वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ऑनलाइन ज्ञानरथ का 500वां ज्ञानप्रसाद 

22 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद -ऑनलाइन ज्ञानरथ का 500वां ज्ञानप्रसाद 

परमपूज्य गुरुदेव एवं वंदनीय माता जी के सूक्ष्म संरक्षण में हम ऑनलाइन ज्ञानरथ का 500वां ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत कर रहे हैं। इस अद्धभुत ज्ञानरथ के सारथी, हमारे परम पूज्य गुरुदेव और सभी सहकर्मी जिनके अथक परिश्रम और सहयोग से यह ज्ञानरथ अनवरत हांका जा रहा है-उनके श्रीचरणों में हम अपने व्यक्तिगत श्रद्धा सुमन भेंट करते हैं। रीछ, वानर, गिलहरी की भूमिका निभा रहे सभी सहकर्मियों को हमारा व्यक्तिगत नमन।

परम पूज्य गुरुदेव द्वारा लिखित लघु पुस्तिका “इन्द्रिय संयम का महत्त्व” पर आधारित आदरणीय संध्या कुमार जी की लेख श्रृंखला का तृतीय पार्ट आज प्रस्तुत है। कामवासना की समस्या जिससे हम सब भलीभांति परिचित हैं और जो हमारे समाज को दीमक की तरह खाये जा रही है, आज के लेख में बहुत ही संक्षिप्त तौर से वर्णित है। सार और असार संसार को उदाहरण देकर समझने का प्रयास भी किया है। 

अपने सहपाठियों को बड़े हर्ष के साथ बताना चाहेंगें कि कल का ज्ञानप्रसाद एक ऑडियो बुक होगी। 10:30 मिनट की यह ऑडियो बुक हमारी सबकी परमप्रिय प्रेरणा बिटिया ने तैयार की है। बिटिया ने हमसे टॉपिक के बारे में मार्गदर्शन तो अवश्य ही लिया था लेकिन ऑडियो बुक रिकॉर्ड करने में उसी का योगदान है। बहुत बहुत बधाई बिटिया रानी। परम पूज्य गुरुदेव की masterpiece पुस्तक “हमारी वसीयत और विरासत” के चैप्टर “समर्थ गुरु की प्राप्ति -एक अनुपम सुयोग” पर आधारित यह ऑडियो बुक, सुनने और पढ़ने के लिए उपलब्ध है। ऑडियो के साथ साथ पुस्तक के पन्ने भी scroll हो रहे हैं। आशा करते है कि अन्य कंटेंट की तरह इस प्रयास को भी भरपूर  सहयोग मिलेगा क्योंकि सभी की प्रतिभा को विशेषकर युवा प्रतिभा को प्रोत्साहित करना हमारा परम कर्तव्य और धर्म है। रेनू श्रीवास्तव जी ने कमेंट करते हुए लिखा है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ ने सभी को लेखक बना दिया है -धन्यवाद बहिन जी। 

24 आहुति संकल्प के गोल्ड मैडल विजेता आज लिस्ट में ही घोषित कर देंगें। 

तो चलते हैं ज्ञानप्रसाद की ओर 

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जब हमें अनुराग होता है, जिससे अनुराग होता है, उसकी प्राप्ति एवं मिलन से हमें अपार खुशी का अनुभव होता है, किंतु यदि इसके विपरीत उससे बिछड़ना होता है या उसे छोडना पड़ता है तब अपार दुःख का अनुभव होता है। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है, प्रतिदिन ही कितने लोगों की मौत होती है, इसका हम पर कोई खास असर नहीं पड़ता, हमारी दिनचर्या समान्य रूप से चलती रहती है, किंतु हमारे अपने, वह भले ही हमारा पालतू बिल्ली,कुत्ता ही क्यों ना हो, उस एक की मौत से हमें सम्पूर्ण संसार ही विरान मालुम होने लगता है। हमारी दिनचर्या बिखर जाती है, हमारा किसी काम में मन नहीं लगता है। 

परम पूज्य गुरुदेव कहते हैं इसका एकमात्र कारण अनुराग ही है, मोह ही है और मोह को ही हम कभी-कभी मोहमाया जैसे शब्द प्रयोग करके व्यक्त करते हैं। हाँ माया यानि भ्र्म -illusion,धोखा। अतः हमें यह समझ कर चलना चाहिए कि संसार “असार” है। यहाँ कितने ही आये और चले गये। हमेशा याद रखना चाहिए कि जो आया है उसे एक दिन जाना ही है । अतः अपने किसी के जाने पर स्वयं को विचलित न करना और अपने कर्तव्यों का निर्वाह ठीक तरीके से निरन्तर करते रहना ही कर्तव्य परायणता है। हमारे पाठक- सहकर्मी भली भांति जानते हैं कि जब गुरुदेव के माताजी का महाप्रयाण हुआ तो गुरुदेव कहीं और प्रवचन दे रहे थे। वीरेश्वर भाई साहिब उन्हें लाने के लिए गए भी थे लेकिन —-

आइये असर शब्द पर थोड़ी चर्चा कर लें :

बहुत लोग कहते हैं कि यह संसार असार है यानि इसका कोई सार नहीं है। किन्तु लगता नहीं कि यह असार है, क्योंकि इसे असार कहने वालों की अपेक्षा सार ढूँढ़ने वालों की संख्या कहीं अधिक है। जो लोग कहते हैं कि संसार का सार नहीं है उन्होंने इसे छोड़ा क्यों नहीं ? संसार को सार कहने वालों में छोटे- बड़े, धनी-निर्धन, बालक-बूढ़े और ज्ञानी-अज्ञानी सभी शामिल हैं। इन सब की भीड़ बेशुमार है। जो मनुष्य दूसरों को असार कह कर स्वयं उसमें सार मानता है, ऐसा मनुष्य लौकिक व्यक्तियों के बीच में भले ही ज्ञानी माना जाये, किन्तु जब स्वयं को बोध होता है तो उसके हाथ पश्चाताप के अलावा कुछ हाथ नहीं लगता। संसार को असार घोषित करने वाला उसी में सार ढूँढ़े तो पागलपन ही माना जायेगा। जिस मनुष्य को सार के रूप में वास्तविक ज्ञान या अनुभव हो जाता है उसे किसी के प्रति कोई आकर्षण नहीं रह जाता है। हंस की चोंच में ऐसी शक्ति होती है कि दूध और पानी को पृथक्-पृथक् कर देती है और हंस दूध का सेवन करके पानी को छोड़ देता है अर्थात् सार वस्तु को ग्रहण करके असार वस्तु का त्याग कर देता है। इसी प्रकार विचारवान मनुष्य भी इस मिले-जुले संसार में से सार वस्तु को ग्रहण करके असार वस्तु को त्याग देता है। परिणामस्वरुप वह आसानी से इस भवसागर को पार कर लेता है। परमसंत कबीर जी कहते हैं कि सार वस्तु अथवा दूध मालिक का नाम है और असार वस्तु अथवा नीर माया-काया का नाम है। परम पूज्य गुरुदेव के असली शिष्य (हम सब) इस असार संसार में रहते हुए भी हंस के समान सार वस्तु यानि गुरु-भक्ति को ही ग्रहण करते हैं।

सार और असार की चर्चा के निराकरण हेतु परम पूज्य गुरुदेव कहते हैं कि जो शाश्वत सत्य (Universal truth) है, स्थिर है, उसी का चिंतन श्रेयस्कर है। अतः मनुष्य को स्थिर वस्तु पर ही अपना चित्त लगाना चाहिए। यह तो सर्वविदित है कि स्थिर शाश्वत तो ईश्वर ही है, अतः उसी में रमना चाहिए। अगर मनुष्य ऐसा करने में सफल हो पाता है तो मन को प्रलोभनों के प्रति आकर्षित होकर भटकने से बचा सकता है। मनुष्य के मन की चंचलता एवं  भटकन को रोकने के लिये गुरुदेव ने सुझाव देते हुए कहा है कि जब मनुष्य को विषय (desires) व्यथित करे, अपने प्रति आकर्षित करे, तब उसे विचार, विवेक और सात्विक बुद्धि का आश्रय लेना चाहिए। कई बार अहंकार मन पर हावी हो जाता है, यह अहंकार इंद्रियों को दिग्भ्रमित करता है एवं उस पर कुप्रभाव डालता है। तब बिना भटके विवेक का आश्रय लेना है। विवेक में अपार शक्ति है। उससे बुद्धि की स्थिरता सम्भव है। विवेक और बुद्धि से ही मनुष्य ‘आंतरिक ज्ञान’ की ओर प्रशस्त होता है। इसके निरन्तर प्रयास एवं अभ्यास से मनुष्य सांसारिक प्रलोभनों से दूर होकर आंतरिक ज्ञान की ओर प्रशस्त होते हुए, स्वयं को परिष्कृत करते हुए अपने भीतर ही आनन्द की खोज करने के लिए अग्रसर होकर आत्मा में ही आनन्द का अमृतपान करने का प्रयास करता है।

गुरुदेव समझाते हुए लिखते हैं कि इंद्रियों को वश में रखने के लिये मन को वश में रखना नितांत आवश्यक है। कमज़ोर इच्छाशक्ति वाले व्यक्ति प्रलोभनों के मकड़जाल से नहीं निकल पाते, उन्हें अपनी इच्छाशक्ति का त्याग करते हुए निरन्तर सत्संगी आध्यात्मिक चिंतन का प्रयास एवं अभ्यास करना चाहिए। गुरुदेव यह इसलिए कह रहे हैं कि वासनाएं (Desires) मन में प्रभुत्व बना कर इन्द्रियों को अपने बस में कर लेती हैं। वासनाएं तो कई प्रकार की होती हैं लेकिन कामवासना सर्वप्रधान होती है, अतः सर्वप्रथम उसी के निग्रह की चेष्टा की जानी चाहिए।

कामवासना का प्रथम अस्त्र रमणी (युवती) ही है अतः सर्वप्रथम उस पर से ध्यान हटाना होगा,उसे ही मन से निकालना होगा। रमणी निकालते ही अन्य दुर्गुण उन्माद, लोभ, मोह, क्रोध स्वतः ही खत्म हो जाएंगे। समाज में हम देखते सुनते हैं कि कामवासना के वशीभूत होकर मनुष्य कैसे-कैसे दुष्कर्म कर जाता है। अन्य स्त्रियों के प्रति दुष्विचार रखने से पहले मनुष्य को एक बार इस बात पर भी विचार करना चाहिए कि उसकी माँ,बहन, बेटी भी तो एक कन्या या स्त्री ही हैं। यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री के लिए वासना के वशीभूत होकर अश्लील विचार-दृष्टि रखता है तो संभव है कि कोई और दूसरा व्यक्ति उसी व्यक्ति की माँ, बहिन, बेटी के लिए अश्लील विचार रख कर उसका जीवन दुष्कर बना सकता है। अतः यह आवश्यक है कि सभी व्यक्तियों को अपनी स्त्री के अलावा अन्य स्त्रियों में , कन्याओं में  अपनी माँ, बहिन, बेटी के स्वरूप को ही देखना चाहिए एवं उनके साथ शिष्ट विचार, आचार ही रखना चाहिए। इस शिष्ट एवं शालीन, विचार -व्यवहार की शिक्षा हर घर, परिवार में प्रारम्भ से ही यानि बाल्यावस्था से ही दी जानी चाहिए, जिससे बालकों के दिल-दिमाग में यह विचार अच्छी तरह जड़ बना ले कि प्रत्येक स्त्री-कन्या भी हमारी माँ, बहिन, (भविष्य में) बेटी की भांति अच्छे व्यवहार, विचार, आचार की अधिकारी है। जब ऐसी सोच समाज में पल्लवित-पोषित होती रहेगी तब कभी भी, कोई ‘निर्भया’ कच्ची उम्र में मृत्यु की ग्रास नहीं बनेगी। कामवासना मनुष्य को भ्रष्ट करने का मूल कारण बनती है। 

इसी प्रकार क्रोध के वशीभूत होकर मनुष्य स्वयं का और ना जाने कितनों का नुकसान कर बैठता है। गुरुदेव कहते हैं कि कईं अवसरों पर मनुष्य स्वयं को असमर्थ पाता है अतः भूत-भविष्य की चिंता में क्रोधित होता है। चिकित्सकों का परीक्षण बताता है कि यदि मनुष्य साढ़े चार घण्टे लगातार क्रोधित रहता है तो उसका लगभग आठ औंस रक्त जल जाता है और शरीर में हानिकारक ज़हर इतना पैदा हो जाता है जितना एक तोला कुचला में होता है। कुचला एक प्रकार का अमरुद जैसा फल होता है जिसके बीज विषैले होते हैं।

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प सूची :

21  फ़रवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 3 समर्पित साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। यह समर्पित साधक निम्नलिखित है :

(1) प्रेरणा कुमारी -28 , (2 )अरुण वर्मा-24, (3) संध्या कुमार-24 

इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और प्रेरणा बिटिया आज की  गोल्ड मैडल विजेता हैं।

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