वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

चार -चार दिन के शिविर आयोजन करवाने का उदेश्य

27 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – चार -चार दिन के शिविर आयोजन करवाने  का उदेश्य

परमपूज्य गुरुदेव के तपोभूमि मथुरा से युगतीर्थ शांतिकुंज की ओर प्रस्थान करने पर आधारित हमने कई लेख लिख दिए हैं परन्तु अभी भी इन लेखों का  कोई अंत दिखाई नहीं दे रहा। दिखे भी कैसे – गुरुदेव ने 1969 से 1971 तक “अपनों से अपनी बात” स्तम्भ के अंतर्गत अपनी भावनाएं व्यक्त की थीं। इन लेखों में  प्रेम और आत्मीयता की बात तो होती ही रही लेकिन अपने बच्चों की सुविधा और मार्गदर्शन का भी पूरा ख्याल रखा।  गुरुदेव का विशाल परिवार जो उन्हें अनवरत अपना प्यार दिए जा रहा था, गुरुदेव इस प्यार के बोझ से, इस ऋण से अपने आपको मुक्त करना चाहते थे।  इसी मुक्ति के लिए उन्होंने 4-4 दिन के शिविर प्लान किये जिनमें  सुबह में केवल एक भाषण होता रहा, बाकी सारा दिन मार्गदर्शन, विचार-विनिमय होता था। ऐसी है अपने गुरु की योजना और ऐसा है अपनत्व और स्नेह। यही पढेंगें आज के ज्ञानप्रसाद में। 

17 नवंबर 2021 से अनवरत चल रही 24 आहुति संकल्प सूची में आज केवल 4 ही विजेता हैं जो अब तक के सबसे कम हैं। आज के गोल्ड मैडल विजेता में तो हमारा नाम आ रहा है लेकिन हम आदरपूर्वक  लेने से इंकार करेंगें क्योंकि हमारे संस्कार इस बात की आज्ञा नहीं देते कि हम अपनेआप को कोई अवार्ड दे दें। अवार्ड हमेशा किसी दूसरे की तरफ से होता है।  आप हमें अपने विचारों से, अपनत्व और प्यार से ऋणी बनाये जा रहे हैं ,हम कहाँ जायेंगें इतना भारी  भरकम ऋण का बोझ लेकर। आशा करते हैं कि हमारे आत्मीयजन कमेंट और कॉउंटरकमेंट की भावना को याद रखे होंगें। इनके द्वारा हम एक दूसरे के प्रति प्यार और स्नेह व्यक्त करते हैं, प्रेम का सम्बन्ध आत्मा से है और आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से है।  इसलिए हम सब एक common  बिंदु (परमात्मा) से जुड़ने का प्रयास करते हैं। 

तो करते हैं आरम्भ आज का ज्ञानप्रसाद :

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परमपूज्य गुरुदेव ने जब  तपोभूमि मथुरा में अंतिम मिलन के लिए परिजनों को चार दिन के विचार विनिमय  के लिए निमंत्रण दिया तो उसके कई कारण थे,अधिकतर तो उनकी मनोदशा और परिजनों के लिए आत्मीयता ही थी।  आइये ज़रा विस्तार से इन कारणों पर चर्चा करें। 

गुरुदेव कहते हैं :  

1. एक तो हमारी मनोदशा में गड़बड़ी उत्पन्न होती है, एक-दो व्यक्तियों को जब अन्तिम विदाई का अभिवन्दन करते हैं तो देर तक हमारे सीने में दर्द होता है। अभी तो यह आशा भी है कि दुबारा मिलना हो सकता है। तब भी मन  बहुत भारी हो जाता है। फिर जब इतने स्वजनों की सचमुच अन्तिम विदा करने की बात होती तो हमारी मनोदशा का  संतुलित रहना कठिन हो जायगा। अभी तो एक दो व्यक्ति आते जाते हैं और वे किसी खास भावुकता के मूड में नहीं होते तब भी  हमें उनकी विदाई बहुत भारी पड़ती है और सम्भवतः बहुत से लोग हमारी ही तरह द्रवित हो उठते हैं। यह स्थिति हमारे लिए असहनीय  हो जाती है। यदि वह स्थिति देर तक बनी रही तो हमारी भावी साधना क्रम में अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है।

2.दूसरा कारण यह भी है कि उस समय व्यक्तिगत विचार विनियम सम्भव न होगा। बहुत  से व्यक्तियों में भावावेश की स्थिति में गम्भीर विचार विनिमय उनकी स्थिति के अनुरूप अधिक मनोयोग के साथ तो सम्भव हो ही नहीं सकता। अभी अपने विशेष परिजनों से व्यक्तिगत रूप से बहुत कुछ कहना और सुनना बाकी है।इतना  बड़ा काम उस दो-चार दिन के विदाई समारोह वाले दिनों में कैसे सम्भव होगा। यदि वह बात न बनी तो एक बहुत बड़ी आवश्यकता अधूरी ही पड़ी रह जायगी और वह आयोजन एक लोकाचार मात्र बनकर ही रह जायगा। इस समरोह की उपयोगिता न के बराबर ही रहेगी।

अब उतना बड़ा झंझट सिर पर लेने का मन नहीं है।

सहस्र (1000)   कुण्डी गायत्री महायज्ञ के समय यह सब हम देख चुके हैं। इस समारोह में 4 लाख व्यक्ति कितना व्यय करके और कितना कष्ट सह कर आये थे, परन्तु  हम आगन्तुकों से कुशल समाचार तक न पूछ सके। इतने विशाल जन समुदाय से एक व्यक्ति उतना संपर्क बना भी नहीं सकता था। अब फिर वैसी स्थिति ही आ जाएगी। विदाई के समय सहस्र  कुण्डी गायत्री यज्ञ जितने वरन् उससे  भी अधिक व्यक्ति आ सकते हैं क्योंकि तब की अपेक्षा अब अपना परिवार कम से कम दस गुना और बढ़ गया है। ऐसी दशा में इस समय भी वैसी ही स्थिति बन जायगी और हमें पहले जैसे ही विशाल आयोजन का सरंजाम अभी से खड़ा करना होगा। अब उतना बड़ा झंझट सिर पर लेने का मन नहीं है।

इन दो कारणों से विदाई समारोह का  न होना ही अच्छा है। पर यह उचित नहीं कि परिजनों को  अन्तिम परामर्श का अवसर भी न मिले। व्यक्तिगत स्वभाव, व्यक्तिगत रुचि, व्यक्तिगत समस्यायें एवं व्यक्तिगत संभावनाओं के सम्बंध में उचित मार्गदर्शन एवं विचार विनिमय व्यक्तिगत परामर्श से ही सम्भव है। सो इसकी गुंजाइश निकालनी ही चाहिए। अभी व्यक्तिगत रूप से बहुत सुनना और कहना बाकी है उसकी पूर्ति इस थोड़े समय में ही पूरी कर लेने की बात सोची गई है।

अभी 15 मई 1970 तक हमारे कार्यक्रम देश व्यापी युग निर्माण सम्मेलनों तथा गायत्री यज्ञों में जाने के बन चुके हैं। उस समय तक बाहर ही  रहना पड़ेगा। इसके बाद ठीक एक वर्ष रहा जायगा इस अवधि का अधिकाँश भाग प्रिय परिजनों के साथ विदाई मिलन कहिये अथवा व्यक्तिगत परामर्श कहिये- उसी में लगाने की बात सोची गई है।

4-4 दिन के शिविर का आयोजन

योजना यह है कि 4-4 दिन के शिविर 15 मई से 15 अक्टूबर तक 5 महीने लगातार लगाये जाते रहें और उनमें थोड़े-थोड़े परिजनों को बुलाकर विदाई, मिलन और अन्तिम परामर्श का प्रयोजन पूरा करते चला जाय। गायत्री तत्व ज्ञान,दर्शन, नीति, सदाचार, जीवन जीने की कला, व्यावहारिक अध्यात्मवाद, नव निर्माण आदि विषयों का प्रशिक्षण करने के लिए हमारे भाषण होते थे और हर आगंतुक को एक “लघु अनुष्ठान” गायत्री तपोभूमि के सिद्ध पीठ में करने के लिए कहा जाता था। तीर्थयात्रा का कार्यक्रम भी रहता था। अब की बार ऐसा कुछ न होगा। यह शिविर श्रृंखला व्यक्तिगत बातें पूछने, व्यक्तिगत अभिव्यंजनायें व्यक्त करने तथा व्यक्तिगत रीति-नीति निर्धारित करने हेतु  विचार विमर्श करने के लिए ही होंगे। भाषण  प्रातः काल एक ही हुआ करेगा और  बाकी सारा दिन चर्चा और परामर्श का ही क्रम चलता रहेगा। 

हमारे पास अभी भी बहुत कुछ देने को है, व्याकुलता रहती है कि उसे किसे दिया जाय,  उसे लेने के लिए कोई अधिकारी अधिकारी मिल सकते हैं क्या। बहुमूल्य वस्तुयें केवल माँगने या चाहने मात्र से नहीं दी या ली जातीं, उनके लिए “पात्रत्व” की अनिवार्य आवश्यकता पड़ती है। इन शिविरों में पात्रत्व ढंढते रहेंगे और जो संग्रहित है उसे देने का प्रयत्न करेंगे। 

इसी प्रकार अलग-अलग स्तर और स्थिति के लोगों को उनकी परिस्थितियों के अनुरूप अधिक गति  से आगे बढ़ सकने का परामर्श देंगे। अगले दिनों हमारा शरीर ही अदृश्य होने वाला है जीना तो अभी हमें बहुत दिन है। उस अवधि में संग्रहीत तप बल का प्रधान उपयोग तो जनमानस में प्रकाश उत्पन्न करना और प्रवृद्ध आत्माओं को लक्ष्य की दिशा में गतिशील करना तथा अध्यात्म विज्ञान के लुप्त रहस्यों को खोजकर मानव समाज की प्रगति के लिए उन्हें पुनः उपलब्ध करना है –

पर उस तप साधना का एक अंश अपने प्रिय परिजनों की व्यक्तिगत सहायता के लिए भी सुरक्षित रखा है।

अभावों, कुंठाओं, उलझनों, विपन्नताओं और विकृतियों के  जंजाल जो प्रगति का पथ रोके हुए हैं उन speed breakers को  मार्ग से हटाना अत्यंत आवश्यक है अन्यथा आगे बढ़ सकने की आशा पूर्ण न हो सकेगी। मात्र  परामर्श  देकर हम अपने कर्तव्य से छुट्टी नहीं पा सकते, परिजनों का पथ प्रशस्त करने के लिए आवश्यक अनुदान एवं सहयोग भी देते रहेंगे। हमारी तपश्चर्या का एक अंश इस  सहयोग  लिए निर्धारित है। जिन  परिजनों ने हमारे ऊपर  श्रद्धा, आत्मीयता, स्नेह  एवं सद्भावों की बहुमूल्य अमृत वर्षा हमारे ऊपर की है उनके प्रति हमारे मन में असीम कृतज्ञता उमड़ती रहती है। अब समय आ गया कि उस कृतज्ञता का ऋण चुकायें। यों तो  अब तक भी कितने ही परिजनों  की कुछ-कुछ सेवा सहायता करके अपना ऋण भार हलका करते रहे हैं लेकिन  पूँजी कम और उपभोक्ता अधिक(Demand and Supply) होने से सभी के  हिस्से में थोड़ा-थोड़ा ही आता रहा है। अब उपभोक्ता कम रह जायेंगे और उपार्जन अधिक होगा तो स्वभावतः अनुदान भी अधिक मात्रा में लिया और दिया जा सकेगा। 

इस प्रकार हमें अगले दिनों क्या करना है  इसका भी  supervision एक बार  फिर से हो जायगा और इस अन्तिम मिलन की स्मृति में यह तथ्य नोट करके रख सकना सम्भव होगा कि आगे हमें किसका कितना ऋण किस प्रकार किस अनुदान के रूप में चुकाना है।

उपरोक्त कारणों को ध्यान में रखते हुए यही निष्कर्ष निकाला गया है कि 15 मई से 15 अक्टूबर तक 5 महीने तक चार-चार दिन के शिविरों की श्रृंखला आरम्भ कर दी जाय और उनमें लगभग सभी विशिष्ट परिजनों से परामर्श और विदाई का प्रयोजन पूरा कर लिया जाए।  इसके बाद के शेष छः महीने हमें दूसरे आवश्यक कार्यों में व्यय करने हैं। 

हरिद्वार और ऋषिकेश के बीच जंगल में हिमालय की गोद और गंगातट पर माता भगवती देवी ( वंदनीय माता जी) की भावी साधना के लिए एक उद्यान बनाया है। परमपूज्य गुरुदेव अपनी सहधर्मिणी को माता जी ही कहते थे।  उसमें हर ऋतु में फलने वाले वृक्ष तथा दूसरे कन्द-मूल, शाक आदि लगाये गये हैं। माता जी यहीं रहकर अपनी भावी साधना करेंगी। सात ऋषियों की तप साधना वाला यह प्रदेश जहाँ माँ गंगा सात धारायें बनाकर बही है, उपासना की दृष्टि से अतीव उपयुक्त स्थान है। यहाँ कुछ समय के लिए यदाकदा हम भी आते रहेंगे और जो प्रकाश संग्रह करेंगे उसको जनसाधारण में फैलाने के उपयुक्त जितना अंश होगा माता जी के पास छोड जाया  करेंगे। वे इस प्रकाश को जनसाधारण तक बखेरती रहेंगी। इस उद्यान का नाम शाँतिकुंज  रखा है। इसे वेदमाता गायत्री ट्रस्ट के अंतर्गत देवोत्तर सम्पत्ति बना दिया गया है।

क्रमशः जारी : To be continued  

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।

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24 आहुति संकल्प सूची :

26  जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस  बार  आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के  केवल 4   समर्पित साधकों ने  ही 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और हम कामना करते हैं और परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य युगसैनिक   निम्नलिखित हैं :

(1 )डा अरुण  त्रिखा-36 ,(2 ) अरुण कुमार वर्मा जी-24,(3 )संध्या  कुमार जी-24,(4)सरविन्द कुमार जी-26   

उक्त सभी सूझवान व समर्पित युगसैनिकों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई हो जिन्होंने आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में 24 आहुति संकल्प पूर्ण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में विजय हासिल की है।

हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी  विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान  दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव

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