पड़ रहा था पर हृदय से कोई भी जाना न चाहता था।
यज्ञ के लिए “अरुणि मंथन” द्वारा वेद मन्त्रों से अग्नि उत्पन्न की गई जिसका दृश्य बड़ा ही प्रभावोत्पादक था। प्राचीन काल में ऋषि लोग दो लकड़ियाँ घिसकर किस प्रकार वेद मंत्रों द्वारा यज्ञ के लिये अग्नि उत्पन्न करते थे, इसका प्रत्यक्षीकरण देखकर सबको बड़ा हर्ष हुआ। इस पवित्र तथा लम्बे (750 वर्ष) व्यतीत काल से जलती आ रही उस अग्नि को विशेष रूप से एक अप्रकट महात्मा लेकर आये थे । उन दोनों को यज्ञ में स्थापित किया गया। पंचमुखी घृत दीप की अखण्ड-ज्योति आयोजन के आरम्भ से अन्त तक जलती रही। गायत्री मन्त्र लेखन लगभग 18 करोड़( 1953) एकत्रित हो गये थे उनकी विधिवत पूजा प्रतिष्ठा की गई। 2400 तीर्थों की रज तथा जल एक कक्ष में और मन्त्र लेखन की कापियाँ सुसज्जित रूप से दूसरे कक्ष में स्थापित की गई थीं। आज मन्त्र लेखन की संख्या 2400 करोड़ है। तीन दिन का उपवास, भूमि शयन तथा सभी प्रकार का संयम नियम पालन करने से यज्ञ आयोजन में सम्मिलित रहने से प्रत्येक व्यक्ति यह अनुभव करता था, कि उसे एक विशेष आत्मबल प्राप्त हो रहा है। उस वातावरण की पवित्रता एवं सात्विकता हर हृदय में प्रवेश कर रही थी और ऐसा लगता था कि अखंड ज्योति कहानियाँ आन्तरिक कषाय कल्मषों को धोकर आत्मा को स्वच्छ कर देने वाली कोई दिव्य मन्दाकिनी सूक्ष्म रूप से यहाँ प्रवाहित हो रही है।
जितने व्यक्ति आये थे, सभी ने उत्सव को सफल बनाने के लिए जी-जान से प्रयत्न किया। जिसको जिस विभाग की सेवाएं दी गई थी, उसने अपने कर्तव्य को पूर्ण तत्परतापूर्वक निभाया। धन्यवाद कौन किस-किस को दे, सभी ने अपने आप ढंग से अपना कर्तव्य निभाया इसमें माता की प्रेरणा ही प्रधान थी।
स्वामी देवदर्शनानन्द जी सरस्वती की अध्यक्षता में 24 लक्ष का जप पुरश्चरण पूरा हुआ। श्री मौनी महात्मा दुर्गा प्रसाद जी पंडित का शिवताण्डव (प्रवचन) नृत्य बड़ा ही प्रभाव पूर्ण रहा। छोटे से लेकर बड़े तक सब अपनी अपनी योग्यता के अनुभव बयान करते रहे। यज्ञ पूर्णतया सफल रहा। आँधी पानी की जो सम्भावना थी वह समारोह समय तक टलती रही, पर यज्ञ समाप्त होते ही इन्द्र देव ने प्रसन्न होकर घनघोर जलवृष्टि की जिसको यज्ञ की सफलता समझकर सर्वत्र प्रसन्नता प्रकट की गई।
भविष्य के लिए ऐसी सुन्दर योजनाएं बनाई जा रही हैं जिनके द्वारा विस्तृत रूप से गायत्री विद्या लुप्त प्रायः महाज्ञान की पुनः स्थापना हो। प्रतिवर्ष चैत्र सुदी 15 को गायत्री उपासकों का एक वार्षिक सम्मेलन बुलाने का आयोजन रहा करेगा। जिस प्रकार का यज्ञ और पुरश्चरण मथुरा में हुआ था वैसे ही आयोजन देश भर में होते रहें इसके लिए प्रोत्साहन दिये जायेंगे। ऐसे आयोजनों में गुरुदेव स्वयं पहुँचने का प्रयत्न करेंगे। तपोभूमि में ऐसी व्यवस्था सोची जा रही है कि यहाँ नित्य नियमित पुरुश्चरण और यज्ञ होते रहें। अधिक सस्ता गायत्री साहित्य छापने की भी योजना है। गायत्री सम्बन्धी खोज और अन्वेषण कार्य तपोभूमि में निरन्तर होते रहेंगे।
आत्म कल्याण की साधना करने वालों के लिए यह तपोभूमि अत्यन्त ही महत्वपूर्ण एवं शाँतिदायक है। यहाँ ऐसे सज्जन स्थायी रूप से निवास कर सकेंगे जिन पर पारिवारिक उत्तरदायित्व नहीं है। जो लोग घरेलू जिम्मेदारियों से निवृत्त हो चुके हैं और शान्तिमय जीवन बिताना चाहते हैं उसके लिए गुरुदेव का सान्निध्य, एवं तपोभूमि का अत्यन्त ही पवित्र एवं प्रभावशाली वातावरण बहुत ही अनुकूल एवं शान्तिदायक सिद्ध हो सकता है। जिन्हें भगवान ऐसा सौभाग्य प्रदान करें उन्हें बड़भागी ही समझना चाहिए।
यह पुण्य तीर्थ निश्चित रूप से असाधारण महत्वपूर्ण हैं, जिस स्थान पर यह स्थापित है वह प्राचीन काल में महात्माओं की सिद्धि भूमि है। इसके चारों ओर अनेक शक्तिपीठ तथा तपोवन फैले हुए हैं। ब्रज का यह प्रमुख केन्द्र है। ऐसे स्थान पर इस तीर्थ को बनाने य बनवाने में जिनका समय, श्रम, सहयोग तथा धन लगा है उनके प्रयत्न की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी कम है। इस संस्था के द्वारा भारतीय संस्कृति तथा भारतीय अध्यात्म धर्म के पुनरुत्थान में इस विशेष सहायता के आशातीत हैं।
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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प्रोफेसर त्रिपाठी जी जीवनदानी शांतिकुंज की शुभकामना ( उन्ही के शब्दों में)
प्रज्ञावतार की युगन्तरिय चेतना ने अतिमानस के अवतरण एवं प्रतिभा परिष्कार के लिए स्वाध्याय पर बहुत बल दिया हैं। ये आत्मा का भोजन है। गुरूसत्ता ने आत्मपरिष्कार को सशक्त शस्त्र बताया है। नित्य स्वाध्याय शीलशच दुःखनयंति तरन्ति ते। 21वीं सदी की मांग प्रतिभा परिष्कार। 21वीं सदी का नेतृत्व प्रतिभा शक्ति करेगी। धनबल, बाहुबल,शस्त्रबल शासनतंत्र धर्मतंत्र सभी का नेतृत्व प्रतिभा सम्पन्न आत्माएं करेंगीं । श्रीअरविंद, स्वामी विवेकानद, रवींद्र नाथ टैगोर,योगीराज स्वामी योगननंद जी ने सभी नियंत्रण महावतार बाबा पूज्य दादा गुरुदेव जी पर ही छोड़ दिया है । प्रतिभाओं का चयन आध्यामिक शक्ति के ध्रुव केंद्र हिमालय से ही होना है।।
आप और आपका ग्रुप उसी महान सत्ता की उपलब्धि है।बहुत बहुत मंगलकामनायें। आपसे कनाडा में जुड़कर हम धन्य हुए। जीवन धन्य हुआ ।प्रणाम गुरूसत्ता का आशीर्वाद।
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24 आहुति संकल्प
28 फ़रवरी 2022 वाले लेख के स्वाध्याय के उपरांत 3 सहकर्मियों ने संकल्प पूर्ण किया है
यह सहकर्मी निम्नलिखित हैं :(1)अरुण वर्मा-27 ,(2 )सरविन्द पाल-26 ,(3 )संध्या कुमार -24;
अरुण वर्मा जी 27 अंक प्राप्त करते हुए गोल्ड मैडल विजेता घोषित किये जाते हैं। अरुण वर्मा जी ने संकल्प ले लिया है कि किसी को भी आगे नहीं निकलने देना है। सभी सहकर्मी अपनी अपनी समर्था और समय के अनुसार expectation से ऊपर ही कार्य कर रहे हैं जिन्हे हम हृदय से नमन करते हैं और आभार व्यक्त करते हैं। धन्यवाद्