वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

हमसे मिल जाने वाली बात को सर्वोपरि महत्व दें।

28 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – हमसे मिल जाने वाली बात को सर्वोपरि महत्व दें।

आज के लेख में हमारे आत्मीयजन देखेंगें कि परमपूज्य गुरुदेव अपनी अंतर्वेदना को शांत करने के लिए किस प्रकार की योजना बनाते हैं, न केवल बनाते हैं ,सुनिश्चित भी करते हैं कि उनके टाइम टेबल के अनुसार यह योजना समय पर पूरी भी हो जाये।  इस लेख के अंत में परमपूज्य गुरुदेव ने हर माह में होने वाले चार-चार दिन के छः शिविरों की तिथियां भी निश्चित करके प्रकाशित करवा दीं  थीं ताकि किसी को भी कोई असुविधा का सामना न करना पड़े। सभी कार्य सुचारु रूप से सम्पन्न करवाने के लिए उन्होंने अपने बच्चों के लिए मार्गदर्शन भी सुझाए थे। ऐसे हैं हमारे गुरुदेव -अवश्य ही हम अपने आपनेआप को अत्यंत भाग्यशाली मानते हैं जो ऐसे गुरु मिले। 

तो आइये सब इक्क्ठे होकर इस मंगलवेला में अपने गुरु के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें,अमृतपान स्वयं तो करें ही,साथ में अपने साथियों को भी करा कर निशुल्क पुण्य कमाएं- आखिर  ज्ञानदान महादान जो ठहरा।

______________     

परमपूज्य गुरुदेव की युगतीर्थ शांतिकुंज की  स्थापना के बारे में बताते हुए वर्णन करते हैं : सप्त सरोवर के समीप यह बड़ा ही मनोरम और शाँतिदायक स्थल होगा। इस स्थल में  कुछ निर्माण कार्य होना बाकी है, ताकि वहाँ हम लोग निवास कर सकें और कोई अतिथि वहाँ जा पहुँचें  तो उनके  ठहरने का भी प्रबन्ध हो सके। 

हमारे आत्मीयजन सप्त सरोवर की महत्ता को  जानते ही  होंगें।  यह वह स्थान है जहाँ माँ गंगा सात धाराओं में विभाजित हो जाती है।  प्राचीन ग्रंथों  में वर्णन है कि जब राजा भागीरथ  माँ गंगा को  धरती पर लेकर आये थे तो इस स्थान पर  सप्त ऋषि (सात ऋषि) गहरी तपस्या में लीन थे। माँ गंगा के वेग में अत्यंत शोर था तो उस शोर से इन ऋषियों की तपस्या भंग  हो सकती थी, इसलिए माँ ने अपना मार्ग बदलते हुए अपनेआप को  सात धाराओं में परिवर्तित कर दिया ताकि सप्त ऋषिओं की तपस्या में कोई विग्नन न पड़े। इस संदर्भ में हम एक यूट्यूब लिंक दे रहे हैं जिसे आप देख लें तो बहुत लाभदायक हो सकता है।https://youtu.be/idErutwM6z8     

परमपूज्य गुरुदेव बताते हैं : चूँकि युगतीर्थ शांतिकुंज आश्रम का स्वामित्व गायत्री माता का है इसलिए उनका एक छोटा मन्दिर भी बनाना है जिसकी सेवा पूजा हम लोग स्वयं ही किया करेंगे। यह कार्य हमें  नवम्बर 1970 से मई 1971 तक 6 महीनों में ही पूरा कराना है। जिस प्रकार हमें अपना विशाल परिवार छोड़ना कठिन पड़ रहा है। माता जी का भी अपना एक परिवार है, जो अखण्ड ज्योति कार्यालय के कार्यकर्ताओं से लेकर गायत्री तपोभूमि के आश्रमवासियों और छात्रों तक फैला है। इसमें देशव्यापी परिवार के सहस्रों  परिजन भी माता जी से  बंध गये हैं। माता जी भी हमारी ही तरह भावुक हैं और  इस प्रकार के अकेले जीवन का उनका भी यह  पहला अनुभव ही  होगा। उन्हें इससे अभ्यस्त कराना होगा, सो उन शेष छः महीनों में वे भी उस उद्यान में आती जाती रहेंगी ताकि उन्हें एकदम परिवर्तन अधिक कष्टकर प्रतीत न हो। 

गुरुदेव आगे लिखते हैं :

हम तो अपने मार्गदर्शक के हाथों में धागे की तरह बँधी कठपुतली मात्र हैं। वह  जो निर्देश करें वही करना  हमारे लम्बे जीवन की एकमात्र रीति नीति है, दूसरी बात कभी  सोची ही नहीं, उनकी इच्छापूर्ति के अतिरिक्त और कुछ चाहा ही नहीं। अब जबकि शरीर में जीर्णता आ गई है और सुख सुविधायें भोगने की इच्छाओं वाला समय भी चला गया तो मार्गदर्शक  के निर्देश के अतिरिक्त और कोई  दूसरी बात सोचेंगे भी क्यों? हम तो वही करेंगें  जो  हमसे कराया जा रहा है। पर उस खाँचे (सांचे ?) में फिट होने की अड़चन तो हम लोगों को स्वयं ही हल करनी है।  अन्तिम छ: महीने इसी प्रयोजन के लिए लगाने का विचार है। माता जी नए वातावरण का अभ्यास करने और उसमें adjust  होने का प्रयास करेंगीं  और हम निर्माण कार्य कराने के लिए यहाँ रहेंगे और वह व्यवस्थायें जुटायेंगे, जिससे उस जंगल  में निर्वाह सम्बन्धी आवश्यकतायें सरलतापूर्वक पूरी होती रह सकें।

विदाई का समय गायत्री जयन्ती है।  3 जून 1971 को गायत्री जयन्ती है। गायत्री को प्रणाम करेंगे और उसी रात को चुपचाप निर्धारित दिशा में चल पड़ेंगे। उस समय कोई उत्सव, आयोजन करना निरर्थक है। भावनाएं उमड़ती हैं और वे बहुत दर्द पैदा करती हैं।  चुपचाप चल पड़ने से अपने मन की ही आग रहेगी, दूसरे लोग उसमें आहुतियाँ न देंगे तो वह दर्द सह सकेंगें और सीमित ही बना रहेगा।  इस प्रकार  उस जलन पर अपेक्षाकृत कुछ शीघ्र ही काबू पाया जा सकेगा। विदाई समारोह से उत्पन्न कष्ट से एक सीमा तक उसी प्रकार बचा जा सकेगा।

“अंतिम मिलन किसी भी मूल्य पर चूके नहीं।” 

इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए 5 महीने वाली चार-चार दिन की योजना प्रस्तुत की गई है। हर महीने 6 शिविर 24 दिन के रखे हैं और अंतिम सप्ताह दोनों पत्रिकाओं (अखंड ज्योति और युग निर्माण योजना) की तैयारी तथा दूसरे आवश्यक कार्यों के लिए खाली रखा है। हर महीने 6 शिविर होते रहेंगे अर्थात् कुल मिलाकर 5 महीने में 30 शिविर होंगे। परामर्श थोड़े  ही व्यक्तियों में ठीक तरह हो सकता है। यह संख्या अधिक से अधिक 100 हो सकती है। 30 शिविरों में 3000 व्यक्तियों तक ही परामर्श सम्भव है। वैसे तो  अपना परिवार बहुत बड़ा है, उसमें 3000 व्यक्ति तो  नगण्य हैं  पर किया क्या जाय, थोड़ी बहुत गुंजाइश रही तो 6 महीने जो माता जी उद्यान निर्माण के लिए रखे हैं उसमें से काट छाँटकर  शिविरों के भी बढ़ाने की बात सोचेंगे पर अभी तो इतना ही विचार है।

इन पंक्तियों द्वारा हम अपने वरिष्ठ  परिजनों को अभी से आमन्त्रित करते हैं कि जिन्हें कुछ कहना सुनना हो वे 30 शिविरों में से किसी में आने की तैयारी अभी से करें। आवश्यक नहीं कि उन्होंने  जो तारीख भेजी है वह स्वीकृत ही हो जाय। यदि वह पहले से ही भर गई तो उन्हें आगे के किसी शिविर के लिए कहा जा सकेगा। इसलिए अपनी सुविधा की पसन्दगी के रूप में क्रमशः तीन के लिए सूचना भेजनी चाहिए ताकि यदि पहले में सम्भव न हो तो दूसरे में और दूसरे  में भी सम्भव न हो तो तीसरे में स्थान रखा जा सके। आवेदन पत्र पर यहाँ यह देखा जायगा कि किस शिविर में स्थान खाली है। उसी के अनुसार स्वीकृति दी जा सकेगी। अस्तु उचित यही है कि शीघ्र ही अपने लिए स्थान सुरक्षित करा लिया जाय। आशा है कि इस एक महीने में ही 3000 परिजनों के आवेदन आने और उन्हें स्वीकृति प्रदान करने का कार्य समाप्त कर लिया जायगा।

इन शिविरों में छोटे बच्चे, महिलायें, तीर्थ यात्री दर्शनार्थी तथा इधर-उधर के काम लेकर एक तीर में कई शिकार करने वाले लोग न आयें। जिनका हमारे मिशन से पूर्व परिचय या सम्बन्ध नहीं है वे भी दर्शन मात्र के लिए आकर भीड़ न बढ़ाएं और  आवश्यकता वाले लोगों का स्थान घेर कर उन्हें लाभ से वंचित न करें। रोगियों अथवा अन्य दीन दुःखियों को लाने की भी आवश्यकता नहीं है। इन शिविरों में केवल उन्हीं को आना चाहिए जो अपने को हमारे साथ देर से जुड़ा हुआ समझते हैं और आगे भी उस सम्बन्ध को बनाये रहने की आवश्यकता एवं  उपयोगिता समझते हैं। आशीर्वाद तो पत्र द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। किराया भाड़ा तथा समय उन्हें ही व्यय करना चाहिए जो हमारे प्रकाश और मार्ग दर्शन का मूल्य और उपयोगिता समझते हैं।

जहाँ वांछनीय भीड़ को इन शिविरों में आने  के लिए   निरुत्साहित किया जा रहा है वहाँ हर प्रवृद्ध परिजन को आग्रह तथा अनुरोधपूर्वक यह कहा भी जा रहा है कि अंतिम बार हमसे मिल लेने और जी भर कर अपनी अन्तःभावनाओं को व्यक्त करने का यह अवसर “किसी भी मूल्य पर चूके नहीं।” समय तो बीमार पड़   जाने पर ढेरों  बच जाता है।  जरूरी व्यय आ पड़ने पर पैसे की भी किसी प्रकार व्यवस्था हो ही जाती है, किराये-भाड़े के पैसे तथा चार दिन का समय निकाल सकना उनके लिए कुछ अधिक कठिन न रहेगा जिनकी इच्छा गहरी है और जो इस मिलन एवं परामर्श की उपयोगिता अनुभव करते हैं। विश्वास है कि अंतिम मिलन के यह चार दिन आगन्तुकों के जीवन में अविस्मरणीय बनकर रहेंगे और सम्भव है इन्हीं दिनों वे ऐसा प्रकाश प्राप्त कर लें जो उनके शेष जीवन को आनन्द और उल्लास से भरे महामानव जैसी स्थिति में परिवर्तित कर दे। 

अपने अंतरंग परिजनों से  अंतिम बार जी भर कर मिल लेने की हमारी प्रबल इच्छा है। जिनके मन में   हमारे जैसी ही  भावना उमड़े, उन सब को हम अनुरोधपूर्वक आग्रह करते हैं कि वे प्रत्येक अड़चन की उपेक्षा करके चार दिन के लिए आकर  हमसे मिल जाने वाली बात को सर्वोपरि महत्व दें।

क्रमशः जारी : To be continued -अभी बहुत कुछ बाकी है।  

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

_______________________

24 आहुति संकल्प सूची :

27   जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस  बार  आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 6 समर्पित साधकों ने  ही 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और हम कामना करते हैं और परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य युगसैनिक निम्नलिखित हैं :

(1)डॉ अरुण त्रिखा-25,(2 ) सरविन्द पाल जी-30,(3) अरुण वर्मा जी-39,(4) संध्या कुमार जी-25,(5) प्रेरणा कुमारी-33,(6) रेनू श्रीवास्त जी-26

उक्त सभी सूझवान व समर्पित युगसैनिकों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत-बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई हो जिन्होंने आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में 24 आहुति संकल्प पूर्ण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में विजय हासिल की है। आदरणीय अरुण वर्मा जी आज फिर टॉप पर हैं ,हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई स्वीकार करें।  

हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी  विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान  दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव

Advertisement

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s



%d bloggers like this: