12 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – गुरुदेव के अध्यात्मिक जन्म दिवस पर हमारी अनुभूतियों के श्रद्धा सुमन-7
हमने कल वाले ज्ञानप्रसाद में संजना बिटिया की ऑनलाइन ज्ञानरथ के प्रति अनुभूति प्रस्तुत की थी। लेकिन उसे प्रस्तुत करने से पूर्व हमने उसे याद करवाया कि अखंड ज्योति नेत्र हस्पताल, मस्तीचक गायत्री शक्तिपीठ इत्यादि की अनुभूति जो इतनी प्रेरणादायक है, उसे मिस करना उचित न होगा। जिस समय हमारी फ़ोन पर बात हो रही थी इंडिया में रात थी और अगले दिन बहुत सुबह बेटी को अपने स्कूल के लिए रवाना होना था। इस कारण समय के अभाव में कुछ लिखना संभव न था लेकिन बेटी की स्मरणशक्ति ऐसी थी कि उसे एकदम 6 अगस्त 2021 वाला ज्ञानप्रसाद याद आ गया। लगभग एक ही समय में अरुण वर्मा और संजना कुमारी, दोनों के परिवार मस्तीचक गए थे और वापिस आने पर हमने उन्हें अपनी अनुभूतियाँ लिखने को कहा था। दो भागों में प्रस्तुत इस श्रृंखला का दूसरा भाग हम आपके समक्ष रख रहे हैं जो परमपूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर एक अति समर्पित भेंट हो सकती है। वैसे तो अपने सहकर्मियों द्वारा प्रस्तुत हर किसी लेख को एडिट तो करना ही पड़ता है लेकिन हमें याद आ रहा कि यह लेख हमारे मार्गदर्शन में कितनी ही बार एडिट हुआ था।
आज का लेख आरम्भ करने से पहले अपडेट करते हैं कि सोमवार को अनुभूतियों की श्रृंखला का अंतिम लेख -सुमन लता बहिन और अरुण वर्मा जी की अनुभूति होगा। अभी भी अगर कोई सहकर्मी अपनी किसी अनुभूति लिखने के लिए विचार बना रहे हैं तो यह अंतिम आमंत्रण होगा। निवेदन करते हैं की अपने लेख को अंतिम रूप देकर जल्द से जल्द हमें भेजने का प्रयास करें ,बहुत कृपा होगी
तो आइये देखें क्या कह रही है संजना बेटी।
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मस्तीचक की अनुभति- संजना कुमारी
मस्तीचक गायत्री शक्तिपीठ बिहार के सारण जिला (छपरा) में स्थित है। यह तो शत प्रतिशत सत्य बात है गुरु जी की आज्ञा थी सो अचानक संयोग बना और हम सभी ने उस पावन जगह के दर्शन किए और उस दिव्यता को अभी भी महसूस कर रहे हैं।
सौभाग्यवश हमारे जो ड्राइवर अंकल थे वह स्वयं भी गायत्री परिवार से हैं। अखंड ज्योति पत्रिका का 1982 से ही स्वाध्याय करते रहे हैं। आने एवं जाने के क्रम में उन्होंने अपनी विचारधारा व्यक्त की तथा बहुत सी महत्वपूर्ण बातों पर चर्चाएं भी की जैसे मनुष्य इस संसार में गागर में सागर और सागर में गागर की तरह है; इस दुनिया में सभी पदार्थ अपने गुण से गुणित है; हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई धर्म नहीं संप्रदाय है धर्म तो हम सभी का एक ही है और वह है मानवता। अपनी जिम्मेदारियां पूरा करना जैसे सूर्य का अपना धर्म है ,पृथ्वी का अपना धर्म है; कोई भी तीर्थस्थल के दर्शन करने से कोई फायदा नहीं जब तक हम मनुष्य अपने दुर्गुणों को नहीं हटाएंगे; हमें भगवान को खोजने की जरूरत नहीं बल्कि अपने विचारों और भावनाओं को उच्चतम शिखर तक ले जाने की जरूरत है तभी वह दिव्य प्रकाश हमारे अंदर से स्वयं उसी क्षण आ जाएंगे आदि आदि। तो यह है गुरुदेव की अखंड ज्योति पत्रिका की शक्ति। वह साधारण मनुष्य को भी ज्ञानी पुरुष बनाए जा रही है और वह भी बिना किसी डिग्री के।
इस प्रकार बातें करते-करते हम मस्तीचक के शक्तिपीठ पहुंचे। मंदिर में यज्ञ हो रहा था सो हमारे कानों में मंत्रोच्चार सुनाई देने लगी और अंदर की श्रद्धा ने और तीव्र गति ले ली। सामने चापाकल (Handpump) थी हमने हाथ पैर धोए और अंदर प्रवेश किया। शुक्ला बाबा जी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए महामृत्युंजय मंत्र की आहुति भी दी जा रही थी। बाहर से सब कुछ अति साधारण दिख रहा था परंतु अंदर की दिव्यता तो अलौकिक थी। सभी सहकर्मी अपने अपने कामों में व्यस्त थे। इन सभी के अंदर की श्रद्धा, भावना और आत्म संतुष्टि से वहां का परिवेश जगमग हो रहा था। अब और ज्यादा देर इंतजार नहीं किया जा रहा था सो हमने जल्द ही मंदिर के दर्शन करना प्रारंभ किए। वहां के सारे मंदिर कुल 5 कक्षों में विभाजित हैं। दर्शन तो हम सभी ने सामने के गायत्री मंदिर से करना शुरू कर दिए जिसमें मां गायत्री की मूर्ति के साथ-साथ उनकी सवारी हंस, मां दुर्गा और मां सरस्वती जी की भी मूर्तियां स्थापित हैं। इस मंदिर के बाएं से प्रथम में गुरुजी और माताजी की मूर्तियां स्थापित हैं। इसके
तुरंत बाएं मे प्रखर प्रज्ञा, सजल श्रद्धा का कक्ष है जिसमें गुरु जी के जीवन को दर्शाते हुए दीवारों पर लेख लिखे गए हैं। यहां कलश भी स्थापित है एवं खड़ाऊ भी रखे हुए हैं। यहां हम सभी ने बैठकर उसकी भव्यता और शांति को अपने अंतःकरण में स्थापित करने की कोशिश की। इसके उपरांत हमने गायत्री मंदिर के दाएं गुरुजी और माताजी के महाकाल के रूप में दर्शन किये जो कि “प्रथम ऐसा मंदिर है”। यहां शिवलिंग भी है और यह मंदिर अपने आप में ही विलक्षण है। तत्पश्चात हमने यज्ञशाला का भ्रमण किया और पंडित जी से प्रसाद ग्रहण किया । तभी आदरणीय सुनैना माता जी और उनके पति से हम लोगों की भेंट हुई और उन्होंने तुरंत ही हमें शुक्ला बाबा जी के दर्शन करवाएं। उन्हें अपने नयनों से देख कर बहुत तृप्ति का आभास हुआ, मानो हमने गुरुदेव के दर्शन ही कर लिए हों। अंतःकरण की श्रद्धा अश्रु रूप में बाहर आने लगी। हम सभी ने उन्हें एक-एक करके साष्टांग दंडवत प्रणाम किया। उन्होंने पूछा आप कहां से आए हैं, फिर हमारे पिताजी श्री अशोक कुमार गुप्ता जी ने बताया कि हम दानापुर बिहटा से आए हैं। अपनी वाणी से और दोनों हाथ उठाकर उन्होंने बोला कि हमारा आशीर्वाद है। ऐसे तो हमें सारे नियम याद होते हैं लेकिन सिद्धपुरुषों के सामने सारे ज्ञान धरे के धरे रह जाते हैं और काम आती है तो बस निश्चल श्रद्धा और सद्भावना। उनके स्वास्थ्य को देखते हुए फिर तुरंत ही हमने अपनी मुलाकात को समाप्त किया लेकिन मन वहां से हटने को नहीं कर रहा था।
लेकिन अभी एक और महत्वपूर्ण क्षण आना बाकी था। आदरणीय सुनैना माताजी के पति ने हमें 5 मिनट के लिए आज्ञा दी उस अंतिम कक्ष में दर्शन करने की जिसमें स्वयं परम पूज्य गुरुदेव ने साधना की थी। हम सभी उस दिव्य कक्ष में पहुंचकर खुद को भूल गए और थोड़ी देर के लिए सब कुछ स्थिर हो चुका था। हमारी मम्मी के आंसू तो रोके रूक ही नहीं रहे थे। यहां से निकलने के बाद सुनैना माता जी और उनके पति से हमारी वार्तालाप हुई। उन्होंने वहां की स्थितियों से हमें अवगत कराया, शुक्ला बाबाजी के बारे में बताया और मृत्युंजय तिवारी जी की व्यस्तता के बारे में बताया कि उनसे खुद उनकी भेंट कई दिनों तक नहीं हो पाती। परम पूज्य गुरुदेव और माता जी की अनुकंपा से, तिवारी जी और उनकी टीम की लगन और अथक परिश्रम के कारण अखंड ज्योति आई हॉस्पिटल पूरे दुनिया के लिए मिसाल है। इन सारी जानकारियों के बाद हम मंदिर से विदा हुए।
फिर हम Akhand Jyoti Eye Hospital-AJEH (जो शक्तिपीठ से कुछ दूरी पर है) के लिए निकल गये। हम आदरणीय डॉक्टर अरुण त्रिखा सर का बहुत-बहुत एवं बारंबार धन्यवाद करना चाहेंगे क्योंकि उन्हीं के मार्गदर्शन, असीम प्रयास और लिंक की मदद से हमें वहां सभी जन से अच्छे से मुलाकात हो पाई। उन सभी की विचारधारा और सकारात्मक ऊर्जा से हम बहुत प्रभावित हुए हैं। आदरणीय मृत्युंजय तिवारी जी से हमारी मुलाकात हुई और बहुत देर तक बातचीत भी हुई। उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं है। उन्होंने हमें बहुत सारी अनमोल बातें बताई जो कि निम्नलिखित हैं-
AJEH दो मुद्दों पर काम कर रही है। एक अंधापन और दूसरी नारी उत्थान; गुरुजी ने नारी जागरण के लिए तीन सूत्र दिए हैं – नारी शिक्षित हो, स्वावलंबी हो एवं विचारवान हो; अगर हम गुरुजी को सही में मानते हैं तो केवल पीले वस्त्र पहनने से काम नहीं चलेगा बल्कि घर एवं समाज की पीड़ा को दूर करने के लिए काम करना पड़ेगा। जरूरी नहीं कि हम शांतिकुंज या मस्तिचक रहकर ही यह करें इसलिए दिखावा से काम नहीं चलेगा; पूजनीय शुक्ला बाबा जी अपने कर्मों से हैं और हम अपना कर्म कर रहे हैं; AJEH का मुख्य लक्ष्य लोगों के विचारों को बदलना और सही दिशा देना है; वहां की एक छात्रा है शशि शर्मा जी जो अब अपने मेहनत और लगन के दम पर वहां की HOD बन गई हैं और
विदेशों में जाकर भाषण भी दे चुकी हैं। वह बहुत ही विनम्र और तेजस्वी हैं। इस तरह वह और उनके जैसी वहां की बहुत सारी छात्राएं हम सबके लिए एक उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं; आदि आदि। उनके इस मार्गदर्शन से हम कृतार्थ हो गए। शशि दीदी जी के मार्गदर्शन से फिर हमने वहां का भोजन प्रसाद ग्रहण किया। वहां का वातावरण बहुत ही अद्भुत है। हृदय में वहां की कभी ना मिटने वाली अनुभूतियों और स्मृतियों के साथ अंत में हमने वहां से विदा ली। सभी परिजनों को एक बार ज़रूर यहां आकर दर्शन करना चाहिए। यहां दिव्य शक्ति है जो साक्षात दिखाई पड़ती है। एक बार फिर से हम आदरणीय अरुण सर ,विकास सर जिन्होंने फोन से ही हमारा बहुत मार्ग दर्शन किया और शशि दीदी जी को बहुत-बहुत धन्यवाद करना चाहेंगे।
जय गुरुदेव जय गायत्री मां जय विश्व वंदनीय माता जी जय महाकाल
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
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24 आहुति संकल्प सूची :
11 फ़रवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के केवल 2 ही समर्पित साधकों- रेणुका गंजीर(26 ) और संध्या कुमार(26 )- ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण किया है। इस पुनीत कार्य के लिए दोनों ही युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और दोनों ही गोल्ड मैडल विजेता हैं। कामना करते हैं कि परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आपके परिवार पर सदैव बनी रहे। हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव