8 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद -युगनिर्माण योजना में परमपूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन
आज का ज्ञानप्रसाद आरम्भ करने से पूर्व हम सभी सहकर्मियों के साथ शेयर कर रहे हैं कि आज आदरणीय मृतुन्जय तिवारी भाई साहिब का शुभ जन्मदिवस है। बिकाश शर्मा बेटे ने सुझाव दिया कि ऑनलाइन ज्ञानरथ की ओर से कुछ विशेष सन्देश होना चाहिए। तो हमने एकदम अपनी पुरानी प्रकाशित हुई वीडियोस में से कुछ एक क्लिप्स की एक संक्षिप्त( 3 मिंट) वीडियो बनाई जिसका लिंक प्रस्तुत है। हर बार यूट्यूब पर लिंक चलने में कोई न कोई समस्या अवश्य ही आती है क्योंकि यह एक shared लिंक होता है जो आपके इंटरनेट की स्पीड पर आधरित है, व्हाट्सप्प य जीमेल पर कभी कोई समस्या नहीं आयी -कारण -वहां यह downloaded लिंक होता है। यूट्यूब सहकर्मियों से निवेदन करते हैं कि इंटरनेट स्पीड का ख्याल रखें। https://drive.google.com/file/d/1FZzXyQEx1Pg82Wl8OOg2sifKzWHRjW66/view?usp=sharing ( This link may not be available if removed from google drive )
ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार मृतुन्जय भाई साहिब को जन्मदिवस सन्देश भेजते हुए कामना करता है कि परमपूज्य गुरुदेव, वंदनीय माता जी और शुक्ला बाबा की कृपा उन पर सदैव बनी रहे। आप सभी जानते हैं की मृतुन्जय भाई साहिब शिष्य शिरोमणि शुक्ला बाबा के नाती हैं और अखंड ज्योति नेत्र हॉस्पिटल के ट्रस्टी और प्रोजेक्ट हेड हैं। अरुण वर्मा जी और संजना बेटी के परिवारों को इन दिव्य आत्माओं से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है। आप हमारी वीडियोस देख कर उनके बारे में और जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अब बात आती है आज के ज्ञानप्रसाद की। शीर्षक तो है “युगनिर्माण योजना में परमपूज्य गुरुदेव का मार्गदर्शन” लेकिन यह शीर्षक इतना विस्तृत है कि इसे कुछ एक पन्नों में क्या, कई पुस्तकों में भी बांधना असंभव है। पिछले कितने ही दिनों से हम हीरक जयंती, सूक्ष्मीकरण साधना, परमपूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन पर चर्चा कर रहे हैं, कोई अंत दिखाई ही नहीं दे रहा। 1984 से 1986 तक की अखंड ज्योति के सभी अंकों को एक एक करके अध्यन करने के उपरांत जो कुछ भी अपनी अल्प बुद्धि ने मार्गदर्शन पाया आपके समक्ष प्रस्तुत किया। अब का मार्गदर्शन तो यही कह रहा है कि सोमवार से एक नई शृंखला का शुभारम्भ किया जाये- परमपूज्य गुरुदेव की मथुरा से मार्मिक विदाई।
तो आइये इन्ही शब्दों के साथ आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करें
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भूतकाल के कार्यों के सम्बन्ध मे मिशन के सघन संपर्क मे आने वालों को अब तक की गतिविधियों का परिचय है। जो जान-बूझकर अविज्ञात रखी गई है उनका विवरण भी समय आने पर प्रकट और प्रतीत होता जायेगा। उदाहरण के लिए जहाँ समस्त विश्व मे एक स्वर से विनाश की सम्भावनाओं को सुनिक्षित बताया जा रहा है,उसके कारण प्रमाण, तर्क और तथ्य प्रस्तुत किए जा रहे है, वहीँ केवल एक ही आवाज उठी है कि विनाश होने नहीं दिया जायेगा। समस्त विभु की चिन्ता एक ओर और एक आदमी का निक्षय और उदघोष दूसरी ओर कि “कोई डरे नहीं, सभी निक्षिन्त रहें।” इस विभूवसुधा के ऊपर इतनी बड़ी ढाल तानी गई है कि उसे वेध सकना किसी के लिए भी सम्भव नहीं है। कठिनाइयाँ न आये, सो बात नहीं, पर वे समयानुसार निरस्त होती चलेगी। सृजन की आवश्यकतायें बहुत बड़ी हैं, इतनी बड़ी कि उनका जुट सकना आज तो असम्भव जैसा दिखता है, पर यह पक्तियों कह रही है कि हर साधन जुटता जायेगा। कौन जुटायेगा? कैसे जुटायेगा? इसका उल्लेख यहाँ आवश्यक नहीं, क्योंकि जब परोक्ष कर्तृत्व किसी महान सत्ता का है, तो व्यक्ति विशेष को श्रेय देना व्यर्थ है, उसका अहंकार बढ़ाने के समान है। इस प्रकार की बढ़ोत्तरी से संसार में कोई उठा नहीं, वरन् गिरा ही है। इसलिए कहा इतना भर जा रहा है कि विनाश की विभीषिकाएं निरस्त होगी और विकास उस तेजी से बढ़ेगा जिसकी घोषणा करना तो दूर, आज उसकी रूपरेखा तक समझना कठिन है क्योंकि उस कथन को भी अत्युक्ति समझा जा सकता है।
पिछले दिनों जो हो चुका है उसका उल्लेख करना आवश्यक है। उस संदर्भ में इतना ही समझ लेना चाहिए कि प्रत्येक बसन्त पर्व एक नया तूफानी उभार साथ लाता है और वह आरम्भ में असाध्य या कष्टसाध्य दीखते हुए भी समय के साथ बढ़ता और फूलता जाता है। तालाब में घनघोर वर्षा का पानी जितना बढ़ता है उसी हिसाब से कमल का डंठल भी रातों -रात बढ़ जाता है और फूल पानी में डूबने भी नहीं पाता, वरन ऊपर ही उठा हुआ दीखता है।
अगले वर्ष से बसन्त पर्व के तुरन्त उपरान्त ही वे कार्यक्रम चल पड़ेगे, जिन्हें वर्गीकरण की दृष्टि से दो विभागों में भी बाँटा जा सकता है। समय के सेकेण्ड-मिली सेकेण्ड जैसे अगणित भाग हो सकते है परन्तु सुविधा को दृष्टि से उसे दो भागों में भी बाँटा जा सकता है- एक दिन, दूसरी रात। इसी प्रकार प्रस्तुत बसन्त के उपरान्त दो कार्यक्रम चलेंगे, पर उनकी शाखा-प्रशाखाएं इतनी होगी जिनकी संख्या की गिनती एक शब्द अगणित मे ही करनी होगी।
एक कार्य है देश के गाँव-गाँव मे युग परिवर्तन का सन्देश सुनाना,जन-जन के मन में अलख जगाना। दूसरा कार्य है- देश के अपेक्षित अर्धमृत तीर्थों मे प्राण फूंकना,उनका पुनरुद्धार करना। कहने और सुनने मे यह दोनो योजनाएँ कुछ ही क्षणों में कही और सुनी जा सकती है लेकिन उनका विस्तार इतना बड़ा है कि जिसे मानवी कर्तृत्व से बाहर की बात समझा जाये, तो अत्युक्ति न होगी।
भारत में सात लाख छोटे गाँव हैं, लेकिन मझले मिला लें तो बीस लाख हो जाते है। इन सभी गांवो मे युग चेतना की जानकारी पहुँचानी और उसके सिद्धान्त समझाने हैं । प्रज्ञायुग का अवतरण समीप है। उसमे दूरदर्शी विवेकशीलता का स्वरूप, उद्देश्य और व्यवहार जन-जन को समझाना है। साथ ही प्रस्तुत अवांछनीयता, अनैतिकता, मूढ़-मान्यता तथा कुरीतियों के कारण होने वाले भयंकर अन्यायों से भी अवगत कराया जाना है। हमें अगले दिनों जिस समता, एकता, सहकारिता की नीति को अपनाना है उसके महत्व को भी हृदयंगम कराना है। प्रज्ञायुग के चार आधार होंगे- समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदारी और बहादुरी। इन सब के लिए मनों मे गुंजाइश पैदा करनी है और प्रचलन के नाम पर जो अविवेक और अनर्थ हर दिशा में छाया हुआ है उसका उन्मूलन भी करना है। यह कृत्य “हम बदलेंगे युग बदलेगा” की नीति के अनुरूप चलेगा और “नर और नारी एक समान” “जाति वंश सब एक समान” का आदर्श हृदयंगम करने पर ही सम्भव होगा। इन दिनों नैतिक, बौद्धिक और सामाजिक क्षेत्र में अनेकों अनीतियाँ प्रचलित हैं। उनके विरुद्ध जनमत और आक्रोश भी जागृत करना है। विषमता का हर क्षेत्र में बाहुल्य है। उनके स्थान पर एकता और समता के सिद्धान्तों को मान्यता मिल सके, ऐसा वातावरण बनाना है।
इसके लिए जन-संपर्क साधने की आवश्यकता होगी। हर भाषा मे सस्ता प्रचार साहित्य पैदा करना है और दीवारों पर आदर्श वाक्य लेखन का प्रचलन इस स्तर पर करना है, जिसे शिक्षित पढ़ सके और जो आशिक्षित हैं पढ़े लिखों द्वारा सुन सके। यह प्रचार कार्य परस्पर वार्तालाप द्वारा, छोटी गोष्ठियों द्वारा और बड़े सम्मेलनों द्वारा चल पडेगा, तो एक भी व्यक्ति ऐसा न रहने पायेगा, जिसे युग परिवर्तन का आभास न मिले और आदर्शों को अपनाने का वातावरण न बने।
इसके लिए जहाँ जैसा सुयोग बनेगा, विचार विनिमय प्रवचन एवं वक्ताओं द्वारा छोटे बड़े समूहों को इस प्रकार समझाने का प्रयत्न चलेगा जो लोगों के अन्तराल की गहराई तक प्रवेश करता चला जाये। अभीष्ट प्रयोजन के लिए लेखनी और वाणी द्वारा तो प्रचण्ड प्रचार कार्य चलाया ही जाएगा, साथ ही बरसाती हरीतिमा की तरह दिन-रात चौगुने वेग से बढ़ने वाली प्रज्ञा परिजनो की हरीतिमा को इतना शौर्य पराक्रम प्रस्तुत करने के लिए भी कटिबद्ध किया जायेगा कि वे अपने निज के क्रियाकलापों द्वारा असंख्यों के सामने अनुकरणीय आदर्श भी प्रस्तुत कर सकें । मनुष्य का स्वभाव अनुकरणशील है, उसने दुष्प्रवृत्तियां और दुर्भावनाएँ भी एक दूसरे से ही सीखी हैं। क्या यह सम्भव नहीं कि अग्रगामी व्रतशील परिजन जब सत्प्रयोजनों के लिए अपना आदर्श प्रस्तुत करें तो उनका अनुकरण दूसरे लोग करें। जब बुद्धि की छूत एक से दूसरे को लगी है तो कोई कारण नहीं कि शक्तिशाली सदाशयता का प्रभाव एक दूसरे पर न पड़े। जब कुछ ही दिनों मे ईसाई धर्म और साम्यवादी सिद्धान्तों ने अधिकांश जन समुदाय को अपने अंचल में समेट लिया तो यह नितान्त असम्भव नहीं कि उत्कृष्ट चिन्तन, आदर्श चरित्र और सौम्य व्यवहार का प्रभाव एक दूसरे पर न पड़े और आज की अवांछनीय परिस्थितियाँ बदली हुई मनःस्थिति के आधार पर उतर न सकें ।
यह है “जन संपर्क प्रक्रिया” जिसे प्राचीन काल के धर्मपरायण व्यक्ति अलख जगाना या आलोक (प्रकाश) वितरण कहते थे। कोई कारण नहीं कि एक समय जो सम्भव हो सका वह उन्ही प्रयत्नों के आधार पर दूसरी बार सम्भव न हो सके। चिरकाल तक सतयुगी वातावरण इसी धरती पर रहा है तो कोई कारण नहीं कि उसकी वापसी न हो सके। सूर्यास्त होने के बाद जब दूसरे दिन फिर अरुणोदय के रूप में प्रकट हो सकता है तो सतयुग के अभिनव प्रज्ञा युग के रूप में पुनरावर्तन हो सकने मे शंका क्यों अभिव्यक्त की जाए ?
ब्रह्मपरायण वर्ग सदा से धर्म धारणा और भाव सम्वेदना का संरक्षक रहा है तो कोई कारण नहीं कि नवयुग के सृजन शिल्पी उस परम्परा को पुनर्जीवित करके और स्वार्थ को ठुकरा कर विश्वमानव को हित साधना के लिए लोभ, मोह और अहंकार का परित्याग करके राष्ट्र को जीवित और जागृत कर सकने वाले पुरोहितो के रूप मे नये सिरे से प्रकट न हो सके। घास मरती नहीं। गर्मी मे सूख जाती है किन्तु पहली वर्षा होते ही वह इतनी तेजी से उठती है कि धरातल पर मखमली फर्श बिछा देती है। मूल्यहीन नीचता से ऊँचे उठने वाली आत्माओं का बीज नाश नहीं हुआ है। युग चेतना की बरसात होते ही वे लोक प्रचलन का कायाकल्प कर सकेगीं। योजना ऐसी ही बनी है कि 80 करोड़ भारतवासी देवमानवों का लोकमानस बदल सकें और उनके पराक्रम से संसार भर का वातावरण बदल सकें । प्राचीनकाल में भारत के देव-मानवों ने संसार भर को अजस्र अनुदान दिये हैं। अब वह परम्परा पुनर्जीवित न हो सके ऐसा कोई कारण नहीं। पिछले दिनों छोटे से प्रयत्नों से 74 देशों मे युग परिवर्तन की हवा फैल सकी तो अगले दिनों उस दिशा में सशक्त प्रयास किये जाने पर समस्त संसार को उस लपेट में न लिया जा सके इसका कोई कारण नहीं।
पिछले दिनो जन जागरण के लिए, लोकमानस परिष्कार के लिए, जो सामान्य प्रयत्न हुए हैं उन्होंने आश्चर्यचकित करने वाले परिणाम उत्पन्न किये है तो कोई कारण नहीं कि अगले दिनों ऐसा न हो सके जिसे अभूतपूर्व कहा जा सके।
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
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24 आहुति संकल्प सूची :
7 जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 7 समर्पित साधकों ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए सभी सप्तऋषि बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और कामना करते हैं और परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य सप्तऋषि निम्नलिखित हैं :
(1) अरूण कुमार वर्मा जी – 41, (2) सरविन्द कुमार पाल – 40, (3) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 33, (4) डा.अरुन त्रिखा जी – 26,24, (5) संध्या बहन जी – 26, (6) प्रेरणा कुमारी बेटी – 26, (7) रेणुका बहन जी – 26
उक्त सभी आत्मीय सूझवान व समर्पित सहकर्मी देवतुल्य भाइयों व बहनो को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई। आज की संकल्प सूची में आदरणीय अरुण वर्मा जी को सबसे अधिक अंक प्राप्त करके स्वर्ण पदक विजेता होने की हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत स्पेशल बधाई। इस प्राप्ति के लिए सभी सहकर्मियों की सहकारिता और सहभागिता को नमन।