13 दिसंबर 2021 का ज्ञानप्रसाद – अध्याय 27. अवचेतन मन का संयम भाग 2
आज का ज्ञानप्रसाद केवल दो ही पन्नों का अध्याय 27 का द्वितीय भाग है। भाग 1 में हमने अचेतन (unconscious), चेतन(conscious), अवचेतन( subconscious) एवं अतिचेतन (superconscious) मन को समझने का प्रयास किया। हमारे सूझवान पाठकों ने हर बार की तरह इस लेख को भी बहुत सराहा। आदरणीय JB Paul जी ने तो सराहना में यहाँ तक लिख दिया कि “यह लेख मेरे लिए ही लिखा है, मेरे मनरुपी दवात की स्याही धीरे -धीरे साफ़ हो रही है।” आज के लेख के अंतिम वाक्यों में कर्मयोग की कठिनता और भक्तियोग की सरलता की बहुत ही संक्षिप्त चर्चा है।
आजकल प्रकाशित किये जा रहे ज्ञानप्रसाद, मनोनिग्रह विषय की 30 लेखों की अद्भुत श्रृंखला आदरणीय अनिल कुमार मिश्रा जी के स्वाध्याय पर आधारित हैं । ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार रामकृष्ण मिशन मायावती,अल्मोड़ा के वरिष्ठ सन्यासी पूज्य स्वामी बुद्धानन्द जी महाराज और छत्तीसगढ़ रायपुर के विद्वान सन्यासी आत्मानंद जी महाराज जी का आभारी है जिन्होंने यह अध्भुत ज्ञान उपलब्ध कराया। इन लेखों का सम्पूर्ण श्रेय इन महान आत्माओं को जाता है -हम तो केवल माध्यम ही हैं।
आज का लेख आरम्भ करने से पूर्व हम अपने सहकर्मियों के साथ एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति साँझा कर रहे हैं। हमारे आदरणीय एवं परमप्रिय सहकर्मी अरुण कुमार वर्मा जी के मोटरबाइक स्किड होने से दाईं टाँग में दो fracture आये हैं। आज प्रातः आँख खुले ही इस दुर्भाग्यपूर्ण मैसेज को देख लिया था लेकिन बाद में लगभग 42 मिंट बात करके सारी जानकारी प्राप्त की। पलस्तर लगा हुआ है जो लगभग 6 सप्ताह तक रहेगा। हम सभी सहकर्मियों से निवेदन करते हैं कि प्रतिदिन एक माला गायत्री मन्त्र की अवश्य करें और परमपूज्य गुरुदेव से उनके शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए प्रार्थना करें। ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार का सदैव कर्तव्य रहा है कि चाहे वह विनीता जी की बहिन हो य प्रेम शीला मिश्रा जी की बेटी हो ,य कोई भी सहकर्मी हो हमारे अन्तःकरण से निकली भावना उन सभी तक अवश्य पहुंचे।
प्रस्तुत है आज का ज्ञानप्रसाद :
पर ‘अचेतन’ के संयम से हमारा पूरा कार्य नहीं बन जाता। उससे भी अधिक कुछ है। अत: स्वामी विवेकानन्द कहते हैं:
“अचेतन को अपने अधिकार में लाना हमारी साधना का पहला भाग है। दूसरा है चेतन के परे जाना। जिस तरह चेतन अचेतन के नीचे उसके पीछे रहकर कार्य करता है, उसी तरह चेतन के ऊपर उसके अतीत भी एक अवस्था है। जब मनुष्य इस अतिचेतन अवस्था को पहुँच जाता है, तब वह मुक्त हो जाता है, ईश्वरत्व को प्राप्त हो जाता है। तब मृत्यु अमरत्व में परिणत हो जाती है, दुर्बलता असीम शक्ति बन जाती है अतिचेतन का यह असीम राज्य ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है।”
इस विषय में अपनी शिक्षा को और भी शक्तिशाली ढंग से खोलते हुए, वे कहते हैं:
“अतएव यह स्पष्ट है कि हमें दो कार्य अवश्य ही करने होंगे। एक तो यह कि ‘इड़ा और पिंगला’ के प्रवाहों का नियमन कर अचेतन कार्यों को नियमित करना; और दूसरा, इसके साथ ही साथ चेतन के भी परे चले जाना।”
ग्रन्थों में कहा है कि योगी वही है जिसने दीर्घकाल तक चित्त की एकाग्रता का अभ्यास करके इस सत्य की उपलब्धि कर ली है। अब सुषुम्ना का द्वार खुल जाता है और इस मार्ग में वह प्रवाह प्रवेश करता है जो इसके पूर्व इसमें कभी नहीं गया था, वह ( जैसा की अलंकारिक भाषा में कहा है) धीरे धीरे विभिन्न कमल चक्रों में से होता हुआ, कमल दलों को खिलाता हुआ, अन्त में मस्तिष्क तक पहुँच जाता है। तब योगी को अपने सत्य स्वरूप का ज्ञान हो जाता है, वह जान लेता है कि वह स्वयं परमेश्वर ही है।
यहाँ पर राजयोग के माध्यम से प्राणायाम के द्वारा कुणडलिनी को जगाने का उल्लेख हुआ है। यह प्राणायाम मन के संयम में सहायक होता है। जैसा हम ऊपर कह चुके हैं, इस प्राणायाम की शिक्षा किसी जानकार और पटु शिक्षक से ग्रहण करनी चाहिए। पर ऐसे शिक्षक का मिलना सरल नहीं है। जो यथार्थ में साधक हैं और संयमी हैं और जिन्हें भाग्य से ऐसा शिक्षक प्राप्त हो गया है, वे उससे प्राणायाम सीख सकते हैं। इससे उनका मनोनिग्रह का कार्य सरल हो जायेगा। किन्तु ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो अपने मन से संघर्ष करते रहते हैं और उसे अपने वश में करना चाहते हैं पर जिन्हें प्राणायाम के अभ्यास के लिए न तो अनुकूल वातावरण -धुआं तथा कुहरे से भरे शहरों से अलग स्थान- मिलता है और न किसी निपुण शिक्षक से वह सब सीखने का अवसर ही प्राप्त होता है। इसलिए उनमें से बहुतों को दूसरी साधनाओं पर निर्भर रहना चाहिए जो श्रद्धा और अध्यवसाय के साथ की जाने पर समान रूप से ही प्रभावी होती है। इन साधनाओं में ऊँँ के अर्थ का ध्यान करते हुए उसका जप करना सबसे अधिक फलदायी है।
जब किसी व्यक्ति की कुण्डलिनी जग जाती है, तो अवचेतन मन के संयम का कठिन कार्य भी अपनेआप सध जाता है। पर सच तो यह है कि राजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी को जगाने का अभ्यास अधिकांश लोगों के द्वारा सहज ही नहीं किया जा सकता।
सौभाग्य से दूसरी अन्य साधनाएँ भी हैं, जिनके अभ्यास से मनुष्य की आध्यात्मिक चेतना को जगाया जा सकता है। श्रीरामकृष्ण उपदेश देते हैं:
“केवल पुस्तक पढ़ने से चैतन्य नहीं होता। भगवान को पुकारना चाहिए। व्याकुल होने पर कुल-कुण्डलिनी जाग्रत होती है। भक्तियोग से कुल -कुण्डलिनी शीघ्र जाग्रत होती है।”
एक दिन किसी शिष्य ने स्वामी ब्रह्मानन्द से पूछा: “महाराज, कुण्डलिनी को कैसे जगाया जाता है?”
उन्होंने उत्तर दिया:
“कुछ लोग कहते हैं कि उसके लिए कुछ प्रक्रियाएँ हैं, पर मैं मानता हूँ कि भगवन्नाम के जप और ध्यान के द्वारा यह सबसे अच्छा सध सकता है। हमारे इस युग के लिए जप का अभ्यास और ईश्वर का ध्यान विशेष अनुकूल है। इससे बढ़ कर सरल साधना और नहीं है। पर स्मरण रखो, मन्त्र के जप के साथ साथ ध्यान भी अवश्य चलना चाहिए।”
इस प्रकार भक्तियोग के माध्यम से प्रार्थना, भगवन्नाम का जप और ध्यान आदि के द्वारा हमारी आध्यात्मिक संभावनाएँ प्रकट हो जाती हैं। इससे अवचेतन मन की गड़बड़ियाँ अपने आप ठीक होने लगती हैं। अत: किसी को यह सोचकर हताश नहीं होना चाहिए कि राजयोग का अभ्यास करने में समर्थ न होने के कारण उसके लिए अवचेतन मन को नियंत्रण में लाने का रास्ता बन्द हो गया है। संसार में इतना असहाय कोई नहीं है कि वह भगवन्नाम का जप न कर सके। यदि कोई है तो समझ लेना चाहिए कि उसके लिए मनोनिग्रह का समय अभी नहीं आया है।
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24 आहुति संकल्प सूची :
11 दिसंबर 2021 के प्रकाशित लेख में आनलाइन ज्ञान रथ परिवार के 9 सूझवान व समर्पित नव सृजन सेनानियों ने 24 आहुतियों का संकल्प पूर्ण कर मन और उसका निग्रह पर अपनी विजय पताका फहराकर हम सबका उत्साहवर्धन व मार्गदर्शन कर मनोबल बढ़ाने का परमार्थ परायण कार्य किया है। निम्नलिखित सभी सृजन सैनिकों को आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की तरफ से बहुत-बहुत साधुवाद व हार्दिक शुभकामनाएँ। सब पर आद्यिशक्ति जगत् जननी माँ भगवती गायत्री माता की असीम अनुकम्पा सदैव बरसती रहे यही आनलाइन ज्ञान रथ परिवार की गुरु सत्ता से विनम्र प्रार्थना व पवित्र शुभ मंगल कामना है। (1) नीरा बहन जी – 35, (2) सरविन्द कुमार पाल – 35, (3) अरूण कुमार वर्मा जी – 32, (4) रेनू श्रीवास्तव बहन जी – 26, (5) डा.अरुन त्रिखा जी – 25, (6) प्रेरणा कुमारी बेटी – 25, (7) रजत कुमार जी – 25, (8) संध्या बहन जी – 24, (9) कुसुम बहन जी – 24