24 दिसंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – परमपूज्य गुरुदेव की हीरक जयंती -पार्ट 4
आज का ज्ञानप्रसाद परमपूज्य गुरुदेव की हीरक जयंती श्रृंखला का चतुर्थ पार्ट है। आज परमपूज्य गुरुदेव हमें अध्यात्म तत्वज्ञान का गणित बता रहे हैं और उन्हें हमसे कुछ शिकायतें भी हैं। हर माता पिता को अपने बच्चों से बहुत बड़ी-बड़ी आशाएं होती हैं, जब बच्चे उनके स्तर से थोड़ा कम रह जाते हैं तो माता पिता की शिकायत स्वाभाविक है। इसी शिकायत में उनका मार्गदर्शन छुपा रहता है। हर बार की तरह आज भी हम किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी हैं -आखिर इंसान ही तो हैं हम।
तो आइये चलते हैं परमपूज्य गुरुदेव के चरणों में आज के ज्ञानप्रसाद काअमृतपान करने।
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गुरुदेव ने अपने मार्गदर्शक के निर्देशन पर न अनावश्यक सोच-विचार किया, न अपनी इच्छा से योजनाएं बनाई केवल अनुशासन का निर्वाह भर किया है। यह प्रक्रिया अपनाकर उन्होंने जो खोया है उससे कई हज़ार गुना पाया है।
“अध्यात्म तत्वज्ञान का यही गणित है।” This is the mathematics of spiritual philosophy.
इस फिलासफी को अपनाया जाना चाहिए और उसी आधार पर कदम उठाने का साहस जुटाना चाहिए।
हीरक जयंती पर किसकी श्रद्धांजलि,अभिव्यक्ति, कितनी बड़ी एवं मूल्यवान रही इसका मूल्याँकन इस आधार पर किया जायेगा कि किसने अपने कदम निवेदन एवं निर्देशन को सुनने, समझने एवं क्रियान्वित करने के लिए उठाये। उनके लिए कितना साहस एकत्रित किया और कितना आदर्श उपस्थित किया, जिसका दूसरे अनुकरण कर सकें, जिससे अपनेआप को आत्मिक तृप्ति, तुष्टि एवं शान्ति का लाभ मिल सका, सफलताऐं विभूतियाँ बिना बुलाये ही चरण चूम सकीं ।
अगर सचमुच में किसी का हीरक जयन्ती मनाने को मन हो वह तो दो काम करे। वे दोनों ही उनके निजी रूप से करने के हैं। उनका प्रयोग “अपने ऊपर” करना है और “अपने संपर्क क्षेत्र” के ऊपर। वे दो काम हैं 1.आत्म-परिष्कार और 2.जन-जागरण। इन दोनों कार्यों के लिए जिन्होंने जितना अधिक परिश्रम से किया होगा, उन्हें हम आंखें उठाकर टकटकी लगाये देखते रहेंगे।
प्रज्ञा परिजनों का स्तर जन साधारण की दृष्टि से कहीं ऊंचा है -आत्म परिष्कार :
प्रज्ञा परिजनों का स्तर जन साधारण की दृष्टि से कहीं ऊंचा है। आम लोग पेट-प्रजनन के अतिरिक्त जहाँ दूसरी बात सोचते ही नहीं, वहाँ प्रज्ञा पुत्रों ने लोभ, मोह और अहंकार के त्रिविध भव-बंधन अगर तोड़े नहीं तो ढीले अवश्य ही किये हैं। निजी आवश्यक कार्यों के साथ-साथ उन्होंने जन-जागृति के एवं युग परिवर्तन के कार्य को भी महत्व दिया है। यह साधारण बात नहीं, असाधारण बात है। अन्यान्य संस्था संगठनों की तुलना में प्रज्ञा परिवार का स्तर ऊंचा नहीं तो नीचा भी नहीं कहा जा सकता।
हमारी शिकायत:
इतने पर भी हमें शिकायत रही कि साधु, ब्राह्मण परम्परा का निर्वाह करने वाले देव मानव स्तर के लोगों की संख्या विस्तार, आत्मबल, त्याग, बलिदान और पवित्रता, प्रखरता एक दृष्टि से उतनी ऊंची नहीं उठ पायी जितनी कि हम उनसे चाहते थे। जो युग परिवर्तन के हनुमान, अर्जुन जैसे अग्रदूत बनते, उनसे उतना पुरुषार्थ बन नहीं पड़ा। सभी परिजन यदि मिशन का सन्देश और अधिक जन-जन तक पहुँचाना चाहें तो वर्तमान प्रज्ञा परिजनों में से प्रत्येक को 25 हजार व्यक्तियों के साथ घनिष्ठ संपर्क साधना होगा। यह ढिंढोरा पीटने की दृष्टि से तो शायद किसी कदर सफल भी हो जाय, पर जहाँ तक चिन्तन, चरित्र, व्यवहार, दृष्टिकोण और क्रिया-कलाप से काया-कल्प जैसा परिवर्तन लाने की आवश्यकता है, वहाँ यह संख्या नगण्य न सही अपर्याप्त अवश्य है। परमपूज्य गुरुदेव लिखते हैं :
“हमारा मन था कि जीवन का अंतिम अध्याय पूरा करते-करते हम एक करोड़ हनुमान, अंगद न सही पर रीछ,वानर तो मोर्चे पर खड़े कर ही सकेंगे पर वैसा बना नहीं। समय की विषमता दिन-दिन गम्भीर होती जाती है। सर्वनाश के बादल सभी दिशाओं से घुमड़ते आ रहे हैं। तूफानी विग्रहों की गणना नहीं। प्रदूषण, विकिरण जन संख्या उत्पादन जैसी समस्याएं सामने हैं। जन-जन के मन में पाशविक और पैशाचिक प्रवृत्तियाँ बढ़ रही हैं। दुष्टों द्वारा आक्रमण करने का जितना दुस्साहस है उससे अनेक गुना छद्म श्वेत वस्तधारी ( camouflaged white collar people) और भले मानुष बनने वाले लोग करते हैं। प्रपंचों, संकीर्णताओं और अवांछनीयताओं की दृष्टि से सभ्य दिखते हुए भी आदमी आदिम युग के जंगलियों जैसा असभ्य बनता जा रहा है। महायुद्ध की आपदा उन सबसे ऊपर है। किसी भी दिन बारूद के पहाड़ में कहीं से कोई चिंगारी उड़ कर पहुँच सकती है और उसका अन्त, इस सुन्दर धरती के रूप में परमात्मा की जो कलाकृति उभरी है,उसे देखते-देखते भस्मसात हो सकती है। अब की बार का युद्ध इस धरती को सम्भवतः प्राणियों के रहने योग्य भी न रहने दे।“
इस विनाश बेला में सुरक्षा शक्ति की,शान्ति सेना की जितनी बड़ी संख्या चाहिये, उसका हौसला जितना बढ़ा-चढ़ा होना चाहिये। वह प्रयत्न करने पर भी नहीं बन पड़ा। एक अच्छा संगठन खड़ा करने भर से हमें किसी भी प्रकार का सन्तोष नहीं होता। जितना बड़ा संकट है, उसके अनुरूप ही अनर्थ को रोक सकने वाली “चतुरंगिणी सेना” भी चाहिये। वह न बन पड़े तो छुटपुट प्रयत्नों का, निर्माणों का महत्व ही क्या रह जाता है।
हमारा मन था कि यदि हीरक जयन्ती मनानी है तो या तो प्रयत्न की असफलता पर धूल डालने और असफलता घोषित करने के रूप में मनाया जाय। या फिर ऐसा हो कि जो भी साथी सहयोगी हैं वे तूफान की तरह चल पड़ें, ज्वालामुखी की तरह उबल पड़ें और वह कर गुजरें जिसके लिये महाकाल ने जीवन्तों को पुकारा है। अन्यथा अपंगों,अनाथों की तरह जो लंगड़ा-लूला ढर्रा चल रहा है उसे किसी प्रकार घसीटते हुये अपने साथ धोखा करते रहें।
परमपूज्य गुरुदेव ने हीरक जयन्ती वर्ष को उत्सव के रूप में मनाने से स्पष्ट इन्कार कर दिया था। इसका कारण गुरुदेव लिखते हैं: राजनैतिक संस्थाओं के एक से बढ़कर दूसरा समारोह हर वर्ष होता है। उनमें प्रत्येक में भारी दौड़-धूप और प्रचुर पूँजी खर्च होती है। किन्तु एक सप्ताह बीतने नहीं पाता कि उस आयोजन की प्रशंसा-निन्दा तक समाप्त हो जाती है और लोग मेले ठेले के माहौल जैसा मनोरंजन करके उस बात को विस्मृति के गर्त में धकेल देते हैं,उसकी चर्चा तक समाप्त हो जाती है। इन्हीं तमाशों की तरह हम एक तमाशा और खड़ा करें। ऐसी इच्छा स्वप्न में भी नहीं है। पूरे बीस वर्ष ऐसा ही माहौल बनाते रहे पर उसके फलस्वरूप जो मिला है उसे निरर्थक तो नहीं कह सकते पर असन्तोषजनक अवश्य है।
क्रान्तियों में आँधी जैसा वेग चाहिये। अक्सर उखाड़ फेंकने वाले आन्दोलनों को ही क्रान्ति कहा जाता है। पर जिसका लक्ष्य सृजन हो, उत्पादन हो, विकास हो, काया-कल्प जैसा परिवर्तन हो, वह देवत्व की पक्षधर क्रान्ति तो और भी कठिन होती है। एक मशाल लेकर समूचे गाँव को एक घंटे में जलाया जा सकता है, फिर उस गाँव में लगे क्षेत्र में सिंचाई का प्रबन्ध करके हरीतिमा की मखमली चादर बिछाना कितना श्रम साध्य और समय साध्य होता है, इसे सभी जानते हैं। अग्निकाण्ड के लिये एक पागल का अभिमानी आचरण ही पर्याप्त है, पर लहलहाती फसल उगाने या भव्य भवन बनाने के लिये तो कुशल कारीगरों की सुविकसित योग्यता और अगाध श्रम-निष्ठा चाहिये।
प्रज्ञा परिवार सृजन का संकल्प लेकर चला है। उसके सदस्यों सैनिकों का स्तर ऊंचा चाहिये। इतना ऊंचा, इतना अनुशासित कि उसके कर्तृत्व को देखकर अनेकों की चेतना जाग पड़े और पीछे चलने वालों की कमी न रहे। बढ़िया साँचों में ही बढ़िया आभूषण या खिलौने ढलते हैं। यदि साँचे ही आड़े तिरछे हों तो उनके संपर्क क्षेत्र में आने वाले भी वैसे ही घटिया, वैसे ही फूहड़ होंगे। इसी प्रयास को सम्पन्न करने के लिये कहा गया है। इसी को उच्चस्तरीय आत्म परिष्कार कहा गया है। आत्म-निरीक्षण और आत्म-निर्माण की बात हम पिछले लेख में कर चुके हैं ,अगर आतम परिष्कार होगा तभी महाभारत जीतना सम्भव होगा । इसी “मल्लयुद्ध की विजय” शीर्षक से अप्रैल के अंक में चर्चा की है और कहा है कि जन-नेतृत्व करने वालों को आग की कसौटी पर भी खरा उतरना चाहिये। लोभ, मोह और अहंकार पर जितना अंकुश लगाया जा सके लगाना चाहिये। तभी वर्तमान प्रज्ञा परिजनों से यह आशा की जा सकेगी कि वे अपनी प्रतिभा से अपने क्षेत्र को आलोकित कर सकेंगे और सृजन का वातावरण बना सकेंगे।
जन-सम्पर्क की शक्ति :
दूसरा कार्य यह है कि नवयुग के सन्देश को और भी व्यापक बनाया जाय। इसके लिये जन-जन से संपर्क साधा जाय। घर-घर अलख जगाया जाय। मिशन की पृष्ठभूमि से अपने समूचे संपर्क क्षेत्र को अवगत कराया जाय, पढ़ाकर भी और सुनाकर भी। इन अवगत होने वालों में से जो भी उत्साहित होते दिखाई पड़ें, उन्हें कुछ छोटे-छोटे काम सौंपे जाय। भले ही वे जन्म मनाने जैसे अति सुगम और अति साधारण ही क्यों न हों क्योंकि इनके लिए भी तो कुछ श्रम करना ही पड़ता, कुछ सोचना और कुछ कहना पड़ता है तभी वह व्यवस्था जुटती है। ऐसे छोटे आयोजन सम्पन्न कर लेने पर मनुष्य की झिझक छूटती है, हिम्मत बढ़ती और वह क्षमता उदय होती है, जिसके माध्यम से नव सृजन प्रयोजन के लिये जिन बड़े-बड़े कार्यों की आवश्यकता है, उन्हें पूरा किया जा सकता है।
क्रमशः जारी -To be continued
हर बार की तरह आज भी कामना करते हैं कि प्रातः आँख खोलते ही सूर्य की पहली किरण आपको ऊर्जा प्रदान करे और आपका आने वाला दिन सुखमय हो। धन्यवाद् जय गुरुदेव
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24 आहुति संकल्प सूची – परमपूज्य गुरुदेव के “सम्पर्क साधना सिद्धांत” पर आधारित है यह 24 आहुति संकल्प :
23 दिसंबर के ज्ञानप्रसाद पर कमेंट करके निम्नलिखित 10 महान दिव्य आत्माओं ने 24 आहुति-संकल्प पूर्ण किया है :(1 )संध्या कुमार जी -24, 26 (2) निशा भरद्वाज जी -24 ,(3 )अरुण कुमार वर्मा जी -27,(4 )सरविन्द कुमार जी -45,(5 )रेनू श्रीवास्तव जी -30,(6 )डॉ अरुण त्रिखा- 26,(7 ) प्रेरणा बिटिया -26, (8 )निशा दक्षित -25, (9) उमा सिंह जी -24,(10) रजत कुमार जी -24
संध्या कुमार बहिन जी ने दो यज्ञशालाओं पर संकल्प पूर्ण तो किया ही है अन्य सहकर्मियों को भी सहायता प्रदान की है। बहुत-बहुत धन्यवाद् एवं नमन बहिन जी। सभी सहकर्मियों को इस प्रयास के लिए आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत-बहुत साधुवाद, शुभकामनाएँ एवं हार्दिक बधाई हो। आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की गुरुसत्ता से विनम्र प्रार्थना है कि इन पर जगत् जननी माँ गायत्री की असीम अनुकम्पा सदैव बरसती रहे। जय गुरुदेव
जो सहकर्मी 24 आहुति संकल्प पूर्ण न कर सके उन्हें भी हम नमन करते हैं। अधिक से अधिक सम्पर्क – Try Try again.