वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सफेद कपड़ा पहनकर आये और बेदाग़ चादर लेकर जा रहे हैं।

29 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – सफेद कपड़ा पहनकर आये और बेदाग़ चादर लेकर जा रहे हैं।

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ऑनलाइन ज्ञानरथ के स्तम्भ – शिष्टाचार, आदर ,सम्मान ,श्रद्धा ,समर्पण ,सहकारिता,सहानुभूति  सद्भावना ,अनुशासन,निष्ठां, विश्वास ,आस्था 

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परम पूज्य गुरुदेव के मथुरा से हरिद्वार प्रस्थान वाले अध्याय का अंत करते हुए हम निवेदन करेंगें कि आप हमारे चैनल पर अप्रैल 19,2019 को अपलोड हुई वीडियो को भी देख लें ताकि लेखों के साथ -साथ आपको प्रस्थान का आँखों देखा हाल (Live commentary) का भी आभास हो सके। आधे घंटे की इस वीडियो के बारे में कुछ तथ्य हैं जो आपके समक्ष रखना अपना कर्तव्य समझते हैं। एक तथ्य तो यह है कि यह वीडियो आदरणीय वीरेश्वर उपाध्याय बाबू जी की ओरिजिनल वीडियो से बनाई गयी है। बाबू जी की वीडियो में उस समय की उपलब्ध टेक्नोलॉजी के अनुसार साउंड क्वालिटी बहुत ही निम्न स्तर की थी। इस साउंड क्वालिटी का स्तर ठीक करने के लिए हमने अपने पास उपलब्ध सभी resources का प्रयोग किया लेकिन कोई अच्छे परिणाम न मिल पाए। इसलिए हमने वीरेश्वर बाबू जी को शांतिकुंज में सम्पर्क किया और उनसे चर्चा की तो उन्होंने कहा कि आप मेरी आवाज mute करके अपनी आवाज़ में इस वीडियो को फिर से बना लीजिये। बाबू जी से स्वीकृति मिलने पर हमने उनकी वीडियो से voice to text conversion करने का प्रयास किया लेकिन कुछ भी न प्राप्त हो सका। तो फिर अंत में हमारे पास एक ही विकल्प था कि उनकी वीडियो को सुना जाये और रोक रोक कर स्वयं लिखा जाए। यह प्रयोग सफल हुआ और हम एक पुरातन वीडियो को archive में सुरक्षित करने में सक्षम हो पाए। हमने वीडियो में बताया हुआ है कि इस कंटेंट का सारा श्रेय आदरणीय वीरेश्वर उपाध्याय जी को ही जाता है क्योंकि ओरिजिनल कंटेंट उन्ही का है। 

दूसरा तथ्य यह है कि हमारे कठिन परिश्रम के बावजूद हम कुछ तथ्य confirm करने में असफल रहे, उदहारण के तौर पर प्रस्थान की तिथि 20 जून 1971, सहस्र कुंडीय यज्ञ का आयोजन, जिन्होंने हमारे ह्रदय में शंका उत्पन्न की। हमने ऐसे प्रश्नों का समाधान करने के लिए बहुत प्रयास किया लेकिन कुछ भी प्राप्त न हो पाया ,इसलिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। तिथियों की समस्या हमें अपने कई लेखों में आती रहती है पर हम पूर्णतया विवश हैं I हमें तो इसका कारण यही लगा है कि परमपूज्य गुरुदेव के साहित्य पर कोई copyright न होने के कारण कोई भी इसको शेयर/ कॉपी कर सकता है तो हर किसी का correctness का अपना स्तर होता है I हो सकता है हमसे भी कुछ त्रुटियां हो गयी हों I लेकिन हम अपने सहकर्मियों से इतना अवश्य ही कह सकते हैं कि इन असफलताओं के बावजूद वीडियो का महत्त्व काम नहीं होता।  

अखंड ज्योति के मार्च 1969 अंक में गुरुदेव लिखते हैं : 

हम आत्मकथा तो नहीं लिखेंगें पर अपनी अनुभूतियों की चर्चा अवश्य करेंगें। ऐसा इसलिए करेंगे कि वे जहाँ हमारा मन हल्का करती हैं वहाँ सुनने वालों के लिए भी प्रेरणाप्रद हैं। आत्मकथा कहने के लिए कई परिजन आग्रह करते रहते हैं पर उसे पूर्णरूपेण बता सकना तब तक लोकहित की दृष्टि से उचित न होगा, जब तक “हमारा शरीर जीवित है।” हमें किसी से कुछ भी नहीं छिपाना है परन्तु यह तो ध्यान रखना ही है कि हमारी कोई विशिष्ट परिस्थितियों की उपलब्ध हुई अनुभूति दूसरों के लिए उचित मार्ग-दर्शन करेगी या अनुचित।

हमारे जीवन के छिपाव वाले पक्ष की अगणित घटनायें इस स्तर की हैं जिन्हें “चमत्कारपूर्ण” कहा जा सकता है। कुछ उच्च भूमिका में विकसित तपस्वी सिद्ध पुरुषों की अलौकिकताएँ हमने देखी हैं। उनका वर्णन करना तभी उचित है जब उन घटनाओं की प्रामाणिकता सिद्ध की जा सके अन्यथा लोग उस वर्णन को असत्य कहेंगे और व्यर्थ का वितन्डावाद ( व्यर्थ की कहासुनी ) बढ़ेगा। समय आ रहा है, जब मनुष्य में छिपी अगणित शक्तियों का प्रकटीकरण सम्भव होगा, उस स्थिति के न आने तक उन वर्णनों का न करना ही ठीक है ताकि तर्क बुद्धि वालों को असत्य अफवाहें फैलाने का आक्षेप न लगाना पड़े और कुछ धूर्त जो बाजीगरी की तरह चमत्कार सुना, दिखाकर उल्लू सीधा करते रहते हैं, उन्हें अपने लिए समर्थन पाने के लिए हमारे कथन को प्रस्तुत करने का अवसर न मिले।

छिपाव का दूसरा पक्ष वह है, जिसमें हमने कुछ बच्चों को अपनी तपश्चर्या के छोटे-बड़े अंश दिये और उन अंशों से उन्हें आश्चर्यजनक भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ हुए। हम नहीं चाहते कि इनका वर्णन हम अपने मुँह से करें। इसका एक कारण तो यह है कि विज्ञापन से दान का महत्व नष्ट हो जाता है। दूसरा अपनी बढ़ाई करने से अहंकार बढ़ सकता है। तीसरा वे लोग हमें और भी अधिक घूरने लग सकते हैं जो आशीर्वाद को जबानी जमा-खर्च मानते हैं और सोचते हैं कि उनकी जीभ हिलाने भर का बोझ पड़ेगा और हमारा काम बन जायेगा। वस्तुतः होता यह है कि जीभ हिलाकर कोई आशीर्वाद न तो दिया जा सकता है और न वह सफल होता है।

इस प्रकार के प्रत्येक अनुदान के पीछे बहुत अधिक शक्ति व्यय करनी पड़ती है और कई बार तो वह कितने ही वर्षों की अति कष्टपूर्वक उपलब्ध की हुई कमाई होती हैं। लोग तो लोग हैं, उन्हें न तो दूसरे के त्याग का मूल्य समझना है और न कम से कम कृतज्ञ मनोभूमि तक बनाये रखना है। मुफ्त की वस्तु का कोई आखिर कुछ मूल्य समझे भी क्यों? जब मुफ्त में ही दर्शन करने,पैर छूने, माला पहना देने मात्र से बहुमूल्य अनुदान मिल सकते हैं तो उन्हें पाने का लोभ कोई क्यों संवरण करे? अभी भी ऐसे ही लोगों की ही भीड़ जमा होती है। पीछे तो उसकी ऐसी बाढ़ आयेगी कि उससे पिण्ड छुड़ाना कठिन हो जायेगा व अपने जीवनोद्देश्य की बात कहने तक का अवसर न मिलेगा। यों सुनता तो कोई अभी भी नहीं है पर यदि हमारे द्वारा सम्भव दिव्य सहायताओं का अधिक विश्वास हो जाये तब तो हर सम्बन्धी उसी की रट लगाएगा। हमारी बात सुनने, समझने का तो उसका उतावला मन तैयार ही न होगा। इस झंझट से बचने के लिए जितना प्रकट हो चुका है, उतना ही पर्याप्त मान लिया है, उससे अधिक जो अधिक आश्चर्यजनक एवं अलौकिक है छिपाये ही रखा है। पूरी आत्मकथा न बताने में कोई ऐसे दुराचरण कारण नहीं हैं, जिनकी चर्चा करते हमें लज्जा और ग्लानि का अनुभव हो। सफेद कपड़ा पहनकर आये और बिना दाग-धब्बे की चादर लेकर विदा हो रहे हैं। सज्जन ओर सहृदय व्यक्ति की जिन्दगी हमने जी ली। कर्तव्यों की अवहेलना और नैतिक मर्यादाओं के उल्लंघन का कोई ऐसा अवसर अब तक नहीं आया जिसे छिपाने की आवश्यकता पड़े I

कुछ ऐसे कारण एवं अनुभव भी छिपाव के कारण हैं जो अभी परिपुष्ट नहीं हुए और जिन्हें चुनौती देकर सिद्ध करने की स्थिति परिपक्व नहीं हुई। जैसे यह एक तथ्य है कि हमने अपनी चेतना के पाँच स्तरों- अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनन्दमय इन पाँच कोशों को गायत्री की उच्चस्तरीय उपासना के आधार पर एक सीमा तक विकसित किया है और उनसे पाँच स्वतन्त्र व्यक्तियों की तरह काम लिया है। फिर भी यह स्थिति उतनी पक्की नहीं कि उसका सदा सार्वजनिक परीक्षण कराके एक अभिनव सिद्धान्त की पुष्टि का आधार प्रस्तुत किया जा सके। सम्भव है कुछ समय में शायद इसी जीवन में वह स्थिति आ जाय कि हम अपने को संसार के सामने परीक्षण के लिए प्रस्तुत करें कि एक ही शरीर के भीतर पाँच सत्तायें एक ही समय में पाँच व्यक्तियों का काम कैसे निपटा सकता है।

“अपने गुरु के बारे में जानने को अभी बहुत कुछ बाकी है।”  

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प सूची :

28 जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस  बार  आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 5  समर्पित साधकों ने  ही 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और हम कामना करते हैं और परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य युगसैनिक निम्नलिखित हैं :

(1 ) अरुण कुमार वर्मा -35,(2 ) संध्या कुमार जी -30,(3)सरविन्द कुमार जी-32,(4) रेनू श्रीवास्तव जी-32,(5) प्रेरणा कुमारी बिटिया-24  

उक्त सभी सूझवान व समर्पित युगसैनिकों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत-बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई हो जिन्होंने आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में 24 आहुति संकल्प पूर्ण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में विजय हासिल की है। आदरणीय अरुण वर्मा जी आज फिर टॉप पर हैं ,हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई स्वीकार करें।  हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी  विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान  दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव

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