4 जनवरी 2022 का ज्ञानप्रसाद – नरक से स्वर्ग में प्रवेश पाना पूरी तरह मनुष्य के हाथों में है
आज का ज्ञानप्रसाद परमपूज्य गुरुदेव के करकमलों द्वारा लिखित दिव्य अखंड ज्योति के मार्च 1986 अंक पर आधारित है।आज हम इसका प्रथम भाग प्रस्तुत कर रहे हैं, कल द्वितीय भाग प्रस्तुत करेंगें। परमपूज्य गुरुदेव के लेखन में किसी प्रकार का फेर बदल करना घोर अशिष्टता से कम नहीं होगा, हमने केवल सरलीकरण का ही प्रयास किया है ताकि हमारे सहकर्मियों को कठिन शब्दों के लिए किसी शब्दकोश या गूगल सर्च का सहारा न लेना पड़े। अगर हमें किसी भी कारण कोई बात समझने में समस्या आती है और उसे छोड़ कर आगे बढ़ जाते हैं तो परमपूज्य गुरुदेव के अभियान को समझने में हम लापरवाही बरत रहे हैं। हम निवेदन करते हैं कि कृपया ऐसा कभी भी न किया जाए।वैसे तो हमारे सहकर्मियों की योग्यता हमसे कहीं अधिक ही है, लेकिन फिर भी कहीं पर भी कोई शंका उत्पन हो तो हम अपनी समर्था अनुसार उसका निवारण करने का पूर्ण प्रयास करेंगें, ठीक उसी प्रकार जैसे प्रेरणा बिटिया ने कुछ प्रश्न पूछा था।
तो आइये चलें गुरुचरणों में अमृतपान के लिए :
पृथ्वी पर अनेकों बार संकट आये हैं और यह डूबते-डूबते उबरी है। एक बार हिरण्याक्ष उसे पाताल ले गया था। एक बार वृत्रासुर ने उसका अपहरण कर लिया था और इन्द्र समेत समस्त देव समुदाय को पलायन करना पड़ा था। भस्मासुर, महिषासुर ने भी विनाश की घड़ी समीप ला दी थी। ऐसे अनेकों प्रसंगों में “दैवी शक्तियों” ने ही उसका उद्धार किया था। देवों की करुण पुकार सुनकर प्रजापति ने कहा था- “तुम देव लोग उपेक्षा या अहंकार वश एकत्र नहीं हो पाते, इसलिए बलिष्ठ होने पर भी दैत्य समुदाय के सामने हार जाते हो। उनकी संयुक्त शक्ति दुर्गा के रूप में विनिर्मित हुई और उन्होंने असुरों के संकट से देवों को बचाया
यह तो पौराणिक प्रसंग हुआ। वैज्ञानिकों के अनुसार पुरातन काल में एक काल्पनिक ग्रह था “फेथॉन” उसकी सभ्यता आज की आधुनिक सभ्यता से भी बढ़ी-चढ़ी थी और इस ग्रह के वासियों ने विज्ञान के महाघातक अस्त्र एकत्रित कर लिए थे। शक्तियाँ प्राप्त कर लेना एक बात है और उनका सदुपयोग करना दूसरी। वे अहंकारी सत्ताधारी परमाणु आयुधों से लड़ पड़े और न केवल जीवसत्त का, पदार्थों का वरन् समूचे ग्रह का सर्वनाश कर दिया। फलस्वरूप उस ग्रह के छर्रे-छरे उड़ गए। उन्हीं टुकड़ों में से कुछ मंगल और बृहस्पति के बीच में एक उल्का (shooting star ,meteorite) माला के रूप में घूमते हैं। कुछ शनि के इर्द-गिर्द छल्ले के रूप में एवं कुछ प्लेटो, नेपच्यून तक उड़ गए। कहते हैं उसी कबाड़ से सृष्टा ने पृथ्वी की नूतन संरचना की। जो भी हो, सृष्टा के इस ब्रह्मांड में पृथ्वी सबसे सुन्दर कलाकृति है। जब-जब भी इस पर विनाश के संकट आते रहे, तब-तब उसकी रक्षा होती रही है। कोई न कोई उपाय निकलता रहा है। एक बार दधीचि की अस्थियों का वज्र बना था। एक बार संघ शक्ति दुर्गा ने विनाश की विपत्ति बचाई थी।
“इस बार भी ऐसा ही होने जा रहा है।”
प्रस्तुत संकट के संदर्भ में दिव्यदर्शी आत्मवेत्ता कहते रहते हैं कि समुद्री उफान के रूप में पृथ्वी पर ऐसी विपत्ति बरसेगी जिससे कुछ बचेगा नहीं। मूर्धन्य मनीषियों का भी यही कहना है कि प्रदूषण, पर्यावरण, विकिरण (Radiation), अणुयुद्ध, जनसंख्या विस्फोट आदि के फलस्वरूप संसार तेजी से महाविनाश की ओर जा रहा है। तीसरे अन्तरिक्षीय युद्ध की संभावना तो हर पल सामने है ही।
महाविनाश से पूर्व ही बचाव की व्यवस्था :
सृष्टा ने महाविनाश से पूर्व ही बचाव की व्यवस्था बनाई है। यह तो सारी विश्व की जनसँख्या की बात हो रही है, सृष्टा तो किसी एक प्राणी का भी विनाश नहीं होने देता, उसके लिए भी बचाव की व्यवस्था बनाई हुई है। इस बचाव के ,Defence mechanism के उदाहरण हम प्रतिदिन देखते रहते हैं। Reflex action के आटोमेटिक रिस्पांस के कारण आंधी आने पर हमारी आँखें स्वयं ही बंद हो जाती हैं।चपाती पकाते समय अगर लापरवाही से हमारा हाथ गरम तवे को छू जाता है तो Reflex action एकदम हाथ को पीछे हटा लेता है। ऐसा है सृष्टि का न्याय, ऐसी है सृष्टि द्वारा प्रदान की गयी “बचाव प्रणाली”
तप शक्ति संसार की सबसे बड़ी सृजन शक्ति:
तप शक्ति संसार में सृजन को जन्म देने वाली सबसे बड़ी शक्ति है। उसी तप ने ब्रह्मा को सृष्टि बनाने की शक्ति दी थी। उसी के बल से संसार में सुव्यवस्था स्थिर है। अल्बर्ट आइंस्टीन ने ब्रह्माण्ड के बारे में कहा है कि यह एक बहुत ही व्यवस्थित सिस्टम है इसको समझने के लिए मनुष्य का दिमाग बिल्कुल एक बच्चे जैसा है। इसी तथ्य को हमने एक बार शुभरात्रि सन्देश में शेयर किया था।
सारे ऋषिगण तपस्वी रहे हैं। उन्होंने तप विज्ञान से उत्तराखण्ड को देवलोक बनाने के लिए हिमालय के इस ध्रुव केन्द्र में प्रचंड तप किए और व्यास, वशिष्ठ, अत्रि, विश्वामित्र, भारद्वाज, जमदग्नि, कश्यप प्रभृति ऋषिगणों एवं ध्रुव पार्वती इत्यादि साधकों ने इसे देवभूमि बना दिया। उन्होंने संसार को समुन्नत सुसंस्कृत बनाने वाले अपने नेक प्रयास तप शक्ति से इस प्रकार सम्पन्न किए जिनके कारण यह धरती समूचे ब्रह्मांड में मुकुटमणि बन गयी।
इस बार भी तप शक्ति को महाविनाश के सम्मुख जुटाया गया है और वह प्रयास व्यर्थ नहीं गया है। पृथ्वी के एक कोने से दूसरे कोने तक जो विनाश की घटाएं उमड़ रही थीं, वे अब छंटने लगी हैं। स्थिति को अपनी दिव्य दृष्टि से देखने वाले कहते हैं कि अदृश्य वातावरण में रावण, कुंभकरण, जरासन्ध, हिरण्यकश्यपु जैसों की जो हुँकारें गरज रही थीं, वे अब शान्त हो चली हैं। जो विभीषिकाएं अभी शेष हैं, उनका भी समाधान होकर रहेगा। अब भयभीत होने की आवश्यकता नहीं रही। रामराज्य का अरुणोदय समीप है। अब यह किसी कुहरे के नीचे देर तक छिपा नहीं रहेगा।
नई सृष्टि बनाने के लिए ब्रह्मा ने, विश्वामित्र ने जो तप किया था, उसका प्रयोग इन दिनों चल रहा है। अपने युग के इस तपस्वी से जन-जन परिचित है और यही विदित है कि अब तक जो काम उसने अपने हाथ में लिए हैं, वे पूरा करके दिखाए हैं। आर्ष ग्रन्थों ( ऋषियों के ग्रन्थ) को सर्वसुलभ करना, विशाल प्रज्ञा परिवार का असाधारण संगठन, सहस्र कुंडीय गायत्री यज्ञ, लोक मानस के परिष्कार का युग साहित्य, विज्ञान और अध्यात्म के समन्वय के अभिनव प्रयास, परमार्थ प्रयोजनों के लिए जीवन दान देने वाले सहस्रों देवमानवों का निर्माण आदि-आदि ऐसे काम हैं जो आज की परिस्थितियों में किसी सामान्य मानवी शक्ति के बलबूते की बात नहीं है। ऐसे महान कार्य तपशक्ति के बिना और किसी प्रकार नहीं हो सकते।
“तप के प्रभाव से ऋषियों और देवताओं का अनुग्रह प्राप्त होता है और इन सबके संगठन से एक ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है, जिसे अद्भुत अनुपम कहा जा सके।”
सामान्य मनुष्य जब कभी अद्भुत काम करते हैं, युग परिवर्तन जैसे काम हाथ में लेते हैं तो समझना चाहिए कि इसके लिए इन्होंने तप की शक्ति एकत्रित कर ली है। वस्तुतः ये काम साधारण व्यक्ति नहीं करते, उनके पीछे कोई परोक्ष महती शक्ति काम कर रही होती है।
प्रज्ञा अभियान के मूल में तप शक्ति ही काम कर रही है, ऐसा तप जिसके बल पर शेषनाग धरती को अपने सिर पर उठाए हुए हैं, ऐसा तप जिसके कारण तपता हुआ सूर्य लोक-लोकान्तरों में आलोक और ऊर्जा का वितरण करता परिभ्रमण करता रहता है। इन दिनों इस तप शक्ति के सहारे ही मनुष्य में से “विष” निचोड़ा जा रहा है और उसकी आकृति वही बनी रहने पर भी प्रकृति में आमूल चूल परिवर्तन लाया जा रहा है। इसे एक दैवी आश्वासन समझा जाना चाहिए कि कल तक जो महाविनाश के हजारों कारण और लक्षण दीख पड़ रहे थे, वे घट चले और हट भी चले।
नरक से स्वर्ग में प्रवेश पाना पूरी तरह मनुष्य के हाथों में है:
युग परिवर्तन के इस पूर्वार्ध में विश्व को महाविनाश की चुनौती देने वाली प्रलय की घटाएँ अब किसी अदृश्य तूफान में उड़ गई। इस आश्वासन के साथ एक दैवी अभिवचन यह भी प्रकट हुआ है कि अगले दिनों परिवर्तन प्रक्रिया के उत्तरार्ध में सतयुग के अभिनव सृजन में जिस स्तर के व्यक्तियों की, कौशल साधनों की जरूरत है वे एकत्रित होते चले जायेंगे। मनुष्य को समझाया और यह मानने के लिए विवश किया जायेगा कि वह औसत नागरिक की तरह निर्वाह करने में सन्तोष व्यक्त करे। पतन और पाप के गर्त में जान-बूझकर न गिरे। सीमित आवश्यकताओं की पूर्ति में ही सन्तोष करे। परिवार के जो लोग सेवा सहायता कर चुके हैं उन्हीं का ऋण चुकाए। नये कर्जदार एकत्रित न करे, जो देने से पहले ही वसूल करना आरम्भ कर दें। यदि इन विडम्बनाओं से आज के मानव समाज को बचाया जा सका तो समझना चाहिए कि “स्वर्ग का राजमार्ग” अपना लिया गया। दैत्यों को देवों में बदलना कठिन नहीं है। उसमें केवल उनकी मनःस्थिति बदलनी पड़ती है, उसके उपरान्त परिस्थितियाँ तो स्वतः ही बदल जाती हैं।
“नरक से स्वर्ग में प्रवेश पाना पूरी तरह मनुष्य के हाथों में है, दैवी शक्तियों तो परोक्ष वातावरण बनाती व प्रेरणा का शंख फूंकती भर हैं।”
क्रमशः जारी -To be continued
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
__________________________
24 आहुति संकल्प सूची :
3 जनवरी 2022 के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के उपरांत आनलाइन ज्ञानरथ परिवार के 11 समर्पित साधकों ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। इस पुनीत कार्य के लिए आप सब बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं और कामना करते हैं और परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप और आप सबके परिवार पर सदैव बनी रहे। वह देवतुल्य सहकर्मी निम्नलिखित हैं l (1) रेणु श्रीवास्तव बहन जी – 38, (2) सरविन्द कुमार पाल – 35, (3) अरूण कुमार वर्मा जी – 32, (4) नीरा बहन जी – 31, (5) डा.अरुन त्रिखा जी – 27, (6) संध्या बहन जी – 27,26, (7) प्रेरणा कुमारी बेटी – 26,(8) रजत कुमार जी – 26, (9) पिंकी पाल बेटी – 25, (10) रेणुका बहन जी – 24, (11) निशा दीक्षित बहन जी – 24
उक्त सभी आत्मीय सूझवान व समर्पित सहकर्मी देवतुल्य भाइयों व बहनो को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत बहुत साधुवाद, हार्दिक शुभकामनाएँ व हार्दिक बधाई। आज की संकल्प सूची में आदरणीय रेणु बहिन जी को सबसे अधिक अंक प्राप्त करके स्वर्ण पदक विजेता होने की हमारी सामूहिक और व्यक्तिगत स्पेशल बधाई। इस प्राप्ति के लिए सभी सहकर्मियों की सहकारिता और सहभागिता को नमन।