युगतीर्थ शांतिकुंज से रत्नों की भांति प्रचारक निकलते हैं 

5 जनवरी 2021 का ज्ञानप्रसाद -युगतीर्थ शांतिकुंज से रत्नों की भांति प्रचारक निकलते हैं 

परमपूज्य गुरुदेव के करकमलों द्वारा लिखित दिव्य अखंड ज्योति के मार्च 1986 अंक पर आधारित लेख का द्वितीय भाग प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कल प्रकाशित हुए प्रथम भाग में हमने गुरुदेव के चरणों में बैठ कर अनुभव किया  था कि सूक्ष्मीकरण साधन की तप शक्ति कितनी प्रबल है और यह शक्ति क्या कुछ करने में समर्थ है। परमपूज्य गुरुदेव ने इतनी कठिन साधना करके भविष्य की डोर कैसे अपने हाथों में थाम ली ,यह केवल वही सहकर्मी देख सकते हैं ,अनुभव कर सकते हैं जिन्हे गुरुदेव की साधना शक्ति पर  पूर्ण विश्वास है। ऑनलाइन ज्ञानरथ का प्रत्येक सहकर्मी उन परिजनों के लिए पूर्ण निष्ठा से प्रयासरत है जिन्हे गुरुदेव को प्रतक्ष्य देखने का सौभाग्य न प्राप्त  हो सका और जो उनकी शक्ति से परिचित नहीं हैं। हमें सम्पूर्ण विश्वास है कि हम इस प्रयास में आगे ही आगे बढ़े जा रहे हैं।   

गुरुदेव बता  रहे हैं कि  विश्व को महाविनाश की चुनौती देने वाली प्रलय की घटाएँ अब किसी अदृश्य तूफान में उड़ गई। गुरुवर  यह आश्वासन अपनी तप शक्ति के आधार पर तो दे ही रहे हैं लेकिन उन्होंने बार-बार  यह भी कहा है कि हम अकेले कुछ भी करने में असमर्थ हैं। रीछ-वानर ,ग्वाल -बालों पर बहुत अधिक भरोसा है। इसीलिए  उन्होंने  भविष्य के लिए कुछ निर्धारण  भी   किये हैं जो  हम आज के लेख में केवल summarize ही करेंगें। विस्तृत चर्चा आने वाले लेखों  में करने का विचार है। आज के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने से   पूर्व हम एक  और बात आपके समक्ष रखना चाहेंगें कि गुरुदेव ने कहा है कि  हमारे  गुरु के निर्देश की तरह आप भी   सब कुछ बताने के लिए विवश न करें। कुछ बातें गुप्त ही रहनी चाहिए ,ठीक उसी तरह जिस तरह शासन संचालकों को पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई जाती है।  प्रतीक्षा कीजिये अगला  लेख इसी गोपनीयता पर आधारित है।

तो आइये चलें गुरुचरणों में अमृतपान के लिए :         

नवयुग का आगमन सुनिश्चित है। प्रज्ञा युग उसका नाम होगा। गंगा अवतरण का मन बना चुकी है। उसे स्वर्ग से धरती पर ला उतारने वाले तप की आवश्यकता थी जो हो रहा है, वह चलता ही रहेगा। कठिनाई हल करने के लिए शिवजी ने अपनी जटाएँ बिखेर दी हैं। अब आवश्यकता भागीरथ जैसे राजपुत्र की रह गई है जो अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो और अपने को भागीरथी का अवतरण कर्त्ता कहलाने का श्रेय भर लेने का साहस करे। अर्जुन को भी यही कहा गया है कि धरती पर दिखाई देने वाले जीवितों का प्राण हरण किया जा चुका है। यदि इच्छा हो तो विजयश्री का वरण कर, अन्यथा चुप बैठ। तेरे बिना महाभारत अनजीता न पड़ा रहेगा। यों भागीरथ न आते तो भी विधिचक्र ने गंगावतरण तो सुनिश्चित कर रखा ही था। इन दिनों देव मानवों की महती आवश्यकता अनुभव की जा रही है और उन्हें मनुहार-आग्रह-अनुरोध करके बुलाया भी जा रहा है। पर कोई यह न समझे कि हम नखरे दिखाएंगे, आनाकानी करेंगे, बहाने बनायेंगे तो गाड़ी रुकी पड़ी रहेगी,जो भविष्य में होने वाला परिवर्तन है हमारे हाथ लगाए बिना रुका रह जायेगा । 

“युग परिवर्तन सुनिश्चित है। मनुष्य से देवत्व का उदय होगा और उस समुदाय का बहुमत हो जाने पर धरती पर स्वर्ग का वातावरण बनेगा।”

जो शक्ति भयंकर भविष्य को टाल सकती है, वह उर्वर भूमि में हरे-भरे पौधे भी उगा सकती है। युद्ध सैनिकों के बीच  लड़े जाते हैं। सड़कें मजदूर बनाते हैं। पुल खड़े करने के लिए कारीगरों की जरूरत पड़ती है। साधन जुटाने में धन किसी का भी क्यों न लगा हो पर हर इंजीनियर, कारीगर, मजदूर यही कहता है कि यह पुल हमने बनाया था। उसकी यह गर्वोक्ति सही भी है। नवयुग के अवतरण के लिए ऐसे ही शिल्पी-कारीगर चाहिए, जीवन्त, प्राणवान, मनस्वी, योद्धा, देवमानव। उन्हीं को कभी साधु, ब्राह्मण कहा जाता था, पर जब वे रह नहीं गए तो दूसरा नामकरण करना पड़ रहा है।

अखण्ड ज्योति परिजनों में देवमानवों की एक बड़ी संख्या है। उन्हें ही सर्वप्रथम बुलाया गया है। गुरु गोविन्दसिंह ने अपने बच्चे बलि चढ़ा दिए तो दूसरों की मनुहार नहीं करनी पड़ी। वे सच्चाई देखकर प्रभावित हुए और बड़ी संख्या में सन्त सिपाही रूप में भर्ती होते चले गए। लक्ष्य पूरा करके ही रुके। आज देवमानवों को बुलाया गया है व कहा गया है कि लोभ, मोह और अहंकार के जाल-जंजाल से सदा के लिए न छूट सकें तो कम से कम एक साल का समय निकालें। इतने समय का छोटा वानप्रस्थ, छोटा संन्यास ग्रहण करें, उस पुनीत कार्य में लगें जिसमें पुरातन काल के देवमानव लगा करते थे। 86 हजार ऋषियों की टोली किसी समय इसी कार्य में प्रवृत्त थी। बुद्ध के लाखों भिक्षु और महावीर के असंख्यों श्रावक देश-देशांतरों में भ्रमण करते हुए जन-जन का सोया देवत्व जगाते थे और दुष्प्रवृतियों  की जड़ों को बलपूर्वक उखाड़ फेंकते थे। 

“सत्य के अनुयायी में हज़ार  हाथी के बराबर बल होता है, इस युक्ति को उन्होंने प्रत्यक्ष सार्थक करके दिखा दिया।

आज से ही हमारा भविष्य निर्धारण आरम्भ होता है। भविष्य किसका? समूचे धरातल का, समूचे मानव समुदाय का-समूचे प्राणि परिवार का। क्या यह सम्भव है? इसके उत्तर में हमें एक ही शब्द कहना है- “हाँ । क्योंकि भूत का अनुभव और वर्तमान की प्रगति हमें विश्वास दिलाती है कि भविष्य के बारे में जो सोचा गया है, वह बाल कल्पना नहीं है। उसके पीछे सच्चाई का गहरा पुट है। भविष्य के ये निर्धारण हैं

(1) एक लाख देवब्राह्मण उत्पन्न करना 

(2) युग साहित्य के माध्यम से जन-जन को समय के पक्ष में प्रशिक्षित करना 

(3) युग धर्म के प्रशिक्षण की 2400 पाठशालाएं खोलना 

(4) 24 हजार की संख्या में बाल संस्कार शालाऐं स्थापित करना 

(5) भारत भूमि के कोने-कोने में -तीर्थ स्थापित करना 

(6) शान्ति कुंज गायत्री तीर्थ के रूप में ऐसा आरण्यक विकसित करना, जहाँ से रत्नों  की खदान की तरह धर्म प्रचारक निरन्तर निकलते रहें। बुद्ध काल में नालन्दा, तक्षशिला विश्वविद्यालयों ने विश्व के कोने-कोने में धर्मचक्र प्रवर्तन के लिए अगणित तपस्वी और तपस्विनियाँ उत्पन्न किए थे। साथ ही यह भी कहा था कि तीन दिन से अधिक एक जगह ठहरना मत। दो से अधिक एक साथ,एक  समय चलना मत। उन दिनों वातावरण ऐसा था कि यह अनुशासन भी बन पड़ा था एवं बुद्ध के धर्मचक्र प्रवर्तन के लिए अनेकों जीवन दानी बन गये थे, जिन्होंने सारे विश्व को झकझोर कर रख दिया था। आज की हवा में ऊर्जा नहीं रही। फिर भी घोर अकाल  नहीं है। भूमि में उर्वरता अभी भी जीवित है। उतनी शानदार फसल तो उगा न सकेगी, पर स्थिति ऐसी नहीं आयेगी कि योजना को शेखचिल्ली के सपने कहकर मज़ाक  उड़ाया जा सके। युग परिवर्तन की दिशा में तपश्चर्या का बल जो चमत्कार दिखा चुका है उसे ध्यान में रखने पर यह पूरा विश्वास होता है कि भविष्य की सम्भावनाएं भी सार्थक होकर रहेंगी। 

अगला लेख – पद और गोपनीयता की शपथ 

हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव

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24 आहुति संकल्प सूची :

4 जनवरी 2022  के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान  करने के उपरांत आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 8  समर्पित साधकों ने  24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के  लिए आप सब बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं  और कामना करते हैं और परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह  देवतुल्य सहकर्मी  निम्नलिखित हैं l (1) सरविन्द कुमार पाल – 46, (2) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 39, (3) प्रेरणा कुमारी बेटी – 38, (4) अरूण कुमार वर्मा जी – 32, (5) डा.अरुन त्रिखा जी – 29, (6) संध्या बहन जी – 27, (7) निशा भारद्वाज बहन जी – 26, (8) नीरा बहन जी – 25

उक्त सभी आत्मीय सूझवान व समर्पित सहकर्मी देवतुल्य भाइयों व बहनो को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई। आज की संकल्प सूची में आदरणीय सरविन्द कुमार पाल  जी को सबसे अधिक अंक प्राप्त करके स्वर्ण पदक विजेता होने की  हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत स्पेशल बधाई। इस प्राप्ति के लिए सभी सहकर्मियों की सहकारिता और सहभागिता को नमन।

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