अध्याय  28.मन  के  छल  से  सावधान  29.मन: संयम में ईश्वर-विश्वासी लाभ में रहते हैं।

14  दिसंबर 2021  का ज्ञानप्रसाद – अध्याय  28.मन  के  छल  से  सावधान  29.मन: संयम में ईश्वर-विश्वासी लाभ में रहते हैं। आज का ज्ञानप्रसाद केवल डेढ़ ही पन्नों का है। अध्याय 28 और 29 दोनों हैं  तो  बहुत ही छोटे  लेकिन ज्ञान और सन्देश की दृष्टि से  बहुत ही बड़े हैं। मन को अक्सर कपटी ,छलिया ,चंचल ,दर्पण आदि की परिभाषाएँ  देकर बदनाम किया गया है लेकिन जब हम पिछले कई दिनों से मनोनिग्रह पर चर्चा कर रहे हैं, अब तक इतना अनुभव तो अवश्य ही हो गया होगा कि यह सब हमारी अपनी ही धारणा  है। मन के छल -कपट से बचने की स्थिति में हम अक्सर सोच कर भयभीत होते रहते हैं कि “अगर ऐसा हो गया तो क्या होगा”  अर्थात हम कल के बारे में  सोचने पर विवश  हो जाते हैं – इसका परिणाम यह होता है कि हम अपना “आज” यानि वर्तमान ख़राब कर देते हैं। तो मैसेज यही हुआ “ Try to live for today only” इसी परिपेक्ष्य में हमारा आज का कमेंट अवश्य पढ़ें, हो सकता है कई वरिष्ठ सहकर्मी 5-6 दशक पुरानी  रोमांचकारी यादों का आनंद उठा सकें।      

आजकल प्रकाशित किये जा रहे ज्ञानप्रसाद, मनोनिग्रह विषय की  30 लेखों की अद्भुत श्रृंखला आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के स्वाध्याय पर आधारित हैं । ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार  रामकृष्ण मिशन मायावती,अल्मोड़ा के वरिष्ठ सन्यासी पूज्य स्वामी बुद्धानन्द जी महाराज और छत्तीसगढ़ रायपुर के विद्वान सन्यासी आत्मानंद जी महाराज जी का आभारी है जिन्होंने  यह अध्भुत  ज्ञान उपलब्ध कराया। इन लेखों का  सम्पूर्ण श्रेय इन महान आत्माओं को जाता है -हम तो केवल माध्यम ही हैं।

प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद :

मन  के  छल  से  सावधान:

हमें जान  रखना चाहिए कि कभी कभी मन  अपने  साथ  छल करता है, यानि   अवचेतन मन   चेतन मन  से  कपट  करता है।  जब  हम  चेतन  स्तर  पर  किसी   पर  किसी  प्रलोभन  या  दुर्बलता  से  संघर्ष  करते  होते  हैं,  तो  अचानक  हमारे  मानसपटल  पर  एक अधिक  दुर्दशापूर्ण  अवस्था का   चित्र  कौंध  जाता  है और  हम  भयभीत  होकर  हैरत  में पड़ जाते हैं: ‘ऐसी  कठिनाइयाँ  अगर  मुझे  घेर  लें,   तो   मैं  क्या  करुँगा? ‘   अपने  भविष्य  की  चिन्ता  करने से हम  वर्तमान  को  गँवा  बैठते हैं। असावधान  रहने  के  कारण  हम  वर्तमान  के  प्रलोभन  द्वारा  बहा  लिये  जाते  हैं। 

हम इस  तोड़फोड़ से अपनी रक्षा  कैसे  करें?  हम  काल सम्बन्धी  अपनी धारणा को स्पष्ट  बनाकर  ऐसा  कर  सकते हैं। जर्मन रहस्यवादी     मीस्टर एकहार्ट     का  कथन  है: ‘इस  क्षण  के  हृदय  में  शाश्वत  समाया  हुआ है। ‘  हमें स्पष्ट रूप से देखना  चाहिए कि   हर क्षण  केवल  ‘यह  क्षण’  ही  है।   यदि हमने   इस  क्षण  की  जिम्मेदारी  निभा ली, तो  हमने  समस्त  भविष्य   की  भी  जिम्मेदारी  निभा  ली। यदि  हम इस  क्षण  प्रलोभन के  फेर  में  नहीं  पड़ते हैं तो  हम कभी भी  उसके  फेर  में  नहीं  पड़ेंगे। 

अतएव  परिस्थिति  चाहे  जैसी  हो,   हम    इस  क्षण  अपने  संकल्प  में  दृढ़  रहें   और  हमें  सफलता   मिलेगी  ही।   भविष्य   माया   को  छोड़कर   कुछ  नहीं  है।   जब  शैतान   हमारे  वर्तमान  को  खा  जा  रहा  है,   तो  उसे  बचाना  छोड़  भविष्य  की  चिंता  करना   केवल   मूर्खता  ही   है।  

आध्यात्मिक जीवन  की  चुनौती बड़ी  सरल  है और  वह  यह  कि    केवल  इस  क्षण  के  लिए  हम  भले, यथार्थ  में   नैतिक,  और अपने आप  के  स्वामी  बन जायँ।  भला इस  क्षण के   बाहर  दूसरा  समय  है  कहाँ , जिसकी  हम  चिन्ता  करें ? 

मन: संयम में ईश्वर-विश्वासी लाभ में रहते हैं:

जहाँ तक मन: संयम का प्रश्न है, जो ईश्वर में विश्वास करते हैं उन्हें उनकी अपेक्षा एक स्पष्ट  लाभ होता है जो  ईश्वर में  विश्वास  नहीं  करते। जब  ईश्वर में  विश्वास  पैदा करने का  हृदय से अभ्यास किया जाता है, तो मन के संयम  में  हमें  सशक्त  सहायता  मिलती है।   भक्ति  के  अभ्यास द्वारा  ईश्वर के लिए अनुराग बढ़ता है; और  ईश्वर  के  प्रति  यह  अनुराग   मन: संयम  की  बाधाओं  को    दूर  करने का  आश्चर्यजनक काम  करता है।  श्रीरामकृष्ण  के  शब्दों में :

“बाघ जैसे  दूसरे पशुओं को खा जाता है, वैसे ही  ‘अनुराग रूपी बाघ ‘ काम- क्रोध आदि रिपु को खा जाता है।  एक बार ईश्वर पर अनुराग  होने से फिर  काम-क्रोध आदि नहीं रह जाते।   गोपियों  की  ऐसी  ही  अवस्था  हुई  थी।  श्रीकृष्ण  पर  उनका  ऐसा ही  अनुराग  था।” 

जब काम,  क्रोध, आदि अन्य  रिपु  दूर  होते  हैं, तो  मन  शुद्ध  हो  जाता है।   शुद्ध मन  सरलतापूर्वक नियंत्रण में आ जाता है।   पर  अविश्वासी  को  बड़ी कठोर  और  लम्बी मेहनत करनी पड़ेगी, क्योंकि   जबतक वह अपना अविश्वास  नहीं  छोड़ता, ईश्वर के लिए  उसमें  अनुराग  नहीं  पेदा  हो  सकता।   श्रीकृष्ण  उपदेश  करते हैं:

मेरा  जो भक्त अभी  जितेन्द्रिय नहीं  हो सका है और  संसार  के  विषय  जिसे  बार-बार बाधा पहुंचाते रहते हैं–अपनी ओर  खींच  लिया  करते हैं, वह  भी  मेरी प्रगल्भ भक्ति के प्रभाव से प्राय: विषयों  से   पराजित  नहीं  होता।”

ईश्वर-विश्वासी  के जीवन में  मन  की  पवित्रता जिस  मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया में से  होकर आती है,वह सरल है। जब  उसमें  ईश्वर के प्रति  अनुराग  उत्पन्न होता है, तब उसका  मन  उसी  पर  रमता  रहता है  क्योंकि हम  स्वाभाविक ही  अपने  प्रेमास्पद में  रम  जाते हैं।  हमारा  मन  जिस पर केन्द्रित होता है, हम उसके गुणों  को  आत्मसात् कर लेते हैं।   अतएव  हम  जब  ईश्वर पर   अपने  मन  को  केन्द्रित करते हैं, तो गीता  की  भाषा में, हम अपने भीतर  दैवी- सम्पद्    को  आत्मसात् करते हैं।   हृदय की पवित्रता, इन्द्रियों का दमन, क्रोध का  अभाव,  मन  की  प्रशान्ति और बुद्धि की स्थिरता  ये दैवी सम्पदों में से कुछ  सम्पद्  हैं, जिनकी प्राप्ति  ईश्वर  का  एक  सच्चा भक्त बिना  किसी  विशेष प्रयत्न के  कर  लेता है।  दूसरे शब्दों में  वह  अपने आप  ही  मन  पर  नियंत्रण पा  लेता  है।

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24 आहुति संकल्प सूची:

13 दिसंबर 2021 के ज्ञानप्रसाद के अमृतपान उपरांत आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की  8 समर्पित दिव्य आत्माओं ने विचार परिवर्तन हेतु अपने विचारों की हवन सामग्री से कमेन्ट्स रूपी आहुति डाल कर 24 आहुतियों का संकल्प  पूर्ण किया है। वह महान वीर आत्माएं निम्नलिखित हैं: (1) सरविन्द कुमार पाल – 32, (2) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 30, (3) नीरा बहन जी – 28, (4) अरूण कुमार वर्मा जी – 27, (5) संध्या बहन जी – 26, (6) डा.अरुन त्रिखा जी – 24, (7) रजत कुमार जी – 24, (8) प्रेरणा कुमारी बेटी –

उक्त सभी दिव्य आत्माओं को हम सब की ओर से  ढेर सारी हार्दिक शुभकामनाएँ व  बधाई हो और आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता दी की असीम अनुकम्पा सदैव बरसती रहे।  आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की गुरु सत्ता से विनम्र प्रार्थना एवं  मंगल कामना है l धन्यवाद l

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