7 फ़रवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – लता दीदी को ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार की भावपूर्ण श्रद्धांजलि और अनुभूतियों के श्रद्धा सुमन -2
ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार की ओर लता मंगेशकर जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हमने अपनी भावनाएं कल शाम आपके साथ शेयर कीं थीं। उसी समय आदरणीय अनिल मिश्रा जी का व्हाट्सप्प मैसेज आया कि “लता दीदी, के निधन पर राष्ट्रीय शोक दो दिन में हम सभी ने कोई पोस्ट न भेजने का सोचा है” इस मैसेज को देखकर हमने अपनी रिसर्च आरम्भ की कि state mourning का अर्थ क्या होता है। तो हमें जो मिला उसे यथावत आपके समक्ष रख रहे हैं :
The Home Ministry said the national flag will be flown at half-mast from Feb 6 to 7 throughout India and there will be no official “entertainment.”
युगतीर्थ शांतिकुंज से, तपोभूमि मथुरा से ज्ञान का प्रचार-प्रसार हो रहा था, पोस्ट्स भी आ रही थीं, TV में तो entertainment वाले प्रोग्राम भी प्रसारित हो रहे थे। हमने अपनी अल्प बुद्धि और विवेक का सहारा लेते हुए सोचा कि “ Show must go on” हाँ बधाई और शुभकामना वाला सेक्शन यानि गोल्ड मैडल वाला पार्ट दो दिन के लिए स्थगित करना चाहिए।
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लता मंगेशकर जी:
Nightingale of India आदरणीय लता मंगेशकर जी का शरीर पूरा हो गया। दो दिन पूर्व सरस्वती पूजा थी,कल इस महान व्यक्तित्व की संसार से विदाई हो रही थी । लगता है जैसे माँ सरस्वती इस बार अपनी परमप्रिय पुत्री को ले जाने स्वयं ही आयी थीं। मृत्यु सदैव शोक का विषय नहीं होती। मृत्यु जीवन की पूर्णता है। लता दीदी जी का जीवन जितना सुन्दर रहा है, उतनी ही सुन्दर उनकी मृत्यु भी हुई है। 92 वर्ष का इतना सुन्दर और धार्मिक जीवन विरलों को ही प्राप्त होता है। लगभग पाँच पीढ़ियों ने उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुना है, और हृदय से सम्मान दिया है। उनके पिता ने जब अपने अंतिम समय में घर की बागडोर उनके हाथों में थमाई थी, तब उस तेरह वर्ष की नन्ही जान के कंधे पर छोटे-छोटे चार बहन-भाइयों के पालन की जिम्मेवारी थी। लता जी ने अपना समस्त जीवन उन चारों को ही समर्पित कर दिया। और आज जब वे गयी हैं तो उनका परिवार भारत के सबसे सम्मानित प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। किसी भी व्यक्ति का जीवन इससे अधिक सफल क्या होगा?
भारत पिछले अस्सी वर्षों से लता जी के गीतों के साथ जी रहा है। हर्ष में, विषाद में, ईश्वर भक्ति में, राष्ट्र भक्ति में, प्रेम में, परिहास में – हर भाव में लता जी का स्वर हमारा स्वर बना है। हम में से अधिकतर सहकर्मियों को पता होगा कि लता जी गाना गाते समय चप्पल नहीं पहनती थीं। गाना उनके लिए ईश्वर की पूजा करने जैसा ही था। कोई उनके घर आता तो उसे अपने माता-पिता की तस्वीर और घर में बना अपने आराध्य का मन्दिर अवश्य दिखातीं थीं। बस उन्होंने इन्ही तीन चीजों को विश्व को दिखाने लायक समझा था। सोच कर देखें तो कितना दार्शनिक है यह भाव। संसार में इन तीन के अतिरिक्त सचमुच में और कुछ महत्वपूर्ण होता ही नहीं है। कितना अद्भुत संयोग है कि अपने लगभग सत्तर वर्ष के गायन कैरियर में लगभग 36 भाषाओं में हर रस/भाव के 50 हजार से भीअधिक गीत गाने वाली लता जी ने अपने पहले और अंतिम हिन्दी फिल्मी गीत के रूप में भगवान भजन ही गाया है। ‘ज्योति कलश छलके’ से ‘दाता सुन ले’ तक की यात्रा का सौंदर्य यही है कि लता जी न कभी अपने कर्तव्य से डिगीं, न अपने धर्म से! इस महान यात्रा के पूर्ण होने पर हमारा रोम रोम आपको प्रणाम करता है लता जी।
लता जी के बारे में यह संक्षिप्त सी जानकारी हमें हमारी ही सहकर्मी कमोदिनी गौरहा जी ने फॉरवर्ड की जिसके लिए हम उनके ह्रदय से आभारी रहेंगें।
तो अब चलते हैं अनुभूतियों की अद्भुत श्रृंखला के पार्ट 2 की ओर जहाँ हमारी आदरणीय रेनू श्रीवास्तव जी दो घटनाओं का वर्णन कर रही हैं।
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Over to Renu Ji :
गुरुदेव की अनुकम्पा तो इतनी अधिक है कि व्यक्त करने के लिए शब्द कम पड़ जायेंगें समझ नहीं पा रही हूँ की कहाँ से आरम्भ करूँ। जो समझ में आया लिखने का प्रयास कर रही हूँ। दो छोटी छोटी घटनाएं संक्षेप में बताने का प्रयास करुँगी।
“हर कदम पर उँगली पकड़ कर राह दिखाई तथा मार्ग दर्शन दिया।”
घटना 1 – मेरी छोटी बेटी की शिक्षा में आये विग्न का निवारण गुरुदेव की कृपा से हुआ :
मेरी छोटी बेटी उत्तराखण्ड के एक कॉलेज से graduation कर रही थी।1st year final exam.में एक पेपर की परीक्षा नहीं दे पाई क्योंकि उसी दिन मेरी दूसरी बेटी की शादी थी।कालेज के नियम के अनुसार एक साल बाद ही वो बैक पेपर दे सकती थी।समय पर उसने पेपर दिया और काफी अच्छा हुआ, पर जब परिणाम आया तो उसे अनुतीर्ण किया गया। मेरी बेटी ने रोते हुये फोन पर सारी बातें कही और यह भी कहा कि रु.1000 दें तो मामला सुलझ जायेगा।मैंने उसे समझाया कि बेटा सब ठीक हो जायेगा। गुरुदेव कोई रास्ता अवश्य निकालेंगे।फाइनल परीक्षा का फार्म भर चुकी थी पर यह कहा गया कि तुम परीक्षा नहीं दे पाओगी। उससे पहले कम्पीटिशन से इसका चयन पूना के एक प्रतिष्ठित कालेज में हो चुका था,फीस भी जमा कर दिया। कुछ दिन बाद ही क्लास भी शुरु होना था।
मैने अपने पति से कहा आप स्वंय जाये गुरुजी की कृपा से कोई रास्ता अवश्य निकलेगा ऐसा मेरा विश्वास है। पहले तो मेरे पति ने असमर्थता जताई पर बाद में जाने को तैयार हुये और VC से मिलने गये। पहली मुलाकात में तो साफ मना कर दिया कि I can’t help you.रजिस्ट्रार से मिले उन्होने भी कहा जब VC मना कर चुके तो मैं कैसे मदद कर सकता हूँ।
गुरुजी की ऐसी प्रेरणा हुई कि दूसरे दिन फिर रजिस्ट्रार से मिलने गए। उन्होंने रजिस्ट्रार को बोला कि मेरी बेटी की क्या गलती है ,सदा 1st position holder रही है।उसी समय VC का चपरासी बुलाने आया कि आपको सर बुला रहे हैं।उसके बाद उन्होंने मेरी बेटी से सारी बात पूछी और यह भी पूछा कि किसी ने पैसे की मांग तो नहीं की।मेरी बेटी ने कहा यदि मैं दे देती तो आपके पास आना नही पड़़ता। उन्होंने नाम पूछा और उसी के सामने कालेज के डायरेक्टर को फोन कर कहा उसे अति शीध्र ससपेंड करें। बाद मे मेरे पति को बुलाकर कहा: Don’t lose your heart, I will do something for you to get grace marks . उन्होंने इसके लिए कमीटी बनाई, review करवाया और गुरुदेव की कृपा से सब ठीक हो गया। Final exam हो गया। उसे पूना कालेज ज्वायन करना था, क्लासेज़ शुरु हेा गयी थीं। VC के आदेश पर रजिस्टार आफिस से previous marks sheet दिया गया और Final exam के provisional marks sheet के साथ मेरी बेटी पूना आगे की पढ़ाई के लिये गई। वहां भी 1st, 2nd position लाई।
यह गुरुदेव की कृपा या चमत्कार कह सकते हैं। सभी जगह हमेशा 1st, 2nd position पाकर अपने कालेज तथा parents काे भी गौरवान्वित किया।आज वह 10 वर्षों से अधिक समय से अमेरिका मे है। जब देहरादून में पढ़ती थी उस समय राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जी आये थे तो उस प्रोग्राम की ऐंकरिंग मेरी बेटी ने की थी । प्रोग्राम के बाद राष्ट्रपति जी ने जब बुलवाया तो थोड़ा नर्वस हुई कि शायद कुछ गल्ती हुई हो गयी हो। पर उन्होंने शाबाशी दी और बहुत बातें भी कीं ।
घटना 2 – हमारे घर के छत की ढलाई की गुरुदेव ने छाता लेकर रक्षा की
हमारे घर के first floor के छत की ढलाई होनी थी। सारी तैयारी हो गई, काम भी शुरू हो चुका था अचानक चारों ओर काले-काले बादल घिर आये। मेरे पति उस समय दूसरी जगह पर पोस्टेड थे। मेरे देवर जो हाई कोर्ट में काम करते हैं , उन्होंने फोन करके कहा त्रिपाल का प्रबन्ध कर लीजिये, बहुत तेज बरसात के आसार हैं। मैंने उत्तर दिया, एक कमरे का छत तो नहीं है। यह संभव नहीं है। गुरुदेव ही रक्षा करेंगे। हुआ भी कुछ ऐसा कि आपको पढ़कर आश्चर्य होगा। जब छत की ढलाई का काम चल रहा था उस समय हल्के दो-चार छींटे ही पड़े और 1 किलोमीटर के रेंज के में हर जगह मुसलाधार बरसात हुई। ऐसा लगा गुरुदेव छत के लिये छतरी लेकर खड़े हो गये। करीब 30-35 लेबर, मिस्त्री काम कर रहे थे, देर रात हो गई अतः सबकाे खाना बनाकर खिलाई।
दूसरे दिन जब वाकई छत पर पानी की आवश्यकता थी तो बरसात हुई। मेरे पति ने न्यूज देखकर फोन किया कि क्या हाल हैै? छत की ढलाई हुई या नहीं। मैंने उत्तर दिया गुरुदेव ने सब अच्छे से करवा दिया । पड़ोसी कहीं बाहर गये थे जब लौटे तो पूछने आये। कहने लगे हम परेशान थे कि बहन जी का छत तो बरसात में बह गया होगा। हमने फिर वही उत्तर दिया: गुरुदेव बचाने के लिए छतरी लेकर खड़े थे। धन्य हैं हमारे गुरू। शत शत नमन है ऐसे गुरु को जो अपने शिष्यों के लिये इतना कितना कष्ट सहने से भी बिल्कुल पीछे नहीं हटते ।
अब हमारे लिए एक ही प्रश्न है,“क्या हम कभी गुरुऋण से मुक्त हो पायेंगे ? अवश्य !! अपने गुरु का गुरुऋण चुकाने का अब बहुत ही सुनहरी अवसर है। यह सुनहरी अवसर केवल दुर्लभ सौभग्यशालीयों को ही प्राप्त होता है। हमारे गुरुदेव ने गुरुऋण चुकाने का बहुत ही सरल मार्ग बताया है -उनके विचारों का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार – इसी से होगा घर-घर में स्वर्गीय वातावरण -यही है नवीन युग का आगमन-यही है विचार क्रांति अभियान –
जय गुरुदेव,जय वंदनीय माताजी, जय माँ गायत्री।आपकी महिमा अपरंपार।चरणों में कोटि -कोटि नमन।
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हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
कंटेंट को बड़े ही ध्यानपूर्वक एडिट किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।