अध्याय 30. मनोनिग्रह का सबसे सरल और अचूक उपाय  

15  दिसंबर 2021  का ज्ञानप्रसाद – अध्याय 30. मनोनिग्रह का सबसे सरल और अचूक उपाय      

आज का ज्ञानप्रसाद केवल दो ही  पन्नों का है। मनोनिग्रह के विषय पर पिछले कई दिनों से हम स्वाध्याय कर रहे हैं। आज का अध्याय इस श्रृंखला का अंतिम अध्याय है जिसमें हम देखेंगें  कि मनोनिग्रह का सबसे अचूक उपाय ईश्वर भक्ति में रमना, ईश्वर से प्यार करना और अभ्यास करना ही है। कल वाले ज्ञानप्रसाद में हम सारे अध्यायों का सारांश  प्रस्तुत करेंगें और  ज्ञान से भरपूर इस अद्भुत  श्रृंखला की  इतिश्री करेंगें। ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार आदरणीय अनिल मिश्रा जी का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।      

मनोनिग्रह विषय की  30 लेखों की अद्भुत श्रृंखला आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के स्वाध्याय पर आधारित हैं । ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार  रामकृष्ण मिशन मायावती,अल्मोड़ा के वरिष्ठ सन्यासी पूज्य स्वामी बुद्धानन्द जी महाराज और छत्तीसगढ़ रायपुर के विद्वान सन्यासी आत्मानंद जी महाराज जी का आभारी है जिन्होंने  यह अध्भुत  ज्ञान उपलब्ध कराया। इन लेखों का  सम्पूर्ण श्रेय इन महान आत्माओं को जाता है -हम तो केवल माध्यम ही हैं।

ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार के  योजनाबद्ध टाईमटेबल में कुछ परिवर्तन :

पिछले “अपनों से अपनी बात” segment में हमने सहकर्मियों के साथ  शेयर  किया था कि मनोनिग्रह लेखों की शृंखला के बाद हम प्रेरणा बिटिया की दो ऑडियो बुक्स अपलोड करेंगें ,लेकिन अब इन ऑडियो बुक्स को 20 दिसंबर के ज्ञानप्रसाद में शामिल किया जायेगा।  ऐसा करने का कारण है कि हमारी सबकी स्नेहिल प्रेरणा बिटिया का शुभ जन्मदिवस 20 दिसंबर को है और हमें  अपनी शुभकामनायें प्रदान करने का सौभाग्य प्राप्त होगा। यह शुभ सूचना आज ही बिटिया ने फ़ोन करके बताई है। 

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तो आइये चलें आज के लेख की ओर :    

मनोनिग्रह का सबसे सरल और अचूक उपाय 

हमने मनोनिग्रह के कुछ उपायों पर चर्चा की है। पर एक सत्य को फिर से दुहराया जा सकता है। श्रीरामकृष्ण और श्रीमाँ सारदा इन दोनों ने इस सत्य पर बड़ा जोर दिया है। श्रीरामकृष्ण कहते हैं:

“जिन लोगों का मन इन्द्रिय- विषयों में आसक्त है, उनके लिए सबसे उत्तम यही है कि वे द्वैतवादी दृष्टिकोण अपनाये और भगवान् के नाम का ‘नारद- पंचरात्र’ के निर्देशानुसार जोरों से कीर्तन करें।

एक दूसरे अवसर पर श्रीरामकृष्ण ने एक भक्त से कहा था :

“भक्ति-पथ के द्वारा इन्द्रियाँ शीघ्र और स्वाभाविक रूप से नियन्त्रण मे आती हैं। जैसे-जैसे तुम्हारे हृदय में ईश्वरीय-प्रेम बढेगा, वैसे- वैसे तुम्हें दुनिया के सुख अलोने मालूम पड़ेंगे।जिसदिन अपना बच्चा मर गया हो, उसदिन देह का सुख क्या पति और पत्नी को आकर्षित कर सकता है?” 

भक्त: “पर मैंने ईश्वर को प्यार करना तो सीखा ही नहीं ?” 

श्रीरामकृष्ण: “सतत् उनका नाम लो। इससे तुम्हारा सारा पाप, काम और क्रोध धुल जायेगा तथा दैहिक- सुखों की लालसा दूर हो जायेगी।

भक्त: “पर मुझे उनके नाम में तो कोई रस नहीं मिलता।”

श्रीरामकृष्ण: “उन्हीं के पास व्याकुल होकर प्रार्थना करो, जिससे तुममें उनके नाम के लिए रुचि उत्पन्न हो। उनसे कहो – प्रभो मुझे तुम्हारे नाम में कोई रुचि नहीं होती है -। तुम देखोगे, वे अवश्य ही तुम्हारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे। यदि सन्निपात का रोगी भोजन का सारा स्वाद गंवा बैठे, तो उसके बचने की आशा नहीं। पर यदि वह भोजन में तनिक भी रस लेता है, तो तुम उसके अच्छे होने की आशा रख सकते हो। इसीलिए मैं कहा करता हूँ – उनके नाम में रस का अनुभव करो। कोई भी नाम ले लो -दुर्गा, कृष्ण, चाहे शिव। यदि दिनों-दिन तुम अपने भीतर उनके नाम के प्रति अधिकाधिक आकर्षण अनुभव करो और तुम्हें अधिक आनन्द मिलने लगे, तो फिर डरने की कोई बात नहीं. सन्निपात को दूर करना ही होगा; देखोगे, तुम पर उनकी कृपा अधिक बरसेगी। 

यही सत्य श्रीमाँ सारदा देवी के जीवन और उपदेशों से भी समान शक्ति के साथ ध्वनित होता है:

श्रीमाँ अपने खाट पर बैठी हुई थीं। शिष्य भक्तों से आयीं चिट्ठियाँ उन्हें पढ़कर सुना रहा था। चिट्ठियों में कुछ ऐसे कथन थे – मन को वश में नहीं किया जा सकता आदि आदि। श्रीमाँ ने इन पत्रों को सुना और आवेगभरे स्वर में कहने लगीं: “यदि कोई रोज पन्द्रह-से-बीस हजार का जप करता है, तो मन स्थिर होता है। यह बिल्कुल सत्य है। मैंने स्वयं इसका अनुभव किया है। पहले ये लोग इसका अभ्यास तो करें और यदि असफल हो जायँ तो भले ही शिकायत करें। भक्तिपूर्वक जप का अभ्यास करना चाहिए पर यह तो करेंगे नहीं ; वे करेंगे कुछ नहीं और केवल शिकायत करते रहेंगे- मैं सफल क्यों नहीं हो रहा हूँ ?”

श्रीमाँ ने मन को वश में करने का यह जो उपाय बताया है, उससे सरल और सशक्त उपाय और कोई भी नही है। पर इसको सरल हृदय से स्वीकार करना चाहिए और इसका अभ्यास करना चाहिए। हम स्वयं अपने तंई श्रीमाँ के इन शब्दों की परीक्षा कर लें और देखें कि हमारे जीवन में उनकी बातें सत्य घटित हैं या नहीं। किन्तु यहाँ पर एक चेतावनी अवश्य दे देनी चाहिए कि जो अभी-अभी साधना प्रारंभ कर रहा है, उसके लिए अचानक एक दिन में बीस हजार बार भगवान् के नाम का ज्ञान करना उचित नहीं है। साधक को सामान्य रूप से यथासंभव संख्या लेकर प्रारम्भ करना चाहिए और नियमित अभ्यास करते हुए, गुरू के निर्देशानुसार, उसे धीरे-धीरे बढ़ाते जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि अभी से ठीक दिशा में कुछ करना प्रारंभ कर देना चाहिए। 

ईश्वर के समीप नियमित समय पर प्रतिदिन सत्प्रवृत्ति और मन की शुद्धता के लिए आकुल प्रार्थना बड़ी सहायक होगी। मन की शुद्धता और मन की निरूद्ध अवस्था ये दोनों एक ही है। श्रीरामकृष्ण कहते हैं कि हृदय से निकली हुई प्रार्थना का उत्तर प्राप्त होता है। ज्यों-ज्यों प्रार्थना का हमारा अभ्यास तीव्र होता है, तो एक परिणाम दृष्टिगत होगा। क्रमशः हम देखेंगे कि हमारी प्रार्थना का स्वरूप बदलता रहा है: पहले वह अधिक वस्तु-केन्द्रित थी , अब वह अधिक ईश्वर- केन्द्रित हो गयी है. हमारी रुचि ईश्वर से मांग की जानेवाली वस्तु में केन्द्रित न होकर, अब ईश्वर में अधिक केन्द्रित हो गयी है। ईश्वर के प्रति यह प्रेम ही मन के निग्रह में सबसे महत्वपूर्ण अंग है। 

प्रारंभ में ऐसा लग सकता है कि हमारे हृदय में वह प्रेम बिल्कुल है ही नहीं और यदि है तो बिल्कुल अस्पष्ट सा। पर सत्संग, भगवन्नाम का जप, सन्त- महापुरुषों के जीवन और उपदेशों का अध्ययन, विधिपूर्वक पूजा-उपासना तथा भजन-कीर्तन आदि से यह प्रेम क्रमशः बढ़ाया जा सकता है। जब वह एक प्रबल शक्ति के रूप में हमारे भीतर खड़ा हो जाता है, तो हम मन:संयम की बाधक शक्ति को सरलतापूर्वक परास्त करने में समर्थ हो जाते हैं। व्यक्ति के जीवन में एक ऐसा समय आता है, जब मन अपने ही आप हमारे परम-प्रेम के विषय की ओर झुकने लगता है। मन की ऐसी अवस्था में आनन्द की उपलब्धि होती है। जब हम इस अवस्था में दृढ़ रूप से स्थित हो जाते हैं, तो अपने ही आप मन का निग्रह हमारे लिए सध जाता है। 

अतः मन को नियंत्रित कैसे करें, इस प्रश्न का सबसे पूरा उत्तर यह है: ईश्वर से प्यार करो। पर यदि तुम ईश्वर में विश्वास नहीं करते, तो अपने आप पर विश्वास करो। अपनी इच्छाशक्ति का सहारा लेकर पुरुषार्थ के द्वारा गुणों को लांघ जाओ। इस तरह से भी तुम मनोनिग्रह करने में समर्थ होंगें। 

किसी भी दशा में चाहे कोई ईश्वर में विश्वासी हो या अविश्वासी, मनोनिग्रह का एक न एक उपाय सदैव खुला रहता है। जीवन में मन: संयम की अवस्था से बढ़कर और कोई मंगल नहींं। हम इस अवस्था को पाने के लिए यथासंभव प्रयास करें, क्योंकि यही तो हमें सर्वोच्च मंगल की ओर ले जायेगी। 

धन्यवाद् ,जय गुरुदेव 

कामना करते हैं कि सविता देवता आपकी सुबह को  ऊर्जावान और शक्तिवान बनाते हुए उमंग प्रदान करें। आप हमें आशीर्वाद दीजिये कि हम हंसवृत्ति से  चुन -चुन कर कंटेंट ला सकें।

अगला लेख : सारांश 

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24 आहुति संकल्प सूची :

14 दिसंबर के  ज्ञानप्रसाद के अमृतपान उपरांत आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की  12  समर्पित दिव्य आत्माओं ने विचार परिवर्तन हेतु अपने विचारों की हवन सामग्री से कमेन्ट्स रूपी आहुति डाल कर 24 आहुतियों का संकल्प  पूर्ण किया है। वह महान वीर आत्माएं निम्नलिखित हैं:  (1) सरविन्द कुमार पाल – 46, (2) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 28, (3) सुमन लता बहन जी – 27, (4) डा.अरुन त्रिखा जी – 26, (5) अरूण कुमार वर्मा जी – 26, (6) संध्या बहन जी – 26, (7) प्रेरणा कुमारी बेटी – 25, (8) कुसुम बहन जी – 25, (9) उमा सिंह बहन जी – 25, (10) नीरा त्रिखा बहन जी – 24, (11) रजत कुमार जी – 24, (12) लता गुप्ता बहन जी – 24

उक्त सभी दिव्य आत्माओं को हम सब की ओर से  ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ व  बधाई हो और आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता दी की असीम अनुकम्पा सदैव बरसती रहे।  आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की गुरु सत्ता से विनम्र प्रार्थना एवं  मंगल कामना है l

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