वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गायत्री साधना के दिव्य  लाभ- एक आश्चर्यजनक पहेली !!

17 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद -गायत्री साधना के दिव्य  लाभ- एक आश्चर्यजनक पहेली !! 

हर  रोज़ जब हम गायत्री मन्त्र की दिव्यता की  बात करते थे, इस महामंत्र की शक्ति की बात करते थे तो मन में एक प्रश्न हिचकोलें लेता था कि “क्या है यह दिव्यता”,  आखिर कैसे आती है यह शक्ति, इस असीमित शक्ति का भंडार कहाँ है,और उस भंडारगृह में से ग्रहण करने की प्रक्रिया क्या है। क्या सच में हम उस शक्ति को प्राप्त कर सकते हैं या केवल सुनी-सुनाई  पुराणों-ग्रंथों में लिखी बातें हैं।  Divine का हिंदी अनुवाद दिव्य,दैवी यानि देवों से सम्बंधित है। कहाँ हम और कहाँ देवी देवता। बात कुछ अविश्वसनीय सी लगती है। परन्तु हम कहेंगें आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत आपको विश्वास हो जायेगा कि हम दिव्यता की ओर अग्रसर हो सकते। ब्रह्माण्ड में  व्याप्त उस दिव्य तत्व को प्राप्त कर सकते हैं, ब्रह्माण्ड में व्याप्त पांच तत्वों- पृथ्वी ,आकाश ,वायु ,जल और अग्नि- से आलिंगन कर सकते हैं। यही है आज के लेख का सार कि जब  हम गायत्री मन्त्र करते हैं तो इन पंच तत्वों के साथ एकाकार हो रहे हैं। वंदनीय माता जी की दिव्य वाणी में नाद योग वाली वीडियो आज के लेख में सहायक हो सकती है। https://youtu.be/hmWwBE8Xu4s लेख आरम्भ करने से पहले कुछ बातें संक्षेप में करना चाहेंगें।              

1.कल वाले लेख पर कमेंट करते हुए हमारे चार परिजनों “अरुण वर्मा जी, रेनू श्रीवास्तव जी, संध्या कुमार जी, और विदुषी बंटा  जी”  ने भारत-पाक-श्रीलंका- बांग्ला देश युद्धों के दौरान परमपूज्य गुरुदेव की साधना की चर्चा की है। कितनी अद्भुत बात है, सभी अपने अपने घरों में independently कमेंट कर रहे हैं लेकिन कमेंट लगभग एक जैसा।  शायद यही है ऑनलाइन ज्ञानरथ की एकजुटता।   या फिर हम कह सकते हैं कि ऐसी  महत्वपूर्ण बात सभी के मन में आना स्वाभाविक है। 

2.संलग्न कवर में आप एक नहीं सी बच्ची की पिक्चर देख रहे हैं। प्रेमशीला मिश्रा जी की 15 माह की   छोटी नातिन का पांव फ्रैक्चर होने के कारण दुविधा में है। हम सब इस बच्ची के स्वास्थ्य लाभ के लिए गुरुदेव से प्रार्थना करते हैं। इस बच्ची की फोटो देखने से पहले जब हमने बहिन जी को लिखा कि पीले फ्रॉक में बच्ची की छवि सामने आ गयी तो हमें खुद पर विश्ववास नहीं आया कि यह हमने कैसे लिख दिया -शायद अंतरात्मा का सम्बन्ध ही था। हमने इस बच्ची को ऑनलाइन ज्ञानरथ की सबसे छोटी  सहकर्मी का विशेषण दिया है। 

3.राजकुमारी कौरव बहिन जी जो कई दिनों से  हमसे व्हट्सप्प पर जुड़ने का प्रयास कर रहीं थीं उनकी संक्षिप्त अनुभूति इस लेख के साथ प्रस्तुत है। 

तो आइये चलें actual ज्ञानप्रसाद की ओर :

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गायत्री  मंत्र की दिव्य शक्ति 

गायत्री साधना करने वालों को अनेक लाभों से लाभान्वित होते हुए देखा और सुना गया है। चौबीस अक्षरों के इस  संस्कृत भाषा के मंत्र  को जपने या साधना करने से किस प्रकार इतने लाभ होते हैं, यह एक आश्चर्यजनक पहेली है। इस पहेली को ठीक प्रकार न समझ सकने के कारण कई लोग गलत धारणाएं बना लेते हैं। यह तो उसी तरह की बात हो गयी कि हमारे शरीर को  खाना खाने से ऊर्जा प्राप्त होती है जिससे हम दिन भर की दौड़ धूप  करते हैं लेकिन प्रक्रिया जानने की चिंता नहीं है।  प्रक्रिया जानकार उसी कार्य को करना और भी लाभदायक और सार्थक होता है।  

गायत्री एक ऐसा विश्व व्यापी दिव्य तत्व है जिसे  ह्रींबुद्धि, श्रीं-समृद्धि, और क्लीं-शक्ति, इन त्रिगुणात्मक ( triplet ) विशेषताओं का स्रोत  कहा जा सकता है। यह महाचैतन्य दैवी शक्ति जब विश्वव्यापी पंच तत्वों ( पृथ्वी ,आकाश ,वायु ,जल और अग्नि ) से आलिंगन करती है तो उसकी बड़ी ही रहस्य्मय  प्रतिक्रियाएं होती हैं। ईश्वरीय दिव्य शक्ति-गायत्री की पंच भौतिक प्रकृति-सावित्री से सम्मिलन पाने के समय जो स्थिति होती है उसे ऋषियों ने अपनी सूक्ष्म दिव्य दृष्टि से देख कर साधना के लिए मूर्तिमान कर दिया है। 

विश्व व्यापिनी गायत्री शक्ति जब आकाश तत्व से टकरा कर शद्व तन्मात्रा में प्रतिध्वनित होती है तब उस समय चौबीस अक्षरों वाले गायत्री मंत्र के समान ध्वनि तरंगें उत्पन्न होती है। हम उसे अपने स्थूल कानों से तो  नहीं सुन सकते पर ऋषियों ने अपनी दिव्य कर्णेन्द्रिय से सुना  कि सृष्टि के अन्तराल में एक दिव्य ध्वनि लहरी गुंजित हो रही है।( वंदनीय माता जी वाली वीडियो ) उसी ध्वनि लहरी को उन्होंने चौबीस अक्षर गायत्री के रूप में पकड़ लिया। इसी प्रकार अग्नि तत्व के साथ इस सूक्ष्म शक्ति का संबंध होते समय, रूप तन्मात्रा में जो “आकृति” उत्पन्न हुई वह गायत्री का रूप मान लिया। इसी प्रकार वायु, जल, पृथ्वी की तन्मात्राओं में जो उस सम्मिलन की प्रतिक्रिया हुई उस स्पर्श, रस और गंध का गायत्री के साथ संबंध किया गया।

मनुष्य का शरीर और मन पंच तत्वों का बना हुआ है। पंच तत्वों से गायत्री शक्ति का सम्मिलन होते समय सूक्ष्म जगत में जो प्रतिक्रिया होती है उसी के अनुरूप मानसिक प्रतिक्रिया यदि हम अपनी ओर से अपने मनःक्षेत्र में उत्पन्न करें तो आसानी से उस दैवी शक्ति गायत्री तक पहुंच सकते हैं। पंच भौतिक जगत् और सूक्ष्म दैवी जगत के बीच एक नसैनी, रस्सी, पुल, सम्बन्ध सूत्र, ऋषियों को दिखाई दिया था उसे ही उन्होंने गायत्री उपासना के रूप में उपस्थित कर दिया है। मंत्रोच्चारण, ध्यान, तपश्चर्या विधि, व्यवस्था आदि के साथ किये हुये साधन लटकती हुई रस्सियां हैं जिन्हें पकड़ कर हमारी भौतिक चेतना, गायत्री की सर्व शक्तिमान दिव्य चेतना से जा मिलती है। जैसे नंदनवन  में पहुंचने पर भूख, प्यास और थकान मिटाने के सब साधन मिल जाते हैं वैसे ही गायत्री का सान्निध्य प्राप्त कर लेने से आत्मा की सभी त्रुटियां वासनाएं, तृष्णाएं, मलीनताएं दूर हो जाती हैं और स्वर्गीय सुख के आस्वादन का अवसर मिलता है। 

ऐसा क्या है नंदनवन में जो हमारी भूख,प्यास,थकान  वगैरह तक मिटा देता है। यही है दिव्यता।  नंदनवन जाना तो शायद कठिन हो, आप केवल युगतीर्थ शांतिकुंज, तपोभूमि मथुरा या फिर पूज्यवर की जन्मस्थली आंवलखेड़ा, अखंड ज्योति संस्थान की भूतों वाली बिल्डिंग में ही जाकर देख लें, आपको दिव्यता का आभास हो जायेगा।  हम यह पंक्तियाँ अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर लिखने की साहस  कर रहे हैं।      

गायत्री साधना का प्रभाव सबसे प्रथम साधक के अन्तःकरण पर होता है। उसकी आत्मिक भूमिका में सतोगुणी तत्वों की अभिवृद्धि होनी आरंभ हो जाती है। किसी पानी के भरे कटोरे में यदि कंकड़ डालना शुरू किया जाय तो पहले का भरा हुआ पानी नीचे गिरने और घटने लगेगा इसी प्रकार सतोगुण बढ़ने से दुर्गुण, कुविचार, दुःस्वभाव, दुर्भाव घटने आरंभ हो जाते हैं। इस परिवर्तन के कारण साधक में ऐसी अनेक विशेषताएं उत्पन्न हो जाती हैं जो जीवन को सरल, सफल और शान्तिमय बनने में सहायक होती हैं। दया, करुणा, प्रेम, मैत्री, त्याग, सन्तोष, शान्ति, सेवा भाव, आत्मीयता, सत्य निष्ठा, ईमानदारी, संयम, नम्रता, पवित्रता, श्रमशीलता, धर्मपरायण आदि सद्गुणों की मात्रा दिन दिन बड़ी तेजी से बढ़ती जाती है। फलस्वरूप संसार में उसके लिए प्रशंसा, कृतज्ञता, प्रत्युपकार, श्रद्धा, सहायता एवं सम्मान के भाव बढ़ते हैं और लोग उसे प्रत्युपकार से संतुष्ट करते रहते हैं। इसके अतिरिक्त यह सद्गुण स्वयं इतने मधुर होते हैं कि जिस हृदय में इनका निवास होगा वहां आत्म सन्तोष की शीतल निर्झरिणी सदा बहती रहेगी। ऐसे लोग चाहे जीवित अवस्था में हों चाहे मृत अवस्था में सदा स्वर्गीय सुख का आस्वादन करते रहेंगे।

गायत्री साधना से मन, बुद्धि, चित्त अहंकार के चतुष्टय में असाधारण हेर-फेर होता है। विवेक, दूरदर्शिता, तत्वज्ञान और ऋतम्भरा बुद्धि की  विशेष रूप से उत्पति  होने के कारण अनेक अज्ञानजन्य दुःखों  का निवारण हो जाता है। प्रारब्धवश  कष्ट साध्य परिस्थितियां, विपरीत परिस्थितियां  हर एक के जीवन में आती रहती हैं। हानि, शोक, वियोग, आपत्ति, रोग, आक्रमण, विरोध, आघात आदि की विपन्न परिस्थितियां में जहां साधारण मनोभूमि के लोग मृत्यु तुल्य मानसिक कष्ट पाते हैं वहां ‘आत्मबल सम्पन्न गायत्री साधक’ अपने विवेक, ज्ञान, वैराग्य, साहस, आशा, धैर्य, संतोष और ईश्वर विश्वास के आधार पर इन कठिनाईयों को हंसते-हंसते आसानी से काट लेता है। बुरी अथवा साधारण परिस्थितियों में भी अपने आनन्द का मार्ग ढूंढ़ निकालता है और मस्ती प्रसन्नता एवं निराकुलता का जीवन बिताता है।

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राजकुमारी कौरव जी की अनुभूति:

आदरणीय भैया प्रणाम ।

बात 1994की है मेरी शादी हुई ससुराल आई मेरे पति परिवार के सभी परिजनों को बैठाकर गायत्री संध्या करवाते थे फिर 1999में नरसिंहपुर में 108कुंडीय गायत्री महायज्ञ संपन्न हुआ उसमें हम शामिल हुए मन में भाव जागृत हुये कि पूज्य गुरुदेव ही हमारे सब कुछ हैं।  फिर मंत्रलेखन शुरू किए जिस दिन न लिख पायेंगे तो बैचेनी होती थी। गुरुदेव की कृपा से पतिदेव को शिक्षक की नौकरी मिल गई हम धीरे धीरे मिशन के कार्यों में भी सहयोग करने लगे। मुझे क्रोध बहुत आता था गायत्री मंत्र के जप से क्रोध से छुटकारा मिल गया। मेरे दोनों बेटे संस्कारी एवं संतोषी हैं, बहू भी सुशील है अभी तक के जीवनकाल में उतार चढ़ाव आए , पूज्य गुरुदेव निवारण करते गये।  हमारी आस्था दिन-दूनी बढ़ती गई।  अब तो हर समय गुरुदेव का ही स्मरण बना रहता है। लोगों को जप साधना, मंत्र लेखन एवं गुरुदेव के साहित्य को पढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं । जब से गुरूदेव से जुड़े हैं मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक लाभ में  बढ़ोतरी हुई है।  अब तो इतना संतोष हो गया है कि  धन, मोह- माया थोथे लगने लगे हैं।  सदगुरु की शरण में सुसाहित्य का अमृतपान कर जीवन धन्य हो रहा है। आदरणीय अरूण भैया हम आपके ऋणी है आपने ज्ञानरथ के माध्यम से हमें कृतार्थ कर दिया।  आपको महाकाल का अनुदान वरदान हमेशा मिलता रहे ।जय गुरुदेव जय माता दी प्रणाम भैयाजी

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प सूची :

16   फ़रवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 4   समर्पित साधकों  ने  24 आहुति  संकल्प पूर्ण किया है। यह समर्पित साधक निम्नलिखित है :

(1 ) प्रेरणा कुमारी-24 ,(2 )अरुण वर्मा -38,(3 )सरविन्द कुमार-26 ,(4 )संध्या कुमार-26,(5 )पूनम कुमारी -40 , (6)रेनू श्रीवास्तव-33 

इस पुनीत कार्य के लिए सभी   युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और पूनम कुमारी  जी आज की   गोल्ड मैडल विजेता हैं। कामना करते हैं कि  परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि  आपके परिवार पर सदैव बनी रहे। हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव

 
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