26 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – परमपूज्य गुरुदेव का अंतिम मिलन के लिए चार दिन का निमंत्रण
आज के ज्ञानप्रसाद में अपने आत्मीयजनों के साथ करने के लिए कई बातें हैं; तो आइये ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने से पूर्व इन बातों की एक-एक करके संक्षिप्त चर्चा कर लें।
1. ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार की ओर से हमारे सभी भारतीय सहकर्मियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक मंगलकामना। कामना करते हैं हमारी मातृभूमि विश्वप्रसिद्ध होते हुए विश्वगुरु का दाइत्व निभाने में सफल हो पाए।
2. 5 फरवरी 2022 वसंत पर्व का पावन दिवस हमारे द्वार पर दस्तक दे रहा है, अपने गुरु के प्रति समर्पण व्यक्त करने का पुनीत अवसर कहीं हाथ से न निकल जाए। एक बार फिर से स्मरण कराते हुए निमंत्रण देते हैं कि अपनी अनुभतियाँ शीघ्र अति शीघ्र भेजने की कृपा करें। जिन 6 आत्मीयजनों ने योगदान दिया है उनका ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। इन आत्मीयजनों की अनुभूतियाँ लगभग 2-3 लेखों में compile करने की योजना है।
3. आदरणीय संध्या कुमार बहिन जी जितनी सक्रिय यूट्यूब पर हैं उससे कहीं अधिक लेखन में हैं। उन्होंने परमपूज्य गुरुदेव के विचारों पर आधारित “इन्द्रिय संयम” पर लेख लिखा है। बहिन जी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं और शीघ्र ही इनकी योग्य लेखनी आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगें।
4. वैसे तो हमारे परिजनों की आत्मीयता के लिए हम सदैव ही निशब्द रहते हैं लेकिन मन करता है कि कभी-कभी उनकी भावनाएं आपके साथ शेयर करें। झारखण्ड के आदरणीय साधना सिंह जी अपने पति के साथ एक विद्यालय का संचालन करती हैं। 21 जनवरी को लगभग 70 मिंट उनसे बात हुई और उन्होंने अपनी भावना इस वाक्य में व्यक्त की, “आदरणीय भाई साहिब सादर प्रणाम जबसे आप से बात हुई है तब से मुझे ऐसा अहसास हो रहा है कि मैं किसी और दुनिया में जी रही हूँ।” इसी प्रकार रेणुकागंजीर बहिन जी ने हमारे समर्पण को सराहते हुए आज के रियल हीरो का विशेषण प्रयोग किया है। हमारे लिए अपने आत्मीयजनों के कमेंट अत्यंत ऊर्जा का स्रोत तो हैं ही साथ ही हमें मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं। परमपूज्य गुरुदेव इसी प्रकार अपना आशीर्वाद देकर इस छोटे से परिवार में स्नेह और आत्मीयता की अविरल धारा चलाते रहें।
5. ऑनलाइन ज्ञानरथ में सभी के योगदान को देखते हुए अगर कहें कि यह ज्ञानरथ सभी का अपना है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी – Everybody has a sense of belongingness. Thanks everybody.
परमपूज्य गुरुदेव के मथुरा से शांतिकुंज के लिए प्रस्थान का विषय इतना विस्तृत, रोचक एवं मार्मिक है कि मन करता है कि लिखते ही जाएँ ,लिखते ही जाएँ। कई तरह की शिक्षा,कई तरह के मार्गदर्शन,कई तरह की योजनाएं। परमपूज्य गुरुदेव 1969 से लेकर 1971 तक अपने बच्चों के प्रति प्यार व्यक्त करते रहे। हम इन्ही दो वर्षों को summarize करने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ पहले लिख चुके हैं ,कुछ आगे लिखने की योजना है। आज के लेख में हम देखेंगें कि गुरुदेव ने कैसे थोड़े से समय में अधिक से अधिक परिजनों से संपर्क किया। बहुत ही कठिन चिंतन-मनन के उपरांत गुरुदेव ने चार-चार दिन के शिविरों में परिजनों को तपोभूमि मथुरा आमंत्रित किया।
तो आइये आरम्भ करें अमृतपान की प्रक्रिया।
_______________________
परमपूज्य गुरुदेव कहते हैं :
हमारे मन की कोई बात दबी छिपी न रह जाय। अखण्ड ज्योति परिवार के प्रवृद्ध परिजनों को हम अपने विराट शरीर के कल पुर्जे-अंग प्रत्यंग ही मानते हैं। सो उन तक अपनी हर छोटी बड़ी- हर बुरी भली बात पहुँचाना आवश्यक समझते हैं। इससे हमारा चित्त हलका होता है और परिजनों को हमारा अंतःकरण पढ़ने समझने में सुविधा होती है। ऐसा करने से हमें अपनेआप से कोई शिकायत नहीं रहेगी कि मन में बहुत कुछ था पर स्वजनों से कह न सके। उसी प्रकार परिजनों को भी यह न अखरेगा कि आचार्य जी के मन में न जाने क्या था और वे न जाने क्या सोचते हुए चले गये। हम अपने परिवार के साथ घुले हुए हैं। इसलिए अपनी हर विचारणा को भी उनके सम्मुख पूरी स्पष्टता के साथ प्रस्तुत करते चले जा रहे हैं। यह क्रम अगले और कई महीनों तक चलता रहेगा।
गुरुदेव लिखते हैं कि जो बातें सार्वजनिक रूप से सबके सामने कही जाने योग्य थीं और सब पर लागू होती थीं उन्हें “अपनों से अपनी बात” स्तम्भ के अंतर्गत लिखा और छापा जा सकना सम्भव हो सका है। इसके अतिरिक्त “व्यक्तिगत” पक्ष ऐसा रह गया है जो अलग व्यक्तियों से अलग-अलग ही कहा और सुना जा सकता है। अपना परिवार बहुत बड़ा है, उसमें अनेक स्तर के व्यक्ति हैं, उनकी स्थिति अलग-अलग है। हमारे सम्बन्धों में भी उतार-चढ़ाव हैं। कोई अत्यधिक घनिष्ठ है, किन्हीं के साथ वह घनिष्ठता सामान्य स्तर की है।लोगों के विचार करने का क्षेत्र, आकाँक्षायें और दिशायें भी अलग-अलग हैं। लक्ष्य एक होते हुए भी थोड़े-थोड़े अंतर से स्थिति में बहुत अंतर पड़ जाता है। इसी से “व्यक्तिगत परामर्श” की आवश्यकता बनी ही रहती है। भाषणों और लेखों की एक सीमा है, उनमें वही व्यक्त किया जा सकेगा जो एक सामान्य स्तर वालों के लिए समान स्तर का प्रकाश देता है। पर हर व्यक्ति का स्तर भिन्न है उसे परामर्श और मार्गदर्शन अलग ढंग का अपेक्षित होता है। सो यह आवश्यकता व्यक्तिगत परामर्श से ही पूरी हो सकती है।
सोचा यह गया है कि परिजनों से व्यक्तिगत विचार विनिमय का अन्तिम दौर चलने से पहले समाप्त कर लें। चलते वक्त भीड़ लगाने का हमारा मन नहीं है। हमारी भावुकता भी इन दिनों कुछ तीव्र हो गई है। बुझने के समय दीप की लौ जिस तरह तेज हो उठती है- शायद वही बात हो या जो भी हो यह एक तथ्य है कि इन दिनों अपने प्रिय परिजनों के प्रति ऐसी भावुकता की लहर उमड़ती है जिसे विदाई का, वियोग का, एवं मोह का,अथवा जो भी नाम दिया जा सके बहुत ही उभर कर आता है। स्वजनों को बार-बार देखने और मिलने की इच्छा होती है। मिल लेने पर भी तृप्ति नहीं होती। परिजनों के साथ चिर अतीत से चले आ रहे मधुर सम्बन्धों की स्मृतियाँ और भविष्य में उनके उस मृदुल श्रृंखला के टूट जाने का भय हमारे लिए बहुत ही भारी पड़ता है। स्वजनों को आग्रहपूर्वक बुलाते हैं,आते हैं तो प्रसन्नता होती है पर जब वे विदा होते हैं तो ह्रदय टूटने लगता है और मुख फेरकर आँसू पोंछने पड़ते हैं। मरते समय अज्ञानियों को मोह ग्रस्त होकर रोते-बिलखते हमने देखा है और उनकी इस दुर्बलता का जीवन भर उपहास उड़ाया है। पर अब तो हम स्वयं ही उपहासास्पद बनते चले जा रहे हैं। प्रियजनों के साथ लम्बे समय से चली आ रही मृदुल अनुभूतियाँ अब प्रत्यक्ष न रहकर परोक्ष पात्र रह जाएंगी, यह कल्पना मन को बहत भारी कर देती है और अक्सर रुला देती है। साठ वर्ष के लम्बे जीवन में जितने आँसू सब मिलाकर निकले होंगे, अब विदाई की वेदना प्रायः हर दिन उतना पानी आँखों से टपका देने को विवश करती रहती है। भगवान जाने यह प्रेम है या मोह भावना है या आसक्ति सहृदयता है या दुर्बलता जो भी हो वस्तुस्थिति यही है। सो हम अपनी दुर्बलता भी छिपाकर नहीं रखेंगे। छिपाने लायक हमारे पास कभी कुछ नहीं रहा तो फिर अपनों से अपनी दुर्बलता भी क्यों छिपायें। कोई हंसी करेगा, ज्ञानी को अज्ञानी कह कर उपहास करेगा, इतने भर संकोच से वस्तुस्थिति को छिपाकर रखें यह उचित नहीं लगता।
विदाई के दिन निकट आ रहे हैं। पहले विचार था कि चलते समय एक बार एक दिन एक दृष्टि से सब को देख लेंगे और शाँति तथा संतोष के साथ विदाई देते लेते चले जायेंगे जाते समय एक छोटा समारोह सम्मेलन जैसा बुला लेंगे और अपनी कहते हुए और दूसरों की सुनते हुए अपने पथ पर पाँव बढ़ाते हुए अदृश्य के अंचल में विलीन हो जायेंगे। पर अब जबकि दूसरे ढंग से सोचते हैं तो वह बात पार पड़ती दीखती नहीं, कारण कई हैं। अगले लेख में देखेंगें यह कारण।
क्रमशः जारी : To be continued
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
हर बार की तरह आज का लेख भी बड़े ही ध्यानपूर्वक तैयार किया गया है, फिर भी अगर कोई त्रुटि रह गयी हो तो उसके लिए हम क्षमाप्रार्थी हैं।
_______________________
24 आहुति संकल्प सूची :
25 जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत इस बार आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 8 समर्पित साधकों ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए सभी युगसैनिक बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और हम कामना करते हैं और परमपूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य युगसैनिक निम्नलिखित हैं :
(1) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 42, (2) अरूण कुमार वर्मा जी – 41, (3) सरविन्द कुमार पाल – 37, (4) प्रेरणा कुमारी बिटिया रानी – 31, (5) रेणुका बहन जी – 29, (6) डा. अरुन त्रिखा जी – 28, (7) संध्या बहन जी – 28, (8) संजना कुमारी बिटिया रानी – 25,
उक्त सभी सूझवान व समर्पित युगसैनिकों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत बहुत साधुवाद व हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई हो जिन्होंने आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में 24 आहुति संकल्प पूर्ण कर आनलाइन ज्ञान रथ परिवार में विजय हासिल की है। आदरणीय रेणु श्रीवास्तव बहिन जी को एक बार फिर 42 अंक प्राप्त कर स्वर्ण पदक जीतने पर हमारी व्यक्तिगत और परिवार की सामूहिक बधाई। जय गुरुदेव
हमारी दृष्टि में सभी सहकर्मी विजेता ही हैं जो अपना अमूल्य योगदान दे रहे हैं,धन्यवाद् जय गुरुदेव